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एसोफैजेक्टोमी एक सर्जिकल प्रक्रिया है, जिसमें कैंसर, अल्सर या किसी दुर्घटना में हुई इंजरी के कारण खाने की नली (इसॉफगस) को होने वाले नुकसान का इलाज किया जाता है। इसे मेजर ऑपरेशन माना जाता है, जिसके बाद मरीज को रिकवर होने में कुछ हफ्तों का समय लगता है। सर्जरी के बाद मरीज को घाव की ठीक प्रकार से देखभाल करनी होती है। साथ ही, डॉक्टर द्वारा दी गई सलाह के मुताबिक ही डाइट फॉलो करनी होती है। ऑपरेशन के बाद किसी भी तरह के असामान्य लक्षण दिखने पर अपने हेल्थकेयर प्रोवाइडर या डॉक्टर से तुरंत संपर्क करना चाहिए।

  1. एसोफैजेक्टोमी क्या है - What is Oesophagectomy in Hindi
  2. एसोफैजेक्टोमी क्यों की जाती है - Why Oesophagectomy is done in Hindi
  3. एसोफैजेक्टोमी कब नहीं करवानी चाहिए - When Oesophagectomy is not done in Hindi
  4. एसोफैजेक्टोमी से पहले की तैयारी - Preparations before Oesophagectomy in Hindi
  5. एसोफैजेक्टोमी कैसे की जाती है - How Oesophagectomy is done in Hindi
  6. एसोफैजेक्टोमी के बाद देखभाल - Oesophagectomy after care in Hindi
  7. एसोफैजेक्टोमी की जटिलताएं - Oesophagectomy Complications in Hindi
एसोफैजेक्टोमी के डॉक्टर

एसोफैजेक्टोमी एक सर्जरी है, जिसमें खाने की नली को आंशिक या पूरी तरह से निकाला जाता है। खाने की नली यानी इसॉफगस एक लंबी मांसपेशियों से बनी एक ट्यूब है जो खाने को मुंह से पेट तक पहुंचाती है। नली के आखिर में नीचे की तरफ एक वॉल्व लगा होता है जो खाने और तरल पदार्थों को पेट से वापस नली की ओर जाने से रोकने का काम करता है।

खाने की नली के कैंसर, अल्सर और ऐसी चोटों में एसोफैजेक्टोमी की जाती है, जिनसे इस अंग को नुकसान हुआ होता है और किसी अन्य तरीके से उसका इलाज नहीं हो पाता। खाने की नली के कैंसर के लिए सर्जरी एकमात्र इलाज माना जाता है। एसोफैजेक्टोमी को अक्सर अन्य थेरेपी के साथ भी किया जा सकता है, जैसे रेडिएशन थेरेपी या कीमो थेरेपी। सर्जरी में कैंसर से प्रभावित हिस्से को हटाने के बाद बाकी की नली को फिर से पेट से कनेक्ट कर दिया जाता है।

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निम्नलिखित कंडीशंस के कारण किसी व्यक्ति की एसोफैजेक्टोमी करवाने की सलाह दी जाती है-

  • खाने की नली का कैंसर (एसौफेगल कैंसर)।
  • एकैल्शिया (जो एसौफेगस से जुड़ी एक दुर्लभ बीमारी है, जिसमें खाना/तरल पदार्ध का मुंह से पेट तक पहुंचना मुश्किल हो जाता है।)
  • दुर्घटनावश एसिड को निगलने की वजह से, एसिड रिफ्लक्स या किसी भी अन्य मेडिकल ऑपरेशन के दौरान एसौफेगस का गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त होना।
  • अल्सर के कारण खाने की नली में समस्याएं पैदा होना। इस प्रकार के अल्सर के कारण सीने में दर्द, मतली, निगलने में कठिनाई, उल्टी और वॉटर ब्रैश (मुंह में खट्टा या पित्त जैसा स्वाद आना) जैसी दिक्कतें हो सकती हैं।

