नौ महीने का इंतजार करने के बाद जब मां शिशु को गोद में लेती है तो मानिए पूरी दुनिया की खुशियां उसे मिल जाती हैं। शिशु के जन्म के बाद का पहला महीना बेहद भावुक और नाजुक होता है। नवजात के जन्म के साथ खुशियां और जिम्मेदारियां दोनों आती हैं। शिशु को नौ महीने तक गर्भ में रखने से लेकर उसे जन्म देने तक, मां के शरीर में बहुत से बदलाव आते हैं। साथ ही गर्भ से निकल कर शिशु भी नई दुनिया को पहली बार देख उससे अंजान तालमेल बिठाने की कोशिशें कर रहा होता है।

चूंकि, इस समय आप और आपका शिशु का शरीर अभी बहुत सारे बदलावों से गुजर रहे हैं, इसीलिए यह समय मानसिक, शारीरिक और भावनात्मक रूप से बहुत ही नाजुक है। इस दौरान आप और आपके शिशु को साथ में कई सारे नए एहसास और अनुभव महसूस होते हैं। शिशु को दूसरे हफ्ते तक आपका चेहरा और साफ दिखाई देने लगेगा और दूसरे हफ्ते के अंत तक वह चेहरे के हाव-भावों पर प्रतिक्रिया देने लगेगा। वह आपकी और दूसरों की आवाजों को और अच्छे से सुन पाएगा और उन पर प्रतिक्रिया दे पाएगा। इस दौरान आप उसके साथ खूब खेलें। उसके चेहरे में भी बदलाव आएंगे और महीने के अंत तक शिशु की लंबाई एक इंच बढ़ जाएगी। बच्चा इस महीने में चीजें पकड़ने लग जाएगा, इसलिए उससे ऐसी चीजें दूर रखें जिनसे उसे नुकसान पहुंच सकता है।

इस दौरान शिशु दिनभर में 18 घंटे सोता है। ऐसा लगातार नहीं, बल्कि थोड़े-थोड़े समय के लिए होता है। शिशु को दिन में 8 से 12 बार भूख लगती है। अभी आपके शिशु को दूध पीना नहीं आता है। यह तरीका आपको उसे सिखाना पड़ेगा। जैसे-जैसे शिशु स्तनपान करना सीखता है, उसके लिए यह आसान होता चला जाता है। हालांकि, इसमें मां को थोड़ा दर्द हो सकता है। स्तनपान के दौरान निप्पल में दर्द हो तो दर्द निवारक बाम लगा सकती हैं।

यदि शुरुआत में शिशु का मल काला, चिपचिपा और तार जैसा आ रहा है, तो चिंता न करें। यह केवल मेकोनियम के कारण है। मेकोनियम एक एमनीओटिक द्रव्य है जिसे गर्भ में बच्चा निगल लेता है। इस जानकारी के बाद चिंता करने की जरूरत नहीं है, यह केवल 24 से 48 घंटे तक ही रहता है।

बच्चे का मल जल्दी ही सामान्य हो जाएगा। माह के अंत तक स्तनपान करने वाले शिशुओं का मल धीरे-धीरे पूरी तरह से पीला हो जाएगा और फॉर्मूला फीड ले रहे बच्चों के मल का रंग भूरा या हल्का हरा हो जाएगा। नवजात शिशु दिन में तीन से चार बार पॉटी कर सकते हैं।

इस समय मां और शिशु दोनों को बहुत ज्यादा आराम करने की जरूरत है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि इस दौरान आपके शरीर में बहुत सारे बदलाव हो रहे होते हैं। इन सभी बदलावों के साथ सामंजस्य बिठाने के लिए आपको आराम करने की जरूरत है। अभी आप वो सब करें जो भी आपके शरीर के लिए जरूरी है। जितना हो सके आराम करें।

शरीर को पर्याप्त पोषण दें। खूब सारा पानी पिएं, संतुलित आहार खाएं। भोजन में वसा, कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन आदि प्रचुर मात्रा में लें। ये सभी पोषक तत्व आपके शरीर को स्वस्थ रखने में मदद करेंगे।

डिलीवरी के बाद मां के मूड में बदलाव आना या दुख महसूस होना स्वाभाविक है, इसे "बेबी ब्लूज" कहते हैं। लगभग 80 प्रतिशत महिलाएं उदास, मूडी, चिड़चिड़ा और रोने जैसा महसूस करती हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि डिलीवरी के बाद मां के शरीर में एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन हार्मोन का स्तर तेजी से गिरता है।

बेबी ब्लूज आमतौर पर डिलीवरी के पांच से छह घंटे बाद शुरू होते हैं। आमतौर पर ये एक से दो हफ्ते में ठीक हो जाते हैं। अगर ये इससे ज्यादा समय तक रहते हैं तो बेहतर होगा कि आप डॉक्टर से एक बार इस बारे में बात कर लें।

जैसा कि आप जानती ही हैं कि ये लम्हे बहुत ही कीमती होते हैं और आप इन्हें फिर से नहीं जी पाएंगीं, इसलिए शिशु के साथ ज्यादा से ज्यादा समय बिताने और इन सभी पलों को अच्छे से जीने की कोशिश करें। हालांकि, इन सभी चीजों से पहले शिशु से जुड़ी सभी जरूरी बातें जान लें।

  1. पहले महीने में शिशु के सोने का तरीका - Pehle mahine me shishu ke sone ka tarika
  2. बच्चे को सुलाते समय ध्यान रखने योग्य बातें - Newborn baby ko sulane ke safety tips
  3. नवजात शिशु को दूध पिलाने का तरीका - Navjat shishu ko doodh kaise pilaye
  4. शिशु का एक महीने में विकास - Shishu ka ek mahine me vikas
  5. पहले महीने में शिशु की देखभाल - First month me Newborn baby ki care
  6. शिशु को डॉक्टर के पास कब ले जाएं - Baby ko doctor ke paas kab lekar jaye
  7. पहले महीने में शिशु को लगने वाले टीके - Pehle mahine me shishu ke liye jaruri Vaccine
  8. पहले महीने में शिशु में आए सामान्य बदलाव - First month me baby me badlav
  9. प्रसव के बाद मां की देखभाल - Delivery ke baad kaise kare maa ki dekhbhal
जन्म के बाद पहले महीने में कैसे होता है शिशु का विकास के डॉक्टर

आपने कई रिश्तेदारों से सुना या किताबों में पढ़ा होगा और डॉक्टर या नर्स ने भी शायद आपको यह बताया हो कि बच्चा होने के बाद आपको कई रातें बिना सोए बितानी होंगी। ऐसे में अगर आप ये जान लें कि वास्तव में ये सब किस तरह से होगा तो इसके अनुसार खुद को ढालने और खुद को तैयार करने में आपको मदद मिलेगी।

