आयुर्वेद में प्राचीन भारत में इस्तेमाल की जाने वाली चिकित्सा पद्धति है जिसमें रोग का निवारण जड़ से किया जाता है। इस पद्धति का प्रयोग भारत में 2000 से 5000 वर्ष से भी पहले से हो रहा है। माना जाता है कि प्रत्येक व्यक्ति में अपनी ऊर्जा होती है जो उसके मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को कंट्रोल करती है। आयुर्वेद के अनुसार तीन बायोलॉजिकल एनर्जीज़ (biological energies) हैं जो एक व्यक्ति के मन और शरीर में मौजूद हैं। इन ऊर्जाओं को दोषों के रूप में जाना जाता है। इन तीन दोषों के नाम हैं - वात, पित्त और कफ दोष। माना जाता है कि ये दोष पांच मूल तत्वों से उत्पन्न होते हैं जिन्हें पंच भूत कहा जाता है - पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश।
अलग अलग गुणों के आधार पर इन दोषों को निर्धारित किया जाता है। कहा जाता है कि कुछ लोगों में सभी दोष एक संतुलित स्थिति में मौजूद होते हैं जबकि कुछ अन्य में, एक दोष अपनी सामान्य मात्रा से ज्यादा या कम हो सकता है जिसके कारण कुछ स्वास्थ संबंधी समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं। दोष एक ही स्थिति में नहीं रहते बल्कि किसी व्यक्ति के भोजन, जीवन शैली और पर्यावरण के कारण बदलते रहते हैं। लेकिन यह माना जाता है कि जब व्यक्ति के आज के दोषों की स्थिति उसके जन्म के समय वाले दोषों की स्थिति के बराबर होती है तो वो स्वस्थ रहता है। तो आइये जानते है ये दोष क्या है और ये किस तरह व्यक्ति को प्रभावित करते हैं।
- वात, पित्त और कफ दोष क्या होते हैं? - Vata Pitta and Kapha dosha kya hote hai
- अपनी प्रकृति (वात पित्त कफ) कैसे जाने? - Vata pitta kapha prakriti in hindi
- सारांश
वात, पित्त और कफ दोष क्या होते हैं? - Vata Pitta and Kapha dosha kya hote hai
आयुर्वेद के अनुसार दोष (देहद्रव) क्या होते हैं और उनके कितने प्रकार हैं?
हमारे शरीर में वात, पित्त और कफ तीन प्रकार की जैविक ऊर्जा या त्रिदोष है जो कि व्यक्ति की प्रकृति निर्धारित करते हैं। वे व्यक्ति के शरीर के प्रकार और व्यक्तित्व की विशेषताओं का निर्धारण करते हैं। प्रत्येक दोष में पांच मूल तत्व, पृथ्वी, वायु, जल, अंतरिक्ष और अग्नि हैं। ये दोष लगातार बदलते रहते हैं और हमारे द्वारा खाए जाने वाले भोजन, व्यायाम और नींद जैसी दैनिक गतिविधियों और यहां तक कि हमारे विचारों से भी प्रभावित होते हैं। तीनों दोषों के बीच संतुलन किसी व्यक्ति के अच्छे स्वास्थ्य का निर्धारण करने के सबसे महत्वपूर्ण मानदंडों में से एक है। इन दोषों में परिवर्तन या असंतुलन व्यक्ति को रोगों की ओर ले जाता है। आयुर्वेदिक ग्रंथों द्वारा वर्णित प्रत्येक दोष के गुण निम्नलिखित हैं।
वात दोष क्या है? - Vata dosha kya hai
आयुर्वेद में वात को चंचल, ठंडा, रूखा जैसे हवा, पारदर्शी, हल्का और सूखा कहा गया है। वात को शरीर की गंध, गति, शरीर की गतिविधियों और गति में परिवर्तन के लिए जिम्मेदार माना जाता है। वात बहुत महत्वपूर्ण दोष है क्योंकि यह अन्य दो दोषों को नियंत्रित करता है और शरीर के सभी कार्यों को पूरा करता है। वैसे तो वात शरीर की सभी कोशिकाओं में मौजूद है, लेकिन ये मात्रा शरीर के विभिन्न स्थानों और अंगों में इसके वितरण के अनुसार अलग अलग होती है। उदाहरण के लिए, वात प्रमुख रूप से जोड़ों, बड़ी आंत (कोलन), कान की हड्डियों, कंधे की मांसपेशियों और पीठ के निचले हिस्से में देखा जाता है।