निम्नलिखित लक्षण खाने की नली के कैंसर का संकेत हो सकते हैं-

एसोफैजेक्टोमी के लिए इस्तेमाल की जाने वाली तकनीकों में कुछ अंतर्विरोध भी है-

आइवर-लुइस एसोफैजेक्टोमी: इस सर्जिकल तकनीक में उच्च एसोफैगल कार्सिनोमा को हटाया जाता है। लेकिन अगर वह इन्सिजर के 20 सेंटिमीटर के दायरे में हो तो यह प्रोसीजर फॉलो नहीं किया जाता। यह विरोधाभास उन लोगों के मामले में तुलनात्मक रूप से ज्यादा देखने को मिलता है, जिनकी पहले से राइट थोरेकॉटमी (चेस्ट वॉल में कट लगाना) हुई होती है।

मिनिमल-इनवेसिव एसोफैजेक्टोमी: इस सर्जरी के अंतर्विरोध इस प्रकार हैं-

  • एक्सटेंसिव प्ल्यूरल एड्हिशन (फेफड़ों में एक बड़ा ऊत्तक विकसित हो जाना)।
  • सर्कुलेटरी फंक्शन में खराबी आना, जिससे एक फेफड़े के वेंटिलेशन में रुकावट आती है।
  • ट्यूमर का अंगों में घुसपैठ करना।
  • मीडियास्टिनम (दोनों फेफड़ों के बीच का एक हिस्सा) के कारण रेडियो थेरेपी कराना।
  • मरीज का सर्जरी कराने से ही इनकार कर देना।

ट्रांसहिएटल एसोफैजेक्टोमी: इस सर्जिकल प्रोसीजर से जुड़े विरोधाभास निम्नलिखित हैं-

  • ट्रैकियोब्रोन्कियल (वायु-श्वसन नली की शाखाएं), इंट्रा-एब्डोमिनल (पेट के अंदर की मांसपेशियां) और मीडियास्टाइनल स्ट्रक्चर (सीने का एक भाग) पर हमला।
  • उम्र अधिक होना और कमजोरी
  • बीमारी का चौथी स्टेज पर पहुंचना।
  • ऐसी अन्य बीमारियां जिनके कारण ऑपरेशन नहीं हो सकता।
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सर्जरी के लिए सबसे पहले मरीज का फिट होना जरूरी है। इसके बाद ऑपरेशन से पहले निम्नलिखित तैयारियों और बातों का ध्यान रखना जरूरी है:

  • अगर मरीज स्मोकिंग करता है तो उसे ऑपरेशन से पहले इसे बंद करना होगा ताकि बाद में श्वसन और सीने से जुड़ी समस्याएं न हों। ई-सिगरेट या निकोटिन पैच का भी इस्तेमाल नहीं करना चाहिए, क्योंकि इनसे भी कॉम्प्लिकेशन हो सकते हैं।
  • खुद को फिट रखने के लिए रोज एक्सरसाइज करनी चाहिए।
  • हेल्दी डाइट फॉलो करें या किसी डायटिशियन की सलाह ले सकते हैं।
  • हेल्थकेयर प्रोवाइडर मरीज की हेल्थ हिस्ट्री के बारे में पता लगाकर उसकी शारीरिक जांच करेगा। अगर पहले कभी एब्डोमिनल सर्जरी हुई हो तो एसोफैजेक्टोमी में खाने की नली को फिर से बनाने में दिक्कत हो सकती है।
  • मरीज के ब्लड टेस्ट किए जाएंगे। इनमें कंप्लीट ब्लड काउंट, लिवर फंक्शन टेस्ट और ब्लड क्लॉटिंग टेस्ट संबंधी प्रोफाइल शामिल होगी।
  • मरीज के हृदय और फेफड़ें के टेस्ट किए जाएंगे ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि वह सर्जरी के लिए फिट है।
  • एक फिजियोथेरेपिस्ट सांस लेने और खांसने की विशेष एक्सरसाइज कराएगा जिससे मरीज को अपने फेफड़ों को साफ करने में मदद मिलेगी।
  • मरीज का न्यूट्रीश्नल असेस्मेंट किया जा सकता है। ऑपरेशन के पहले और बाद में पोषण सप्लिमेंट, नसों के जरिये खाना देने और फीडिंग ट्यूब की जरूरत पड़ सकती है।
  • अगर खराब न्यूट्रीशन के कारण मरीज की सेहत अच्छी नहीं है तो उसे संक्रमण से बचाने के लिए एंटीबायोटिक्स की जरूरत पड़ सकती है।
  • एनेस्थीसिया स्पेशलिस्ट मरीज का कार्डियोपल्मनरी एक्सरसाइज टेस्ट करेगा।
  • मरीज का ईसीजी करना पड़ सकता है, जिससे मरीज के हृदय के ठीक से काम करने की पुष्टि होगी या किसी तरह की समस्या का पता चल सकेगा।

