कोलोस्टोमी एक सर्जरी प्रक्रिया है, जिसमें बड़ी आंत में चीरा लगाया जाता है और आंत का एक हिस्सा पेट की त्वचा से बाहर निकाल दिया जाता है। यदि आपको अपनी आंत खाली करने में तकलीफ हो रही है, तो कोलोस्टोमी सर्जरी की जा सकती है। कुछ लोगों में किसी कारण से आंत के किसी भाग को बीच से निकाल दिया जाता है, जिस कारण से भी उन्हें आंत खाली करने में परेशानी होती है और कोलोस्टोमी करनी पड़ जाती है। कोलोस्टोमी को कुछ समय के लिए या एक स्थायी प्रक्रिया के रूप में किया जा सकता है।

सर्जरी प्रक्रिया शुरू करने से पहले मरीज को एनेस्थीसिया दिया जाता है, जिससे उसे गहरी नींद आ जाती है। सर्जरी के बाद मरीज को लगभग एक हफ्ते के लिए अस्पताल में भर्ती रहना पड़ता है। उसकी शारीरिक स्थिति के अनुसार पूरी तरह से ठीक होने में कम से कम 3 महीने का समय लगता है।

(और पढ़ें - कोलोरेक्टल कैंसर का इलाज)

  1. कोलोस्टोमी क्या है - What is Colostomy in Hindi?
  2. कोलोस्टोमी क्यों की जाती है - Why is Colostomy done in Hindi?
  3. कोलोस्टोमी से पहले की तैयारी - Preparations before Colostomy in Hindi
  4. कोलोस्टोमी कैसे होती है - How is Colostomy done in Hindi?
  5. कोलोस्टोमी के बाद देखभाल - Colostomy Surgery after care in Hindi
  6. कोलोस्टोमी से जुड़ी जटिलताएं - Colostomy Complications in Hindi

कोलोस्टोमी एक सर्जिकल प्रक्रिया है, जिसमें बड़ी आंत में स्थायी या अस्थायी रूप से कट लगाया जाता है और उसे पेट की त्वचा से बाहर निकाला जाता है।

छोटी आंत का काम भोजन को पचाना और पोषक तत्वों को अवशोषित करना होता है। उसके बाद पचा हुआ भोजन बड़ी आंत में जाता है। बड़ी आंत के दो अलग-अलग भाग हैं, बृहदान्त्र (कोलन) और मलाशय (रेक्टम)। बड़ी आंत भोजन से पानी को अलग कर देती है और अपशिष्ट पदार्थों को मलत्याग के लिए छोड़ देती है।

जब किसी रोग के कारण पाचन प्रणाली प्रभावित हो जाती है और मल त्याग करने की प्रक्रिया काम करना बंद कर देती है, तो कोलोस्टोमी की जा सकती है। कोलोस्टोमी प्रक्रिया की मदद से गुदा की जगह पेट में एक अन्य छेद बनाया जाता है, जिससे मल को निकाला जाता है। इस प्रक्रिया की मदद से मल को गुदा के माध्यम से निकलने से रोका जाता है। कोलोस्टोमी में पेडू या नाभि के आस-पास छेद किया जाता है, जिसे स्टोमा कहा जाता है। स्टोमा से बड़ी आंत के सिरे को बाहर निकाल दिया जाता है और छिद्र पर एक विशेष थैली लगा दी जाती है, ताकि मल थैली में जमा होता रहे।

यह सर्जरी स्थायी या अस्थायी दोनों तरह की हो सकती है, जो मरीज की स्वास्थ्य स्थिति पर निर्भर करता है। कुछ प्रकार की चोट या संक्रमण आदि की स्थिति में सिर्फ कुछ ही समय के लिए कोलोस्टोमी की जाती है, ताकि गुदा को ठीक होने के लिए आराम मिल सके। जबकि कैंसर या अन्य गंभीर स्थितियों में बड़ी आंत के एक हिस्से को स्थायी रूप से निकाल दिया जाता है, जिससे पर्मानेंट कोलोस्टोमी करनी पड़ सकती है।

