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एपिसियोटोमी एक प्रकार की सर्जरी है, जिसे बच्चे की डिलीवरी करने के लिए किया जाता है। इस सर्जरी प्रोसीजर में सर्जन महिला के पेरिनियल भाग में चीरा लगाते हैं। योनिद्वार और गुदा के बीच के हिस्से को पेरिनियम कहा जाता है। ऐसा आमतौर पर इसलिए किया जाता है, ताकि योनिद्वार बड़ा हो जाए और बच्चा आसानी से जन्म ले सके। एपिसियोटोमी कई अलग-अलग स्थितियों के कारण की जा सकती है, जैसे यदि बच्चा गर्भ में अपनी जगह से हिल गया हो या फिर महिला प्रसव के दौरान जोर लगाते-लगाते थक चुकी हो।

एपिसियोटोमी में जिस हिस्से की सर्जरी की जानी है, वहां पर लोकल एनेस्थीसिया का इंजेक्शन लगाया जाता है। यदि प्रसव के दौरान एपिड्यूरल एनेस्थीसिया दिया गया है, तो हो सकता है कि लोकल एनेस्थीसिया की आवश्यकता न पड़े। बच्चे की डिलीवरी होने के बाद चीरे वाले हिस्से को बंद करके टांके लगा दिए जाते हैं। डॉक्टर सर्जरी के दौरान और बाद में दर्द को कम करने के लिए दर्द निवारक दवाएं  देते हैं, जिन्हें डॉक्टर की निर्देशों के अनुसार ही लेना चाहिए। साथ ही महिला को सर्जरी के बाद बर्फ की सिकाई करने और गर्म पानी में नहाने की सलाह दी जाती है, जिससे सर्जरी के बाद होने वाली तकलीफ से आराम मिलता है।

(और पढ़ें - प्रसव पीड़ा लाने के उपाय)

  1. एपिसियोटोमी क्या है - What is Episiotomy in Hindi
  2. एपिसियोटोमी किसलिए की जाती है - Why is Episiotomy done in Hindi
  3. एपिसियोटोमी से पहले - Before Episiotomy in Hindi
  4. एपिसियोटोमी के दौरान - During Episiotomy in Hindi
  5. एपिसियोटोमी के बाद - After Episiotomy in Hindi
  6. एपिसियोटोमी की जटिलताएं - Complications of Episiotomy in Hindi

एपिसियोटोमी किसे कहते हैं?

एपिसियोटोमी को पेरीनियोटोमी (Perineotomy) भी कहा जाता है, जो प्रसव के दौरान की जाने वाली एक सर्जिकल प्रक्रिया है। इस सर्जरी में सर्जन योनिद्वार और गुदा के बीच (पेरिनियम) में चीरा लगाते हैं, जिससे योनि का रास्ता बड़ा हो जाता है और शिशु की डिलीवरी आसानी से हो पाती है। एपिसियोटोमी सर्जरी को हिन्दी भाषा में भगछेदन कहा जाता है।

यदि सामान्य प्रसव के दौरान शिशु का सिर दिख रहा है या आधा बाहर आ गया है, तो ऐसे में सर्जन शिशु के सिर और ठोड़ी को थोड़ा ऊपर उठाते हैं और उसके बाद बाकी के शरीर को धीरे-धीरे ऊपर उठाया जाता है। लेकिन कुछ स्थितियों में योनिद्वार पूरी तरह से खुल नहीं पाता है और परिणामस्वरूप प्रसव कठिन हो जाता है। ऐसी स्थिति में ही एपिसियोटोमी की जरूरत पड़ती है, जिसमें चीरा लगाकर योनिद्वार को बड़ा बना दिया जाता है, जिससे शिशु का सिर आसानी से बाहर आ जाता है।

(और पढ़ें - प्रसव की जटिलताएं)

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एपिसियोटोमी क्यों की जाती है?

