जड़ी-बूटियां आमतौर पर पौधों से प्राप्त होती हैं। पूरे पौधे को भी एक जड़ी-बूटी के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है और उसका कोई एक हिस्सा भी जैसे पौधे से प्राप्त होने वाला फल, फूल, बीज, शाखा, जड़ या पत्ते आदि। जड़ी बूटियों का इस्तेमाल विभिन्न कार्यों के लिए किया जाता है, जैसे भोजन, सप्लीमेंट, स्वादिष्ट व सुगंधित बनाने वाले मसाले आदि। इतना ही नहीं जड़ी बूटियों का इस्तेमाल दवाएं बनाने और संरक्षकों के रूप में भी किया जाता है। जड़ी-बूटियां अलग-अलग प्रकार की होती हैं, जिनमें से कुछ को ताजा और अन्य को सुखाकर इस्तेमाल किया जाता है। जबकि कुछ प्रकार की जड़ी बूटियों को ताजा व सुखा कर दोनों  प्रकार से इस्तेमाल किया जा सकता है। इसी कारण से इन जड़ी बूटियों से बनी दवाएं टी-बैग, टेबलेट, कैप्सूल और सिरप के रूप में मिलती हैं।

भोजन में इस्तेमाल की जाने वाली जड़ी बूटियों को पाक जड़ी-बूटियां (Culinary herbs) कहा जाता है। इनमें मुख्य रूप से तेल, पाउडर और पेस्ट शामिल हैं, जिनमें से कुछ को खाना बनाते समय डाला जाता है जैसे पेस्ट व तेल, जबकि अन्य को खाना बनाने के बाद ऊपर से छिड़काव किया जाता है जैसे पाउडर।

इस लेख में जड़ी बूटियों से संबंधी सभी जानकारियां, इस्तेमाल, लाभ और औषधीय गुणों के बारे में बताया गया है।

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  1. खाने में इस्तेमाल की जाने वाली जड़ी-बूटियां - Herbs used in food in Hindi
  2. जड़ी बूटियों का दवा में उपयोग - Herbs used for medication in Hindi
  3. जड़ी बूटियां इस्तेमाल करने और लेने का तरीका - Ways to take herbs in Hindi

खाने में इस्तेमाल की जाने वाली जड़ी-बूटियां - Herbs used in food in Hindi

पाक जड़ी बूटियां वे होती हैं, जिन्हें खाने में इस्तेमाल किया जाता है। अंग्रेजी भाषा में इन्हें कलनरी हर्ब (Culinary herbs) कहा जाता है। खाने में इस्तेमाल की जाने वाली जड़ी बूटियां आमतौर पर सुगंधित होती हैं, जैसे किसी पौधे के फूल, पत्ते या शाखाएं आदि। इनको भोजन में डालकर उनके स्वाद को बढ़ाया जाता है। विशेषज्ञों के अनुसार आप जिस प्रकार से चाहें पाक जड़ी बूटियों को इस्तेमाल कर सकते हैं। जड़ी बूटियों का इस्तेमाल चटनी, सॉस, सूप, सिरका, मक्खन, सुगंधित तेल, अचार और यहां तक कि मिठाई व पेय पदार्थ बनाने के लिए भी किया जा सकता है। पाक जड़ी बूटियों को ताजा और सुखाकर भी इस्तेमाल किया जा सकता है। हालांकि, भोजन में जड़ी बूटियों का इस्तेमाल करने से पहले आपको कुछ बातों के बारे में जान लेना चाहिए, ताकि आप इनके साथ अच्छे से खाना पका सकें।

