नवजात शिशु व बच्चों की सेहत - Infant, baby and child health in hindi


9 महीने के लंबे इंतजार के बाद आखिरकार आपके जिगर का टुकड़ा, आपका शिशु आपकी गोद में आ गया और आपके पैंरटहुड की शुरुआत हो गई है। अपने बच्चे के स्वागत को लेकर आप बेहद उत्साहित होंगे और जल्द ही अपने नवजात शिशु के साथ टाइम इंजॉय करने लग जाएंगे। लेकिन आपको यह समझना होगा कि अपने शिशु के जन्म के शुरुआती कुछ घंटे, कुछ दिन, कुछ हफ्ते और कुछ महीने आपको पूरी तरह से व्यस्त रखने वाले होंगे और इस दौरान आपको बहुत सारा काम करना होगा। आपको ऐसा भी महसूस हो सकता है कि इतनी सारी केयर की वजह से आपका शिशु बहुत तेज गति से बढ़ रहा है, खासकर तब जब आप नए पैरंट्स हों।

आपने प्रेगनेंसी के दौरान नवजात शिशु से जुड़ी क्लासेज ली हों या नहीं, जमीनी हकीकत यही है कि शिशु के जन्म के बाद आपको उसकी जरूरतों को पूरा करना होगा, उसका पेट भरना होगा, उसकी साफ-सफाई करनी होगी, उसे सुलाना होगा और हर वक्त शिशु का ध्यान रखना होगा। लिहाजा बेहद जरूरी है कि आप अपने शिशु के आगमन को लेकर तैयार रहें। 

जन्म के बाद पहले घंटे में शिशु और मां के बीच स्किन-टू-स्किन कॉन्टैक्ट होना जरूरी है इसलिए आवश्यक है कि आप डॉक्टर से कहें कि वह आपको अपने शिशु के साथ ही रखें। इस समय से ही आपको यह बात अच्छी तरह से समझ लेनी चाहिए कि शिशु को संभालने की जिम्मेदारी अकेले मां की नहीं है बल्कि पिता की भी उतनी ही है। नए पैरंट्स को एक्स्ट्रा सपोर्ट की भी जरूरत होती है। ऐसे में अगर आप पेड नर्स (नैनी) का खर्च नहीं उठा सकते तो आपके लिए जरूरी होगा कि आप शिशु के दादा-दादी या नाना-नानी (ग्रैंड पैरंट्स) या फिर किसी रिश्तेदार की मदद लें। लिहाजा मां और शिशु जब प्रसव के बाद अस्पताल में हैं तभी आपको कुछ जरूरी मूलभूत चीजों के बारे में सीख लेना होगा।

अस्पताल में मौजूद नर्स आपको यह सिखा सकती हैं कि आखिर शिशु जन्म के बाद शुरुआती 24 घंटे में क्यों रोते हैं, शिशु को सही तरीके से गोद में कैसे उठाना है और शिशु को ब्रेस्टफीड कराते वक्त अपने ब्रेस्ट से कैसे जोड़ना है (लैचिंग)। शिशु के जन्म के तुरंत बाद किसी पीडियाट्रिशन से भी जुड़ना अच्छा रहेगा ताकि अगर आपको परामर्श की जरूरत हो या कोई आपातकालीन स्थिति हो जाए तो आप शिशु को डॉक्टर के पास ले जाएं। अब बारी है टीकाकरण की तो जन्म के बाद आपके शिशु को अस्पताल में ही हेपेटाइटिस बी और बीसीजी का बर्थ शॉर्ट दिया जाएगा ताकि उसे हेपेटाइटिस और टीबी जैसी बीमारियों से सुरक्षित रखा जा सके। अस्पताल में मौजूद मेडिकल स्टाफ कई दूसरे मेट्रिक्स के साथ-साथ शिशु की त्वचा का रंग-रूप, आकार और मांसपेशियों की रंगत भी देखते हैं ताकि शिशु के अपगार स्कोर में उसे शामिल किया जा सके।

शिशु की साफ-सफाई कैसे करनी है और उसे दूध कब और किस तरह से पिलाना है, इसके साथ-साथ माता-पिता को इस बात पर भी नजर रखनी चाहिए कि शिशु में किसी छोटी-मोटी या गंभीर बीमारी के लक्षण तो नजर नहीं आ रहे। आपको पता होना चाहिए कि शिशु के शरीर का तापमान कैसे नापना है, अगर शिशु को बुखार हो या पेट खराब हो तो क्या करना है और अगर शिशु ज्यादा रो रहा हो तो उसे चुप कैसे कराना है। इन सबके अतिरिक्त आपको आकस्मिक नवजात मृत्यु सिंड्रोम (SIDS) जैसी गंभीर जटिलताओं के बारे में भी पता होना चाहिए क्योंकि जब तक शिशु 12 से 18 महीने का नहीं हो जाता तब तक sids का खतरा बना रहता है। 