डॉक्टर आमतौर पर निम्न स्थितियों में यह सर्जरी करने की सलाह देते हैं -

  • फीटल डिस्ट्रेस -
    रेस्पिरेटरी डिस्ट्रेस सिंड्रोम में प्रसव के दौरान शिशु को पर्याप्त ऑक्सीजन न मिल पाने के कारण उसकी हृदय दर बार-बार कम या ज्यादा होने लगती हैं। ऐसी स्थिति में एपिसियोटोमी की मदद से शिशु को होने वाले जोखिम को कम किया जा सकता है।
     
  • फोरसेप्स या वैक्यूम डिलीवरी -
    सर्जन फोरसेप्स या वैक्यूम जैसे उपकरणों के लिए जगह बनाने के लिए भी एपिसियोटोमी सर्जरी करने की सलाह दे सकते हैं। ये उपकरण भी प्रसव को आसान बनाने में मदद करते हैं।
     
  • स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं -
    यदि महिला को स्वास्थ्य संबंधी कोई गंभीर समस्या है, जैसे हृदय रोग आदि तो भी डॉक्टर एपिसियोटोमी सर्जरी करने पर विचार कर सकते हैं। ऐसा इसलिए किया जाता है, ताकि डिलीवरी को कम से कम समय में किया जा सके और महिला के हृदय पर इसका अधिक प्रभाव न पड़े। (और पढ़ें - हृदय को स्वस्थ कैसे रखें)
     
  • प्री-टर्म बेबी -
    यदि गर्भावस्था के 37 हफ्तों से पहले ही प्रसव हो रहा है, तो भी एपिसियोटोमी की मदद से डिलीवरी प्रक्रिया को आसान किया जा सकता है। (और पढ़ें - समय से पहले जन्मे बच्चे की देखभाल)
     
  • ब्रीच बर्थ -
    यदि गर्भ में बच्चे की पोजिशन बदल गई है और प्रसव के दौरान पहले उसके पैर या नितंब दिख रहे हैं, तो भी एपिसियोटोमी सर्जरी की जाती है। क्योंकि पोजिशन बदलने के कारण शिशु को बाहर आने में अधिक जगह चाहिए होती है, जिसे एपिसियोटोमी सर्जरी की मदद से संभव किया जा सकता है। (और पढ़ें - गर्भ में बच्चा उल्टा होने के कारण)
     
  • शोल्डर डिस्टॉसिया -
    यदि प्रसव के दौरान शिशु का सिर बाहर आ गया है और कंधे नहीं आ रहे हैं, तो ऐसी स्थिति से निपटने के लिए भी एपिसियोटोमी सर्जरी की जा सकती है।
     
  • बड़े आकार का शिशु -
    यदि गर्भ में पल रहे शिशु का आकार सामान्य से बड़ा हो गया है, तो इस स्थिति से निपटने के लिए भी एपिसियोटोमी सर्जरी की जा सकती है। (और पढ़ें - नवजात शिशु का वजन कितना होना चाहिए)
     
  • प्रसव के दौरान लंबे समय तक जोर लगाना -
    यदि महिला प्रसव के दौरान काफी देर से जोर लगाकर थक चुकी है और शिशु बाहर नहीं आ रहा है, तो ऐसी स्थिति में एपिसियोटोमी सर्जरी की जा सकती है।

एपिसियोटोमी सर्जरी किसे नहीं करवानी चाहिए?

यदि योनि प्रसव सुरक्षित नहीं लग रहा है और सर्जरी को "सी सेक्शन" प्रक्रिया में भी शिफ्ट नहीं किया जा सकता है, तो सर्जन एपिसियोटोमी सर्जरी नहीं करते हैं। एपिसियोटोमी सर्जरी को महिला व उसके परिवारजनों की सहमति के बिना नहीं किया जा सकता है।

हालांकि, कुछ स्थितियां हैं, जिनके कारण एपिसियोटोमी सर्जरी को नहीं किया जाता या फिर बहुत ही सावधानी के साथ किया जाता है, जैसे -

(और पढ़ें - सूजन कम करने के घरेलू उपाय)

एपिसियोटोमी सर्जरी से पहले क्या तैयारी की जाती है?