  • भोजन में डाली जाने वाली सभी जड़ी बूटियों को खाया नहीं जाता है। इनमें से कुछ को खाना बनाते समय भोजन में डाल दिया जाता है और खाते समय निकाल दिया जाता है। उदाहरण के तौर पर लौंग और तेजपत्ता आदि।
  • अधिकतर सूखी जड़ी बूटियों में अधिक स्वाद व सुगंध होता है, इसलिए इन्हें ताजी जड़ी बूटियों की तुलना में बहुत ही कम डाला जाता है। आमतौर पर यदि भोजन में दो चम्मच पिसी हुई ताजा जड़ी बूटियां डाली जाती हैं, तो उसकी बजाय सिर्फ एक चौथाई चम्मच पिसी हुई जड़ी बूटियां डाली जा सकती हैं।
  • सूखी जड़ी बूटियां आमतौर पर खाना बनाने के बाद डाली जाती हैं या फिर तब डाली जाती हैं, जब खाना आधा पका हुआ हो। कुछ जड़ी बूटियां जल्दी ही भोजन में सुगंध छोड़ देती हैं, इसलिए उन्हें भोजन पकाने के बाद डाला जाता है जबकि अन्य को खाना पकाने से पहले डाला जाता है, क्योंकि उन्हें सुगंध छोड़ने में समय लगता है। इसके अलावा यदि ताजी जड़ी बूटियों को खाना पकने के बाद डाला जाए तो भी वह अच्छे से काम करती हैं। यदि इन जड़ी बूटियों को भोजन में डालने से पहले छोटे-छोटे टुकड़ों में काट लिया जाए, तो यह और भी अच्छा रिजल्ट देती हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि छोटे टुकड़ों में काटने पर ये भोजन में और अधिक फ्लेवर छोड़ती हैं।
  • ताजी जड़ी बूटियों की तुलना में सूखी जड़ी बूटियां अधिक समय तक सुरक्षित रहती हैं। उदाहरण के लिए बीजों को एक साल तक और सूखी जड़ों को लगभग तीन साल तक सुरक्षित रखा जा सकता है। सूखी जड़ी बूटियों को पीसकर भी लगभग एक साल तक रखा जा सकता है। हालांकि, समय के साथ-साथ जड़ी बूटियों की सुगंध व स्वाद कम हो सकता है।
  • जड़ी बूटियों के पत्ते जो डंठल से जुड़े या बंधे होते हैं, वे भोजन में खुले पत्तों की तुलना में अधिक सुगंध व स्वाद छोड़ते हैं।

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myUpchar के डॉक्टरों ने अपने कई वर्षों की शोध के बाद आयुर्वेद की 100% असली और शुद्ध जड़ी-बूटियों का उपयोग करके myUpchar Ayurveda Urjas Capsule बनाया है। इस आयुर्वेदिक दवा को हमारे डॉक्टरों ने कई लाख लोगों को सेक्स समस्याओं के लिए सुझाया है, जिससे उनको अच्छे प्रभाव देखने को मिले हैं।

जड़ी बूटियों का दवा में उपयोग - Herbs used for medication in Hindi

जड़ी बूटियों और अन्य हर्बल उत्पादों का दवाओं के रूप में या दवाएं बनाने के लिए सामग्री के रूप में लंबे समय से इस्तेमाल किया जा रहा है। नेशनल हेल्थ पोर्टल इंडिया, के अनुसार दुनिया की एक बड़ी आबादी अब भी प्राथमिक स्वास्थ्य समस्याओं के लिए हर्बल उत्पादों का सहारा लेती है। दुनिया भर में लगभग 30 प्रतिशत पेड़-पौधे ऐसे हैं, जिनका कभी ना कभी किसी ना किसी स्वास्थ्य समस्या के इलाज में इस्तेमाल किया गया है।

21वीं सदी में अमेरिका और यूरोप के देशों में हर्बल दवाओं की तरफ लोगों की रुचि काफी बढ़ी है। अधिकतर लोग हर्बोलॉजी को काफी सक्रिय रूप से पढ़ते हैं, ताकि वे समस्याओं का घर पर ही इलाज कर सकें।

जड़ी बूटियों में मौजूद सक्रिय सामग्री दवाएं बनाने में मदद करती हैं। कुछ अनुमान बताते हैं कि भारत व चीन में बनने वाली दवाओं में लगभग 80 प्रतिशत और अमेरिका में लगभग 25 प्रतिशत सामग्री पेड़-पौंधों से ही प्राप्त की जाती है। पेड़-पौंधों से सामग्री लेकर बनाई गई दवाओं में निम्न शामिल हैं -

  • क्विनाइन - जिसे सिन्कोना की छाल से प्राप्त किया जाता है।
  • एस्पिरिन - यह दवा विलो नामक पौधे की छाल से प्राप्त की जाती है।
  • मॉर्फिन - इस दवा को ओपियम पॉपी (अफीम) के पौधे से प्राप्त की जाती है।

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  1. क्या भारत में हर्बल दवाओं को विनियमित किया जाता है? - Are herbal medicines regulated in India in Hindi?
  2. हर्बल दवाएं कितनी प्रभावी होती हैं - How effective are herbal medicines in Hindi
  3. जड़ी बूटियां और हर्बल दवाएं कितनी सुरक्षित हैं - Safety of herbs and herbal medicine in Hindi
  4. जड़ी बूटियों से बनी दवाओं के प्रकार - Herbal medicine classification in Hindi

क्या भारत में हर्बल दवाओं को विनियमित किया जाता है? - Are herbal medicines regulated in India in Hindi?