  • पहला हफ्ता :
    जन्म के बाद पहले हफ्ते में शिशु लगभग पूरा दिन 16 से 18 घंटे सोता रहता है। इस समय में शिशु को दिन और रात के बारे में पता नहीं होता है इसलिए उसका स्लीप पैटर्न (सोने का निश्चित समय और अवधि) अनियमित होता है।
    ज्यादातर बच्चे दिन में आठ से नौ घंटे और रात में भी आठ से नौ घंटे तक सोते हैं। हालांकि, शिशु लगातार नहीं बल्कि थोड़े-थोड़े समय के लिए ही सोते हैं।

  • दूसरा हफ्ता :
    अगर आपका शिशु दिनभर में 16 से 18 घंटे सो रहा है तो ये एक अच्छा संकेत है, क्योंकि नींद के दौरान ही शिशु का अधिकतर विकास होता है।

    इस समय आप अपने बच्चे का बेड टाइम रूटीन (रोज समय पर सोने की आदत) बना सकती हैं। इससे बच्चा दिन और रात का अंतर भी समझ पाएगा। हर दिन नई चीजें अपनाएं और देखें कि आपके बच्चे के लिए कौन-सा तरीका काम आ रहा है।

    आप बच्चे को किसी शांत कमरे में ले जा सकते हैं, उसे लोरी सुना सकते हैं, लाइट बंद कर के मधुर संगीत चला सकते हैं। यहां इस बात का ध्यान रखें कि बच्चे को गोद में न सुलाएं क्योंकि इससे बच्चे की आप पर निर्भरता बढ़ जाएगी। जब बच्चा उबासी लेने लगे तो आप उसे पालने में रख दें। (और पढ़ें - नवजात शिशु की नींद का रूटीन)

  • तीसरा हफ्ता :
    आपका बच्चा अभी भी 18 घंटे ही सोएगा। यह नींद उसके विकास के लिए बहुत जरूरी है। इस दौरान भी स्लीप रूटीन बनाए रखें। इससे न सिर्फ शिशु को दिन और रात में अंतर का पता चलेगा बल्कि वह आराम से सो भी पाएगा और आपकी नींद भी अधिक प्रभावित नहीं होगी।

  • चौथा हफ्ता :
    बच्चा अभी भी 16 से 18 घंटे की ही नींद लेगा। इसमें वो दिन में थोड़ी-थोड़ी देर के लिए और रात में एक या दो बार ज्यादा देर के लिए सोता है। अभी भी शिशु के विकास के लिए नींद जरूरी होगी। अगर शिशु स्वस्थ है, ठीक से दूध पी रहा है और उसका वजन सामान्य रूप से बढ़ रहा है तो चिंता करने की जरूरत नहीं है। जितना शिशु चाहे उतना उसे सोने दें।

बच्चे के साथ एक ही बेड पर सोने से बचें क्योंकि इससे सडन इंफेंट डेथ सिंड्रोम (एसआईडीएस) की आशंका बढ़ जाती है। बच्चे को अपने साथ एक ही कमरे में सुलाएं इससे आप बच्चे पर नजर रख सकती हैं और जब भी उसे आपकी जरूरत हो आप उसके पास रह सकती हैं।

ध्यान रखें कि बच्चा अपने आप सोए। शिशु को ज्यादा कपड़े पहनाकर न सुलाएं और उसके आसपास ज्यादा तकिए, खिलौने या कंबल आदि न रखें, इससे बच्चे का दम घुटने की आशंका कम होती है।

(और पढ़ें - नवजात शिशु को कितना सोना चाहिए)

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इस बात का ध्यान रखने की पूरी कोशिश करें कि बच्चा आपकी गोद में या कार की सीट पर न सोए। हालांकि, यह थोड़ा मुश्किल है लेकिन बच्चे के लिए जरूरी है। बच्चे को पालने में एक नरम गद्दे पर सुलाएं, इससे बच्चा सुरक्षित रहेगा और उसमें रोज सोने की आदत बनेगी। बच्चे का बिस्तर लगाने के लिए निम्न जरूरी बातें जान लें -

  • बच्चे के लिए सही पालना चुनना बहुत जरूरी है। ध्यान रखें कि बच्चा कुछ महीनों तक इसी पालने का प्रयोग करेगा इसलिए इसका आरामदायक होना जरूरी है। पालना ऐसा न हो जिसमें शिशु का हाथ या पैर फंस जाए।
  • एक नरम गद्दा लें जो पालने में आसानी से आ जाए। इस पर साफ चादर बिछाएं। इसे गद्दे पर कस कर बांधें।
  • यदि आपके जुड़वा बच्चे हैं तो दोनों के लिए एक ही पालने का प्रयोग न करें। डॉक्टरों के अनुसार बच्चे के एक वर्ष के होने तक उन्हें अलग-अलग पालनों में ही सुलाना चाहिए।
  • कोशिश करें कि बच्चा पालने में अपने आप सोए। कार की सीट, बेबी कैरियर और यहां तक कि सोफे पर सोने से भी बच्चे की दम घुटने, श्वास नली के अवरुद्ध होने या एसआईडीएस से मृत्यु होने का खतरा बढ़ जाता है।
  • पालने को किसी भी ऐसी चीज से न ढकें जिससे आपको शिशु दिखाई न दे। इसके साथ ही बच्चे को पीठ के बल लिटाएं। बच्चे को कभी भी पेट के बल या करवट कर के न सुलाएं।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार शिशु को जन्म के छह माह तक केवल मां का दूध ही देना चाहिए। मां का दूध सभी पोषक तत्वों और एंटीबॉडी से भरपूर होता है, विशेषकर कोलोस्ट्रम। कोलोस्ट्रम डिलीवरी के बाद मां के स्तन से निकला पहला दूध होता है जो कि प्रसव के बाद कुछ दिनों तक आता है।

हालांकि, ब्रेस्ट मिल्क में विटामिन डी नहीं होता है जो हड्डियों को मजबूत करने और शिशु के ठीक तरह से विकास के लिए जरूरी है। इस वजह से नई मां को स्तनपान के दौरान विटामिन डी के सप्लीमेंट लेने चाहिए।

(और पढ़ें - बच्चे को दूध पिलाने का तरीका)

शिशु को स्तनों से दूध खींचना सिखाना पड़ता है। इसे लैचिंग कहते हैं। इसके लिए आप कई अलग-अलग पोजीशन ट्राई कर के देख सकती हैं, जैसे क्रैडल होल्ड (इसमें मां शिशु के सिर को अपने बाएं हाथ में लिटाती है), फुटबॉल होल्ड (शिशु को एक हाथ से पकड़ना जिसमें उसका सिर आगे और पैर पीछे की तरफ होते हैं) या फिर आप करवट लेकर लेटते हुए भी बच्चे को दूध पिला सकती हैं।

