आमतौर पर लोगों को लगता है कि मोतियाबिंद केवल व्यस्कों या बुजुर्गों को ही होता है। लेकिन आपको बता दें कि अन्य रोगों की तरह ही बच्चों को मोतियाबिंद भी हो सकता है। सामान्यतः जन्म के समय बच्चे की दोनों आंखों के लेंस पारदर्शी होते हैं। आंखों के लेंस वस्तुओं को रेटिना में फोकस करता हैं, जिससे आंखों से चीजों को देख पाना संभव होता है। लेकिन कुछ बच्चों के आंखों के लेंस जन्म से सफेद रंग के धुंधले होते हैं, जिससे उनको चीजों को फोकस करने में मुश्किल होती है। इस स्थिति को ही मोतियाबिंद कहा जाता है। इसमें धुंधले लेंस प्रकाश को रेटिना तक पहुंचने से रोकते हैं और वस्तुओं को देख पाना मुश्किल हो जाता है। ये समस्या जन्म के बाद कुछ ही शिशुओं में देखने को मिलती है।

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इस लेख में आपको बच्चों में मोतियाबिंद के बारे में विस्तार से बताया गया है। साथ ही बच्चों में मोतियाबिंद के प्रकार, बच्चों में मोतियाबिंद के लक्षण, बच्चों में मोतियाबिंद के कारण, बच्चों में मोतियाबिंद से बचाव, बच्चों में मोतियाबिंद का परीक्षण और बच्चों के मोतियाबिंद का इलाज आदि विषयों पर भी आपको विस्तार से जानकारी दी गई है। 

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  1. बच्चों में मोतियाबिंद के प्रकार - Baccho me motiyabind ke prakar
  2. बच्चों में मोतियाबिंद के लक्षण - Baccho me motiyabind ke lakshan
  3. बच्चों में मोतियाबिंद के कारण - Baccho me motiyabind ke karan
  4. बच्चों में मोतियाबिंद का परीक्षण - Baccho me motiyabind ka parikshan
  5. बच्चों के मोतियाबिंद का इलाज - Baccho me motiyabind ka ilaj

कई स्वास्थ्य संस्थाएं बताती है कि अधिक आयु की वजह से मोतियाबिंद की समस्या होती है, लेकिन कई बच्चों में भी यह समस्या हो सकती है। बच्चों में होने वाले मोतियाबिंद के निम्नलिखित प्रकार होते हैं।

  • जन्मजात मोतियाबिंद (Congenital cataracts):
    कुछ बच्चों को जन्म से ही मोयिताबिंद की समस्या होती है या उनको कुछ सालों के बाद ये समस्या दोनों ही आंखों में हो जाती है। कुछ जन्मजात मोतियाबिंद बच्चे के देखने की क्षमता को प्रभावित नहीं करते हैं, जबकि कुछ तो बच्चों के देखने की क्षमता को नुकसान पहुंचाते हैं। बच्चों की दृष्टि को नुकसान पहुंचाने वाले मोतियाबिंद को हटाने की आवश्यकता पड़ती है। (और पढ़ें - बच्चों की देखभाल कैसे करें)
    • एंटीरियर पोलर कैटरेक्ट (Anterior polar cataracts): इस तरह का मोतियाबिंद आंखों के लेंस के आगे के हिस्से पर होता है और यह माता-पिता से प्राप्त लक्षणों से संबंध रखता है। इस प्रकार का मोतियाबिंद बेहद ही छोटा होता है और इसको सर्जरी की आवश्यकता होती है। (और पढ़ें - बच्चों की सेहत के इन लक्षणों को न करें नजरअंदाज)
    • पोस्टीरियर पोलर कैटरेक्ट (Posterior polar cataracts): यह मोतियाबिंद बच्चे की आंख के पिछले हिस्से पर होता है। (और पढ़ें - बच्चों को सिखाएं अच्छी सेहत के लिए अच्छी आदतें)
    • न्यूक्लियर कैटरेक्ट (Nuclear cataracts): इस तरह का मोतियाबिंद बच्चे की आंख के लेंस के बीच में होता है और यह बच्चों में होने वाले जन्मजात मोतियाबिंद का एक आम प्रकार माना जाता है। (और पढ़ें - बच्चे की उम्र के अनुसार लंबाई और वजन का चार्ट
    • सेरुलीन कैटरेक्ट (Cerulean cataracts): इस तरह का मोतियाबिंद सामान्यतः दोनों ही आंखों को प्रभावित करता है और इसमें आंख के लेंस पर बेहद ही छोटा नीले रंग का धब्बा हो जाता है। आमतौर पर इस तरह का मोतियाबिंद होने से बच्चे के देखने की क्षमता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। (और पढ़ें - शिशु का वजन कैसे बढ़ाएं)
       