यदि आप जड़ी बूटियों से बनी कोई दवा खरीदते हैं, तो यह बात अवश्य ध्यान में रखें कि एफडीए (FDA) दवाओं के तहत इनका विनियमन नहीं करता है, इसके बजाय इन्हें खाद्य एवं पूरक (फूड एंड स्लीीमेंट) के तहत विनियमित किया जाता है। इसका मतलब है कि निर्माताओं को इतने कठोर दिशानिर्देशों का पालन करने की आवश्यकता नहीं पड़ती है, जितना की वास्तविक दवाएं बनाने में करनी पड़ती है। इसके परिणामस्वरूप हर्बल दवाएं बनाने का कोई स्थिर फॉर्मूला नहीं होता है और यह हर हर्बलिस्ट के अनुसार अलग-अलग संयोजन के साथ बनाई जा सकती हैं। (और पढ़ें - हींग के फायदे)

इसके अलावा जड़ी बूटियों से बनी दवाएं भारत में ड्रग एंड कॉस्मेटिक एक्ट (Drug and Cosmetics Act) के कानून 1940 और 1945 के तहत विनियमित की जाती हैं। हालांकि, यह ध्यान रखना जरूरी है कि यह अधिनियम सिर्फ पारंपरिक चिकित्सा प्रणाली की दवाओं को ही विनियमित करता है जैसे आयुर्वेद, सिद्ध और यूनानी आदि। स्थानीय हर्बल दवाएं और लोगों द्वारा जड़ी बूटियों से बनाई गई दवाएं इस अधिनियम के तहत विनियमित नहीं होती हैं। आयुष मंत्रालय भारत में हर्बल दवाओं के उत्पादन व मार्केटिंग को नियमित करता है। आयुष (AYUSH) आयुर्वेद, योग, न्यूरोपैथी, यूनानी, सिद्ध और होम्योपैथी शब्दों से मिलकर बना है।

हालांकि, हर देश में दवाएं विनियमित करने के अलग-अलग मानदंड होते हैं, इसलिए हर्बल दवाओं व उत्पादों को विनियमित करना थोड़ा मुश्किल हो जाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा किए गए एक पुराने शोध में पता चला था कि लगभग 129 देश हैं, जिन्होनें हर्बल दवाओं को लेकर निम्न समस्याएं व्यक्त की थी -

  • दवा पर शोध संबंधी पर्याप्त जानकारी व डेटा उपलब्ध नहीं
  • राष्ट्रीय स्वास्थ्य अधिकारियों में विशेषज्ञता की कमी
  • हर्बल दवाओं व उत्पादों को विनियमित करने के लिए उचित नियंत्रण की कमी
  • हर्बल दवाओं व उत्पादों की प्रभावशीलता और सुरक्षा की जांच व परख में कमी
  • दवा की जांच करने की विधियों का अभाव

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हर्बल दवाएं कितनी प्रभावी होती हैं - How effective are herbal medicines in Hindi

काफी जड़ी बूटियां ऐसी हैं, जो एंटीमाइक्रोबियल, एंटीनोसिसेप्टिव, एंटी-इंफ्लेमेटरी और एंटीऑक्सीडेंट जैसे चिकित्सीय प्रभाव प्रदान करती हैं। अदरक जैसी जड़ी बूटी के प्रभाव आमतौर पर मानव शरीर में भी देखे जा सकते हैं, जिनका नैदानिक परीक्षणों के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। हालांकि, जब अधिकतर जड़ी बूटियों की प्रभावशीलता या हर्बल उत्पादों के सेवन की बात आती है, तो शोध से पर्याप्त प्रमाण प्राप्त नहीं होते हैं। (और पढ़ें - लौंग के फायदे)