(और पढ़ें - पेट में संक्रमण का इलाज)

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यदि आप किसी कारण से अपनी आंतों को खाली नहीं कर पा रहे हैं और दवाओं व अन्य इलाज प्रक्रियाओं से इसे ठीक नहीं किया जा सकता तो डॉक्टर कोलोस्टोमी पर विचार कर सकते हैं। इसके अलावा किसी कारण से आंत के किसी टुकड़े या पूरी आंत को निकालने की आवश्यकता पड़ गई हो, तब भी डॉक्टर कोलोस्टोमी करवाने की सलाह देते हैं। आंत को निकालने की सर्जरी आमतौर पर निम्न कारणों से की जाती है-

आंत का कैंसर- बाउल कैंसर के लक्षणों में शामिल है-

  • पेट के निचले भाग में बार-बार दर्द होना
  • मल में लगातार खून आना
  • बार-बार पेट फूलने की समस्या होना
  • मलत्याग करने के समय में बार-बार बदलाव महसूस होना

डाइवर्टिक्युलाइटिस (विपुटिशोथ)- डाइवर्टिक्युलाइटिस के लक्षणों में शामिल है-

वजाइनल या सर्वाइकल कैंसर- योनि कैंसर के लक्षणों में शामिल हैं-

गुदा कैंसर- गुदा में कैंसर होने पर निम्न लक्षण देखे जा सकते हैं-

हिर्सप्रंग्स डिजीज- इसे कंजेनिटल मेगाकोलन भी कहा जाता है, जिसके लक्षणों में शामिल है-

  • पेट में सूजन
  • शरीर का वजन न बढ़ना
  • पेट दर्द
  • कब्ज जिसका इलाज होने पर भी बीमारी ठीक न हो

क्रोन रोग- क्रोन रोग के मुख्य लक्षणों में निम्न को शामिल किया जाता है -

  • मल में खून आना
  • शरीर का वजन कम होना
  • पेट में दर्द व ऐंठन महसूस होना
  • दस्त

बाउल इन्कॉन्टिनेंस- बाउल इन्कॉन्टिनेंस के कुछ मुख्य लक्षण निम्न हैं -

  • मलत्याग करने की तीव्र इच्छा होना, जिसे नियंत्रित न किया जा सके
  • अचानक से मल निकल जाना
  • दस्त लगना
  • कब्ज होना

इसके अलावा यदि आंत के किसी भाग की सर्जरी की जाती है, तो भी कोलोस्टोमी की आवश्यकता पड़ सकती है। इसकी मदद से बड़ी आंत के उस भाग को कुछ समय के लिए आराम मिल जाता है (करीब 12 सप्ताह) जिसका ऑपरेशन किया गया है।

कोलोस्टोमी किसे नहीं करवानी चाहिए?

इस सर्जिकल प्रक्रिया में एनेस्थीसिया का इस्तेमाल किया जाता है और कुछ लोगों को इस दवा से स्वास्थ्य संबंधी कुछ समस्याएं हो सकती हैं। इनमें निम्न लोग शामिल हैं -

  • गर्भवती महिलाएं
  • धूम्रपान करने वाले लोग
  • अंदरूनी समस्याओं से ग्रस्त जैसे फेफड़ों, हृदय, किडनी और लिवर की बीमारी से ग्रस्त लोग।

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सर्जरी से पहले डॉक्टर आपसे कुछ विशेष बातों के बारे में पूछते हैं-

  • आपके स्वास्थ्य संबंधी पिछली स्थिति जैसे किसी दवा से एलर्जी या कोई दीर्घकालिक रोग
  • पहले कोई सर्जरी हुई है या नहीं
  • आपके द्वारा ली जाने वाली दवाएं, विटामिन सप्लीमेंट्स और अन्य हर्बल उत्पाद आदि
  • आप गर्भवती हैं या गर्भवती होने के के बारे में सोच रही हैं 
  • आपने नकली दांत या अन्य कोई उपकरण तो नहीं पहना है