इस समय आपको बच्चे को अलग-अलग तरीकों से स्तनपान करवाना है और जो भी आपके व शिशु के लिए सबसे बेहतर हो उस तरीके को ही आगे लेकर जाएं। शुरुआती दिनों में शिशु को स्तनों से दूध खींचना सिखाने के लिए आप निम्न टिप्स अपना सकती हैं -

  • अपने हाथ या अंगूठे को एरोला (निप्पल के आसपास का हिस्सा) पर रखें। शिशु के सिर को हल्का-सा झुकाएं और उसके होठों पर निप्पल से गुदगुदी कर के उसे दूध पीना सिखाएं। 
  • निप्पल को मुंह के अंदर लेने में शिशु की मदद करें। बच्चे के मुंह खोलने पर अपने निप्पल को शिशु के नीचे के जबड़े पर रखें।
  • अब शिशु के सिर को आगे की तरफ झुकाएं और जबड़े के ऊपरी हिस्से को स्तन पर रखें।

स्तनपान से जुड़ी शिशु की कुछ आदतें

पहला हफ्ता
शिशु को हर दो घंटे में भूख लग सकती है। शिशु दिन में 8 से 12 बार दूध पी सकता है। जन्म के बाद पहले दो दिनों में शिशु हर बार 15 मिली दूध पीता है। दूसरे हफ्ते तक यह बदलकर 60 से 90 मिली हो जाता है।

दूसरा हफ्ता
आपको अपने नवजात को हर दो से तीन घंटे में स्तनपान करवाना होगा। अपने शिशु को निप्पल पर लैच करवाएं। हर बार जब शिशु दूध पी ले, तो उसे डकार दिलवाएं। बेबी के खाने का समय अभी तक निर्धारित नहीं हो पाया है इसलिए जब भी बच्चा रोए, उसे दूध पिला दें।

निप्पल के सूखने और उनमें सूजन आने के कारण स्तनपान के दौरान दर्द हो सकता है और हो सकता है कि आप दिन में कई बार दूध पिलाकर थक जाएं। समय के साथ आपके लिए यह प्रक्रिया आसान हो जाएगी।

तीसरा हफ्ता
अब तक आपको और शिशु को ब्रेस्टफीड यानी स्तनपान की आदत हो चुकी है। चूंकि, इस दौरान शिशु का तेजी से विकास हो रहा है इसलिए अब शिशु को अधिक दूध की जरूरत होगी और वो ज्यादा देर तक दूध पीने लगेगा। अब शिशु ज्यादा देर तक सोने लगेगा और जल्दी सो जाएगा।

आपके शिशु का पेट अब भी छोटा ही है इसलिए आपको अब भी हर बार उसके रोने पर उसे दूध पिलाने की जरूरत होगी। अब जो दूध आपके स्तनों से निकल रहा है वह फैट से  युक्त है और आपके शिशु के विकास के लिए बेहद जरूरी है।

यह ध्यान रखें कि शिशु स्तनों का सारा दूध पी ले। यदि आप बच्चे को चुसनी देना चाहते हैं तो इसके लिए यह बिल्कुल सही समय है।

हालांकि, इस समय आपको शिशु को स्तनपान ही करवाना चाहिए। फिर भी, अगर आप शिशु को बोतल से दूध पिलाना चाहती हैं या पंप ब्रेस्ट मिल्क देना चाहती हैं तो अभी दे सकती हैं। हमेशा पंप किए हुए ब्रेस्ट मिल्क को फ्रीजर में रखें।

चौथा हफ्ता
चौथे हफ्ते तक आपको यह पता चल जाएगा कि दूध पीने पर कब शिशु का पेट भरता है। उसे कब भूख लगी है या फिर उसे कब नींद आ रही है। इस दौरान आपके शिशु का वजन हर दिन एक औंस या आधा औंस बढ़ रहा है। एक औंस 28 ग्राम होता है।

हर बार स्तनपान करने पर शिशु कितना दूध पी रहा है, ये आप नहीं बता सकती हैं लेकिन दूध पीने की अवधि को ध्यान में रख कर आप यह जान सकती हैं कि बच्चे को स्तनों में से पूरा दूध पीने में कितना समय लगता है।

इस समय मां का दूध शिशु के स्वास्थ्य के लिए बहुत जरूरी है। जिन शिशुओं को फॉर्मूला मिल्क दिया जा रहा है वे चौथे हफ्ते तक दिनभर में तीन से चार औंस दूध पी लेते हैं। हर महीने वे एक औंस अधिक दूध पीने लगते हैं। अब बच्चा भूख और पेट भरने के एहसास को ज्यादा अच्छे से महसूस करने लगता है, इसलिए अब उसे दूध ज्यादा या पूरा पीने के लिए बाधित न करें।

आमतौर पर इस उम्र तक आप शिशु को चौबीस घंटे में 8 से 12 बार दूध पिलाएंगीं। शिशु दिन में छह बार तक पेशाब करेगा और दो से तीन बार पॉटी करेगा।

हो सकता है कि व्यस्त होने के कारण हर समय आपका ध्यान शिशु के विकास पर न जाए, लेकिन यह समय शिशु के विकास के लिए बेहद नाजुक और महत्वपूर्ण है। शिशु अब भी गर्भ के बाहर की दुनिया के साथ संतुलन बनाने की कोशिश कर रहा है। शिशु के विकास से जुड़ी निम्नलिखित बातें जन्म के पहले महीने में देखी जा सकती हैं -

  • पहला हफ्ता
    अस्पताल से घर आने के कुछ दिनों बाद आपको बच्चे को लेकर डॉक्टर के पास चेकअप के लिए जाना होगा। इस अपॉइंटमेंट में डॉक्टर शिशु के माथे की चौड़ाई की जांच करेंगे। इससे डॉक्टर को शिशु के मस्तिष्क के विकास का पता लगाने में मदद मिलेगी।

    • माथे की चौड़ाई - जन्म के बाद पहले हफ्ते में शिशु की खोपड़ी का विकास अभी भी हो रहा होता है और खोपड़ी की हड्डियां आपस में जुड़ रही होती हैं।
      पहले हफ्ते में बेबी गर्ल के माथे की औसतन चौड़ाई 13.75 इंच (35 सेमी) होगी, जबकि बेबी बॉय के माथे की चौड़ाई लड़कियों की तुलना में अधिक (आधा इंच या एक सेमी अधिक) होती है।