विशेषज्ञों के अनुसार हर्बल उत्पादों का सबसे प्रमुख लाभ यह होता है कि उनमें काफी संख्या में सक्रिय तत्व पाए जाते हैं। साथ ही ये तत्व एक-दूसरे के प्रभाव को प्रबल बनाते हैं और परिणामस्वरूप जड़ी बूटी से अधिक लाभ मिलता है। जड़ी बूटियों से बनी दवाओं का नकारात्मक पक्ष यह है कि इनमें काफी सारे सक्रिय तत्व होते हैं, जिससे यह निर्धारित करना मुश्किल हो जाता है कि यह जड़ी बूटी वास्तव में क्या काम करती है। जड़ी बूटी से रस को निकालते समय ध्यान रखना चाहिए कि रस को कहां और कब निकालना उचित है और निकालते समय यह किसी अन्य पदार्थ, वातावरणीय कारक या प्रदूषक के संपर्क में तो नहीं आया है। क्योंकि तापमान बढ़ना, बाढ़ आना और सूखा पड़ना जैसी कुछ स्थितियां हैं, जो जड़ी बूटी में मौजूद फाइटोकेमिकल्स के स्तर में बदलाव कर सकती हैं, जिससे जड़ी बूटी की प्रभावशीलता भी प्रभावित हो जाती है। (और पढ़ें - दालचीनी के फायदे)

किसी जड़ी बूटी में मौजूद सभी तत्वों की पहचान करने में दिक्कत और फाइटोकेमिकल के स्तरों में बार-बार बदलाव होने के कारण उन्हें एलोपैथिक दवाओं की तरह माननीकृत करना लगभग असंभव हो जाता है। यहां तक कि अगर जड़ी बूटी में मौजूद किसी एक तत्व को माननीकृत भी कर दिया जाए, तो बाजार में बिकने वाले अलग-अलग कंपनी के हर्बल उत्पादों में उस पदार्थ की समान मात्रा होने की गारंटी नहीं है। (और पढ़ें - जायफल के फायदे)

जड़ी बूटियां और हर्बल दवाएं कितनी सुरक्षित हैं - Safety of herbs and herbal medicine in Hindi

अधिकतर लोग सोचते हैं कि जड़ी बूटियां व उनसे बने हर्बल उत्पाद प्राकृतिक हैं, तो उनका सेवन करना सुरक्षित है। हालांकि, सभी मामलों में यह सच नहीं है।

  • हेनबेन और बेलाडोना जैसी जड़ी बूटियों में विषाक्त पदार्थ होते हैं, जिनका सेवन करने से शरीर में एलर्जी या टॉक्सिक रिएक्शन हो सकता है।
  • हर जड़ी बूटी के सेवन करने की सुरक्षा उसकी मात्रा पर निर्भर करती है, यदि किसी भी हर्बल उत्पाद को सामान्य मात्रा से अधिक लिया जाए तो उससे स्वास्थ्य पर स्थायी या अस्थायी दुष्प्रभाव पड़ सकते हैं।
  • चूंकि जड़ी-बूटियों में सक्रिय जैविक घटक होते हैं, इसलिए वे पारंपरिक दवाओं के साथ प्रतिक्रिया करते हैं। विशेषज्ञों के अनुसार हर्बल उत्पादों से होने वाले दुष्प्रभावों के अधिकतर मामले वे होते हैं, जिनमें लोग बिना चिकित्सक की सलाह के दवाएं लेते हैं।
  • यदि आप पर्याप्त रूप से अनुभवी नहीं हैं, तो आप एक जड़ी बूटी की गलत पहचान सकते हैं या दूषित या मिलावटी जड़ी-बूटियों को खरीद सकते हैं, जिससे आप बीमार पड़ सकते हैं। (और पढ़ें - एलर्जी की आयुर्वेदिक दवा)

इसलिए, किसी भी जड़ी बूटी को किसी भी रूप में लेने से पहले एक अनुभवी चिकित्सक या हर्बलिस्ट से परामर्श करना हमेशा सबसे अच्छा होता है। चिकित्सक सबसे पहले आपके स्वास्थ्य, उम्र और शारीरिक वजन आदि के बारे में पूछेंगे। यदि आपको पहले से ही कोई अन्य बीमारी है या आप कोई अन्य दवा लेते हैं, तो उनके बारे में भी पूछा जाएगा। इन सभी सवालों के जवाब मिलने के बाद ही चिकित्सक आपको सही हर्बल दवा उचित मात्रा में देंगे, ताकि इससे आपको कोई दुष्प्रभाव न हो।