अन्य अंगों की तुलना में, रीढ़ की हड्डी और मस्तिष्क में वात की मात्रा अधिक होती है। वात का प्राथमिक कार्य प्रजनन, श्वसन और लसीका प्रणालियों को नियमित करना तथा शरीर व रक्त कोशिकाओं में उचित रक्त संचरण को बनाए रखना है। वात हार्मोन और न्यूरोट्रांसमीटर के स्राव को नियंत्रित करके मस्तिष्क में कार्यों को बनाए रखने में भी मदद करता है।
वात के प्रकार
अपने-अपने स्थानों और कार्यों के अनुसार वात के निम्नलिखित प्रकार होते हैं:
- उदान -
यह नाभि क्षेत्र, छाती, नथुनों और नाक के मार्ग में स्थित है। यह गुण हमारी चेतना, बोलना, शरीर का तेज, ऊर्जा का स्तर और श्वसन आदि को नियंत्रित करने में मदद करता है।
- समान -
यह पूरे पेट में मौजूद होता है और भोजन को आत्मसात करने में मदद करता है तथा पाचन और उत्सर्जन को नियंत्रित करता है।
- अपान -
यह आंत संबंधी अंगों, जनन अंगों, मूत्र पथ, नितंब और पेट व जांघ के बिच के अंगों (इनगुइनल ऑर्गन) में स्थित है। यह मूत्र, मल, वीर्य का तरल पदार्थ, मासिक धर्म प्रवाह को नियमित करने और बच्चे के जन्म में मदद करता है।
- प्राण -
यह मस्तिष्क के कुछ महत्वपूर्ण केंद्रों में स्थित है और अन्य प्रकार के वात की गतिविधियों को नियंत्रित करने में मदद करता है।
- व्यान -
यह हृदय में स्थित है और स्वायत्त तंत्रिका तंत्र के अनुरूप रीढ़ की हड्डी के अनैच्छिक रिफ्लेक्स में मदद करता है। यह मांसपेशियों के संकुचन और विश्राम, रक्त और लसीका परिसंचरण और शरीर के स्राव जैसे कि नसों की उत्तेजना के माध्यम से पसीना आदि को नियंत्रित करता है।
असंतुलन का कारण बनने वाले कारक
सूखे, तीखे, कड़वे और कसैले खाद्य पदार्थ खाना, मल मूत्र समय पर न त्यागना , काम की अति , चिंता, कम सोना, यौन गतिविधियों में वृद्धि और अत्यधिक व्यायाम आदि कारक शरीर में वात के स्तर में असंतुलन पैदा कर सकते हैं। सामान्य वात स्तरों में परिवर्तन से शरीर के न्यूरोलॉजिकल सिस्टम में बदलाव होते हैं।
वात के असंतुलन के कारण होने वाले लक्षण
जब शरीर में वात का स्तर बदल जाता है तो निम्नलिखित लक्षणों को देखा जाता है:
- त्वचा का खुरदरापन
- अंगों का असंतुलित ढंग से हिलना डुलना
- हड्डियों में कैविटी बन जाना
- मुंह में कसैला स्वाद आना
- ऐंठन
- शरीर में तेज दर्द
पित्त दोष क्या है? - Pitta dosha kya hai
पित्त को खट्टापन, नमी, गर्मी, ऊर्जा, तेज और अग्नि के रूप में जाना जाता है
पित्त का मुख्य कार्य विभिन्न चयापचय की प्रक्रिया को नियंत्रित और शरीर में हार्मोन को नियमित करना है। पित्त , यकृत, हृदय, त्वचा, पेट, अग्न्याशय और तिल्ली (स्प्लीन) में रहता है । पित्त प्यास, शरीर की गर्मी, बुद्धि का स्तर, दृष्टि, चयापचय और शांतपन को नियमित करने में मदद करता है।
पित्त के प्रकार
अपने-अपने स्थानों और कार्यों के अनुसार पित्त के निम्नलिखित प्रकार हो सकते हैं:
- साधक -
यह हमारे हृदय में स्थित है और शरीर का तापमान, रंग, जीवन काल और शरीर के तेज को नियंत्रित करता है।
- आलोचक -
यह त्वचा में मौजूद होता है तथा शरीर की नमी, त्वचा के स्वास्थ्य और गर्मी के स्तर को नियंत्रित करता है।
- पाचक -
यह छोटी आंत और पेट में स्थित होता है। यह शरीर में अग्नाशय और पित्त के रस के गठन को नियंत्रित करता है।
- भ्राजक -
यह आंखों में मौजूद है और दृष्टि को बनाए रखने में मदद करता है।
- रंजक -
यह यकृत, पेट, अग्न्याशय और तिल्ली (स्प्लीन) में स्थित है तथा चयापचय और पाचन को पूरा करने और तिल्ली में रक्त कोशिकाओं के निर्माण में मदद करता है।
