दुनियाभर में करीब 5 करोड़ से अधिक लोग मिर्गी की समस्या से परेशान हैं। मिर्गी कई समस्याओं का समूह है, जिसमें व्यक्ति को दौरे पड़ते हैं। सामान्यतः 20 में से 1 बच्चे को कभी न कभी दौरे पड़ते ही हैं। मिर्गी में पड़ने वाले दौरे माता-पिता को परेशान कर सकते हैं, लेकिन इस समस्या का इलाज मौजूद है।

मिर्गी के अधिकतर मामलों में बच्चों को या तो हल्के लक्षण महसूस होते हैं या फिर किसी भी तरह के लक्षण अनुभव नहीं होते हैं। मिर्गी में दौरा पड़ते समय बच्चा अपनी चेतना खो देता है और उसकी मांसपेशियों में ऐंठन होने लगती है।

इस लेख में आपको बच्चों में मिर्गी के बारे में विस्तार से बताया गया है। साथ ही इस लेख में आपको बच्चों में मिर्गी के प्रकार, बच्चों में मिर्गी के लक्षण, बच्चों में मिर्गी के कारण, बच्चों का मिर्गी से बचाव और बच्चों में मिर्गी का इलाज आदि विषयों को भी विस्तार से बताया गया है। 

(और पढ़ें - बच्चोें की देखभाल कैसे करें)

  1. बच्चों में मिर्गी के प्रकार - Bacho me mirgi ke prakar
  2. बच्चों में मिर्गी के लक्षण - Bacho me mirgi ke lakshan
  3. बच्चों में मिर्गी के कारण - Bacho me mirgi ke karan
  4. बच्चों का मिर्गी से बचाव - Bacho ka mirgi se bachav
  5. बच्चों में मिर्गी का इलाज - Bacho me mirgi ka ilaj

मिर्गी व्यक्ति को शारीरिक रूप से प्रभावित करती है, जिसमें व्यक्ति को दौरे पड़ते हैं। यह समस्या तब होती है जब मस्तिष्क और न्यूरॉन के बीच के संचार में गड़बड़ी हो जाती है। दिमाग के प्रभावित हिस्से के आधार पर मिर्गी के दो प्रकार होते हैं, इनको आगे बताया गया है।

  • सामान्यीकृत दौरे (Generalized seizure):
    ये स्थिति दिमाग के दोनों ओर के न्यूरॉन्स और कोशिकाओं को प्रभावित करती है। इसमें बच्चे के शरीर में हल्की ऐंठन से गंभीर दौरे पड़ सकते हैं। इससे कई बार बच्चे की चेतना कुछ समय के लिए समाप्त हो जाती है। सामान्यीकृत दौरे के भी निम्न प्रकार होते हैं। (और पढ़ें - मिर्गी के दौरे क्यों आते हैं)
     
    • एटोनिक सिजर्स (Atonic seizures):
      मांसपेशियों पर नियंत्रण में कमी, जिसके कारण व्यक्ति अचानक जमीन पर गिर जाता है। इसकी वजह से व्यक्ति को चोट भी लग सकती है। (और पढ़ें - चोट लगने पर क्या करें)
       
    • एब्सेंस सिजर्स (Absence or petit mal):
       इस तरह का दौरा अचानक तब होता है, जब रोगी एक ही स्थिति में आराम से बैठा होता है और किसी चीज को बिना गर्दन हिलाए देखता है। यह बेहद दुर्लभ स्थिति है और 15 मिनट में समाप्त हो जाती है। (और पढ़ें - बेहोश होने पर प्राथमिक उपचार)
       
    • म्योक्लोनिक सिजर्स (Myoclonic fits):
      इसमें बच्चों के शरीर के किसी खास हिस्से की मांसपेशियों में ऐंठन और झटके लगने लगते हैं। (और पढ़ें - मांसपेशियों में ऐंठन के घरेलू उपचार​)
       
    • क्लोनिक सिजर्स (clonic seizures):
      इसमें बच्चे के शरीर में ऐंठन और झटके लगते है। इस दौरे के समय पैर, हाथ और कोहनी में लचीलापन और शिथिलता आती है, जिसके बाद में यह प्रक्रिया धीरे से तेज होना शुरू हो जाती है।
       
    • टॉनिक सिजर्स (Tonic seizures):
      इस दौरे में बच्चे का शरीर कठोर होता है और बाद में उसकी चेतना खो जाती है। सिर, छाती और हाथ की मांसपेशियों में ऐंठन की वजह से बच्चे का शरीर धनुष की तरह मुड़ जाता है व उसकी आंखों की पुतली पीछे की ओर घुम जाती है। इस समय बच्चे को सांस लेने में भी मुश्किल होती है। 
       
    • टॉनिक-कलोनिक सिजर्स:
      इसको चिकित्सीय भाषा में ग्रैंड माल सिजर्स (grand mal seizures) कहते हैं। यह एक मुश्किल दौरा होता है, जो चेतना कम होने से शुरू होता है और बाद में टॉनिक और कोलनिक चरण में पहुंचता है। 
      (और पढ़ें - बच्चे की उम्र के अनुसार वजन का चार्ट)
       