       
    • नई चीजें सीखना - इस हफ्ते में शिशु गर्भ से बाहर रहने के लिए जरूरी कौशल सीख रहा होता है। बच्‍चे का प्रमुख कार्य दूध पीना, उसे पचाना और इम्‍यून सिस्‍टम का ठीक से काम करना एवं मां से अलग माइक्रोबायोम बनाने के लिए पाचन तंत्र के साथ गुड गट फ्लोरा का निर्माण करना है।
       
    • संवेदी विकास - इस समय शिशु अपनी सूंघने और स्पर्श से महसूस करने की क्षमता पर निर्भर होता है। इस दौरान जितना हो सके शिशु के साथ स्किन-टू-स्किन कॉन्टैक्ट यानी मां का शिशु की त्वचा के साथ संपर्क बनाए रखें। इसके अलावा शिशु में अन्य तरह के बदलाव भी आएंगे। हो सकता है कि आपको लगे शिशु की चौंक कर आपको देख रहा है या कांप रहा है। जब शिशु कुछ दिनों का होता है तो ये दोनों ही संकेत सामान्य हैं।
       
    • सांस लेने का पैटर्न -  नवजात शिशु में सबसे महत्वपूर्ण सांस लेने का तरीका या पैटर्न होता है। एक हफ्ते तक बच्चा अनियमित तरीके से सांस लेता है जिसमें उसे एपनिया (सांस लेना बंद कर देना) भी होगा।
      शुरुआत में आपको इससे थोड़ा डर लग सकता है, लेकिन शिशुओं में ऐसा होना सामान्य बात है, विशेषकर नींद के दौरान। डॉक्टर कहते हैं कि नींद के दौरान शिशु के सांस लेने के तरीके का अधिक ध्यान रखने की जरूरत होती है, कोई भी संकेत दिखने पर सचेत हो जाएं। शिशु की नींद से जुड़े नियमों और बातों से अवगत रहें।

       
    • टमी टाइम - इसमें शिशु पेट के बल चलना सीखता है। अस्पताल से घर आने के बाद से ही आप शिशु के टमी टाइम की शुरुआत कर सकते हैं। इससे बच्चे में फ्लैट हेड सिंड्रोम का खतरा कम होगा।
      शिशु को दिन में एक घंटे के लिए पेट के बल छोड़ देना चाहिए। ये अवधि उसके तीन महीने का होने तक बढ़ती रहनी चाहिए।

       
    • बच्चे का वजन - शुरुआत के कुछ दिनों में शिशु का वजन कम होगा। शिशु का वजन जन्म के समय के वजन से दस प्रतिशत तक घट सकता है। हालांकि, इसे लेकर चिंता करने की जरूरत नहीं है, कुछ ही दिनों में शिशु का वजन फिर से बढ़ने लग जाएगा।
       
    • शिशु के शरीर का तापमान - शुरुआती अवस्था में शिशु के हाथ और पैर नीले दिखाई दे सकते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि उसके शरीर में रक्त प्रवाह का अभी भी विकास हो रहा होता है।
      शिशु को कंबल या चादर ओढ़ाने से पहले उसकी गर्दन को छूकर देखें कि वो ठंडी है या नहीं। शिशु को ज्यादा गर्म रखने की कोशिश न करें।
  • दूसरा हफ्ता
    इस हफ्ते तक शिशु ज्यादा एक्टिव, उत्सुक और जिज्ञासु हो जाएगा।

    • आंखों की रोशनी - शिशु अभी भी 25 सेमी से आगे नहीं देख सकता है। चूंकि, वह अपना अधिकतर समय आपके साथ ही बिता रहा है इसलिए वह आपके चेहरे के प्रति ज्यादा आकर्षित होगा।
      शिशु आपके चेहरे के हाव-भावों को पढ़ने की कोशिश करेगा। जितना हो सके अपने चेहरे को शिशु के नजदीक रखें। इस समय आपके चेहरे के भाव शिशु को आकर्षित कर सकते हैं और शिशु इन पर अपनी प्रतिक्रिया दे सकता है।

    • शिशु का वजन - अधिकतर शिशुओं का वजन दूसरे हफ्ते तक कम होता रहता है। इस विषय में चिंता करने की जरूरत नहीं है। जब शिशु दूध पीना सीख जाएगा तब उसका वजन भी बढ़ने लगेगा।
      यदि आपका शिशु एक्टिव है, उसकी त्वचा का रंग भी ठीक है और दिनभर में 6 से 8 बार उसका डायपर बदलने की जरूरत पड़ती है तो इसका मतलब है कि आपका बच्चा पूरी तरह से स्वस्थ है।
      इस समय आप धैर्य रखें, शिशु का वजन दूसरे हफ्ते के अंत तक बढ़ने लग जाएगा। (और पढ़ें - नवजात शिशु का वजन कितना होता है)

  • तीसरा हफ्ता
    इस दौरान शिशु का विकास तेजी से हो रहा है। आपको हैरानी भी होगी कि जो कपड़े पिछले हफ्ते तक शिशु को ठीक तरह से आ रहे थे वो अब छोटे होने लगे हैं। तीसरे हफ्ते में शिशु का विकास कुछ इस तरह से होता है -

    • इस अवस्था तक शिशु 30 सेमी की दूरी तक देख सकता है। शिशु को आपके चेहरे के हाव-भावों को देखना और पढ़ना अभी भी बहुत अच्छा लगता है।
      शिशु अब भी आपके चेहरे के हाव-भावों को देखकर और आपकी आवाज सुनकर चकित होगा।

       
    • यदि शिशु रोशनी, रंगों में बदलाव आने पर या आपके चेहरे के हाव-भावों और अपने आसपास की चीजों को लेकर उत्सुकता या जिज्ञासा नहीं दिखा रहा है तो इस बारे में डॉक्टर को बताएं।​
       
      • सुनने की क्षमता - हो सकता है कि आप जो बोल रहे हैं उसे शिशु इस समय समझ न पाए लेकिन उसमें बोलने और सुनने की क्षमता का विकास करने के लिए यही सही समय है।
         
      • सिर हिलाना - इस समय शिशु सिर को घुमा और एक तरफ से दूसरी तरफ घुमा सकता है।
         
      • कोलिक बेबी - हो सकता है कि इस समय शिशु को कोलिक हो जाए। जब शिशु स्वस्थ है और उसका पेट भरा हुआ है लेकिन फिर भी तीन से अधिक घंटों तक रो रहा है तो इस स्थिति को कोलिक कहा जाता है।
        शिशु का ज्यादा देर तक रोना आपके लिए तनावपूर्ण हो सकता है। ऐसे में आप शिशु को कुछ तरीकों से शांत कर सकती हैं। उदाहरण के तौर पर अगर आप स्तनपान करवा रही हैं और शिशु के पेट में गैस है तो आपको अपनी डाइट में बदलाव करने की जरूरत है।
        हालांकि, शिशु के पांच माह का होने तक कोलिक अपने आप ठीक हो सकता है। शिशु को ग्राइप वॉटर न दें। (और पढ़ें - नवजात शिशु को गैस होने के लक्षण)
  • चौथा हफ्ता
    इस हफ्ते तक शिशु चेहरे पहचानने लगता है। इसके अलावा शिशु में कुछ अन्य बदलाव भी दिख सकते हैं, जैसे कि -