इसके अलावा, सर्जरी से पहले निम्नलिखित टेस्ट भी किए जा सकते हैं-

  • एंडोस्कोपी: इसमें एसौफेगस और पेट की एक फ्लेक्सिबल कैमरे की मदद से जांच की जाएगी और कैंसर को लोकेट कर इसकी ग्रोथ का पता लगाया जाएगा।
  • सीटी स्कैन: इसमें अलग-अलग एक्स-रे के जरिये कैंसर के आकार, लोकेशन और फैलाव का पता लगाया जाता है।
  • पीईटी स्कैन: इस टेस्ट में रेडियोएक्टिव ट्रेसर्ज से बॉडी स्कैन की जाती है ताकि पता चल सके कि कैंसर किन अन्य हिस्सों में पहुंच गया है।
  • स्टेजिंग लैपरोस्कोपी: इसमें पेट की जांच कर सर्जरी करने की संभावना और कैंसर के विस्तार का पता लगाया जाता है।

यहां खाने की नली के कैंसर की स्टेजों के बारे में भी जान लेते हैं।

  • स्टेज 0: इसमें खाने की नली की अंदरूनी सतह पर खतरनाक असामान्य कोशिकाओं की मौजूदगी का संकेत मिलता है।
  • स्टेज 1: इसमें कैंसर एसौफेगस वॉल के अंदर सीमित रहता है।
  • स्टेज 2: इस स्टेज को 2ए और 2बी में विभाजित किया जाता है। स्टेज 2ए का मतलब है कैंसर नली की बाहरी सतह पर फैल गया है। 2बी का मतलब है कैंसर मांसपेशी की लेयर के साथ आसपास एक या दो लिम्फ नोड्स तक पहुंच गया है।
  • स्टेज 3: इस स्टेज को 3ए, 3बी और 3सी कहा जाता है। स्टेज 3ए का मतलब है कैंसर या तो फेफड़ों को कवर करने वाले टिशूज (प्ल्यूरा) में फैल गया है या खाने की नली को कवर करने वाली झिल्ली तक पहुंच गया है। उसकी चपेट में एक या दो आसपास के लिम्फ नोड्स भी आ गए हैं। वहीं, स्टेज 3बी का मतलब है कैंसर खाने की नली को कवर करने वाली झिल्ली में फैल चुका है और वहां तीन से छह लिम्फ नोड्स तक पहुंच गया है। 3सी स्टेज में कैंसर 3ए स्टेज की तरह अन्य अंगों में फैलता है, लेकिन इस स्टेज में यह आसपास के सात लिम्फ नोड्स तक पहुंच जाता है। इस स्टेज में कैंसर वायुनली, स्पाइनल बोन या एओर्टा (एक बड़ी रक्त वाहिका) तक फैल सकता है।
  • स्टेज 4: इसका मतलब है कैंसर एडवांस स्टेज में पहुंच गया है और अब शरीर के कई अंगों में उसकी मौजूदगी है।