  • फोकल सिजर्स (focal seizures):
    इसको आंशिक दौरा (partial seizures) भी कहा जाता है। यह मस्तिष्क के केवल एक ही हिस्से की कोशिकाओं को प्रभावित करता है। जिसकी वजह से दौरे की समस्या शरीर के केवल एक ही हिस्से पर होती है। बच्चों में होने वाले फोकल सिजर्स को निम्न चार श्रेणियों में विभाजित किया जाता है।
    • फोकल अवेयर सिजर्स (focal aware seizures):
      इसको साधारण आंशिक दौरा (simple partial seizures) कहा जाता है। इस दौरे के दौरान बच्चे की चेतना सामान्य रहती है।
       
    • फोकल मोटर सिजर्स (focal motor seizures):
      इस स्थिति में बच्चे को बार-बार झटके या अकड़न महसूस होती है। इसमें बच्चा बार-बार ताली बजाने या हाथों को रगड़ने जैसी गतिविधि कर सकता है।
       
    • फोकल इमपैयर्ड अवेयर सिजर्स (focal impaired aware seizures):
      यह जटिल आंशिक दौरा होता है, इसमें बच्चे को कुछ समझ नहीं आता और उसको कुछ भी याद नहीं रहता है। (और पढ़ें - डायपर रैश का उपचार)
       
    • फोकल नॉन मोटर सिजर्स (focal non-motor seizures):
      इस दौरे में बच्चे को भावनात्मक उतार-चढ़ाव होता है और उसके रोंगटे खड़े हो जाते हैं। साथ ही बच्चे के दिल की धड़कने तेज हो जाती है और उसको कभी ठंड या कभी गर्मी महसूस होने लगती है।

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बच्चों में मिर्गी के लक्षण मस्तिष्क के प्रभावित हिस्से के आधार पर अलग-अलग हो सकते हैं। इस दौरान होने वाले लक्षणों को मोटर और नॉन मोटर श्रेणी में रखा जाता है। बच्चों में मिर्गी की दोनों श्रेणियों के अनुसार निम्नलिखित लक्षण हो सकते हैं:

  • नॉन मोटर लक्षण (Non-motor symptoms)
    • अचानक भवानात्मक बदलाव
    • किसी चीज पर ध्यान न लगा पाना (और पढ़ें - ध्यान करने का तरीका)
    • स्तब्ध होकर किसी चीज को देखना और लगातार पलकों को झपकाना
    • अपनी प्रतिक्रिया देने में मुश्किल होना
    • अचानक कुछ समझ ना आना
    • त्वचा के रंग में बदलाव – पीला या लाल होना, आदि। 

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बच्चों की आयु के आधार पर मिर्गी के कारण अलग-अलग हो सकते हैं। कुछ बच्चों को मिर्गी की समस्या अनुवांशिक होती है, जबकि मिर्गी होने के अन्य कई कारणों का पता नहीं चल सका है। बच्चों को मिर्गी होने के निम्नलिखित कारण होते हैं।

  • कुछ बच्चों को मिर्गी की समस्या अनुवांशिक होती है। इन बच्चों के एक या इससे अधिक जीन्स इस समस्या का मुख्य कारण होते हैं। इसमें जीन्स किस तरह से मस्तिष्क को प्रभावित करते हैं और किस तरह यह मिर्गी की वजह बनते हैं इसका पता नहीं लगाया जा सका है।
  • सिर की चोट के बाद भी बच्चों को दौरे पड़ने लगते हैं। (और पढ़ें - सिर में चोट लगने पर क्या करे)
  • विशेष तरह की स्थितियां जैसे बुखार, ब्रेन ट्यूमर, इन्फेक्शन आदि की वजह से मस्तिष्क को नुकसान पहुंचना। (और पढ़ें - बच्चे के बुखार का इलाज)
  • बच्चों को धीरे-धीरे बढ़ने वाली समस्याएं जैसे एंगलमैन्स सिंड्रोम, न्यूरोफाईबरोमेटोसिस, डाउन सिंड्रोम और टूबेरौस स्क्लेरोसिस आदि होने पर भी मिर्गी की संभावनाएं बढ़ जाती है। (और पढ़ें - नवजात शिशु की खांसी का इलाज)
  • तीन से दस प्रतिशत मामलों में मस्तिष्क के आकार में बदलाव मिर्गी की वजह होता है। जन्म के समय जो बच्चे इस तरह के बदलाव के साथ पैदा होते हैं उनको मिर्गी हो सकती हैं।
  • आटिज्म से ग्रसित करीब तीन से दस प्रतिशत मामलों में बच्चों को मिर्गी हो सकती है। (और पढ़ें - शिशु का वजन कैसे बढ़ाएं)
  • किसी तरह के जन्मजात विकार या शरीर के रसायनों में असंतुलन होने से भी शिशु को दौरे पड़ने की समस्या हो सकती है। 

