डायबिटीज से आंखें, किडनी और दिल तो प्रभावित होता ही है, इसके अलावा हड्डियों से जुड़ी समस्याएं भी हो सकती हैं. शोध के अनुसार, सामान्य लोगों के मुकाबले टाइप 1 और टाइप 2 डायबिटीज से ग्रस्त लोगों को फ्रैक्चर होने की आशंका ज्यादा रहती है. इसलिए, डायबिटीज के मरीज को नियमित रूप से एक्सरसाइज और संतुलित डाइट लेने की सलाह दी जाती है.

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आज इस लेख में आप जानेंगे कि डायबिटीज के चलते किस प्रकार बोन डिजीज की समस्या हो सकती है और इससे कैसे बचा जाए -

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  1. डायबिटीज और बोन डिजीज में क्या है लिंक
  2. डायबिटिक बोन डिजीज के जोखिम को ऐसे करें कम
  3. सारांश
क्या डायबिटीज से बोन डिजीज हो सकती हैं? के डॉक्टर

डायबिटीज एक मेटाबॉलिज्म डिसऑर्डर है, जो मेटाबॉलिज्म के फेल होने और शरीर द्वारा बहुत कम या बहुत ज्यादा इंसुलिन के निर्माण की वजह से होता है. वहीं, बोन डिजीज में स्केलेटन को नुकसान पहुंचता, जिससे हड्डियां कमजोर हो जाती हैं और फ्रैक्चर होने का जोखिम बढ़ जाता है. 

वहीं, अगर किसी को मधुमेह है, तो हड्डी और जोड़ों से संबंधित समस्याएं होने का खतरा बढ़ जाता है. इसके पीछे कुछ कारक जिम्मेदार हैं, जैसे - नर्व का क्षतिग्रस्त होना (डायबिटिक न्यूरोपैथी), आर्टियल डिजीज और मोटापा, लेकिन अभी इन कारणों के बारे में स्पष्ट रूप से कहना संभव नहीं है. फिर भी डायबिटीज होने पर निम्न प्रकार की बोन डिजीज हो सकती हैं -

ऑस्टियोपोरोसिस

हड्डियों से जुड़ी यह एक आम बीमारी है, जिसमें हड्डियों के टिश्यू के ढांचे में गिरावट आने लगती है. इसकी वजह से हिप, कलाई, घुटने और रीढ़ की हड्डी में फ्रैक्चर होने का जोखिम बढ़ जाता है. ऑस्टियोपोरोसिस का इलाज किया जा सकता है, लेकिन इसके 50 से ज्यादा की उम्र के लोगों को होने की आशंका बढ़ जाती है. इस स्थिति में शरीर में कैल्शियम की कमी हो जाती है और हड्डियां कमजोर हो जाती हैं. डायबिटीज वाले लोगों की हड्डियों की क्वालिटी में गिरावट आ जाती है, जिससे ऑस्टियोपोरोसिस होने का जोखिम बढ़ जाता है. इसके इलाज के लिए डॉक्टर पैदल चलना, कैल्शियम और विटामिन-डी वाली डाइट लेने की सलाह देते हैं. 

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ऑस्टियोपीनिया

इस स्थिति में हड्डियां सामान्य स्थिति से अधिक कमजोर हो जाती हैं, लेकिन हड्डियों का मास और डेन्सिटी (घनत्व) इतना कम नहीं होता है कि हड्डियां आसानी से टूट जाएं. यह मजबूत हड्डियों और ऑस्टियोपोरोसिस के बीच की स्थिति है. शोध के अनुसार, ऑस्टियोपीनिया की समस्या टाइप 1 डायबिटीज के चलते होती है, खासकर उन लोगों में जो इंसुलिन की हाई डोज लेते हैं.

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चारकोट फुट

इसे चारकोट न्यूरोपैथिक ऑस्टियोथ्रोपैथी भी कहा जाता है. यह डायबिटीज की ऐसी स्थिति है, जिसमें पैरों और टखने में डिफॉर्मईटीज हो जाती है. इसके लक्षण में सूजन और लालिमा है. चारकोट फुट के इलाज के लिए असिस्टिव डिवाइस और कस्टम शूज का इस्तेमाल किया जाता है. अगर इनसे आराम नहीं मिलता है, तो सर्जरी की जाती है. 

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डायबिटिक हैंड सिंड्रोम

इसे डायबिटिक कीरोआरथ्रोपैथी भी कहा जाता है, जो टाइप 1 और टाइप 2 दोनों तरह की डायबिटीज वाले लोगों को हो सकता है. इस स्थिति में उंगलियों की मूवमेंट सीमित हो जाती है. डायबिटिक हैंड सिंड्रोम उन लोगों में आम है, जिनकी डायबिटीज नियंत्रण में नहीं रहती है. 