  • अन्य वजह से होने वाला मोतियाबिंद (Secondary cataracts):
    सेकेंडरी मोतियाबिंद बच्चे को होने वाले अन्य रोग (जैसे – बच्चों में डायबिटीज व अन्य) की वजह से हो जाता है। इसके अलावा यह कई प्रकार की दवाओं (जैसे – स्टेरॉयड आदि) का सेवन करने की वजह से भी बच्चों में सेकेंडरी मोतियाबिंद हो जाती है।
     
  • चोट की वजह से होने वाला मोतियाबिंद (Traumatic cataracts):
    आंखों में किसी प्रकार की चोट के कारण इस तरह का मोतियाबिंद हो जाता है। इस प्रकार का मोतियाबिंद चोट के तुरंत बाद या फिर कुछ सालों के बाद भी बच्चे की आंखों में हो सकता है। (और पढ़ें - चोट लगने पर क्या करें)
     
  • रेडिएशन की वजह से मोतियाबिंद (Radiation cataracts):
    इस प्रकार का मोतियाबिंद किसी प्रकार की रेडिएशन के संपर्क में आने की वजह से होता है। 

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बच्चों में मोतियाबिंद के लक्षण अलग-अलग हो सकते हैं, जो उसकी आंखों के लेंस पर होने वाले धुंधलापन की स्थिति और आकार के साथ ही एक या दोनों आंखों की समस्या पर निर्भर करते हैं। अगर आपका बच्चा बेहद छोटा है तो मोतियाबिंद के लक्षणों की पहचान करना मुश्किल हो सकता है। बच्चों में मोतियाबिंद होने के कुछ लक्षणों को नीचे विस्तार से बताया गया है।

  • बच्चे को देखने में मुश्किल होना। आप महसूस करेंगे कि आपके बच्चे को लोगों और चीजों को पहचानने में मुश्किल हो रही है। (और पढ़ें - आंखों में जलन का उपचार)
  • बच्चे को आंखों की गतिविधियों पर नियंत्रण नहीं रहता है। इसमें बच्चे की आंखों की पुतलियां अनायास धूमती रहती है। (और पढ़ें - आंखों की थकान का इलाज)
  • दोनों आंखों की दिशा अलग-अलग हो सकती है। इसको भेंगापन भी कहा जाता है। (और पढ़ें - दोहरी दृष्टि दोष का इलाज)
  • बच्चे की आंख की पुतली सफेद और ग्रे हो जाती है। यह एक अन्य गंभीर समस्या जैसे रेटिनोब्लास्टोमा (Retinoblastoma) की ओर संकेत करती है। इस स्थिति में आपको अपने बच्चे को जल्द से जल्द डॉक्टर के पास ले जाना चाहिए। 

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ऐसे कई कारण होते हैं, जिनकी वजह से कुछ बच्चे मोतियाबिंद के साथ ही पैदा होते हैं या उनको यह समस्या शुरूआती कुछ वर्षों में हो सकती है। लेकिन अधिकतर मामलों में बच्चों के मोतियाबिंद की मुख्य वजह के बारे में पता लगाना संभव नहीं होता है।

बच्चों में मोतियाबिंद के कुछ कारणों को नीचे विस्तार से बताया गया है।

  • जीन्स और अनुवांशिक विकार:
    माता-पिता के कुछ खराब जीन्स जब बच्चे को अनुवांशिक रूप से मिलते हैं, तो यह जन्मजात मोतियाबिंद की मुख्य वजह होती है। इसमें बच्चे की आंख का लेंस सही तरह से विकसित नहीं हो पाता है। जन्मजात मोतियाबिंद के हर 5 में से 1 मामला ऐसा देखा जाता है जिसमें बच्चे के परिवार के किसी सदस्य को पहले कभी जन्मजात मोतियाबिंद की समस्या होती है। हाल में हुई रिसर्च से पता चला है कि दोनों आंखों में होने वाला जन्मजात मोतियाबिंद अनुवांशिक विकारों की वजह से होता है। इसके साथ ही क्रोमोसोम्स में होने वाली असामान्यताओं जैसे डाउन सिंड्रोम का संबंध मोतियाबिंद से होता है। क्रोमोसोम्स शरीर की कोशिकाओं का हिस्सा होते हैं, जिनके अंदर जीन्स होते हैं। 
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  • प्रेग्नेंसी में महिला को इंफेकशन:
    गर्भावस्था के समय महिला को इंफेक्शन होना भी जन्मजात मोतियाबिंद का कारण होता है। गर्भवती महिला को रूबेला (rubella), टोक्सोप्लासमोसिस (toxoplasmosis), साईटोमिगालो वायरस (cytomegalovirus) व चिकनपॉक्स (chickenpox) आदि संक्रमण से बच्चे में जन्मजात मोतियाबिंद होने की संभावना बढ़ जाती है। 
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जन्म के बाद होने बच्चों में होने वाले मोतियाबिंद के कारण