ऐसे में हम आपको बता रहे हैं कि अपने शिशु को अस्पताल से घर लाने के बाद उसे संभालने और सही तरीके से उसका पालन-पोषण करने का तरीका क्या है:

  1. शिशु की जरूरत की चीजें जो आपको चाहिए - baby essentials jo apko chahiye
  2. नवजात शिशु को पकड़ने का सही तरीका क्या है? - Navjat Shishu ko hold karne ka sahi tarika
  3. शिशु को दूध पिलाना और डकार दिलवाना - Baby ko doodh pilana aur dakar dilana
  4. शिशु का डायपर बदलना - Baby ka diaper badalna
  5. शिशु को नहलाना - Baby ko nahlana
  6. शिशु के गर्भनाल की गांठ की सफाई - Baby ke umbilical stump ki safai
  7. अपने रोते हुए शिशु को चुप कराना - Baby ko chup karana
  8. शिशु के सोने का तरीका - Baby ka sleeping pattern
  9. इस बात का पता कैसे लगाएं कि आपका शिशु स्वस्थ है? - Baby healthy hai iska pata kaise lagaye?
  10. और आखिर में इन बातों का रखें ध्यान - Takeaway

शिशु की जरूरत की चीजें जो आपको चाहिए - baby essentials jo apko chahiye

एक तरफ तो अस्पताल में ही आपके शिशु की कुछ जरूरतों को पूरा कर दिया जाएगा लेकिन एक बार जब आप शिशु को घर ले आते हैं उसके बाद भी कई जरूरी चीजें हैं जिनकी जरूरत आपको होगी। ऐसे में हम आपको उन चीजों की एक लिस्ट बता रहे हैं जिनकी जरूरत आपको शिशु के घर आने के बाद पड़ेगी:

  • नवजात शिशु का डायपर (अपने शिशु के उम्र के हिसाब से आपको कई सारे डायपर की जरूरत होगी लेकिन डायपर से होने वाले रैशेज का भी ध्यान रखें)
  • शिशु के लिए आरामदायक टोपी
  • शिशु को लपेटने के लिए कोई कपड़ा या कंबल जो सॉफ्ट फैब्रिक से बना हो और नवजात शिशु के लिए पूरी तरह से सुरक्षित हो
  • 4 या 5 सेट शिशु के कपड़े
  • ब्रेस्ट पंप (अगर मां को शिशु को दूध पिलाने या ब्रेस्ट से जोड़ने में दिक्कत हो रही हो तो इसकी जरूरत पड़ सकती है)
  • बेबी फीडिंग बॉटल जिसकी निप्पल्स सॉफ्ट हो और बोतल को साफ और स्टर्लाइज करने वाले उपकरण
  • बेबी वाइप्स या बच्चे की सफाई के लिए सॉफ्ट कपड़ा
  • डॉक्टर से पूछकर उनकी अनुशंसा पर डायपर रैश क्रीम
  • शिशु का पालना, झूला या हाथ गाड़ी क्योंकि शिशु को सोने के लिए एक अलग, मजबूत और सुरक्षित जगह की जरूरत है
  • सॉफ्ट तौलिया और गीला कपड़ा
  • शिशु को नहलाने के लिए बेबी टब
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नवजात शिशु को पकड़ने का सही तरीका क्या है? - Navjat Shishu ko hold karne ka sahi tarika

नवजात शिशु बेहद नाजुक होते हैं और उन्हें संभालना सबके बस की बात नहीं होती। चूंकि जन्म के तुरंत बाद शिशु के गर्दन की मांसपेशियां बेहद कमजोर होती हैं इसलिए आपको यह सीखना होगा कि शिशु को पकड़ने, उठाने और गोद में लेने का सही तरीके क्या है। अगर आप सुरक्षित तरीके से शिशु को गोद में उठा नहीं पाएंगे तो शिशु न तो आरामदायक तरीके से दूध पी पाएगा और ना ही सो पाएगा। ऐसे में शिशु को संभालते वक्त आपको क्या करना चाहिए और क्या नहीं, यहां जानें:

  • शिशु को छूने से पहले हमेशा अपने हाथों को साबुन पानी से धोएं या हैंड सैनिटाइजर से हाथ साफ कर लें।
  • अपनी हथेली में या फिर कोहनी के अंदर शिशु की गर्दन को सुरक्षित तरीके से रखें।
  • शिशु को उठाते वक्त और एक जगह से दूसरी जगह शिफ्ट करते वक्त या लिटाते वक्त बेहद सावधानी बरतें।
  • शिशु को कभी भी हिलाएं नहीं क्योंकि ऐसा करने से शिशु के मस्तिष्क में ब्लीडिंग हो सकती है जिससे मौत का खतरा रहता है।
  • जब शिशु सो रहा हो तो उसे जबरन न उठाएं। अगर ऐसा करना जरूरी हो तो उसे पैरों में या गाल में गुदगुदी करें। लेकिन कभी भी शिशु को जगाने के लिए उसे हिलाएं या झटका न दें।
  • शिशु को कैरियर, स्ट्रॉलर या कार सीट में बिठाने के बाद अच्छी तरह से बांध दें ताकि वह पूरी तरह से सुरक्षित रहे।

