टॉन्सिलेक्टोमी में गले के टॉन्सिल्स निकाले जाते हैं। इस ऑपरेशन से नींद आने में दिक्कत और बार-बार हो रहे संक्रमण का इलाज किया जाता है। मुंह में गले के पीछे दो नरम ऊतक होते हैं जिन्हें टॉन्सिल्स कहा जाता है। इनमें सफेद रक्त कोशिकाएं होती हैं जो संक्रमण से लड़ने में मदद करती हैं, लेकिन कभी-कभी टॉन्सिल्स खुद संक्रमित हो जाते हैं।
टॉन्सिल्स में संक्रमण होने पर इनमें सूजन आ जाती है, जिसकी वजह से गले में खराश होने लगती है। इस स्थिति को टॉन्सिलाइटिस कहते हैं। बार-बार टॉन्सिलाइटिस होने पर टॉन्सिलेक्टोमी (सर्जरी) करवाने की जरूरत पड़ सकती है। टॉन्सिलाइटिस के अन्य लक्षणों में बुखार, निगलने में दिक्कत और गर्दन के आसपास की ग्रंथियों में सूजन शामिल हैं।
गले पर लालिमा और टॉन्सिल्स पर सफेद या पीले रंग की परत जम सकती है। कभी-कभी ये सूजन खुद ही ठीक हो जाती है, जबकि कुछ मामलों में एंटीबायोटिक या टॉन्सिलेक्टोमी ऑपरेशन की जरूरत पड़ सकती है।
अध्ययन में पाया गया कि भारत में क्रोनिक टॉन्सिलाइटिस रोगियों की सबसे सामान्य आयु 11 से 20 वर्ष है (56% मामले)। इसके अलावा पुरुषों में ये समस्या 62 फीसदी और महिलाओं में 38 फीसदी देखी जाती है।। टॉन्सिलेक्टोमी के बाद होने वाली सबसे सामान्य जटिलताओं में हीमेटोमा (रक्त वाहिका के बाहर खून का असामान्य रूप से जमा होना) और बुखार शामिल हैं।