वृषण में सिकुड़न - Testicular Atrophy in Hindi

Dr. Rajalakshmi VK (AIIMS)MBBS

December 09, 2019

March 29, 2022

वृषण में सिकुड़न
वृषण में सिकुड़न

वृषण पुरुषों के शरीर में पाई जाने वाली दो छोटी ग्रंथियां हैं, जो अंडकोष की थैली में मौजूद होती हैं। अंडकोष की थैली का मुख्य कार्य वृषणों के आसपास उचित तापमान बनाए रखना होता है। वृषणों को गर्मी प्रदान करने के लिए वह सिकुड़ने लगती है और पर्याप्त गर्मी मिलने पर ढीली पड़ने लगती है। अंडकोष की इस प्रक्रिया के कारण अंडकोष कई बार सामान्य आकार से छोटे तो कई बार बड़े दिखने लगते हैं, हालांकि यह सामान्य स्थिति होती है।

अंडकोष संबंधी समस्याओं के मामले कम ही देखे जाते हैं और आमतौर पर वे गंभीर भी नहीं होते। लेकिन फिर भी अगर आपको अपने वृषणों या अंडकोष की थैली से संबंधित कोई भी असामान्यता महसूस हो रही है, तो बिना देरी किए जितना जल्दी हो सके डॉक्टर के पास चले जाना चाहिए। यदि आपके अंडकोष की थैली में गंभीर दर्द हो रहा है या फिर आपके वृषणों में किसी प्रकार का बदलाव जैसे कि गांठ आदि है, तो जल्द से जल्द डॉक्टर को दिखा लेना चाहिए।

वैसे तो बहुत ही दुर्लभ मामलों में वृषण में संकुचन संबंधी समस्याओं से कोई हानिकारक स्थिति पैदा होती है, लेकिन फिर भी इस स्थिति की जांच करवाना बहुत जरूरी होता है और इससे जीवन को प्रभावित करने वाली कई समस्याएं पैदा हो सकती हैं।

(और पढ़ें - अंडकोष में गांठ के कारण)

वृषण सिकुड़ना क्या है - What is Testicular Atrophy in Hindi

टेस्टीक्युलर एट्रोफी क्या है?

जब एक वृषण का आकार असामान्य रूप से छोटा पड़ जाता है, तो इस स्थिति को टेस्टीक्युलर एट्रोफी या वृषण में संकुचन कहा जाता है। ऐसा आमतौर पर किसी जर्म सेल्स या लेयडिग सेल्स में किसी प्रकार की क्षति के कारण होता है।

 

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वृषण में संकुुचन के लक्षण - Testicular Atrophy Symptoms in Hindi

वृषण में संकुचन के क्या लक्षण होते हैं?

एक या दोनों वृषणों का आकार सामान्य से छोटा होना अक्सर टेस्टीक्युलर एट्रोफी का सबसे मुख्य लक्षण होता है। हालांकि किसी व्यक्ति की उम्र व अन्य शारीरिक समस्याओं के आधार पर कुछ अतिरिक्त लक्षण भी विकसित हो सकते हैं।

कम उम्र के मरीज जो अभी तक प्यूबर्टी को प्राप्त नहीं कर पाए हैं, टेस्टीक्युलर एट्रोफी के कारण उनके शरीर में यौन विशेषताएं विकसित नहीं हो पाती हैं, जिनमें मुख्य रूप से निम्न शामिल हैं:

  • दाढ़ी व मूछ न आना
  • जननांगों पर बाल न आना
  • लिंग का आकार सामान्य से अधिक बढ़ जाना

टेस्टीक्युलर एट्रोफी के जो मरीज प्युबर्टी प्राप्त कर चुके हैं, उनको होने वाले अतिरिक्त लक्षणों में निम्न शामिल हो सकते हैं:

  • सेक्स ड्राइव कम होना
  • बांझपन
  • मांसपेशियों सघनता कम होना
  • दाढ़ी व मूँछें कम हो जाना या बिलकुल गायब हो जाना
  • जननांगों के बाल उगना बंद हो जाना या कम आना
  • वृषण नरम हो जाना

(और पढ़ें - गुप्तवृषणता का इलाज)

वृषण सिकुड़ने के कारण व जोखिम कारक - Testicular Atrophy Causes & Risk Factors in Hindi

टेस्टीक्युलर एट्रोफी क्यों होता है?

