वैज्ञानिकों ने आशंका जतायी है कि सार्स-सीओवी-2 वायरस से होने वाली बीमारी कोविड-19 पहले की तुलना में ज्यादा तेजी से फैल रही है और शायद वैज्ञानिकों का यह अंदेशा सच भी होता दिख रहा है। 11 अप्रैल 2020 के आंकड़ों की मानें तो इस वायरस की वजह से अब तक दुनियाभर में 1 लाख से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है और करीब 17 लाख लोग वायरस से संक्रमित हो चुके हैं। कोविड-19 के गंभीर लक्षणों में- सांस लेने में दिक्कत महसूस होना, छाती में लगातार दर्द होना, भ्रम की स्थिति पैदा होना और होंठों और चेहरे का रंग नीला पड़ना, शामिल है।

डॉक्टरों ने 60 साल से अधिक उम्र के बुजुर्गों और वैसे लोग जिन्हें पहले से हाई ब्लड प्रेशर, डायबिटीज, हृदय रोग, लंबे समय से किडनी की बीमारी, फेफड़ों की बीमारी और कैंसर है उन्हें घर से बाहर बिलकुल नहीं निकलना चाहिए क्योंकि उनमें कोविड-19 का गंभीर इंफेक्शन होने का खतरा है। चीन और इटली जैसे देशों से आ रही रिपोर्ट्स की मानें तो वैसे मरीज जिनमें कोविड-19 के गंभीर लक्षण दिखते हैं, उनमें से सिर्फ 5 प्रतिशत मरीज ही ऐसे हैं जिन्हें गहन देखरेख यानी इंटेंसिव केयर की जरूरत पड़ती है।

इस आर्टिकल में हम आपको बता रहे हैं कि आखिर किन मरीजों को इंटेंसिव केयर की जरूरत होती है और आईसीयू में मरीजों को स्वस्थ रखने के लिए क्या-क्या किया जाता है।

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  1. आईसीयू (इंटेंसिव केयर यूनिट) में किसे भर्ती किया जाता है?
  2. कोविड-19 के गंभीर मरीजों का इलाज करने के लिए आईसीयू में कौन सी प्रक्रियाएं की जाती हैं?
  3. आईसीयू में भर्ती मरीज में कोई जटिलता न आए इसके लिए क्या उपाय किए जाते हैं?
  4. आईसीयू में काम करने वाले डॉक्टरों के लिए चुनौतियां
कोविड-19 के किन मरीजों को होती है आईसीयू की जरूरत, जानें के डॉक्टर
  • वैसे मरीज जिन्हें मेकैनिकल वेंटिलेशन यानी मशीन से वायु-संचार देने की जरूरत है फिर चाहे वह आक्रामक हो या नहीं- दोनों ही तरह के मरीजों को आईसीयू में भर्ती किया जाता है।
  • अगर किसी मरीज के शरीर में रक्त संचार की स्थिति असंतुलित हो- इसका मतलब है कि शरीर में मौजूद खून में इतना प्रेशर नहीं है कि वह खून को पंप करके नसों और केशिकाओं तक पहुंचा पाए, तो ऐसे मरीजों को इंटेंसिव केयर की जरूरत होती है।
  • अगर किसी मरीज की मानसिक स्थिति समय के साथ बिगड़ती जाए तो उन्हें भी आईसीयू की मदद की जरूरत पड़ती है।
  • अगर कसी मरीज के शरीर में एक साथ कई अंग अपने कार्य करना बंद कर दें या सही तरीके से काम न करें तो उन्हें भी आईसीयू में भर्ती करने की जरूरत होती है।

इंटेंसिव केयर में मरीज की पूरी देखभाल करने के बाद भी वैसे मरीज जिनकी उम्र 60 साल से अधिक है, जिनके शरीर में लिम्फोसाइट्स का लेवल कम है, शरीर में एलडीएच की मात्रा अधिक है, न्यूट्रोफिल-लिम्फोसाइट रेशियो हाई है और डी-डिमर का लेवल भी बढ़ा हुआ है तो ऐसे मरीजों का ठीक होना मुश्किल हो जाता है।

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बीमारी मरीज के शरीर में तरल पदार्थों का संतुलन बनाए रखने और वायुमार्ग को मैनेज करने के साथ ही बीमारी को बढ़ने से रोकने के लिए निम्नलिखित प्रक्रियाएं आईसीयू के अंदर की जाती हैं।