जन्म लेने के बाद बच्चे को होने वाले मोतियाबिंद को जुवेनाइल कैटरेक्ट (juvenile cataracts), एक्वायर्ड (acquired) व इंफैनलाईल (infantile) कहा जाता है। इसके निम्नलिखित कारण होते हैं।

  • ग्लाक्टोसेमिया (Galactosaemia):
    इसमें शरीर शुगर ग्लाक्टोस (galactosaemia: लैक्टोस से प्राप्त तत्व) को तोड़ नहीं पाता है।
     
  • डायबिटीज:
    इस समस्या में वयक्ति के शुगर का स्तर अधिक हो जाता है और यह समस्या लंबे समय तक चलती है। (और पढ़ें - शुगर में क्या खाना चाहिए)
     
  • आंख में चोट:
    आंख में किसी तरह की चोट लगना या ऑपरेशन होना। (और पढ़ें - गुम चोट का इलाज)
     
  • टोक्सोकैरीयासिस (toxocariasis):
     यह दुर्लभ परजीवी संक्रमण है जो कई बार आंखों को प्रभावित करता है। यह परजीवी जानवर के मल से व्यक्तियों में फैलता है।   

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बच्चों में होने वाले मोतियाबिंद की जल्दी पहचान से उसका इलाज शुरु करने में मदद मिलती है। इसका इलाज जल्द होने से बच्चे को दृष्टि संबंधी अन्य समस्याओं की संभावना कम हो जाती है।

  • शिशु का परीक्षण:
    जन्म के 72 घंटों के अंदर आंखों का जांच की जाती है, इसके बाद बच्चे के 6 से 8 सप्ताह का होने पर डॉक्टरों द्वारा दोबारा जांच की जाती है। बच्चे की आंख की पुतली और उसके घूमने की प्रवृत्ति के आधार को इस जांच में शामिल किया जाता है। अगर बच्चे की आंख में धब्बा दिखाई दे तो यह मोतियाबिंद का संकेत होता है। 
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  • विजुअल एक्यूटी टेस्ट (Visual acuity test):
    यह सामान्य चार्ट टेस्ट होता है, इससे डॉक्टर बच्चे की विभिन्न दूरियों पर देखने की क्षमता की जांत करते हैं। 
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  • पुतली का फैलाव (Pupil dilation):
     इसमें डॉक्टर आंख की पुतली का फैलाव करने के लिए आंख में विशेष तरह की दवा डालते हैं। इससे जांच में डॉक्टर आंखों के रेटिना और आंखों की नसों में होने वाले नुकसान व अन्य समस्याओं की पहचान करते हैं। 

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शिशु में मोतियाबिंद की पहचान शुरुआती तीन महिनों में कर लेनी चाहिए, क्योंकि देखने में होने वाली समस्या उनके विकास को प्रभावित कर सकती है। बच्चों में मोतियाबिंद दूर करने के लिए किया जाने वाला ऑपरेशन व्यस्कों की तरह ही होता है, जिसमें प्रभावित लेंस को हटा दिया जाता है। बच्चे की आयु और आंखों के विकास के आधार पर सर्जरी के द्वारा उसकी आंखों पर पुराने लेंस की जगह पर प्लास्टिक का नया लेंस लगा दिया जाता है। (और पढ़ें - आंखों की सूजन का इलाज)

अगर बच्चा सर्जरी के लिए काफी छोटा है तो उसको देखने के लिए चश्मा दिया जाता है। बच्चे को चश्मा लगाने में मुश्किल हो सकती हैं, ऐसे में डॉक्टर उसकी आंखों पर लेंस लगाने की सलाह देते हैं। (और पढ़ें - आंखों में दर्द का घरेलू इलाज)

ऑपरेशन के बाद डॉक्टर बच्चे की आंखों के बचाव के लिए पैड या पारदर्शी शिल्ड लगा देते हैं। मोतियाबिंद के अधिकतर ऑपरेशन में बच्चे की रातभर जांच के लिए रखा जाता है। यदि बच्चे की दोनों आंखों में मोतियाबिंद हो तो डॉक्टर पहले एक आंख का ऑपरेशन करते हैं उसके बाद दूसरी आंख की सर्जरी करते हैं। इससे ऑपरेशन के दौरान दोनों आंखों पर होने वाले जोखिम से बचाव होता है। 

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