गर्भावस्था के दौरान महिला के शरीर में कई तरह के बदलाव होते हैं। पहली बार मां बनने वाली महिलाओं के लिए यह बदलाव नए और रोमांचित करने वाले हो सकते हैं। प्रेग्नेंसी के शुरूआती दिनों में स्तनों से विशेष तरह के तरल का रिसाव होता है। इस तरल को ही कोलोस्ट्रम के नाम से जाता है। कुछ महिलाओं को शिशु के जन्म के समय भी कोलोस्ट्रम के रिसाव का अनुभव होता है। नवजात शिशु के लिए कोलोस्ट्रम बेहद ही फायदेमंद होता है।

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इस लेख में आपको कोलोस्ट्रम के बारे में विस्तार से बताया गया है। साथ ही आपको कोलोस्ट्रम के फायदों और शिशु को कोलोस्ट्रम ना पिलाने से होने वाले प्रभावों के बारे में भी विस्तार से बताने का प्रयास किया गया है।

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  1. कोलोस्ट्रम क्या होता है - Colostrum kya hota hai in hindi
  2. कोलोस्ट्रम के फायदे - Colostrum ke fayde in hindi
  3. शिशु को कोलोस्ट्रम ना पिलाने से क्या होता है - Shishu ko colostrum na pilane se kya hota hai in hindi

कोलोस्ट्रम वह पहला दूध है जो महिलाओं में प्रेग्नेंसी के बाद बनता है। गर्भावस्था की पहली तिमाही खत्म होने और प्रेग्नेंसी की दूसरी तिमाही के शुरु होने के दौरान महिलाओं के स्तनों में दूध बनने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है। इस प्रक्रिया में जो तरल बनता है उसको कोलोस्ट्रम कहा जाता है। महिलाएं अपनी प्रेग्नेंसी की तीसरी तीमाही के अंत में इस तरल के रिसाव का अनुभव करती हैं। तीसरी तीमाही के साथ ही यह कोलोस्ट्रम डिलीवरी के समय भी स्त्रावित होता है।

कोलोस्ट्रम की मात्रा बेहद कम होती है, लेकिन कम मात्रा होने के बाद भी यह शिशु के लिए बेहद ही फायदेमंद होता है। कुछ लोग इसके महत्व को देखते हुए कोलोस्ट्रम को तरल सोना भी कहते हैं। कोलोस्ट्रम में उच्च मात्रा में एंटीबाडीज होते हैं, लेकिन इनमें कार्बोहाइड्रेट और फैट की मात्रा कम होती है। यह नवजात शिशु की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है और लैक्सेटिव प्रभाव के चलते नवजात शिशु के पहले मल को बाहर निकालने में मदद करता है।

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कोलेस्ट्रम की मात्रा कितनी होती है

शिशु के जन्म के शुरुआती दिनों में बनने वाले कोलोस्ट्रम की मात्रा नवजात बच्चे की आवश्यकता के अनुसार पर्याप्त होती है। शिशु के जन्म के बाद महिला के शरीर में दो से तीन दिनों के अंदर करीब 50 मिली कोलोस्ट्रम बनता है। लेकिन यह मात्रा आपके नवजात शिशु की जरूरत को पूरा कर देती है, क्योंकि जन्म के समय में शिशु के पेट का आकार बेहद ही छोटा होता है।

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कोलोस्ट्रम कैसा दिखता है

आपकी प्रेग्नेंसी के शुरूआत में बनने वाला कोलोस्ट्रम, तरल रूप में गाढ़ा, क्रीमी और पीले रंग का दिखता है। जैसे जैसे आप प्रसव के करीब आते हैं यह तरल सफेद रंग में बदलने लगता है। अधिकतर महिलाएं दूसरी तीमाही के पहले सप्ताह में कोलोस्ट्रम के रिसाव का अनुभव करती हैं और प्रेग्नेंसी के अंतिम चरण तक (महिलाओं का शरीर प्रसव के लिए तैयार होन तक) कोलोस्ट्रम का रिसाव बढ़ता जाता है। 

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जैसा कि आपको पहले बताया ही जा चुका है कि कोलोस्ट्रम एक विशेष तरल या दूध है, जो नवजात शिशु की सेहत के लिए बेहद ही फायदेमंद होता है। कोलोस्ट्रम से शिशु को निम्नलिखित फायदे मिलते हैं।

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शिशु के जन्म के तीन से चार दिनों तक यह पोषक तत्व महिला के स्तनों में बनता है। जबकि शिशु के जन्म के बाद पांचवे दिन से यह धीरे धीरे पतले और सफेद रंग में तबदील होने लगता है। साथ ही इस प्रक्रिया में दूध की मात्रा में भी वृद्धि होने लगती है। बेहद ही कम मामलों में मां के दूध को आने में एक सप्ताह से अधिक समय लग जाता है। 

हर माँ को अपने नवजात शिशु को कोलोस्ट्रम जरूर पिलाना चाहिए क्योंकि कोलोस्ट्रम न पिलाने से शिशु को रोग होने की संभावनाएं बढ़ जाती है। इसका कारण यह है कि इसमें कई ऐसे पोषक तत्व मिलें होते हैं जो नवजात शिशु के लिए बेहद ही आवश्यक होते हैं।

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स्वास्थ्य व कई अन्य कारणों के चलते कभी कभी आपके शिशु को आपसे दूर रखा जा सकता है। लेकिन जब तक आपके शिशु को आपसे दूर न रखा जाए तब तक आपको उसे अपना ही दूध पिलाना चाहिए। अगर आपका शिशु किसी कारण से नर्सरी में हो तो डॉक्टर आपके कोलोस्ट्रम को बोतल या नली के माध्यम से दे सकते हैं। 

स्थिति कोई भी हो, आपको अपने शिशु को स्तनपान कराने के लिए डॉक्टर से सलाह अवश्य लेनी चाहिए। अगर डॉक्टर को सब ठीक लगे तो वह आपको स्तनपान कराने के लिए कई सुझाव दे सकते हैं। साथ ही डॉक्टर आपको स्तनपान कराने की सही पोजीशन के बारे में भी बताते हैं।

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