शिशु को दूध पिलाना और डकार दिलवाना - Baby ko doodh pilana aur dakar dilana

अमेरिकन अकैडमी ऑफ पीडियाट्रिशन्स (AAP) और विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की मानें तो शिशु के जन्म के बाद शुरुआती 6 महीने तक उसे सिर्फ मां का दूध ही पिलाना चाहिए। शिशु को मां का दूध पिलाना मां और शिशु दोनों के लिए कई तरह से फायदेमंद है। इसलिए बेहद जरूरी है कि नई मां, शिशु को ब्रेस्टफीडिंग करवाएं लेकिन अगर आप ह्यूमन इम्यूनोडिफिशियेंसी वायरस (एचआईवी) से संक्रमित हैं तो शिशु को दूध न पिलाएं। इसके अलावा अगर शिशु को ब्रेस्ट से जोड़ने में दिक्कत आ रही हो या अगर आप पूरी तरह से ब्रेस्टफीड न करवाना चाहती हों तो।

इस तरह के मामलों में आमतौर पर शिशु को बोतल से फॉर्मूला मिल्क पिलाया जाता है लेकिन आपके लिए यह जानना बेहद जरूरी है कि फॉर्मूला मिल्क गाय के दूध से बनता है जिसमें वे खूबियां और एंटीबॉडीज नहीं होतीं जो मां के ब्रेस्ट मिल्क में होती हैं। ये एंटीबॉडीज शिशु के लिए जरूरी होती हैं क्योंकि यह शिशु के लिए पोषण का अहम स्त्रोत होने के साथ-साथ कई तरह की बीमारियों से भी शिशु की रक्षा करती हैं। जब तक शिशु को सभी तरह के टीके न लग जाएं, ब्रेस्ट मिल्क में मौजूद एंटीबॉडीज शिशु के इम्यून सिस्टम को मजबूत बनाने और बीमारियों से सुरक्षित रखने में मदद करते हैं।

आप शिशु को ब्रेस्टफीडिंग करवा रही हों या फिर बोतल से दूध पिला रही हों आपको निम्नलिखित बातों का जरूर ध्यान रखना चाहिए:

  • शिशु को उसकी जरूरत और मांग के हिसाब से दूध पिलाते रहें। शिशु को जब भूख लगती है तो वे कई तरह के संकेत देते हैं जैसे- रोना, आवाजें निकालना, अपना अंगूठा या उंगलियां चूसना आदि।
  • नवजात शिशु को वैसे भी हर 2-3 घंटे में दूध पिलाने की जरूरत पड़ती है। जैसे-जैसे शिशु बड़े होने लगते हैं उन्हें दूध पिलाने का समय और दूध पिलाने की मात्रा बढ़ती जाती है लेकिन कितनी बार दूध पिलाना है इसकी संख्या कम होती जाती है।
  • शिशु को ब्रेस्ट से जोड़ने से पहले सही तरीके से शिशु को उठाएं, गोद में लें या फिर लिटाकर रखें। शुरुआत में हो सकता है कि आपको ये सब सीखने में कुछ समय लगे लेकिन फिर आप धीरे-धीरे ये सब सीख जाएंगी और आपका शिशु भी आसानी से अडजस्ट कर लेगा।
  • अगर आप शिशु को ब्रेस्टफीडिंग कराती हैं तो इस बात का ध्यान रखें कि शिशु को दोनों ब्रेस्ट से दूध पिलाएं। अगर आप ऐसा नहीं करेंगी तो आपके ब्रेस्ट में सूजन हो सकती है, ब्रेस्ट में दर्द हो सकता है, निप्पल में दर्द हो सकता है और कई दूसरी समस्याएं भी हो सकती हैं।
  • इस बात का ध्यान रखें कि आपका शिशु भरपूर दूध पिए। शिशु को दूध पिलाने से पहले आपका ब्रेस्ट भरा हुआ होना चाहिए और दूध पिलाने के बाद खाली महसूस होना चाहिए। अगर आप शिशु को बोतल से दूध पिला रही हैं तो शिशु पूरा दूध खत्म रहा है या नहीं यह जानना आसान है क्योंकि बोतल पर मेजर्मेंट बना होता है।
  • अगर आपका शिशु दूध पीने में दिलचस्पी न दिखाए तो तुरंत अपने शिशु के डॉक्टर पीडियाट्रिशन से संपर्क करें।