इन सभी सवालों के जवाब लेने के बाद आपके डॉक्टर आपको कोलोस्टोमी से होने वाली समस्याओं और उससे जुड़े खतरों के बारे में बताते हैं। डॉक्टर कोलोस्टोमी प्रक्रिया को शुरू करने से पहले आपको निम्न निर्देश देते हैं, जिनका पालन करना जरूरी होता है-

  • सर्जरी के लिए अस्पताल जाने से पहले घड़ी, कॉन्टैक्ट लेंस, नकली दांत व अन्य आभूषण उतार दें
  • यदि डॉक्टर कहें, तो रक्त को पतला करने वाली दवाएं बंद कर दें जैसे एस्पिरिन और वार्फेरिन आदि।
  • अस्पताल में पहनने के लिए ढीले-ढाले कपड़े ले जाएं।
  • सर्जरी से पहले ही धूम्रपान बंद कर दें
  • सर्जरी शुरू होने से कम से कम 12 घंटे पहले कुछ भी खाएं या पिएं नहीं। आपको अपनी आंतों को खाली करने के लिए कुछ अलग से दवाएं भी दी जा सकती हैं।
  • सर्जरी शुरू करने से पहले डॉक्टर मरीज के पेशाब और रक्त का सेंपल भी लेते हैं, जिनके टेस्ट किए जाते हैं ताकि संक्रमण आदि का पता लगाया जा सके। इसके साथ ही आपका शारीरिक परीक्षण भी किया जा सकता है।

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कोलोस्टोमी को दो अलग-अलग सर्जिकल प्रक्रियाओं से किया जाता है, जिन्हें ओपन सर्जरी और कीहोल सर्जरी के नाम से जाना जाता है।

ओपन कोलोस्टोमी

ओपन कोलोस्टोमी को निम्न प्रक्रियाओं के अनुसार किया जाता है -

  • सबसे पहले आपको एक विशेष ड्रेस पहनने को दी जाएगी जिसे सर्जिकल गाउन या हॉस्पिटल गाउन कहा जाता है।
  • आपको आवश्यक दवाएं व द्रव देने के लिए इंट्रावीनस लाइन (IV) लगाई जाएगी।
  • एनेस्थिसीयोलॉजिस्ट आपको एनेस्थीसिया दवा देंगे, जिससे आप सर्जरी के दौरान गहरी नींद में सो जाएंगे।
  • जब आपको गहरी नींद आ जाएगी, तो आपको ऑपरेशन थिएटर में ले जाया जाएगा।
  • आपके पेट के ऊपर की त्वचा को एन्टिसेप्टिक द्वारा साफ किया जाएगा।
  • जहां पर स्टोमा (छिद्र) बनाना है, वहां पर डॉक्टर निशान लगाएंगे और उसके बाद एक लंबा चीरा लगाया जाएगा। चीरे की मदद से सर्जन आंत तक पहुंच पाते हैं और फिर रोग ग्रस्त आंत के टुकड़े को काट कर स्वस्थ आंत से अलग कर दिया जाता है।
  • इसके बाद आंत के स्वस्थ हिस्से को स्टोमा की तरफ लाया जाता है और फिर स्टोमा के आस-पास टांके लगाकर उसे चिपका दिया जाता है।
  • सर्जन एक विशेष छल्ले को पेट की सतह में स्टोमा पर लगा देते हैं, ताकि छिद्र अपनी आकृति को बनाए रखे। इस छल्ले को सिर्फ कुछ समय के लिए या स्थायी रूप से भी लगाया जा सकता है।
  • स्टोमा के ऊपर एक विशेष थैली को लगा दिया जाता है, ताकि अपशिष्ट पदार्थ उसमें जमा होता रहे।

कीहोल कोलोस्टोमी

इसे लेप्रोस्कोपिक कोलोस्टोमी भी कहा जाता है। इस सर्जरी में एक बड़ा कट लगाने की बजाए सर्जन छोटे-छोटे कई कट लगाते हैं, जिनमें से कैमरा व अन्य सर्जरी उपकरण अंदर डाले जाते हैं।