हर्बल दवा के प्रमुख दुष्प्रभावों में से एक पर्यावरण के लिए है। हर्बल दवाओं और उपचारों के बढ़ते उपयोग के कारण कुछ जड़ी बूटियों की अधिक पैदावार हुई है। कुछ अध्ययनों से पता चलता है कि ऐसे कई औषधीय पौधे हैं जिनकी अधिक और लापरवाह तरीके से कटाई होने के कारण उनका विलुप्त होने का खतरा बढ़ गया है।

(और पढ़ें - शरीर का वजन बढ़ाने के उपाय)

जड़ी बूटियों से बनी दवाओं के प्रकार - Herbal medicine classification in Hindi

जड़ी बूटियों की उत्पत्ति, विकास और उपयोग के प्रकार के आधार पर, विश्व स्वास्थ्य संगठन ने हर्बल दवाओं को निम्नलिखित श्रेणियों में विभाजित किया है -

  • देसी हर्बल दवाएं -
    यदि कोई दवा या उपचार सामग्री को किसी विशेष क्षेत्र में लंबे समय से इस्तेमाल की जा रहा हो, तो उसे देसी दवा कहा जा सकता है। इन हर्बल दवाओं की विधियों का आमतौर पर किसी को पता नहीं होता है और उस क्षेत्र के लोग उसे स्वतंत्र रूप से इस्तेमाल करते रहते हैं। यदि इन दवाओं को व्यवसायिक रूप से बेचा जाना है, तो उन्हें सरकार द्वारा बनाए गए मानकों को पूरा करना होगा। ये मानक किसी भी दवा की सुरक्षा और प्रभावकारिता को देखते हुऐ बनाए जाते हैं।
     
  • विभिन्न प्रणालियों में हर्बल दवाएं -
    यह एक श्रेणी है, जिसमें उन दवाओं को रखा जाता है, जिन्हें आयुर्वेद, यूनानी और सिद्ध सहित कई दवा प्रणालियों में प्रलेखित किया जा चुका है। कुछ पारंपरिक दवा प्रणालियां जिनमें जड़ी बूटियों से बनी दवाओं को शामिल किया जाता है -
     
    • आयुर्वेद -
      भारत में आयुर्वेद को हजारों सालों से इस्तेमाल में लाया जा रहा है। इस दवा प्रणाली में विभिन्न रोगों के उपचार के लिए हर्बल दवाओं को पाउडर, मिक्सचर, टेबलेट और सिरप के रूप में दिया जाता है। जड़ी बूटियों के साथ-साथ आयुर्वेद आहार, भोजन और स्वस्थ जीवनशैली अपनाने पर भी ध्यान देता है। इसके अलावा आयुर्वेदिक उपचार में कई प्रकार की उपचार प्रक्रियाएं भी की जाती हैं, जैसे एनिमा, मालिश, पसीना बहाना और ओलिएशन थेरेपी आदि शामिल हैं। इन शारीरिक प्रक्रियाओं की मदद से शरीर से विषाक्त पदार्थों को निकाला जाता है और शरीर में वात, पित्त व कफ का संतुलन बनाया जाता है। (और पढ़ें - थेरेपी क्या है?)
       
    • ट्रेडिश्नल चाइनीज मेडिसिन (टीसीएम) -
      आयुर्वेद की तरह टीसीएम भी एक उपचार प्रणाली है, जिसमें कई जड़ी बूटियों से बनी दवाओं का इस्तेमाल किया जाता है। हालांकि, जिस प्रकार आयुर्वेद में तीन गुणों (वात, पित्त और कफ) पर ध्यान दिया जाता है, टीसीएम में “यीन” और “यैंग” नामक दो शक्तियों का संतुलन बनाने पर ध्यान दिया जाता है। टीसीएम के अनुसार यीन और यैंग ब्रम्हांड में मौजूद दो विरोधी ऊर्जाएं हैं।
       