शिशु अगर दूध पीते वक्त हवा भी अंदर ले लेते हैं इसलिए उन्हें दूध पिलाने के बाद या एक ब्रेस्ट से दूसरे ब्रेस्ट में ले जाने से पहले डकार दिलाना भी जरूरी है। अगर दूध पिलाने के दौरान शिशु को डकार दिलाने की जरूरत हो तो शिशु खुद ही इसका संकेत देने लगता है जैसे- मुंह से दूध निकालना, गैस पास करना, चिड़चिड़ापन दिखाना आदि।

शिशु को डकार दिलवाने के लिए इन टिप्स को अपनाएं:

  • शिशु के सिर और गर्दन को सपोर्ट देते हुए शिशु को सीधा खड़ा रखें।
  • आप शिशु को अपनी छाती से लगाकर, अपनी गोदी में या फिर घुटने पर सीधा रख सकती हैं।
  • इसके बाद शिशु की पीठ पर आराम से थपकी दें।
  • अगर शिशु इस दौरान सही तरीके से डकार न ले रहा हो तो उसकी पोजिशन को बदल दें।
  • शिशु को लेकर हिलने वाली रॉकिंग चेयर पर बैठने से भी डकार आने में मदद मिलती है।
  • अगर आपका शिशु बहुत ज्यादा दूध निकालता हो तो डॉक्टर से मिलकर बात करें कि कहीं आपके शिशु को इंस्टेंट रिफ्लक्स की समस्या तो नहीं।

शिशु का डायपर बदलना - Baby ka diaper badalna

आप अपने शिशु के लिए डिस्पोजेबल डायपर का इस्तेमाल कर रही हों या फिर दोबारा इस्तेमाल वाले सॉफ्ट कपड़े वाले डायपर या लंगोटी, आपको पता होना चाहिए कि शिशु के जन्म के बाद शुरुआती कुछ दिनों तक आपको दिनभर में कम से कम 10 बार डायपर बदलने की जरूरत पड़ी है। यह आपके लिए एक थकाने वाला काम हो सकता है लेकिन जरूरी है कि आप इसे भी सही तरीके से करें। अगर आप अपने शिशु को सही समय पर और सही तरीके से साफ नहीं करेंगी तो इससे शिशु को बैक्टीरियल इंफेक्शन और फंगल इंफेक्शन होने का खतरा रहेगा।

आपको इस बात का ध्यान रखना होगा कि निम्नलिखित चीजें हमेशा आपके सामने हों ताकि रोजाना दिन में कई बार शिशु का डायपर बदलते वक्त आपको किसी तरह की कोई परेशानी न हो:

  • एक नया और फ्रेश डायपर
  • बांधने का सुरक्षित तरीका जो शिशु की गर्भनाल से रगड़ न खाए
  • डॉक्टर द्वारा बताया गया डायपर क्रीम या ऑइंटमेंट
  • बेबी वाइप्स, कॉटन बॉल या गीला कपड़ा और गुनगुना पानी

आपको चेक करना होगा कि शिशु ने सूसू की है या पॉटी और उस हिसाब से ही जितना जल्दी हो शिशु को साफ कर दें। शिशु का डायपर गीला होते ही वह आपको रोकर इस बात की जानकारी दे देगा। लेकिन अगर आप शिशु द्वारा दिए जा रहे इन संकेतों को समझ न पाएं तो इससे कई जटिलताएं हो सकती हैं और शिशु को बाद में चुप कराना या शांत कराना मुश्किल हो सकता है।

ऐसे में शिशु को साफ करके डायपर बदलते वक्त इन जरूरी बातों का ध्यान रखें:

  • शिशु को छूते या संभालते वक्त अपने हाथों को अच्छी तरह से साफ कर लें।
  • अपने शिशु को किसी चेंजिंग बोर्ड पर या फिर किसी साफ और सूखे हुए कपड़े पर रखें।
  • शिशु के पैर को उठाएं और सावधानी से गंदा डायपर उतारें।
  • शिशु के जेनिटल्स और नीचे के हिस्से को बेबी वाइप्स, गीला कपड़ा या कॉटन बॉल्स से अच्छी तरह से साफ करें।
  • इस बात का ध्यान रखें कि आप शिशु को आगे से लेकर पीछे तक अच्छी तरह से साफ करें खासकर अगर आपकी बेबी गर्ल है तो जेनिटल्स से लेकर ऐनस तक साफ करें अगर आप इसका उलट करते हैं तो यूटीआई (यूरिनरी ट्रैक्ट इंफेक्शन) का खतरा हो सकता है।
  • आप चाहें तो शिशु को डायपर क्रीम या ऑइंटमेंट लगा सकती हैं। इससे शिशु का डायपर रैश भी भर जाएगा। लेकिन ध्यान रखें कि यह क्रीम आपके शिशु के लिए सुरक्षित हो।
  • अब शिशु के पैरों को सावधानी से ऊपर उठाएं और एक एक नया, साफ डायपर शिशु को पहनाएं और अच्छे से बांध दें।
  • इसके बाद अपने हाथों को अच्छे से साबुन पानी से धोएं, सुखाएं और मॉइश्चराइज कर लें, उसके बाद ही दोबारा शिशु को छूएं।
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शिशु को नहलाना - Baby ko nahlana