ऐसी कई स्वास्थ्य संबंधी बीमारियां हैं, जिनके कारण अंडकोष सिकुड़ सकते हैं। इनमें से कुछ ऐसी स्थितियां हैं, जिनके ज्यादातर मामलों में वृषण में संकुचन की स्थितियां देखी गई हैं।

ऑर्काइटिस (Orchitis) को वृषण में संकुचन का सबसे आम कारण माना जाता है। यह वृषणों में सूजन, जलन व लालिमा की स्थिति होती है। वृषण में सूजन व दर्द होना इसका सबसे मुख्य लक्षण होता है, हालांकि कुछ मामलों में इससे जी मिचलाना और बुखार जैसी समस्याएं भी हो सकती हैं। ऑर्काइटिस रोग के शुरुआती चरणों में वृषणों में सूजन आने के कारण उनका आकार बड़ा दिखने लगता है, लेकिन अंतिम चरणों में इससे वृषणों में गंभीर रूप से सिकुड़न हो सकती है। ऑर्काइटिस के मुख्य दो प्रकार होते हैं:

इसके अलावा कुछ अन्य स्थितियां भी हैं, जिनके कारण वृषण में संकुचन या उसका आकार सामान्य से छोटा पड़ सकता है।

  • वेरीकोसील:
    यह वेरीकोज वेन्स के जैसी ही स्थिति होती है, लेकिन यह टांगों की बजाय वृषणों के आसपास विकसित होती है। वेरीकोसेल आमतौर पर बाईं तरफ के अंडकोष को प्रभावित करती है और उसके अंदर शुक्राणु बनाने वाली ट्यूब को क्षतिग्रस्त कर देता है। इस स्थिति में प्रभावित वृषण छोटा लगने लगता है।
     
  • वृषण में मरोड़:
    जब अंडकोष की थैली के अंदर वृषण में किसी प्रकार का मोड़ या घुमाव आ जाता है, तो उस स्थिति को वृषण में मरोड़ (टेस्टीक्युलर टोर्शन) कहा जाता है। अंडकोष में खून का बहाव कम होने पर उनमें दर्द व सूजन आ सकती है। यदि इस स्थिति का कुछ ही घंटों के भीतर इलाज न किया जाए, तो इससे स्थायी रूप से प्रभावित वृषण में संकुचन हो सकता है।
     
  • टेस्टोस्टेरोन रिप्लेस्मेंट थेरेपी:
    जिन लोगों को टीआरटी थेरेपी दी जाती है, उनमें कुछ लोगों को टेस्टीक्युलर एट्रोफी हो जाती है। ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि टेस्टोस्टेरोन रिप्लेस्मेंट थेरेपी, गोनाडोट्रोपिन रिलीजिंग हार्मोन (GnRH) के बनने की प्रक्रिया को बंद कर देती है। जीएनआरएच के बिना पिटयूटरी ग्रंथि ल्यूटिनाइजिंग हार्मोन (LH) नहीं बना पाती। एलएच के बिना वृषण टेस्टोस्टेरोन हार्मोन को स्रावित करना बंद कर देते हैं और परिणामस्वरूप वृषणों का आकार असामान्य रूप से छोटा पड़ने लगता है।

वृषण में संकुचन होने का खतरा कब बढ़ता है?

कुछ स्थितियां हैं, जो टेस्टीक्युलर एट्रोफी होने के खतरे को बढ़ा सकती है, जैसे बढ़ती उम्र या शराब की लत करना।

  • उम्र:
    महिलाओं के मेनोपॉज की तरह पुरुषों में भी एंड्रोपॉज नामक एक स्थिति होती है, जिसमें व्यक्ति के शरीर में टेस्टोस्टेरोन हार्मोन का स्तर कम होने लगता है। पुरुषों में टेस्टोस्टेरोन का स्तर कम होने के परिणामस्वरूप टेस्टीक्युलर एट्रोफी होने का खतरा अत्यधिक बढ़ जाता है।
     
  • शराब की लत:
    शराब (अल्कोहल) शरीर में टेस्टोस्टेरोन के स्तर को भी कम करती है और वृषणों में मौजूद ऊतकों को नष्ट करने लगती है। ये दोनों समस्याएं वृषणों में सिकुड़न होने का कारण बन सकती हैं।
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वृषण में सिकुड़न का परीक्षण - Diagnosis of Testicular Atrophy in Hindi

टेस्टीक्युलर एट्रोफी का परीक्षण कैसे किया जाता है?