    • पहले से बेहतर सुन पाना - इस हफ्ते तक शिशु की सुनने की क्षमता पूरी तरह से विकसित हो चुकी होती है। इस समय तक शिशु सभी तरह की आवाजों पर प्रतिक्रिया देने लगता है। इसके अलावा शिशु आपकी आवाज को ध्यान से सुनने की कोशिश करता है।
      शिशु में भाषा कौशल (बोलने और सुनने की क्षमता) का विकास करने के लिए यह समय सबसे बेहतर है। अपने शिशु से जितना हो सके बातें करें।
      उसके साथ खेलने के लिए अलग-अलग तरह की आवाजें निकालें और देखें कि वो कैसी प्रतिक्रिया दे रहा है। इस समय शिशु आपकी आवाजों की तरह आवाज निकालने की भी कोशिशें करेगा। यदि आवाजों पर शिशु कोई प्रतिक्रिया नहीं दे रहा है तो इसके बारे में डॉक्टर को बताएं।

       
    • आंखों की रोशनी - इस समय तक शिशु को और अधिक साफ दिखाई देने लगेगा और इसके साथ ही अब वह आंखों से और अधिक फोकस कर पाएगा। अब वह चेहरों को भी पहचान पाएगा।
       
    • सिर को हिलाना - चौथे हफ्ते तक बच्चे की  गर्दन की हड्डी मजबूत हो जाएगी। अब वह सिर उठाने की और सिर को दाएं-बाएं हिलाने की कोशिश करेगा। आपका शिशु एक इंच बढ़ा है और हर हफ्ते उसका वजन सात से आठ औंस बढ़ा है।
       
    • शिशु की बांह व टांगों का विकास - जन्म के बाद शिशु का शरीर थोड़ा सिकुड़ा हुआ दिखना सामान्य बात है। पहले महीने में शिशु हाथ-पैरों को पूरी तरह से नहीं खोल पाता है। बाहरी दुनिया की आदत होने पर वो धीरे-धीरे अपने आप ही हाथ-पैर चलाने लगेगा।

यदि आपका शिशु ब्रीच पोजीशन (डिलीवरी के समय शिशु का सिर नीचे की ओर न आना) में था तो उसे हाथ-पैरों को खुलकर चलाने में थोड़ा समय लगेगा। गर्भ में आपके शिशु के पैर उसके कानों तक थे इसलिए जन्म के बाद उसे स्ट्रेच होने में थोड़ा समय लग सकता है।

अगर आपको शिशु के पैरों में धनुर्जानु (पैरों की हड्डियां विकृत होकर टेढ़ी हो जाती हैं) की प्रॉब्लम दिख रही है तो चिंता करने की जरूरत नहीं है क्योंकि यह स्ट्रेचिंग की प्रक्रिया का हिस्सा है और शिशु जब तक दो वर्ष का होगा तब तक यह ठीक हो जाएगा।

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अगर यह आपका पहला बच्चा है तो आपके लिए हर पल एक नया एहसास लेकर आएगा। बच्चे की देखभाल के लिए आप अपने घर के बुजुर्गों की मदद ले सकती हैं। इससे आपको अच्छी सलाह के साथ-साथ पर्याप्त आराम करने का मौका भी मिल पाएगा। शिशु को घर लाने से लेकर उसके एक माह का होने तक निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए -

  • पहला हफ्ता
    इस समय आप थकान, उत्सुकता के साथ घबराहट महसूस कर सकते हैं। इस हफ्ते में नीचे बताई गई बातें आपके लिए मददगार साबित हो सकती हैं -

    • नाभि ठूंठ की देखभाल - पहले हफ्ते के अंत तक नाभि ठूंठ सूख कर अपने आप गिर जाएगी। किसी भी तरह के संक्रमण से बचाने के लिए इसे सूखा व साफ रखें। यदि इंफेक्शन नहीं है तो एंटीबायोटिक न लगाएं।

    • स्पॉन्ज बाथ - इस हफ्ते में शिशु साफ होता है इसलिए उसे रोज नहलाने की जरूरत नहीं है। जब तक नाभि ठूंठ सूखकर गिर नहीं जाता तब तक बच्चे को गीले कपड़े से साफ करें। इससे किसी भी तरह का संक्रमण नहीं होगा।
      शिशु के शरीर पर एक चिपचिपी परत हो सकती है जिसे ‘वर्निक्स’ कहते हैं। गर्भ में यह परत शिशु को सुरक्षित रखती है और जन्म के तुरंत बाद होने वाले संक्रमणों से बचाती है। अब आप इसे पोंछ कर हटा सकते हैं। (और पढ़ें - नवजात शिशु को नहलाने का तरीका)

    • जन्म के पहले महीने में नवजात शिशु की पॉटी - शिशु का मल अब भी काला, चिपचिपा और तार की तरह हो सकता है। इसे साफ करना थोड़ा मुश्किल हो सकता है लेकिन इसे लेकर आपको परेशान होने की जरूरत नहीं है।
      यह केवल एमनियोटिक द्रव और कोशिकाओं का मिश्रण होता है जो कि गर्भावस्था के दौरान शिशु ने निगल लिया होता है। मेकोनियम से शिशु के मल का रंग हरे-पीले रंग का हो जाएगा और इसके बाद यह मुलायम और पीले रंग का हो जाएगा। 

    • शिशु को डकार दिलाना - हर बार दूध पिलाने के बाद शिशु को डकार दिलाना जरूरी होता है क्योंकि इससे शिशु को गैस और पेट दर्द होने का खतरा नहीं रहता है।
      फॉर्मूला ले रहे शिशुओं को डकार दिलवाना ज्यादा जरूरी होता है क्योंकि दूध पीते समय वे अच्छे से सांस नहीं ले पाते हैं। (और पढ़ें - शिशु को डकार दिलवाना क्यों है ज़रूरी