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बच्चों को मिर्गी का दौरा पड़ने के कारणों के बारे में आपको पहचानना होगा और बच्चे को ऐसी गतिविधियां करने से रोकन होगा, जो मिर्गी के दौरे को बढ़ाती हो। बच्चे का मिर्गी से बचाव करने कुछ उपायों को नीचे विस्तार से बताया गया है।

  • बच्चे को पर्याप्त नींद लेने दें, क्योंकि नींद की कमी बच्चों में दौरे का कारण होती है। (और पढ़ें - अच्छी नींद के उपाय​)
  • बच्चे को सिर को चोट से बचाने के लिए उसके सिर पर स्कैट या साइकिल चलाते समय हेलमेट पहनाएं।
  • बच्चे को गिरने से बचाने के लिए उसको सावधानी से चलने के लिए कहें। (और पढ़ें - बच्चों के दांत निकलने की उम्र)
  • किसी तेज रोशनी या अधिक शोर वाली जगह पर बच्चे को ना ले जाएं, क्योंकि ये भी कई बार दौरे पड़ने की वजह बनाते हैं।
  • बच्चे को रोजाना एक ही समय पर दौरों को कम करने वाली दवा देना ना भूलें। 
  • तनाव से भी दौरै पड़ने की संभावना बढ़ जाती है, ऐसे में आप बच्चे को तनाव कम करने वाले तरीके बताएं। (और पढ़ें - तनाव दूर करने के लिए योग)
  • बच्चे को अधिक प्रोटीन और कम कार्बोहाइड्रेट वाला स्वस्थ आहार दें। हालांकि, बच्चे की डाइट में किसी भी तरह के बड़े बदलाव से पहले अपने डॉक्टर से अवश्य सलाह लें।     

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बच्चों की मिर्गी का इलाज उनकी आयु, दौरे के प्रकार, पहले की स्वास्थ्य स्थिति व मौजूद स्वास्थ्य स्थिति के आधार पर किया जाता है। मिर्गी के इलाज में बार-बार दौरे पड़ने को कम करने पर जोर दिया जाता है और इस समस्या को दवाओं के द्वारा कम किया जाता है। इसके इलाज में डॉक्टर कई तरह के विकल्पों के साथ आहार में परिवर्तन और मस्तिष्क की सर्जरी का भी सहारा लेते हैं। मिर्गी के निम्नलिखित इलाज उपलब्ध हैं। 

  • मिर्गी को कम करने वाली दवाएं:
    मिर्गी को कम करने वाली दवाएं (Anti-epileptic medicines) बार-बार आने वाले दौरों को नियंत्रित और कम करती है। ये दवाएं दौरे को नियंत्रण करने में काफी प्रभावी होती है और आमतौर पर दौरे ठीक होने के बाद भी दो सालों तक देने की सलाह दी जाती है। इन दवाओं से  80 प्रतिशत मरीजों को फायदा हुआ है और दौरे को ठीक करने में मददगार साबित हुई हैं।
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  • किटोजेनिक डाइट:
    जिन बच्चों पर दवाएं असर नहीं करती हैं उनको किटोजेनिक डाइट पर रखा जाता है। यह एक विशेष तरह की डाइट होती है, इसमें फैट की अधिकता और कार्बोहाइड्रेट कम होता है, जो कार्बोहाइड्रेट की जगह पर फैट को तोड़ती है और केटोसिस की अवस्था को प्रेरित करती है। यह दौरे को कम करने का कार्य करती है। 
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  • सर्जरी:
    जब बच्चा दवाओं और डाइड मे बदलाव करने पर भी कोई बेहतर प्रतिक्रिया नहीं देता हो तो डॉक्टर सर्जरी की सलाह देते हैं। यदि बच्चे के दौरे मस्तिष्क में घाव की वजह से हो, तो डॉक्टर बच्चे की तुंरत सर्जरी कर सकते हैं। 
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  • वैगस नर्व स्टिम्युलेशन (वीएनएस थेरेपी):
    जिन बच्चों पर ऊपर्युक्त इलाज काम न कर पाए और किसी कारण से उनका ऑपरेशन भी ना हो पाए, तो ऐसे बच्चों के लिए वीएनएस थेरेपी की सलाह दी जाती है। यह थेरेपी मुख्य रूप से 12 साल से अधिक आयु के बच्चों के लिए उपयोग की जाती है।

    इस प्रक्रिया में इलैक्ट्रॉनिक पल्स जनरेटर को सर्जरी के द्वारा सीने पर लगा दिया जाता है। यह उपकरण वैगस नर्व (vagus nerve: वैगस नाड़ी) के माध्यम से विद्युत आवेग मस्तिष्क में भेजता है, कुछ मिनटों के अंतराल में भेजे जाने वाले इन आवेगों से दौरों को नियंत्रित करने में मदद मिलती है। 

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