पित्त के असंतुलन का कारण बनने वाले कारक
बहुत तेज गरम खाना , जलन पैदा करने वाले खाद्य पदार्थ और ऐसे खाद्य पदार्थ जो बहुत नमकीन, मसालेदार और चटपटे हो वो शरीर में पित्त दोष को खराब करते हैं। शरीर में पित्त के स्तर में उतार-चढ़ाव चयापचय, एंजाइमेटिक और पाचन तंत्र में परिवर्तन का कारण बनता है।
पित्त के असंतुलन के कारण होने वाले लक्षण:
पित्त दोष के असंतुलन के साथ जुड़े कुछ लक्षण निम्नलिखित हैं:
- मुंह में खट्टा और तीखा स्वाद
- बेहोशी और अत्यधिक पसीना आना
- चेहरे और शरीर पर लालिमा और पेट में जलन
- गहरे लाल और सफेद रंग न देख पाना
(और पढ़ें - पित्त दोष के बारे में सभी जानकारी)
कफ दोष क्या है? - Kapha dosha kya hai
कफ का वर्णन करने के लिए आयुर्वेद में शांत, मुलायम, नम, पतला, भारी और स्थिर आदि शब्दों का उपयोग किया जाता है।
कफ का स्थान और कार्य
कफ जोड़ों की स्थिरता और शरीर में नमी, सहनशीलता और शक्ति को बनाए रखने में मदद करता है। यह शरीर को मजबूत करता है और शरीर के वजन को समान बनाए रखने के लिए लाभकारी है । अन्य दो दोषों की तरह, कफ शरीर की सभी कोशिकाओं में मौजूद होता है, उदाहरण के लिए, कफ प्रमुख रूप से छाती, जोड़ों, जीभ और मस्तिष्क की श्लेष झिल्ली में पाया जाता है। कफ शरीर को वसा, त्वचा, नमी, फेफड़े, मल और मूत्र के माध्यम से अतिरिक्त गर्मी से छुटकारा दिलाता है।
कफ के प्रकार
अपने-अपने स्थानों और कार्यों के अनुसार कफ के निम्नलिखित प्रकार हैं:
- तर्पक -
यह मस्तिष्क में मौजूद है तथा स्पर्श, गंध, श्रवण, दृष्टि और स्वाद की इंद्रियों को नियंत्रित करता है।
- क्लेदक -
यह पेट में स्थित है तथा यह भोजन को नम करता है और पेट को ठंडा करता है।
- अवलंबक -
यह छाती में मौजूद है तथा यह शरीर को रक्त, आर्द्रता और तरल पदार्थ की आपूर्ति करने में मदद करता है और अन्य दोषों की अपने कार्यों को करने में सहायता करता है।
- श्लेष्क -
यह जोड़ों में स्थित है और शरीर को चिकनाई प्रदान करता है।
- बोधक -
यह जीभ में पाया जाता है तथा यह मुंह में लार जैसे रस के स्राव को नियंत्रित करता है जो भोजन को गले से आसानी से गुजरने में मदद देता है।
कफ के असंतुलन का कारण बनने वाले कारक
फैटी और चिकना खाद्य पदार्थ खाने, बहुत ज्यादा सोने, ठंड के मौसम में अधिक रहना, दिन के दौरान सोना, शारीरिक रूप से कम सक्रिय रहना और पसीना आना जैसे कारक शरीर में कफ के स्तर के असंतुलन का कारण बनते हैं।
कफ के असंतुलन के साथ जुड़े लक्षण:
शरीर में जब कफ का स्तर असंतुलित होता है तो निम्नलिखित लक्षणों में से कुछ लक्षण दिखते हैं:
- कमजोर पाचन
- मुँह में नमकीन स्वाद
- पीली त्वचा
- भारीपन या ठंड लगना
- अंगों के हिलने ढुलने में कमी
- बीमारी के बाद बहुत धीरे ठीक होना
(और पढ़ें - कफ दोष के बारे में सभी जानकारी)
अपनी प्रकृति (वात पित्त कफ) कैसे जाने? - Vata pitta kapha prakriti in hindi
आयुर्वेद के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति की एक शारीरिक और मानसिक प्रकृति होती है। अधिकांश लोगों के शरीर की एक अलग प्रकृति होती है और कुछ लोगों में दो प्रकार के दोष भी हो सकते हैं । निम्नलिखित कुछ शारीरिक लक्षण हैं जो वात, पित्त और कफ दोष की प्रकृति वाले व्यक्तियों में पाए जाते हैं।
वात प्रकृति के लक्षण - Vata prakriti ke vyakti ke lakshan in hindi