पेरीनियोटोमी सर्जरी से पहले निम्न तैयारियां करने की आवश्यकता पड़ती है -

  • महिला या उसके परिवारजनों को सहमति पत्र दिया जाएगा, जिस पर हस्ताक्षर करके सर्जन को सर्जरी करने की अनुमति दी जाती है। हालांकि, सहमति पत्र पर हस्ताक्षर करने से पहले उसे अच्छे से पढ़ व समझ लेना चाहिए। साथ ही अस्पताल के कुछ अन्य दस्तावेज भी दिए जा सकते हैं, जिन पर हस्ताक्षर करना होता है।
  • सर्जरी से पहले डॉक्टर को महिला द्वारा ली जाने वाली सभी दवाओं, हर्बल उत्पादों या विटामिन आदि की जानकारी देनी पड़ती है। डॉक्टर कुछ दवाओं का सेवन बंद करवा सकते हैं, जिन में रक्त पतला करने वाली दवाएं शामिल हैं जैसे एस्पिरिन और वारफेरिन आदि।
  • यदि महिला को स्वास्थ्य संबंधी कोई बीमारी या एलर्जी आदि है, तो उसके बारे में भी डॉक्टर को बता देना चाहिए।
  • यदि महिला को रक्त संबंधी कोई विकार है, तो उस बारे में भी डॉक्टर को बताना आवश्यक है।

(और पढ़ें - सर्जरी से पहले की तैयारी कैसे करें)

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एपिसियोटोमी सर्जरी कैसे की जाती है?

पेरीनियोटोमी सर्जरी को निम्न के अनुसार किया जाता है -

  • गर्भवती महिला को लेबर बेड पर लिटाया जाता है, जिसके दोनों तरफ पैर रखने की उचित जगह होती है, ताकि महिला आसानी से डिलीवरी की पॉजिशन ले सके। इस प्रक्रिया को प्रसव के दौरान ही किया जाता है।
  • पेरिनियम व उसके आसपास के भाग को सुन्न करने के लिए वहां पर लोकल एनेस्थीसिया का इंजेक्शन लगाया जाता है। यदि पहले ही एपीड्यूरल एनेस्थीसिया दी गई है, तो लोकल एनेस्थीसिया की जरूरत नहीं पड़ती है। एपीड्यूरल एनेस्थीसिया के इंजेक्शन को पीठ के निचले हिस्से में लगाया जाता है, जिससे प्रसव के दौरान होने वाला दर्द कम महसूस होता है। कुछ मामलों में लोकल एनेस्थीसिया देने की बजाय एपीड्यूरल एनेस्थीसिया की खुराक को ही बढ़ा दिया जाता है। (और पढ़ें - इंजेक्शन कैसे लगाते हैं)
  • प्रसव प्रक्रिया के समय जिस दौरान महिला जोर लगा रही होती है और डॉक्टर को शिशु का सिर दिखता है, तो उस दौरान वे योनि में नीचे, गुदा की तरफ तिरछा चीरा लगा देते हैं।
  • जब शिशु और गर्भनाल दोनों की डिलीवरी हो जाती है, तो पेरिनियल भाग में आई हुई दरार की करीब से जांच करते हैं।
  • अंत में चीरे को टांके लगाकर बंद कर दिया जाता है। ये टांके आमतौर पर त्वचा में अपने आप अवशोषित होने वाले होते हैं।
  • एपिसियोटोमी सर्जरी को पूरा होने में सिर्फ कुछ ही मिनट का समय लगता है। इस सर्जरी से प्रसव होने के बाद महिला को कम से कम दो दिन बाद अस्पताल से छुट्टी मिलती है। हालांकि, शिशु और मां के स्वास्थ्य पर निर्भर करते हुए इसमें अधिक समय भी लग सकता है।

(और पढ़ें - प्रसव के बाद टांके की देखभाल)

एपिसियोटोमी सर्जरी के बाद क्या देखभाल की जाती है?

एपिसियोटोमी सर्जरी के बाद अस्पताल से छुट्टी मिलने पर निम्न देखभाल करने की आवश्यकता पड़ती है -