  • मरीज को वेंटिलेटर सपोर्ट देने से पहले उन्हें क्लोज्ड-सर्किट डिवाइस (सीसीडी) के जरिए 3 से 5 मिनट तक ऑक्सीजन दिया जाता है। इस दौरान डॉक्टर एएमबीयू बैग-मास्क वेंटिलेशन देने से बचते हैं क्योंकि ऐसा करने से एरोसोल का उत्पादन होता है जो आईसीयू के स्टाफ के लिए हानिकारक हो सकता है।
  • मरीज को जरूरी दवा देने के दौरान नेबुलाइजेशन की जगह मीटर्ड डोज इन्हेलर्स दिया जाता है ताकि एरोसोल का निर्माण न हो पाए।
  • जिन मरीजों को मेकैनिकल वेंटिलेशन की जरूरत होती है उन्हें एटोमिडेट या प्रोपोफोल की मदद से एनेस्थीसिया दिया जाता है और इस दौरान उनके हीमोडाइनैमिक स्टेटस का भी ध्यान रखा जाता है।
  • मरीज को या तो succinylcholine या फिर rocuronium दिया जाता है ताकि उनकी मांसपेशियां रिलैक्स हो जाएं और इन्ट्यूबेशन में मदद मिले।
  • जब तक मरीज एनेस्थीसिया पर होता है तब तक आईसीयू में ऐनेस्थीसियोलॉजिस्ट की हर शिफ्ट में ड्यूटी लगाई जाती है ताकि मरीज के जीवन के सभी आवश्यक अंग सही तरीके से काम कर रहे हैं या नहीं इसका पता चल सके।
  • मरीज के शरीर के अंदर इंडोट्रैचियल ट्यूब डालने के लिए डॉक्टर विडियो लैरिंगोस्कोपी का सहारा लेते हैं। इस ट्यूब को मुंह के जरिए विंडपाइप तक पहुंचाया जाता है। इसकी मदद से वेंटिलेटर से निकलने वाली ऑक्सीजन को सीधे फेफड़ों तक पहुंचाया जाता है।
  • मरीज के कंठ में अगर म्यूकस बन रहा हो तो उसे खींचकर निकालने के लिए ट्रैचियोस्टोमी ट्यूब का इस्तेमाल किया जाता है।
  • मरीज के शरीर में तरल पदार्थ का संतुलन बना रहे इसके लिए क्रिस्टेलॉइड्स का इस्तेमाल किया जाता है क्योंकि नॉर्मल सलाइन देने से मरीज के शरीर में किडनी खराब होने का खतरा रहता है।
  • शरीर में हेमोडाइनैमिक्स को बनाए रखने के लिए वैसोप्रेसर्स दिए जाते हैं क्योंकि ये खून की धमनियों को संकुचित करते हैं जिससे ब्लड प्रेशर बेहतर होता है। वैसोप्रेसर के पहले विकल्प के तौर पर नॉन-एंड्रेनेलिन का इस्तेमाल होता है। अगर ये न मिले तब वैसोप्रेसिन या ऐड्रेनलिन यूज होता है। मरीजों को डोपामाइन नहीं दिया जाता क्योंकि इससे दिल की धड़कन के बढ़ने और मौत का खतरा अधिक होता है।
  • चूंकि आईसीयू में भर्ती मरीज इन्ट्यूबेटेड और हेमोडाइनैमिकली अस्थिर होते हैं लिहाजा छाती का एक्स-रे नहीं किया जा सकता और इसकी जगह डॉक्टर अल्ट्रासाउंड का इस्तेमाल करते हैं ताकि बीमारी के बारे में और जानकारी मिल सके। अगर अल्ट्रासाउंड में लंबी-सीधी रेखा नजर आए तो यह फेफड़ों में फुलाव को दर्शाती है। साथ ही इसकी मदद से फेफड़ों में निमोनिया है या नहीं इसकी जानकारी भी मिल जाती है।
  • ड्रग थेरेपी की मदद से बीमारी के लक्षणों का इलाज किया जाता है। कोविड-19 नाम की इस बेहद संक्रामक बीमारी का निश्चित इलाज खोजने के लिए रिसर्च की जा रही है।

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आईसीयू में भर्ती मरीज में किसी तरह की जटिलता न हो इसके लिए इन जरूरी बातों का ध्यान रखना पड़ता है:

  • मरीज को पूरी तरह से लिटाने की बजाए, आधे लेटे हुए पोजिशन में 30 से 45 डिग्री के बीच रखा जाता है।
  • चूंकि आईसीयू में भर्ती ज्यादातर मरीजों में डीवीटी (डीप वेन थ्रॉम्बोसिस) और पल्मोनरी एम्बोलिज्म होने का खतरा रहता है, इसलिए मरीजों को इन स्थितियों से बचाने के लिए डॉक्टर उन्हें लो मोलेक्यूलर वेट हेपारिन देते हैं और मेकैनिकल डिवाइस जैसे- इंटरमिटेंट न्यूमैटिक कम्प्रेशन डिवाइस का इस्तेमाल करते हैं।
  • चूंकि इस दौरान मरीज को दवा देकर शांत रखा जाता है इसलिए शरीर की जरूरतों को पूरा करने के लिए आईसीयू में भर्ती होने के 24 से 48 घंटे के अंदर फीडिंग पाइप की मदद से खाना-पानी दिया जाता है।
  • बेहद गंभीर रूप से बीमार मरीज जो 48 घंटे से ज्यादा समय से मेकैनिकल वेंटिलेशन पर हो या जिनके शरीर में एक साथ कई अंग सही तरीके से काम करना बंद कर देते हैं उन मरीजों में स्ट्रेस रिलेटेड गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल ब्लीडिंग होने का खतरा रहता है। इस परेशानी से बचने के लिए एच2 ब्लॉकर्स का इस्तेमाल कर स्ट्रेस अल्सर प्रोफाइलैक्सिस किया जाता है।
  • दर्दनिवारक दवा दिए गए मरीजों के शरीर में मौजूद प्रेशर पॉइंट्स में किसी तरह की सूजन न हो जाए इसके लिए शरीर के हर प्रेशर पॉइंट जैसे- घुटने का जोड़, कोहनी का जोड़ आदि जगहों पर जेल पैड्स रखा जाता है। अगर जेल पैड मौजूद न हो तो आईसीयू स्टाफ हर 2 घंटे में मरीज की पोजिशन को चेंज करते हैं।
  • साथ ही डॉक्टर मरीज के ब्लड शुगर लेवल पर भी नजर रखते हैं जिसे 150 से 180 एमजी/डीएल के रेंज में होना चाहिए।
  • दर्द निवारक दवा के असर से बाहर आने के बाद जिन मरीजों को मेकैनिकल वेंटिलेशन की जरूरत नहीं होती उनका तुरंत संघटन किया जाता है।

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कोविड-19 के गंभीर मरीज जो आईसीयू में भर्ती हैं उनका इलाज करने के दौरान आईसीयू स्टाफ के सामने कई चुनौतियां होती हैं:

  • दुनियाभर में इस वक्त मेडिकल स्टाफ के लिए पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्विप्मेंट (पीपीई) की कमी देखने को मिल रही है जिस वजह से मेडिकल स्टाफ को भी संक्रमण होने का खतरा रहता है।
  • आइसोलेशन रूम जिसमें नेगेटिव प्रेशर वेंटिलेशन की व्यवस्था होती है वह सभी के लिए मौजूद नहीं होता जिस वजह से बीमारी के फैलने का खतरा अधिक होता है।
  • किसी भी समय कोविड-19 के बेहद गंभीर मरीजों की तादाद बढ़ सकती है और तब उन्हें समायोजित करने के लिए उतने आईसीयू नहीं होंगे।
  • देशभर में इस वक्त आईसीयू से जुड़े उपकरण जैसे वेंटिलेटर्स और दवाइयों की कमी देखने को मिल रही है।
  • आईसीयू में बिस्तरों की संख्या बढ़ाने के बाद भी स्टाफ की कमी देखने को मिल रही है। इंफेक्शन बढ़ने की वजह से मेडिकल स्टाफ भी तेजी से कोविड-19 से संक्रमित हो रहे हैं और फिर उन्हें भी क्वारंटाइन करके उनका इलाज करने की जरूरत पड़ रही है।
  • काम का बोझ बहुत ज्यादा बढ़ने की वजह से मौजूदा समय में मेडिकल स्टाफ शारीरिक और मानसिक थकान (fatigue) की स्थिति से गुजर रहे हैं। ऐसे में ये लोग भी कई तरह की मानसिक समस्याएं जैसे- डिप्रेशन या ऐंग्जाइटी का शिकार हो सकते हैं। लिहाजा इन लोगों के लिए भी संक्रमण से बचाव की उचित व्यवस्था होनी चाहिए, काम के घंटे निश्चित होने चाहिए, आराम करने की अलग जगह सुनिश्चित होनी चाहिए और मानसिक सेहत से जुड़ी मदद भी मिलनी चाहिए।

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