आपके लिए यह जानना बेहद जरूरी है कि ज्यादातर शिशु जन्म के बाद गंदे-गंदे से लगते हैं लेकिन ऐसा सिर्फ ऐमनिओटिक फ्लूइड की वजह से होता है जो उन्हें गर्भावस्था के दौरान जीवित रहने में मदद करता है। अस्पताल में जन्म के बाद नर्स शिशु को अच्छे से साफ करती हैं और अगर आप उनसे कहें तो वह आपको यह सिखा भी सकती हैं कि शिशु को सही तरीके से स्पंज बाथ कैसे देना है। शिशु के जन्म के बाद शुरुआती एक महीने तक जब तक शिशु का गर्भनाल सूख कर अपने आप गिर नहीं जाता शिशु को सिर्फ स्पंज बाथ ही दें। अगर शिशु का खतना (सर्कमसीजन) किया गया है तब भी यही नियम लागू होता है।

स्पंज बाथ के लिए आपको निम्नलिखित चीजों की जरूरत होगी:

  • एक साफ और सौम्य गीला कपड़ा
  • कॉटन बॉल्स
  • एक सौम्य बिना सेंट वाला बेबी सोप और शैंपू
  • सॉफ्ट तौलिया
  • साफ डायपर
  • शिशु के साफ कपड़े
  • फ्लैट और क्लीन सतह

शिशु को सुरक्षित तरीके से स्पंज बाथ देने के लिए इन तरीकों को अपनाएं:

  • शिशु को नहलाने के लिए एक समतल, सुरक्षित और साफ सतह चुनें।
  • ध्यान रखें कि जिस कमरे में आप शिशु को नहलाएं वह गर्म हो ताकि शिशु को ठंड न लग जाए।
  • छोटे से टब या सिंक को साफ और गुनगुने पानी से भर लें (अपनी कोहनी की मदद से पानी का तापमान चेक कर लें). जब शिशु को नहलाना हो तो उस पानी से भरे टब को समतल जगह के बगल में रख लें।
  • उसी समतल सतह के पास तौलिया रखें और वहीं पर शिशु के कपड़े खोलें।
  • सबसे पहले कॉटन बॉल को पानी में डुबोएं और उससे शिशु की आंखें साफ करें। लेकिन कोई साबुन इस्तेमाल न करें।
  • इसके बाद शिशु की नाक, कान और चेहरा साफ करें और फिर सूखे कपड़े से चेहरे को हल्के हाथ से पोंछ दें।
  • अब शिशु के शरीर को साफ करने के लिए साबुन पानी का इस्तेमाल करें। इस दौरान अंडरआर्म्स, कान के पीछे और हड्डियों के जोड़ वाले हिस्से की सफाई पर ज्यादा ध्यान दें।
  • अपने शिशु के जेनिटल्स की सफाई का भी पूरा ध्यान रखें और आगे से पीछे की ओर सफाई करें खासकर अगर आपकी बेबी गर्ल है तो।

जब आपका शिशु इतना बड़ा हो जाए कि वह टब में नहाने के लिए तैयार है तो आप शिशु को 1 साल का होने तक उसे हफ्ते में 2 से 3 बार नहला सकती हैं। अपने शिशु को बाथटब में नहलाने के दौरान इन बातों का ध्यान रखें:

  • ध्यान रहे कि आप शिशु को टब में आराम से और सौम्य तरीके से नहलाएं खासकर शुरुआत में।
  • आप शिशु को बाथरूम की बजाए किसी गर्म कमरे में भी नहला सकती हैं।
  • ध्यान रहे कि शिशु के नहाने का पानी गुनगुना होना चाहिए गर्म नहीं।
  • नहलाते वक्त शिशु को सीधा खड़ा रखें और उसके सिर, गर्दन और पीठ को सही तरीके से सपोर्ट दें।
  • शिशु को टब में नहलाते वक्त सबसे पहले उसके पैरों को पानी में डालें।
  • नहलाते वक्त शिशु से बात करते रहें या गाना गुनगुनाते रहें ताकि शिशु रोए नहीं और उसे आराम मिले।
  • इस बात का ध्यान रखें कि शैंपू या साबुन का पानी शिशु की आंख, नाक या कान में न चला जाए।
  • हमेशा शिशु को नहलाते वक्त पहले चेहरे और सिर से शुरुआत करें और फिर बाकी शरीर की सफाई करें।
  • शिशु नहलाते वक्त उसके जेनिटल्स की सफाई का भी पूरा ध्यान रखें।
  • नहलाने के तुरंत बाद शिशु को साफ और सूखे तौलिए में लपेट दें ताकि उसे ठंड न लगे।
  • शिशु को नहलाते वक्त कभी भी टब में अकेला न छोड़ें। अगर आपको बीच में वहां से निकलना भी पड़े तो शिशु को साफ तौलिए में लपेटकर अपने साथ ही बाहर ले आएं।