    • शिशु को स्तनपान करवाना - थकान की वजह से जन्म के बाद के चौबीस घंटों में शिशु स्तनपान करने के लिए तैयार नहीं होगा। शुरुआत के दो-तीन दिन तक आपके स्तनों से गाढ़ा पीले रंग का दूध निकलेगा जिसे कोलोस्ट्रम कहते हैं।
      कोलोस्ट्रम शिशु के स्वास्थ्य के लिए बहुत जरूरी है क्योंकि इसमें एंटीबॉडीज मौजूद होते हैं जो शिशु को विभिन्न संक्रमणों से बचाते हैं। दो-तीन दिनों के बाद सामान्य दूध आने लगेगा।
      शुरुआत में स्तनों में जब दूध भरा होगा तो स्तनपान करवाना मुश्किल हो सकता है। अगर आपको स्तनों में अधिक दर्द हो या फिर बुखार आए तो डॉक्टर से मिलें। (और पढ़ें - ब्रेस्ट में दर्द क्यों होता है)
      इस बात का विशेष ध्यान रखें कि शिशु को दोनों स्तनों से दूध पिलाएं। इससे आपके स्तनों में दूध की पर्याप्त मात्रा रहेगी और शिशु को पूर्ण पोषण मिलेगा।
      यदि शिशु को लैच करवाने में मुश्किल हो रही है तो आप नर्स या अपने परिवार में से किसी महिला की मदद ले सकती हैं। शिशु को ध्यान से देखें और उसके संकेतों को समझने की कोशिश करें। भूख लगने पर उसे दूध पिलाएं। 

    • शिशु के नाखून काटें -  शिशु के नाखून काटना बहुत जरूरी है क्योंकि वह नाखून से अपने चेहरे या नाक पर निशान मार सकता है और खुद को नुकसान पहुंचा सकता है। शिशु के नाखून काटने के लिए बेबी नेल क्लिप का प्रयोग करें।

    • पीलिया - नवजात शिशुओं में पीलिया की समस्या सामान्य है जो कि बिलीरुबिन की अधिक मात्रा के कारण होता है। नवजात शिशुओं में लाल रक्त कोशिकाएं अत्यधिक मात्रा में होती हैं। शरीर बिलीरुबिन बनाने के लिए इन अतिरिक्त लाल रक्त कोशिकाओं को तोड़ने लगता है।
      मल के जरिए बिलीरुबिन शरीर से बाहर निकल जाता है। इस प्रक्रिया के ठीक तरह से न होने और शरीर में बिलीरुबिन जमा होने पर शिशु को पीलिया होने लगता है। (और पढ़ें - नवजात शिशु में पीलिया के लक्षण)

    • भाई या बहन के साथ प्यार बढ़ाने की कोशिश करें - इस समय आप और आपके परिवार के सदस्य नए शिशु के आने की खुशियों में व्यस्त होंगे। ऐसे में यदि आपका पहले से कोई बच्चा है तो उसे नए शिशु को स्वीकार करने और उसे प्यार करने में मुश्किल होगी क्योंकि उसके अनुसार अब आपका प्यार और समय बंट रहा है।
      जैसे-जैसे शिशु बड़ा होगा उसकी जरूरतें बढ़ती जाएंगी जिससे उसकी आप पर निर्भरता भी अधिक होगी, इससे बड़े भाई या बहन को बुरा लग सकता है। ऐसे में आप दोनों बच्चों में तालमेल बनाए रखने का प्रयास करें और बड़े भाई या बहन को शिशु से प्यार करने के लिए उसकी देखभाल करने के लिए कहें।
      उदाहरण के तौर पर यदि आप शिशु की मालिश कर रही हैं तो इसमें अपने बड़े बच्चे की मदद लें। 

  • दूसरा हफ्ता
    अब तक शिशु का नाभि ठूंठ गिर चुका होगा और आप भी स्तनपान करवाना सीख चुकी होंगी। तो इस हफ्ते में निम्न बातों पर ध्यान दिया जा सकता है -

    • अब शिशु को नहलाया जा सकता है - अब जब नाभि ठूंठ गिर चुका है तो आप शिशु को नियमित रूप से नहला सकती हैं। आप शिशु को बेबी बाथ टब में नहला सकती हैं। ध्यान रखें कि पानी थोड़ा गुनगुना हो। शिशु को नहलाने से पहले बेबी सोप, बेबी टॉवल और डायपर निकाल लें।
      हो सकता है कि कई बच्चों की तरह आपके शिशु को भी नहाना न पसंद हो इसलिए बच्चे को थोड़ी देर तक ही नहलाएं। धीरे-धीरे शिशु को पानी पसंद आने लगेगा।
      जिन अंगों को मोड़ने पर त्वचा एक-दूसरे से स्पर्श होती है, उन्हें अच्छी तरह से साफ करें, जैसे कि जांघें और कोहनी के आगे वाला हिस्सा।
      इससे फंगल संक्रमण का खतरा कम होगा। शिशु की नाभि का विशेष ध्यान रखें।

    • स्लीप रूटीन बनाएं - समय आ गया है कि शिशु का स्लीप रूटीन बनाया जाए। इस रूटीन से बेबी के सोने का समय या पैटर्न बन जाएगा। इससे शिशु को दिन और रात में अंतर करने में आसानी होगी।

    • शिशु के शरीर का तापमान - शिशु के बहुत ज्‍यादा गर्म या ठंडा होने पर पसीना और कांपने का एहसास करवाने वाला आंतरिक ‘थर्मोस्‍टैट’ कुछ समय के लिए अभी भी ठीक से काम नहीं कर सकता है।
      हालांकि, इसका मतलब यह नहीं है कि आप शिशु को बहुत सारे कपड़े पहना दें या उसे कंबल से ढंक दें। मौसम के हिसाब से आपकी तुलना में शिशु को बस एक कपड़ा ज्‍यादा पहनने की जरूरत होती है।

  • तीसरा हफ्ता
    तीसरे हफ्ते में शिशु तेजी से बढ़ रहा होता है और अब वो ज्यादा एक्टिव भी होता है। जन्म के समय से अब शिशु थोड़ा अलग दिख रहा होगा। हालांकि, वह अभी भी मां या पिता की तरह दिखाई नहीं देगा।

    • टमी टाइम होगा बेहतर -  इस हफ्ते में आप टमी टाइम की अवधि बढ़ा सकते हैं। अगर आपके बच्चे को यह पसंद नहीं आ रहा है तब भी आप यह करते रहें।
      मांसपेशियों के विकास के लिए टमी टाइम जरूरी है। इसके साथ ही यह फ्लैट स्लीप सिंड्रोम के खतरे को भी कम करता है।

    • बेड टाइम नियमों को बनाए रखें - बच्चों को दिन व रात का अंतर समझाने की कोशिश करें। बच्चे को घर की अलग-अलग जगहों पर सुलाएं लेकिन सोने के बाद उसे पालने में जरूर लिटा दें।