सर्जरी के दिन निम्नलिखित प्रक्रिया फॉलो की जा सकती है-

  • सर्जरी से पहले एक सर्जन और एनेस्थीसिया स्पेशलिस्ट मरीज से मिलेगा और प्रोसीजर के बारे में समझाएगा।
  • मरीज को एक कनसेंट फॉर्म पर साइन करने होंगे, जिसके बाद ही ऑपरेशन की प्रक्रिया शुरू होगी।
  • मरीज के हाथ में एक इंट्रावीनस ड्रिप दी जाएगी।
  • अगर मरीज को डायबिटीज है तो उसके ब्लड शुगर को कंट्रोल करने के लिए इंसुलिन और ग्लूकोज दिए जाएंगे।
  • उसे खून को पतला करने वाली दवाएं दी जाएंगी ताकि नसों में ब्लड क्लॉटिंग न हो।
  • इसके बाद मरीज को एपिड्युरल दिए जाएगा (स्पाइनल कोर्ड के पास एक बिल्कुल पतली नीडल डाली जाएगी जिससे मरीज को पेन किलर्स दिए जाएंगे)।
  • मरीज को सुलाने के लिए इंट्रावीनस वाली नली में इन्जेक्शन लगाया जाएगा।

एसोफैजेक्टोमी में आमतौर पर पेट के ऊपरी भाग को हटा दिया जाता है। इससे पेट की पोजीशन पहले से ज्यादा ऊंची हो जाती है। इससे निगलने में आसानी होती है। एसोफैजेक्टोमी में निम्नलिखित स्टेप अपनाए जाते हैं-

  • प्रभावित एसौफेगस को निकाल दिया जाता है और पेट को रीशेप किया जाता है। इसे खींचकर गर्दन या सीने तक लाया जाता है और बाकी एसौफेगस और अमाशय को जोड़ दिया जाता है।
  • कैंसर से प्रभावित लिम्फ नोड्स को निकाल दिया जाता है।
  • खाने के लिए छोटी आंत में एक अस्थायी ट्यूब लगाई जाती है।

सर्जरी में खाने की नली तक पहुंचने के कई रास्ते हैं। यहां गले, सीने या अमाशय से होते हुए पहुंचा जा सकता है। हालांकि सर्जरी के लिए अपनाई गई अप्रोच कैंसर की लोकेशन पर निर्भर करती है। इस तरह एसोफैजेक्टोमी के लिए निम्नलिखित प्रकार की तकनीकें अपनाई जा सकती हैं-

  • आइवर-लुइस एसौफेजेक्टोमी: इस प्रक्रिया में अमाशय के बीचोंबीच एक कट लगाया जाता है। वहीं, ट्यूमर को हटाने के लिए बॉडी की साइड में पीठ की तरफ भी कट लगाया जाता है।
  • ट्रांसहिएटल एसौफेजेक्टोमी: इस सर्जिकल प्रोसीजर में खाने नली का प्रभावित भाग दो कट लगाकर हटा दिया जाएगा। ये कट गले और अमाशय में लगाए जाते हैं ताकि ट्यूमर को निकाला जा सके। बाद में गले में लगे कट से होते हुए अमाशय को इसॉफगस से जोड़ दिया जाता है।
  • मैकोवन (यी 3-होल) एसौफेजेक्टोमी: इस सर्जरी में पेट, पीठ के ऊपरी हिस्से (दाईं) और गले पर कट लगाए जाते हैं।
  • मिनिमली इनवेसिव एसौफेजेक्टोमी: इस प्रोसीजर में पेट और पीठ के नीचे के हिस्से में कई छोटे-छोटे कट लगाए जाते हैं। इसके बाद इनमें लैपरोस्कोप और सर्जिकल यंत्र पेट में डाले जाते हैं और ट्यूमर को निकाला जाता है। इस काम में सर्जन अपने हाथ का इस्तेमाल कर सकता है या रोबोट की मदद भी ली जा सकती है।

