पाइलोरोमायोटमी एक सर्जरी प्रक्रिया है, जिसकी मदद से शिशुओं में पाइलोरिक स्टेनोसिस का स्थायी रूप से इलाज किया जाता है। पाइलोरिक स्टेनोसिस में पेट और आंतों के जोड़ में मौजूद मांसपेशियां असामान्य रूप से मोटी हो जाती हैं। पेट और आंत के बीच रास्ता खोलने वाले इस जोड़ को पाइलोरस (Pylorus) कहा जाता है, जिसकी मोटाई बढ़ने पर यह रास्ता बंद हो जाता है। इस स्थिति में भोजन पेट से आंतों तक नहीं जा पाता है, जिस कारण से शिशु जितनी बार स्तनपान करता है उतनी ही बार उल्टी करता है।
पाइलोरोमायोटमी सर्जरी को दो अलग-अलग तरीकों से किया जाता है, जिन्हें लेप्रोस्कोपिक पाइलोरोमायोटमी और ओपन पाइलोरोमायोटमी के नाम से जाना जाता है। इन दोनों तरीकों में सर्जन पाइलोरस तक पहुंचने के लिए भी अलग-अलग तरीकों का इस्तेमाल करते हैं, लेप्रोस्कोपिक पाइलोरोमायोटमी में कई छोटे-छोटे चीरे लगाए जाते हैं जबकि ओपन पाइलोरोमायोटमी में एक बड़ा चीरा लगाना पड़ता है। अधिकतर मामलों में आमतौर पर लेप्रोस्कोपिक विधि ही की जाती है, क्योंकि इससे होने वाले घाव छोटे होते हैं और अपेक्षाकृत जल्दी ठीक हो जाते हैं। पाइलोरोमायोटमी सर्जरी करने के लिए शिशु को आमतौर पर एनेस्थीसिया का इंजेक्शन लगाया जाता है, जिससे वह सर्जरी के दौरान गहरी नींद में सोता रहेगा और उसे कुछ महसूस नहीं होगा।
पाइलोरोमायोटमी सर्जरी की कुछ जटिलताएं भी हो सकती हैं, जिनमें उल्टी आना, पेट की अंदरूनी सतह में छिद्र होना और सर्जरी वाले स्थान पर हर्निया होना आदि शामिल हैं। सर्जरी के बाद भी शिशु को दो से चार दिन तक अस्पताल में भर्ती रखना पड़ता है। पाइलोरोमायोटमी की मदद से शिशु को दूध पीने या खाना खाने के बाद उल्टी की समस्या नहीं होती है।
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