    • शिशु को घर से बाहर लेकर जाएं - हालांकि, अभी आपके शिशु की देखने व सुनने की क्षमता थोड़ी सीमित है लेकिन यह धीरे-धीरे बढ़ रही है। अपने शिशु की दुनिया को हर दिन थोड़ा-थोड़ा बढ़ाने के लिए उसे घर से बाहर लेकर जाएं।
      यह एक भ्रम है कि नवजात शिशु और नई मां को डिलीवरी के चालीस दिनों के बाद ही घर से निकलना चाहिए। डॉक्टरों का कहना है कि जिन महिलाओं की नॉर्मल डिलीवरी हुई है वे डिलीवरी के कुछ दिनों बाद ही घर से बाहर निकल सकती हैं।
      डॉक्टर यह भी कहते हैं कि जिन महिलाओं की सिजेरियन डिलीवरी हुई है वे भी थोड़ा बहुत चलने-फिरने की कोशिश करें। इससे खून के थक्के जमने का खतरा कम होता है।

    • इस दौरान शिशु को कोलिक हो सकता है। यह कोई स्वास्थ्य समस्या नहीं है और पांचवें माह तक ठीक हो जाएगी। कोलिक होने पर बच्चा ज्यादा रोता है और चिड़चिड़ा हो जाता है, ऐसे में उसे संभालना मुश्किल हो सकता है। इस स्थिति में आप निम्न तरीकों से उसे शांत कर सकते हैं - 

      • डाइट बदलें - यदि आप अपने शिशु को स्तनपान करवा रही हैं और वह हर बार दूध पीने पर रोता है व उसके पेट में गैस बन रही है तो मां को अपनी डाइट पर ध्यान देना चाहिए। आपके आहार में कुछ ऐसा शामिल है जिससे शिशु को गैस बन रही है।

      • शाम के समय ज्यादा सावधान रहें - जिन शिशुओं को कोलिक होता है वे ज्यादातर शाम के समय रोते हैं। ऐसे में आप शाम का रूटीन अच्छा और आरामदायक रख सकती हैं।
        उदाहरण के तौर पर आप शिशु की मालिश कर सकती हैं या उसे नहला सकती हैं। कोलिक होने पर ग्राइप वॉटर न दें।

      • ब्रेक लें - कोलिक से ग्रस्त शिशु को शांत करना काफी मुश्किल हो सकता है। ऐसे में आपके बार-बार प्रयास करने पर भी अगर शिशु चुप नहीं हो रहा है तो इससे आपको भी दुख होगा।
        शिशु को संभालने के लिए परिवार के किसी अन्य सदस्य को दें। स्थिति ज्यादा गंभीर लग रही तो डॉक्टर से बात कर लें। (और पढ़ें - बच्चों को चुप कराने का तरीका)

  • चौथा हफ्ता
    समय कितना तेजी से बीत रहा है। इतनी रातें बिना सोएं और इतने दिन बिना आराम किए बीत गए हैं और आपका शिशु चार हफ्ते का हो चुका है। अभी कुछ समय पहले ही वह आपके पेट में लात मार रहा था और अब आपकी गोद में खेल रहा है।
    आपका बच्चा अब लगभग एक महीने का हो गया है। आपके प्यार और दुलार से अब वह बाहरी दुनिया के साथ तालमेल बनाना सीख गया है और तेजी से बढ़ रहा है। अब आपको भी बहुत अच्छे से पता है कि बच्चे को कब क्या चाहिए और वह क्यों रो रहा है।
    चलिए देखते हैं कि इस चौथे हफ्ते में क्या-क्या नए बदलाव आने वाले हैं और आपको क्या नया सीखना है -

    • डायपर रैशेज - अब तक आप बहुत अच्छे से डायपर बदलना सीख चुकी हैं। डायपर बार-बार देखते रहें कि शिशु ने गीला न कर दिया हो। ज्यादा समय तक गंदा डायपर पहनने से शिशु को रैशेज हो सकते हैं।
      यदि आप शिशु को लंबे समय के लिए बाहर लेकर जा रही हैं तो डायपर रैश क्रीम का प्रयोग करें। शिशु को कुछ समय के लिए बिना डायपर के छोड़ दें और हवा लगने दें। (और पढ़ें - डायपर के रैशेस हटाने के घरेलू नुस्खे)

    • शिशु को डकार दिलाएं - दूध पीते हुए और रोते समय शिशु बहुत अधिक हवा अंदर ले लेता है। इससे उसे गैस हो जाती है। हर बार दूध पिलाने के बाद शिशु को डकार दिलाना न भूलें।
      यदि आप स्तनपान करवा रही हैं तो अपने आहार का ध्यान जरूर रखें। हो सकता है कि आपके आहार के कारण ही शिशु को गैस हो रही है।
      फॉर्मूला फीड लेने वाले शिशुओं को यह समस्या स्तनपान करने वाले शिशुओं से अधिक होती है। बेबी को जो फॉर्मूला आप दे रहे हैं उसे बदलकर देखें।

    • बेबी जिम से मुलाकात - यह वह समय है जब आपका बच्चा बहुत सारे रंगों, पैटर्न और संगीत की तरफ आकर्षित होगा। अब आपको उसे बेबी जिम के लिए बहुत सारे खिलौने देने हैं।
      इनमें अलग-अलग रंगों, डिजाइन और आवाज करने वाले खिलौने शामिल होते हैं।
      लाइट और म्यूजिक वाले खिलौने खरीद सकते हैं। आप शिशु को सफेद और काले रंग के खिलौनों से, संगीत से, अलग-अलग चित्रों वाली किताबों से आकर्षित कर सकती हैं।
      तेज रोशनी से शिशु को परेशानी हो सकती है, ऐसे में उसकी आंखों को तेज रोशनी से बचाकर रखें।

हर शिशु अलग होता है। हर बच्चे का विकास अलग तरह से होता है। हालांकि, यदि शिशु में निम्न संकेत दिख रहे हैं तो डॉक्टर से बात करें -

  • यदि वह दूध न पीता हो
  • आवाज और शोर पर कोई प्रतिक्रिया न देना
  • तेज रोशनी में आंखें बंद नहीं करता या पलक नहीं झपकाता
  • हाथ-पैरों में ढीलापन या अकड़न
  • ध्यान से कुछ देख न पाना
  • चीजों को इधर-उधर करने पर उन्हें देखना नहीं

जन्म के पहले हफ्ते में शिशु को पहला टीका लगेगा, जो हेपेटाइटिस बी बर्थ शॉट होता है। यह टीका अस्पताल से डिस्चार्ज होने से पहले ही लगा दिया जाता है। यह टीका बच्चे को कई सारे संक्रमणों से बचाता है।

भारतीय स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, शिशु को निम्न टीके या शॉट जन्म के बाद जल्द से जल्द लग जाने चाहिए -