सर्जरी पूरी होने के बाद मरीज की नींद आईसीयू में टूटेगी। वहां डॉक्टर उस पर करीबी नजर बनाए रखेंगे। बाद में उसे सर्जिकल वार्ड में भेज दिया जाएगा। इस दौरान मरीज के शरीर में कई ट्यूब लगी रहेंगी। इसके बाद के स्टेप निम्नलिखित हैं:

  • मरीज को नली के जरिये खाना और पेय पदार्थ दिए जाएंगे।
  • जागने के बाद एक नैसोगैस्ट्रिक ट्यूब लगाई जाएगी। इसक चौथे दिन अगर तरल पदार्थ निकलने की मात्रा कम हो गई तो ट्यूब को हटा लिया जाएगा। फिर मरीज आराम से पीने की चीजें ग्रहण कर सकते हैं। पेशाब की निकासी के लिए ब्लेडर में एक नली लगाई जाएगी। इससे सर्जरी के बाद रेनल फंक्शन की जांच करने में भी आसानी होती है। कट के आसपास लोकल एनेस्थेटिक कैथटर लगाए जाएंगे। इनसे मरीज को पेनकिलर देने में आसानी होगी। अमाशय से फ्लूड निकालने के लिए वहां भी एक ड्रेन लगाया जाएगा। छठवें दिन सभी ड्रेन हटा लिए जाएंगे।
  • सर्जरी के बाद शुरुआती पांच से सात दिनों में मरीज के खाने के लिए फीडिंग ट्यूब लगाई जाएगी, क्योंकि उसकी हालत मुंह से खाने लायक नहीं होगी।
  • ऑपरेशन वाली जगह पर दर्द हो सकता है, जिसे दर्द निवारक दवाओं से नियंत्रित किया जाएगा।
  • चेस्ट इन्फेक्शन से बचने के लिए मरीज को जितना जल्दी संभव हो चलना-फिरना शुरू कर देना चाहिए।
  • सर्जरी के पांच दिन बाद मरीज को एक विशेष ड्रिंक दिया जाएगा और उसका एक्स-रे चेक किया जाएगा। इसमें यह देखा जाएगा कि क्या अंदर नली और अमाशय का जोड़ सील हुआ है और उसमें से कोई लीकेज तो नहीं हो रही। इस टेस्ट से पहले मरीज पीने योग्य नहीं हो सकता।
  • आमतौर पर सर्जरी के दो हफ्तों के बाद मरीज को घर जाने दिया जाता है।

एसोफैजेक्टोमी में मरीज की निम्नलिखित प्रकार से देखभाल की जानी चाहिए:

  • दर्द से राहत देने के लिए डॉक्टर मरीज को पेनकिलर्स देगा।
  • घाव वाली जगह पर अजीब सेंसेशन महसूस हो सकती है। घाव भरने के चलते टांकों वाली जगह पर हल्का खिंचाव महसूस होगा। वहीं, नए टिशू बनने के कारण अंदर कोई सख्त चीज इकट्ठा होती महसूस हो सकती है। ऐसे में किसी प्रकार की खुजली होने पर उसे अनदेखा कर सकते हैं, क्योंकि ये नए टिशू की रक्षा करते हैं और नेचुरल ड्रेसिंग की तरह काम करते हैं।
  • जब तक डॉक्टर अनुमति न दे, तब तक इस तरह न नहाएं कि घाव गीले हो जाएं। साफ-सफाई के दौरान यह ध्यान रखें कि घाव सूखे रहें।
  • सर्जरी के बाद खान-पान के मामले में एक डायटिशियन मरीज की मदद करेगा। डिस्चार्ज होने से पहले डाइटिशियन सलाह देगा कि कुछ समय तक मरीज को आसानी से पचने वाली डाइट लेनी चाहिए।