शिशु के गर्भनाल की गांठ की सफाई - Baby ke umbilical stump ki safai

गर्भनाल ही वह स्त्रोत है जिसके जरिए गर्भावस्था के दौरान जब शिशु गर्भ में होता है तो उसे मां के शरीर से पोषण प्राप्त होता है। डिलिवरी के बाद जब शिशु गर्भ से बाहर आता है तो गर्भनाल को काटकर दबा दिया जाता है। गर्भनाल की यह गांठ शिशु के जन्म के बाद 4 हफ्ते के अंदर सूखकर खुद-ब-खुद गिर जाती है। लेकिन जब तक यह गर्भनाल की गांठ गिरती नहीं बेहद जरूरी है कि आप इसका पूरा ख्याल रखें।

इस दौरान इन जरूरी बातों का ध्यान रखें:

  • गर्भनाल की यह गांठ साफ और सूखी हुई होनी चाहिए।
  • गर्भनाल गांठ की सफाई के लिए साबुन, पानी या रबिंग अल्कोहल का इस्तेमाल बिलकुल न करें।
  • जब तक गर्भनाल गांठ सूखकर प्राकृतिक रूप से न गिर जाए, शिशु को बाथ टब में बिठाकर न नहलाएं।
  • गर्भनाल की गांठ को हटाने के लिए उसे खींचने या हटाने का प्रयास न करें, उसे प्राकृतिक रूप से खुद ही गिरने दें।
  • शिशु के डायपर को हमेशा गर्भनाल गांठ के नीचे रखें ताकि किसी तरह की नमी या इंफेक्शन का खतरा न रहे।
  • अगर शिशु के नाभि के हिस्से में लालिमा हो जाए, रैशेज हो जाएं या कोई बुरी बदबू आ रही हो तो तुरंत पीडियाट्रिशन से संपर्क करें।
  • एक बार जब शिशु की गर्भनाल गांठ गिर जाए तो उसे संभालकर रखने का चलन है क्योंकि इसमें स्टेम सेल्स और खून होता है। आगे चलकर अगर शिशु को कभी सिकल-सेल बीमारी, ल्यूकेमिया या मेटाबॉलिक बीमारी होती है तो इस स्टेम सेल और खून का इस्तेमाल कर शिशु का इलाज किया जा सकता है।

अपने रोते हुए शिशु को चुप कराना - Baby ko chup karana

अपने नवजात शिशु के साथ इंजॉय करने का सबसे अच्छा तरीका है शिशु के साथ अपनी बॉन्डिंग यानी जुड़ाव को बढ़ाना। यह बॉन्डिंग इसलिए भी जरूरी है क्योंकि इससे शिशु का विकास होता है और माता-पिता के प्रति शिशु का प्यार और लगाव भी बढ़ता है। स्किन-टू-स्किन टच, बाहों के झूले में शिशु को झुलाना, उससे बात करना, शिशु को गाना सुनाना, ब्रेस्टफीडिंग करवाना- इन सभी तरीकों से माता-पिता शिशु के साथ अपने जुड़ाव को बढ़ा सकते हैं। बेहद जरूरी है कि यह भावनात्मक जुड़ाव सिर्फ मां और बच्चे तक सीमित न रहे बल्कि पिता और शिशु के बीच भी बॉन्डिंग होना उतना ही जरूरी है।

इस भावनात्मक जुड़ाव की मदद से जब भी शिशु परेशान हो, रो रहा हो, भूखा हो, गुस्से में हो, डरा हुआ हो या बेचैन हो तो उसे शांत किया जा सकता है। हम आपको कुछ टिप्स के बारे में बता रहे हैं जिसकी मदद से जब भी शिशु रो रहा हो तो आप उसे चुप करा सकती हैं:

 

  • शिशु को अच्छी तरह से कपड़े में लपेट दें। ऐसा करने से शिशु को सुरक्षित महसूस होता है।
  • अपनी गोद में लेकर शिशु को हल्के से हिलाए-डुलाएं या बाहों के झुले में झुलाएं।
  • शिशु के लिए कोई अच्छे रिदम वाला गाना गाएं, इससे भी शिशु चुप हो सकता है।
  • पंखा चला दें, वैक्यूम क्लीनर या कोई ऐसी मशीन जिसकी आवाज धीमी हो लेकिन वह निरंतर आवाज करे।
  • शिशु के पैर, हाथ, पीठ या छाती पर हल्के हाथों से मसाज करें।