  • बीसीजी शॉट शिशु की टीबी के संक्रमण से रक्षा करता है जो कि जन्म के चौबीस घंटे में या फिर जन्म के एक साल में लग जाना चाहिए।
  • जन्म के बाद दो हफ्तों में पीलिया से रक्षा करने के लिए ओपीवी के शॉट।

अपने एक माह के शिशु को पूरी जांच के लिए पीडियाट्रिशियन के पास ले जाएं। इस समय आपके शिशु को हेपेटाइटिस बी का दूसरा शॉट दिया जाएगा। जो भी सवाल आपके मन में हैं वो सब आप डॉक्टर से पूछ सकते हैं। अगला वैक्सीनेशन चौथे हफ्ते में शुरू होता है।

(और पढ़ें - शिशु टीकाकरण चार्ट 2019)

पहले महीने में शिशु का तेजी से विकास होता है। इस समय तक नवजात शिशु के सिर का आकार 13 इंच से ज्यादा (करीब 35 सेमी) से बढ़कर 15 इंच (38 सेमी) तक हो जाएगा। पहले हफ्ते में शिशु का वजन जन्म के समय से थोड़ा कम हो जाएगा, लेकिन दूसरे-तीसरे हफ्ते में यह फिर से बढ़ने लगेगा।

आमतौर पर पहले महीने में शिशु का वजन करीब एक ग्राम तक बढ़ेगा। शिशु की लंबाई एक से डेढ़ इंच तक बढ़ जाएगी। लड़कियों की तुलना में लड़के इस समय ज्यादा लंबे और भारी होंगे।

इसके अलावा इस पहले महीने में नीचे बताए गए बदलाव आ सकते हैं :

  • यदि जन्म के समय शिशु के सिर पर नील पड़ी हो या पलकों में सूजन हो, यह जन्म के पहले या दूसरे हफ्ते में ठीक हो जाएगा।
  • दस दिनों में नाभि ठूंठ सूख कर गिर चुका है। अब नाभि की जगह साफ है तो इस हिस्से को सूखा और साफ रखें और संक्रमण रहित रखने के लिए इसे एल्कोहल से साफ करते रहें।
  • शिशु की आंख में किसी भी तरह के लाल धब्बे तीसरे हफ्ते तक ठीक हो जाएंगे।

डिलीवरी के कुछ दिन बाद तक मां के शरीर में दर्द रह सकता है। यदि आप वजाइनल टियर (प्रसव के दौरान योनि के ऊतकों में घाव होना) से ग्रस्त हैं या फिर आपकी सिजेरियन डिलीवरी हुई है तो आपको टांकों की जगह पर दर्द हो सकता है। यदि आपको बैठने में तकलीफ हो रही है तो आप डॉक्टर से पूछ लें कि आप उस जगह पर बर्फ की सिकाई कर सकती हैं या नहीं।

(और पढ़ें - सिजेरियन डिलीवरी के बाद देखभाल और सावधानियां)

आपको मांसपेशियों में कमजोरी महसूस हो सकती है। डिलीवरी के बाद पेल्विक (पेट और जांघों के बीच का हिस्सा) हिस्से में कोई दिक्कत होना सामान्य बात है। यदि आपको ऐसा महसूस हो रहा है कि योनि से बाहर कुछ गिरने वाला है तो यह पेल्विक ऑर्गन प्रोलैप्स का संकेत हो सकता है। इस स्थिति में तुरंत डॉक्टर से मिलें।

कुछ महिलाओं को डिलीवरी के बाद हंसने या बेड से उठने पर मूत्र असंयमिता हो सकती है। इसे ठीक करने के लिए फिजिकल थेरेपी की जरूरत होती है। डिलीवरी के बाद महिलाओं को सेक्स के दौरान भी दर्द हो सकता है।

यदि ऐसा है तो थोड़े समय के लिए बिना पेनिट्रेशन का सेक्स करें। इसमें लिंग को योनि के अंदर डालकर सेक्स नहीं करना होता है। अगर इसके बाद भी यह समस्या ठीक नहीं होती है तो इसके बारे में डॉक्टर को बताएं।

आपके गर्भाशय को वापस से ठीक होने में छह हफ्ते का समय लगेगा और कुछ हफ्तों तक हार्मोन भी असंतुलित रहेंगे। इसके कारण आपको बार-बार मूड बदलने, चिड़चिड़ापन, डिप्रेशन या अन्य लक्षण भी दिखाई दे सकते हैं। स्वयं को ठीक होने का समय दें। दोस्तों से मिलें। घरवालों या डॉक्टरों से अपनी प्रॉब्लम या शरीर में आ रहे बदलावों के बारे में बात करें।

(और पढ़ें - डिलीवरी के बाद डिप्रेशन)

डिलीवरी के बाद बेबी ब्लूज (दुखी रहना या मूड बदलना) की शिकायत हो सकती है। यदि आपको हर समय रोना आता है या थकान महसूस होती है तो अपने पति से बात करें। बच्चे को संभालने के लिए परिवार के सदस्यों की मदद लें और इस दौरान खूब आराम करें।

बेबी ब्लूज के लिए इलाज करवाने की जरूरत नहीं होती है और डिलीवरी के दो हफ्ते बाद ये अपने आप ही ठीक हो जाता है। यदि मूड से जुड़े लक्षण ठीक नहीं हो पा रहे हैं तो इसके बारे में डॉक्टर को बताएं।

यह समय गर्भावस्था के दौरान बढ़े हुए वजन को कम करने का नहीं है। इसकी बजाय अपना ध्यान रखें। पौष्टिक आहार लें। जल्द से जल्द चलना शुरू करें। जब भी थोड़ा बेहतर महसूस हो बालकनी तक चलकर जाने की कोशिश करें। यदि आपको टांके लगे हैं तो डॉक्टर से पूछें कि रोजमर्रा के काम आप कब तक शुरू कर सकती हैं। अपने आप को खुश रखें।

यदि आप स्तनपान करवा रही हैं तो आपको थोड़ी तकलीफ हो सकती है। निप्पल में दर्द और ब्रेस्ट पेन के लिए डॉक्टर से पूछकर दवा लें। स्तनों में दूध जमने न दें। सारी तकलीफ के बाद भी स्तनपान आपके और शिशु के लिए बहुत जरूरी है।

अध्ययनों से यह पता चला है कि जो महिलाएं स्तनपान करवाती हैं, उनमें देर से रजोनिवृत्ति आती है। पीरियड्स महिलाओं की कई बीमारियों जैसे कि हृदय रोग से रक्षा करते हैं इसलिए इस संदर्भ में ऊपर बताई गई बात अच्छी साबित होती है।

(और पढ़ें - प्रसव के बाद शुरूआती 40 दिन क्या खाना चाहिए)

Dr. Mayur Kumar Goyal

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संदर्भ

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