सर्जरी के बाद मरीज को अपना वजन कम, भूख में कमी, निगलने में परेशानी, मतली आदि परेशानियां हो सकती हैं। ऐसे में वह निम्नलिखित उपाय कर सकता है:

  • छोटी-छोटी मात्रा में खाना चाहिए।
  • छोटे गास लेते हुए खाने को अच्छे से चबाना चाहिए।
  • गीला और नरम खाना खाएं।
  • कार्बोनेटिड ड्रिंक, कैफीन, अल्कोहल, टमाटर से बने उत्पाद, साइट्रस, तीखा और तला खाना, चिपचिपा और लिजलिजा खाना नहीं लेना चाहिए।
  • बहुत ठंडा और बहुत गर्म खाने से परहेज करना चाहिए।
  • मिठाई खाने के अंत में लेनी चाहिए। पहले खाने से ब्लड ग्लूकोस में कमी हो सकती है।
  • गम या तंबाकू का सेवन नहीं करना चाहिए।
  • सोने से पहले के दो घंटे कुछ नहीं खाना चाहिए।
  • खाते समय सीधे बैठें। गुरुत्वाकर्षण के कारण खाना आसानी से नीचे जाने में आसानी होती है।
  • खाने के साथ तरल चीजें लेने की मात्रा आधी कर दें और स्नैक्स के साथ एक कप फ्लूड ही लें।
  • सर्जरी के बाद थकान महसूस हो सकती है, लेकिन इसमें समय के साथ कमी होगी। इसके लिए मरीज फिजियोथेरेपिस्ट द्वारा दी गई सलाह के मुताबिक एक्सरसाइज कर सकता है। सही और थोड़ी-थोड़ी एक्सरसाइज से ऊर्जा और भूख में बढ़ोतरी होती है। लेकिन कम से कम आठ हफ्तों तक भारी वजन उठाने, पुशिंग या पुलिंग से बचना चाहिए। इसके लिए घाव के पूरी तरह भरने का इंतजार करना चाहिए।
  • सर्जरी के बाद छह से आठ हफ्तों तक ड्राइविंग नहीं करनी।

डॉक्टर को कब दिखाना है?

निम्नलिखित परिस्थितियों या कारणों के चलते डॉक्टर से मिलना चाहिए:

  • निगलने में परेशानी
  • पीठ या सीने में दर्द
  • वजन कम होना
  • शरीर में चिंताजनक बदलाव
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इसोफॉजेक्टोमी के कुछ कॉम्प्लिकेशंस यानी जटिलताएं भी हैं, जोकि निम्नलिखित हैं:

  • घाव, पेशाब या सीने का संक्रमण
  • ट्यूब के आसपास त्वचा का संक्रमण
  • ब्लीडिंग
  • ब्लड क्लॉट्स: डीप वेन थ्रोम्बोसिस
  • पांव और कभी-कभी पेट में सूजन
  • हृदय की समस्याएं
  • एनस्टोमोटिक लीक
  • खाने की नली के आसपास इंजरी होना
  • काइल लीक (फैटी फूड्स के डाइजेस्चन के कारण पैदा होने वाला मिल्की फ्लूड)
  • अमाशय का खाली रहना
  • देर से खाना

डिस्क्लेमर: इस आर्टिकल में दी गई जानकारी केवल शिक्षित करने के लिए है। यह किसी भी प्रकार से एक क्वालिफाइड डॉक्टर की मेडिकल एडवाइस का विकल्प नहीं है।

Dr. Paramjeet Singh

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संदर्भ

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  6. Kawakubo H, Takeuchi H, Kitagawa Y. Current status and future perspectives on minimally invasive esophagectomy. Korean J Thorac Cardiovasc Surg. 2013 Aug; 46(4): 241– 248. PMID: 24003404.
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