शिशु के सोने का तरीका - Baby ka sleeping pattern

नवजात शिशु जन्म के बाद शुरुआती कुछ हफ्तों तक रोजाना दिन में 16 घंटे या इससे ज्यादा समय तक सोता है लेकिन यह नींद एक बार की नहीं होती क्योंकि शिशु बीच-बीच में दूध पीने के लिए उठता है, सूसू-पॉटी करने पर जगता है या फिर किसी और परेशानी की वजह से भी उसकी नींद खुल जाती है। जब तक शिशु 4 से 6 महीने का नहीं हो जाता, शिशु का एक स्लीप पैटर्न नहीं बन पाता है जिस वजह से माता-पिता के लिए अपनी 8 घंटे की नींद एक बार में पूरी करना मुश्किल होता है। ऐसे कई टिप्स हैं जिसके जरिए आप नवजात शिशु को कैसे सुलाना है इस बारे में जान सकती हैं।

शिशु के जन्म के बाद से लेकर 12 महीने तक के समय में आकस्मिक नवजात मृत्यु सिंड्रोम (SIDS) का भी खतरा रहता है इसलिए शिशु की नींद के वातावरण को उसके लिए सुरक्षित बनाना बेहद जरूरी है। लिहाजा शिशु को सुलाते वक्त इन बातों का ध्यान रखें:

  • इस बात का ध्यान रखें कि शिशु आपके साथ आपके ही कमरे में सोए लेकिन आपका बिस्तर शेयर न करे।
  • शिशु को हमेशा उसकी पीठ के बल सुलाएं।
  • इस बात का ध्यान रखें कि शिशु के बिस्तर पर कोई खिलौना, तकिया या कंफर्टर न रखा हो।
  • जब भी शिशु सो रहा हो कमरे में अंधेरा ही रखें और अगर जरूरत हो तो मद्धम रोशनी का इस्तेमाल करें।
  • शिशु के जन्म के बाद शुरुआती कुछ महीनों में बेहद जरूरी है कि आप अपनी भी नींद पूरी करें इसलिए जब भी शिशु सो रहा हो आप भी सोकर अपनी नींद पूरी कर लें।
  • जब शिशु सो रहा हो तो उसे नींद से न जगाएं क्योंकि यह नींद शिशु के विकास के लिए बेहद जरूरी है।

इस बात का पता कैसे लगाएं कि आपका शिशु स्वस्थ है? - Baby healthy hai iska pata kaise lagaye?

अपने शिशु के विकास और स्वास्थ्य पर नजर रखना बेहद जरूरी है। चूंकि आपका शिशु आपसे सीधे तौर पर बात कर अपनी जरूरतें नहीं बता सकता इसलिए अगर शिशु को सेहत से जुड़ी कोई समस्या होगी तो उसके लक्षण शिशु के शरीर पर दिखेंगे। आपको सतर्क रहना होगा ताकि आपका शिशु हमेशा स्वस्थ रहे और उसका विकास सही तरीके से हो। अपने बच्चे की सेहत को लेकर इन बातों का ध्यान जरूर रखें:

टीकाकरण: ध्यान रहे कि आपके शिशु को उसके सभी जरूरी टीके समय पर लगें। ऐसा करने से यह सुनिश्चित हो जाएगा कि आपके शिशु को कोई गंभीर बीमारी नहीं होगी। सबसे पहले टीके की शुरुआत हेपेटाइटिस बी वैक्सीन से होती है जो जन्म के 24 घंटे के अंदर दिया जाता है। इसके बाद रोटावायरस, काली खांसी, डिप्थीरिया, टेटनस, पोलियो और न्यूमोकॉकल टीका के 3 राउंड (जिसे आमतौर पर दूसरे महीने में, चौथे महीने में और छठे महीने में) दिए जाते हैं। फ्लू, चिकन पॉक्स, मीजल्स, मम्प्स, रूबेला, हेपेटाइटिस ए आदि के टीके जैसे-जैसे शिशु बड़ा होता जाता है उसे दिए जाते हैं।

डॉक्टर का चेकअप: अपने पीडियाट्रिशन के पास जाकर शिशु का रेग्युलर बेसिस पर चेकअप करवाना न भूलें। भले ही आप फोन पर डॉक्टर के साथ संपर्क में रहें, उसके बावजूद डॉक्टर के साथ अपॉइंटमेंट जरूरी है। ऐसा इसलिए क्योंकि डॉक्टर द्वारा शिशु का शारीरिक चेकअप किया जाना बेहद जरूरी है ताकि पता चल सके कि शिशु के अंदर सबकुछ ठीक है या नहीं। जन्म से लेकर 6 महीने तक इस तरह के चेकअप के लिए बार-बार जाने की जरूरत पड़ती है।