  • ऑपरेशन के बाद महिला को कुछ समय के लिए सर्जरी वाले हिस्से पर चुभन व दर्द महसूस हो सकता है, जिसके लिए डॉक्टर पेरासिटामोल और आइबुप्रोफेन जैसी दवाएं देते हैं। इन दवाओं को डॉक्टर के निर्देशों के अनुसार ही इस्तेमाल करना चाहिए।
  • दर्द व अन्य तकलीफों को कम करने के लिए डॉक्टर ऑपरेशन वाली जगह की बर्फ से सिकाई करने की सलाह देते  हैं। लगातार 30 मिनट के लिए बर्फ की सिकाई करें और फिर एक घंटे रुक कर फिर से 30 मिनट तक सिकाई करें।
  • दर्द को दूर करने के लिए हवा के तकिए पर भी बैठा जा सकता है और सिट्ज बाथ करने से भी सर्जरी से होने वाले दर्द को कम किया जा सकता है।  (और पढ़ें - डिलीवरी के बाद ब्लीडिंग कब तक होती है)
  • डॉक्टर की सलाह के बिना पेरिनियम के घाव पर किसी भी प्रकार की क्रीम या स्प्रे का इस्तेमाल न करें।
  • स्वास्थ्यकर व संतुलित आहार लें।
  • हर बार पेशाब करने से पहले योनि को गुनगुने पानी से धो लें, इससे पेशाब करते समय तकलीफ नहीं होती या बहुत कम होती है।
  • मल त्यागने के दौरान सर्जरी वाले हिस्से पर एक साफ पैड लगा लें, इससे सर्जरी वाले घाव पर दबाव नहीं पड़ता है। यदि कब्ज है या फिर मल कठोर आता है, तो डॉक्टर लैक्सेटिव दवाएं दे सकते हैं। (और पढ़ें - कब्ज का घरेलू उपाय)
  • भारी वस्तुएं न उठाएं, क्योंकि वजन उठाने से चीरे को बंद करने के लिए लगाए गए टांके खुल सकते हैं।
  • सर्जरी के बाद कुछ हफ्तों तक टैम्पोन या ड्यूस का इस्तेमाल भी न करें
  • सर्जरी के बाद कम से कम छह हफ्तों तक योनि व गुदा सेक्स न करें।
  • सर्जरी के बाद कुछ महीनों तक यौन संबंध बनाते समय दर्द व अन्य तकलीफ होना एक सामान्य स्थिति है। ऐसा आमतौर पर योनि में सूखापन होने के कारण होता है। यौन संबंध बनाते समय पानी से बने ल्यूब्रीकेटिंग जेल का इस्तेमाल किया जा सकता है।
  • महिला सर्जरी के लगभग तीन महीनों बाद पूरी तरह से स्वस्थ हो जाती है और फिर से गर्भधारण कर सकती है। हालांकि, गर्भवती होने की इच्छा न होने पर डॉक्टर से बात करके उचित गर्भनिरोधक गोलियों का इस्तेमाल करना चाहिए।

(और पढ़ें - आपातकालीन गर्भनिरोधक गोलियों के नुकसान)

डॉक्टर को कब दिखाएं?

यदि एपिसियोटोमी सर्जरी के बाद निम्न में से कोई भी लक्षण महसूस होता है, तो जल्द से जल्द डॉक्टर को दिखा लेना चाहिए -

  • पेरिनियम में गंभीर दर्द होना
  • योनि से असाधारण द्रव निकलना (कुछ मामलों में बदबूदार होना) (और पढ़ें - योनि के बारे में जानकारी)
  • लगातार दो या तीन दिनों तक मलत्याग न कर पाना
  • योनि से रक्तस्राव होना
  • योनि से रक्त की गांठें निकलना
  • सर्जरी के घाव के आसपास की त्वचा में सूजन व लालिमा हो जाना
  • बुखारठंड लगना
  • घाव से रक्त या अन्य द्रव का स्राव होना

(और पढ़ें - योनि से बदबू आने का कारण)

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एपिसियोटोमी से क्या जोखिम हो सकते हैं?

एपिसियोटोमी सर्जरी से निम्न जोखिम व जटिलताएं हो सकती हैं, जैसे -

(और पढ़ें - सेक्स के बाद योनि से ब्लीडिंग के कारण)

संदर्भ

  1. Johns Hopkins Medicine [Internet]. The Johns Hopkins University, The Johns Hopkins Hospital, and Johns Hopkins Health System; Episiotomy
  2. National Health Service [Internet]. UK; Episiotomy and perineal tears
  3. Beth Israel Lahey Health: Winchester Hospital [Internet]. Winchester. Maryland. US; Episiotomy
  4. Oxford University Hospitals [internet]: NHS Foundation Trust. National Health Service. U.K.; Care of perineum after birth of a baby
  5. Baggish MS. Atlas of pelvic anatomy and gynecologic surgery. 4th ed. Philadelphia, PA: Elsevier; 2016. Chapter 81, Episiotomy.
  6. Kilpatrick S, Garrison E. Obstetrics: normal and problem pregnancies. 7th ed. Philadelphia, PA: Elsevier; 2017. Chapter 12, Normal labor and delivery..
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