कीहोल कोलोस्टोमी को चार अलग-अलग तरीकों से किया जा सकता है, जो निर्भर करते हैं कि आंत के किस हिस्से को हटाना है -

  • एसेन्डिंग कोलोस्टोमी - इस सर्जिकल प्रक्रिया में बृहदांत्र की बाईं तरफ को हटाया जाता है।
  • ट्रान्सवर्स कोलोस्टोमी - इसमें आंत के बीच वाले हिस्से को काटकर अलग कर दिया जाता है। यह सर्जिकल प्रक्रिया आमतौर पर कुछ ही समय के लिए होती है।
  • डिसेन्डिंग कोलोस्टोमी - इस प्रक्रिया में आंत के निचले हिस्से को बाईं तरफ से हटा दिया जाता है।
  • सिगमोइड कोलोस्टोमी - इस सर्जिकल प्रक्रिया में कोलन के अंतिम हिस्से को हटाया जाता है, जो डिसेन्डिंग कोलन से अलग मौजूद होता है।

सर्जरी के बाद आपको रिकवरी रूम में शिफ्ट कर दिया जाएगा। कोलोस्टोमी के बाद आपको लगभग एक हफ्ते के लिए अस्पताल में रहना पड़ता है। हालांकि, आपके स्वास्थ्य के अनुसार यह अवधि एक हफ्ते से कम या ज्यादा भी हो सकती है। सर्जरी के ठीक बाद अस्पताल में मरीज की निम्न तरीके से देखभाल की जाती है-

  • अस्पताल का स्टाफ लगातार आपके बीपी, हार्ट रेट, श्वसन दर, शुगर व अन्य शारीरिक गतिविधियों पर नजर रखेंगे।
  • कुछ दिनों तक आपको इंट्रावीनस लाइन लगा कर रखी जाएगी।
  • डॉक्टर आपके पेट में एक छोटी ट्यूब को लगा कर भी रख सकते हैं, जो आपके पेट को समय समय पर खाली करती रहेगी ताकि आपकी आंतों को ठीक होने का समय मिल सके।
  • एक ट्यूब आपके मूत्राशय में भी डाली जाती है, ताकि आपका पेशाब थैली में जमा होता रहे। इसे कैथेटर कहा जाता है।
  • आवश्यकता होने पर आपको ऑक्सीजन मास्क लगाया जाएगा, जो आपको सांस लेने में मदद करेगा।
  • समय-समय पर सर्जरी के टांकों पर लगाई गई पट्टी को बदला जाएगा। इससे घाव को साफ रखने और संक्रमण के खतरे को कम करने में मदद मिलेगी।
  • पेट से ट्यूब को निकालने के बाद आपको हल्का भोजन खाने से शुरुआत करने की सलाह दी जाएगी।
  • सर्जरी के तुरंत बाद मरीज स्टोमा के जरिए स्टूल पास करने लग जाएगा।
  • सर्जरी के 5 से 6 दिन बाद टांकों को हटा दिया जाएगा।
  • सर्जरी के कुछ दिन बाद आपको नहाने या शॉवर लेने की अनुमति दे दी जाएगी। यदि घाव ठीक नहीं हो पाया है, तो डॉक्टर नहाने के दौरान घाव को ढकने की सलाह दे सकते हैं, जिसके लिए एक विशेष बैग भी दिया जा सकता है।
  • अस्पताल में ही आपको बता दिया जाएगा कि घर पर आपको अपने घाव की किस तरह से देखभाल करनी है और बैग में जमा हो रहे अपशिष्ट पदार्थ का किस तरह से निपटारा करना है।

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सर्जरी के बाद डॉक्टर आपकी त्वचा को सुरक्षित रखने वाले विभिन्न उत्पादों के बारे में बताएंगे जिनमें बैग, स्किन बैरियर और पाउडर आदि शामिल हैं। डॉक्टर आपको कुछ विशेष टिप्स देंगे, जिनकी मदद से आप सर्जरी के बाद घर पर अपनी देखभाल कर सकते हैं-