शिशु के माइलस्टोन की डायरी: बहुत से अस्पताल शिशु के जन्म पर न्यू पैरंट्स को एक माइलस्टोन डायरी देते हैं। लेकिन अगर आपको ऐसी कोई डायरी नहीं मिली तब भी यह जरूरी है कि आप अपने शिशु के शुरुआती 12 या 18 महीनों के विकास से जुड़ी बातें इस डायरी में नोट करें। ऐसा करने से आपको यह पता चलेगा कि आपके शिशु का विकास सही तरीके से हो रहा है या नहीं खासकर शिशु का वजन, शिशु की हाइट, संज्ञानात्मक विकास और मोटर स्किल्स से जुड़े माइलस्टोन्स।

चिकित्सीय जरूरतें: बहुत सी ऐसी दवाइयां और मेडिकल टूल्स हैं जिन्हें शिशु के लिए सुरक्षित माना जाता है। इन दवाइयों को खरीदकर रखने से पहले अपने डॉक्टर से एक बार बात जरूर कर लें। इन दवाइयों और उपकरणों को हमेशा अपने पास रखें जैसे:

  • डिजिटल रेक्टल थर्मोमीटर
  • डायपर रैश क्रीम
  • बेबी सोप
  • बेबी लोशन
  • पेट्रोलियम जेली
  • दवाई पिलाने वाले ड्रॉपर
  • रुई का बंडल
  • इन्फेंट एसटामिनोफेन बुखार के लिए (या कोई और दवा जो आपके पीडियाट्रिशन) ने बतायी हो
  • एंटीबायोटिक क्रीम
  • ट्वीजर या शिशु के नाखून काटने के लिए नेल क्लिपर

और आखिर में इन बातों का रखें ध्यान - Takeaway

नवजात शिशु या छोटे बच्चों का ध्यान रखना भले ही आपको अभी मुश्किल और अपरिहार्य लग रहा हो लेकिन ये बात याद रखनी जरूरी है कि ज्यादातर न्यू पैरंट्स इन सारी चीजों से गुजरते हैं जिनसे आप अभी गुजर रहे हैं। इसलिए सभी चीजों के बारे में पहले से जानकारी रखें, अपने डॉक्टर से संपर्क बनाए रखें और वैसे पैरंट्स जो अनुभवी हैं उनसे इस बारे में बात करते रहें। याद रखें कि जितने भी सवाल आपके दिमाग में हों सभी का जवाब जान लें। जब बात शिशु की सुरक्षा और खैरियत की आती है तो कोई भी सवाल गलत या बेकार का सवाल नहीं होता।

ऐसे में अपने शिशु का पालन-पोषण करते वक्त इन बातों का ध्यान रखें:

  • माता और पिता दोनों के लिए जरूरी है कि वे शिशु के साथ शुरुआत में ही अपना जुड़ाव मजबूत कर लें। ऐसा न सोचें कि मां और बच्चे के बीच जुड़ाव होना जरूरी है, पिता के साथ न भो हो तो क्या फर्क पड़ता है।
  • अपने साथ-साथ शिशु के लिए भी हर दिन की रूटीन बना लें। जितनी जल्दी हो सके शिशु के खाने-पीने, शारीरिक गतिविधि करने और सोने के समय को नियमित कर दें। शिशु के जन्म के बाद दूसरे ही हफ्ते में आप चाहें तो शिशु के लिए बेडटाइम रूटीन की शुरुआत कर सकती हैं।
  • शिशु के जन्म के बाद शुरुआती दिनों में ही परिवार के सदस्यों और दोस्तों की मदद लेना अच्छा रहता है क्योंकि इससे माता-पिता का बोझ कुछ कम होता है और इससे शिशु भी समुदाय और समाज के साथ जुड़ाव महसूस करने लगता है। अगर शिशु से बड़ा कोई भाई-बहन हो तो उसे भी शिशु के कामों में इंगेज करें ताकि वे शिशु से ईर्ष्या करने की बजाए खुद को परिवार में सम्मिलित समझें।
  • शिशु के जन्म के बाद पैरंट्स की जीवनशैली में काफी बदलाव आता है इसलिए माता-पिता दोनों को डिप्रेशन होने का खतरा रहता है। इसलिए जरूरी है कि पैरंट्स इससे इतर कुछ समय निकालें और अपने रिश्ते को भी बेहतर बनाने की कोशिश करें।
  • डॉक्टर या अनुभवी माता-पिता से बात करें, सामाजिक बनें और नए पैरंट्स के साथ समय बिताएं। इससे भी आपको अपने शिशु के विकास को समझने में मदद मिलेगी।

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