परीक्षण के दौरान डॉक्टर मरीज का शारीरिक परीक्षण करते हैं, जिसमें उसके अंडकोष को बारीकी से देखा जाता है। इस दौरान वृषण के आकार, रंग, संरचना और वृषण में कठोरता आदि जांच की जाती है। यदि डॉक्टर को किसी प्रकार की असामान्यता मिलती है, तो उसके अनुसार डॉक्टर कोई अन्य टेस्ट भी कर सकते हैं, जैसे:

मरीज से उसकी जीवनशैली व सेक्स लाइफ से संबंधित कुछ सवाल भी पूछे जा सकते हैं। इससे यह पता लगाने की कोशिश की जाती है, कि कहीं वृषण में संकुचन का कारण शराब का सेवन या फिर यौन संचारित संक्रमण आदि तो नहीं है।

वृषण में सिकुड़न का इलाज - Testicular Atrophy Treatment in Hindi

वृषण में संकुचन का इलाज कैसे किया जाता है?

वृषण में किसी प्रकार की सिकुड़न या संकुचन का इलाज उसके कारण के अनुसार किया जाता है। यदि यौन संचारित रोग या किसी अन्य प्रकार के संक्रमण के कारण ऐसा हुआ है, तो डॉक्टर मरीज को कुछ प्रकार की एंटीबायोटिक दवाएं दे सकते हैं। इसके अलावा यदि किसी अन्य कारण से टेस्टीक्युलर एट्रोफी रोग हुआ है, तो जीवनशैली में कुछ बदलाव करने का सुझाव दिया जा सकता है। वृषण में मरोड़ से संबंधित मामलों का इलाज करने के लिए डॉक्टर सर्जरी करने का सुझाव देते हैं।

वृषण में संकुचन का कारण बनने वाली कुछ स्थितियों का इलाज करना आमतौर पर सरल होता है, लेकिन टेस्टीक्युलर एट्रोफी कुछ मामलों में स्थायी हो जाती है और उसे फिर से ठीक नहीं किया जा सकता है। यदि टेस्टीक्युलर एट्रोफी का इलाज समय पर शुरु कर दिया जाए, तो इस स्थिति को ठीक करने की संभावनाएं अधिक होती हैं। खासतौर पर अगर वृषण में मरोड़ के कारण उसमें संकुचन हुआ है, तो समय पर परीक्षण व इलाज शुरु करना बहुत जरूरी होता है। वृषण में मरोड़ आने पर एक घंटे के भीतर इलाज शुरु करना बहुत जरूरी होता है, इससे ज्यादा समय होने पर प्रभावित वृषण में स्थायी रूप से संकुचन हो सकता है।

जैसा कि हमने ऊपर बताया है इस स्थिति के कारण के अनुसार ही उसके इलाज का चयन किया जाता है, इसमें मुख्य रूप से जीवनशैली में बदलाव, एंटीबायोटिक दवाएं और सर्जिकल प्रक्रियाएं आदि शामिल हैं। टेस्टीक्युलर टोर्शन जैसी कुछ स्थितियों में जल्द से जल्द इलाज शुरु करना जरूरी होता है, ताकि वृषण को स्थायी रूप से क्षतिग्रस्त होने से बचाया जा सके।

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वृषण में संकुचन की जटिलताएं - Testicular Atrophy Complications in Hindi

टेस्टीक्युलर एट्रोफी से क्या जटिलताएं हो सकती हैं?

यदि आपको अपने एक या दोनों वृषणों में सिकुड़न महसूस हो रही है, तो उसके कारण की परवाह न करते हुऐ जल्द से जल्द डॉक्टर को दिखा लें। टेस्टीक्युलर एट्रोफी से होने वाली जटिलताएं उसके अंदरुनी कारण पर निर्भर करती हैं, जिसमें मुख्य रूप से प्रजनन क्षमता प्रभावित होना, समय से पहले प्यूबर्टी के लक्षण दिखना या उचित समय के बाद भी प्युबर्टी के लक्षण विकसित न होना।



संदर्भ

  1. K.F. Fairley, JeanU. Barrie, Warren Johnson, STERILITY AND TESTICULAR ATROPHY RELATED TO CYCLOPHOSPHAMIDE THERAPY, The Lancet, Volume 299, Issue 7750, 1972, Pages 568-569,
  2. Kirk J. Pinto, R. Lawrence Kroovand, and Jonathan P. Jarow Varicocele Related Testicular Atrophy and its Predictive Effect Upon Fertility Journal of Urology, Volume 152 Issue 2 Part 2 August 1994 Page: 788-790
  3. David H. Van Thiel, Judith S. Gavaler, Roger Lester, M. David Goodman, Alcohol-Induced Testicular Atrophy: An experimental model for hypogonadism occurring in chronic alcoholic men, Gastroenterology, Volume 69, Issue 2, 1975, Pages 326-332,
  4. George E. Wantz,[linkl, Surgical Clinics of North America, Volume 73, Issue 3, 1993, Pages 571-581