  • डॉक्टर आपको सर्जरी के घावों को साफ रखने की सलाह देंगे, ताकि संक्रमण आदि से बचाव हो सके। ऐसा आमतौर पर हल्के गर्म पानी के साथ किया जाता है।
  • जब थैली अपशिष्ट पदार्थ से एक तिहाई भर जाए तो उसे बदल देना चाहिए। 3-4 दिन में एक बार पाउच या थैली को बदल देना चाहिए।
  • कब्ज आदि से बचाव करने के लिए स्टोमा के अंदर पानी डालें। ऐसा करने से आंत भी साफ रहेगी और कब्ज का खतरा भी नहीं होगा।
  • धूम्रपान और शराब का सेवन न करें, ऐसा करने से घाव के ठीक होने की प्रक्रिया धीमी पड़ जाती है। 

आहार में बदलाव

रिकवरी पीरियड के दौरान आहार में कुछ बदलाव करने की आवश्यकता होती है, जिनमें निम्न शामिल है -

  • पेट में गैस बनने से बचाने के लिए स्ट्रॉ से पेय पदार्थ ना पिएं और ना ही चुईंगम चबाएं।
  • एक बार अधिक भोजन न खाकर थोड़ी-थोड़ी मात्रा में कई बार खाएं।
  • गैस बनाने वाली खाद्य पदार्थ न खाएं जैसे प्याज, बीन्स, पत्ता गोभी, चीज़ और मछली आदि। फिज बनाने वाले पेय पदार्थ न पिएं।
  • गैस को कम करने वाली दवाएं लें जैसे एंटी फ्लैट्यूलैंट और चारकोल दवाएं।
  • कुछ शारीरिक गतिविधियां सर्जरी वाली जगह पर दबाव डाल सकती हैं, जिनसे बचना चाहिए जैसे अधिक भारी वजन उठाना और दौड़ना आदि।
  • सर्जरी से पूरी तरह से रिकवर होने के बाद आपको सभी प्रकार के भोजन खाने की अनुमति दी जा सकती है। आप सर्जरी से लगभग तीन महीनों में पूरी तरह से स्वस्थ हो जाएंगे।

डॉक्टर को कब दिखाएं?

यदि सर्जरी के बाद आपको निम्न में से कोई भी लक्षण महसूस हो रहा है, तो डॉक्टर से संपर्क कर लेना चाहिए -

  • स्टोमा के रंग में किसी तरह का बदलाव होना
  • सर्जरी वाली जगह पर खुजली व अन्य तकलीफ होना
  • पांच घंटों से अधिक समय से द्रव मिला हुआ मल आना
  • लगातार दो घंटों से पेट में ऐंठन रहना
  • स्टोमा में रक्तस्राव होना
  • स्टोमा का छिद्र अवरुद्ध हो जाना
  • लगातार एक हफ्ते तक सर्जरी वाली जगह से असाधारण बदबू आना
  • स्टोमा के आस-पास फिर से घाव होना या कोई कट दिखना
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कोलोस्टोमी ज्यादा जटिल सर्जरी नहीं है। हालांकि, अन्य सभी सर्जिकल प्रक्रियाओं की तरह कोलोस्टोमी से के साथ भी कुछ जोखिम देखे जा सकते हैं -

  • घाव का बार-बार खुलना
  • रक्तस्राव होना
  • संक्रमण
  • सर्जरी के दौरान छिद्र छोटा रह जाना
  • सर्जरी के दौरान अन्य अंग क्षतिग्रस्त होना
  • एनेस्थीसिया से जुड़ी जटिलताएं जैसे एलर्जिक रिएक्शन और सांस लेने में दिक्कत आदि
  • स्कार ऊतक बनने के कारण आंतों में रुकावट होना
  • सर्जरी वाली जगह के आस-पास की त्वचा में खुजली और उत्तेजना होना
  • सर्जरी के आस-पास के ऊतक का उभर जाना (हर्निया)

(और पढ़ें - हर्निया के घरेलू उपाय)

संदर्भ

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