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डिफ्यूज इडियोपैथिक स्केलेटल हाइपोस्टैसिस

इसे फोरेस्टियर डिजीज भी कहा जाता है, जो एक तरह का अर्थराइटिस है. यह रीढ़ को प्रभावित करता है. इस स्थिति में टिश्यू कड़े हो जाते हैं और रीढ़ के आस-पास बोन स्पर्स की समस्या हो जाती है. डिफ्यूज इडियोपैथिक स्केलेटल हाइपोस्टैसिस को शॉर्ट फॉर्म में डिश भी कहा जाता है, जिसमें कूल्हे, घुटने, कंधे, हाथ और पैरों में भी बोन स्पर्स हो जाता है. टाइप 2 डायबिटीज या अन्य कोई भी स्थिति जिसमें इंसुलिन बढ़ जाता है, उस स्थिति में इसके होने की आशंका बढ़ जाती है.

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फ्रोजन शोल्डर

फ्रोजन शोल्डर में कंधे के पास के लिगामेंट सूजकर कठोर हो जाते हैं. इस स्थिति में मरीज के लिए शर्ट के बटन बंद करना भी मुश्किल हो जाता है. इसे ठीक होने में कई महीने या वर्ष तक लग जाते हैं. इसे फिजियोथेरेपी, एंटी इंफ्लेमेटरी दवाओं और कॉर्टिकोस्टेरॉइड या ग्लूकोकॉर्टिकॉइड इंजेक्शन से ठीक किया जा सकता है. शोध के अनुसार, जो डायबिटीज को मैनेज नहीं करते हैं, उन्हें फ्रोजन शोल्डर होने का जोखिम पांच गुणा अधिक रहता है.

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डुप्यूट्रेन कान्ट्रैक्चर

यह धीरे-धीरे हाथ की स्किन के अंदर के कनेक्टिव टिश्यू के मोटे और जख्मी होने का कारण बनता है. इस स्थिति में हमेशा दर्द नहीं होता है, लेकिन उंगलियों की मूवमेंट जरूर सीमित हो जाती है. डायबिटीज के मरीज को डुप्यूट्रेन कान्ट्रैक्चर होने का खतरा तीन गुणा ज्यादा होता है. खासकर टाइप 1 डायबिटीज के मरीज डुप्यूट्रेन कान्ट्रैक्चर की चपेट में ज्यादा आते हैं. इसके इलाज में सूजन को कम करने के लिए स्टेरॉयड इंजेक्शन दिया जाता है.

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डायबिटिक बोन डिजीज के जोखिम को कम करने में नियमित एक्सरसाइज, संतुलित डाइट और लाइफस्टाइल में बदलाव लाने से मदद मिलती है. आइए, इन उपायों के बारे में विस्तार से जानते हैं -

नियमित एक्सरसाइज

हड्डियों को मजबूत करने में एक्सरसाइज अहम भूमिका निभाता है. इसके लिए वजन उठाने वाले और स्ट्रेंथ ट्रेनिंग एक्सरसाइज सही हैं. इसमें जॉगिंगसीढ़ियां चढ़नापैदल चलनाडांस करना और टेनिस खेलने से लेकर वेट लिफ्ट करना और पुश अप करना शामिल है. 

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संतुलित डाइट

फल और सब्जियों के साथ लीन मीटफिशसाबुत अनाजनट्स-सीड्स, लो फैट डेयरी और कैल्शियम वाले फूड्स का सेवन जरूरी है. इसके साथ ही पर्याप्त मात्रा में विटामिन-डी और कैल्शियम भी जरूरी है.

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लाइफस्टाइल में बदलाव

शराब और धूम्रपान दोनों हड्डियों की सेहत के लिए सही नहीं है. स्मोकिंग करने वाली महिलाओं को समय से पहले मेनोपॉज आ सकता है. इसकी वजह से एस्ट्रोजन कम हो जाता है और बोन लॉस होने लगता है. शराब से भी बोन लॉस और फ्रैक्चर हो सकता है.

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डायबिटीज होने का मतलब कतई यह नहीं है कि बोन डिजीज होगा ही. हां, अगर डायबिटीज को नियंत्रित नहीं किया जाता है, तो इसके होने के चांसेज बढ़ सकते हैं. बेहतर तो यह होगा कि जोड़ों में सूजन, लालिमा, सुन्नपन या दर्द महसूस होने से तुरंत डॉक्टर से सलाह ली जाए. इसके इलाज में संतुलित डाइट और नियमित एक्सरसाइज से मदद मिलती है. यहां यह भी ध्यान रखना जरूरी है कि हर बोन डिजीज का इलाज नहीं है, लेकिन इसके असर को कम जरूर किया जा सकता है. 

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