वात दोष का मुख्य गुण "सूखापन" है। आम तौर पर वात प्रकृति वाले लोगों में पाए जाने वाले शारीरिक लक्षण इस प्रकार हैं:
- पतला शरीर और हड्डियां
- गहरे रंग के बाल
- सूखे बाल और त्वचा
- टेढ़ा चेहरा
- अजीब पदार्थों से लगाव
वात प्रकृति वाले लोगों में आमतौर पर निम्नलिखित मानसिक लक्षण पाए जाते हैं:
- अस्थिर मानसिक व्यवहार
- उत्साह
- अक्सर चीजों को खोना और गलत जगह पर रखना (और पढ़ें - भूलने की बीमारी का इलाज)
- रचनात्मकता और कलात्मक प्रकृति
- संवेदनशीलता और शर्मीलापन
- त्वरित सोच और सनकपन
- समस्याओं और चुनौतियों से अच्छी तरह निपटना
वात का असंतुलन तब होता है जब प्राण (जीवन देने वाली शक्ति) वात को नियंत्रित करने में सक्षम नहीं होते हैं। एक असंतुलित वात वाले लोगों के मानसिक लक्षणों में निम्नलिखित परिवर्तन देखा जाता है:
पित्त प्रकृति के लक्षण - Pitta prakriti ke vyakti ke lakshan in hindi
पित्त का मुख्य गुण दोष "गर्मी" है। आमतौर पर पित्त प्रकृति वाले लोगों में पाए जाने वाले शारीरिक लक्षण इस प्रकार हैं:
- स्वस्थ मांसपेशियां
- चमकती हुई रंगत और गोरी त्वचा
- हल्के रंग के बाल
- ताकत
- शारीरिक रूप से संतुलित
- मुँहासे या झाइयां
- अच्छा चयापचय
पित्त प्रकृति वाले लोगों में आमतौर पर पाए जाने वाले मानसिक लक्षण निम्नलिखित है:
- आलोचनात्मक प्रकृति
- बौद्धिक गतिविधियों में दिलचस्पी
- अन्य दोषों की तुलना में बेहतर समझ
- बुद्धिमता
- तुनकमिजाज स्वभाव
- अच्छा भाषण कौशल, अच्छी स्मृति
- अधीरता
असंतुलित पित्त वाले लोगों के मानसिक लक्षणों में निम्नलिखित परिवर्तन देखा जाता है:
- क्रोध
- अधीरता
- जलन
- हावी होने की आदत
कफ प्रकृति के लक्षण - Kapha prakriti ke vyakti ke lakshan in hindi
कफ का मुख्य गुण "भारीपन" है। आम तौर पर कफ प्रकृति वाले लोगों में पाए जाने वाले शारीरिक लक्षण इस प्रकार हैं:
- ठोस शरीर संरचना
- अच्छी त्वचा के साथ पीला रंग
- अत्यधिक नींद लेना
- भारी वजन का शरीर
- चमक और तैलीय बनावट के साथ काले या भूरे रंग के बाल
कफ प्रकृति के लोगों में आमतौर निम्नलिखित मानसिक लक्षण पाए जाते हैं:
- आत्मविश्वास
- आलस
- मेहनती स्वभाव
- भौतिकवादी प्रकृति
- लालच
असंतुलित कफ वाले लोगों की विशेषताओं में निम्नलिखित परिवर्तन होते हैं:
सारांश
आयुर्वेद के अनुसार, शरीर में तीन प्रमुख दोष होते हैं – वात, पित्त और कफ, जो शरीर की प्राकृतिक संतुलन प्रणाली को नियंत्रित करते हैं। ये दोष व्यक्ति के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं।
वात दोष शरीर में गति और संचार प्रणाली को नियंत्रित करता है। यह पाचन, श्वसन और स्नायु तंत्र से जुड़ा होता है। वात असंतुलन से जोड़ों का दर्द, सूखापन, चिंता और अनिद्रा जैसी समस्याएं हो सकती हैं। पित्त दोष शरीर की चयापचय क्रिया और पाचन से संबंधित होता है। यह अग्नि तत्व से जुड़ा होता है और शरीर में ऊर्जा उत्पादन करता है। पित्त असंतुलन से अम्लता, जलन, चिड़चिड़ापन और त्वचा रोग हो सकते हैं। कफ दोष शरीर में स्थिरता और पोषण प्रदान करता है। यह जल और पृथ्वी तत्वों से मिलकर बना होता है और प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करता है। कफ असंतुलन से मोटापा, बलगम, सुस्ती और पाचन संबंधी समस्याएं हो सकती हैं। इन तीनों दोषों का संतुलन बनाए रखना अच्छे स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है, जिसे उचित आहार, दिनचर्या और योग द्वारा ठीक किया जा सकता है।
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