    • यूनानी मेडिसिन -
      यह ग्रेको-अरबी दवा प्रणाली है, जो मध्य पूर्व और दक्षिण एशिया से संबंधित है। 25000 साल पहले ग्रीस में उत्पन्न हुई इस दवा प्रणाली के 90 प्रतिशत उत्पाद जड़ी बूटियों से ही बने होते हैं। इसमें बाकी के उत्पाद पशुओं और खनिजों से प्राप्त किए जाते हैं। इस दवा प्रणाली में व्यक्ति की पाचन शक्ति और आहार के साथ-साथ उसके स्वभाव को भी विशेष रूप से महत्व दिया जाता है। इस दवा प्रणाली के अनुसार जो लोग स्वस्थ आहार लेते हैं, उनका स्वभाव अच्छा रहता है और अच्छा आहार न लेने पर उनका स्वभाव भी बिगड़ जाता है। यूनानी दवाएं इस संतुलन को बनाए रखने में मदद करती हैं और इस प्रकार से व्यक्ति का इलाज हो जाता है। (और पढ़ें - संतुलित आहार चार्ट)
       
    • सिद्ध -
      यह भी एक भारतीय दवा प्रणाली है। माना जाता है कि सिद्ध का जन्म लगभग 3 से 10वीं शताब्दी ईसा पूर्व भारत के तमिलनाडु में  हुआ थी। यह दवा प्रणाली आयुर्वेद से काफी मिलती-झुलती है और कुछ लोग इसे आयुर्वेद से भी पुरानी दवा प्रणाली मानते हैं। सिद्ध चिकित्सा भी तीन गुणों के सिद्धांत पर काम करती है, जिन्हें वथम, पिथम और कफम कहा जाता है। सिद्ध दवा प्रणाली में धातुओं और खनिजों का उपयोग भी किया जाता है, जैसे पारा, अभ्रक और सल्फर। सिद्ध में "मानिदा मरुथुवं" नामक एक श्रेणी भी है, जिसमें जड़ी बूटियों से बनी दवाओं व उत्पादों का इस्तेमाल किया जाता है। (और पढ़ें - सिद्ध चिकित्सा के फायदे)
       
    • होम्योपैथी -
      होम्योपैथिक दवाएं सिर्फ जड़ी बूटियों से ही नहीं बनती हैं, इसके कई उत्पाद पशुओं, खनिजों और अन्य दवाओं से भी बनते हैं। इन पदार्थों को इकट्ठा करने और उनसे दवाएं बनाने का सही तरीका "होम्योपैथिक फार्माकोपिया" में लिखा गया है। होम्योपैथिक दवाएं आमतौर पर गोली या बूंदों के रूप में दी जाती हैं, जिनकी खुराक को पानी आदि के साथ काफी पतला करके लिया जाता है।
       
    • वेस्टर्न हर्बलिज्म -
      पश्चिमी पारंपरिक हर्बल दवाओं को बनाने के लिए पौधों की टहनियों, फूल, पत्तों और जड़ों का इस्तेमाल किया जाता है। इस दवा प्रणाली में भूमध्यसागरीय, मूल अमेरिकी और ऊतरी यूरोप की जड़ी बूटियों का इस्तेमाल किया जाता है। भूमध्यसागरीय जड़ी बूटियों में अधिकतर पाक जड़ी बूटियां और वाष्पशील तेल शामिल हैं। वहीं मूल अमेरिकी जड़ी बूटियों में जड़ें व छाल और उतरी यूरोप की जड़ी बूटियों में पत्ते व पौधों के हरे हिस्से शामिल हैं। पश्चिमी हर्बलिज्म विभिन्न सभ्यताओं से प्रेरित है जिसमें यूनानी, मिस्र, मध्य पूर्व, ब्रिटिश द्वीप समूह और रोमन शामिल हैं। इस दवा प्रणाली की जड़ी बूटियों में मौजूद चिकित्सीय गुणों का पता लगाने के लिए दुनियाभर में निरंतर शोध किए जा रहे हैं। (और पढ़ें - गुड़हल के फायदे)
       
  • संशोधित हर्बल दवाएं -
    मोडिफाइड हर्बल मेडिसिन में हर्बल दवाएं शामिल हैं, जिनके रूप, खुराक और लेने के तरीके आदि में बदलाव कर दिए जाते हैं। संशोधित हर्बल दवाओं में आमतौर पर राष्ट्रीय दिशानिर्देशों और आवश्यकताओं को पूरा करना पड़ता है। (और पढ़ें - हर्बल चाय के फायदे)
     
  • आयतित सामग्री और जड़ी बूटियों से मिलकर बने उत्पाद -
    इस श्रेणी में हर्बल दवाओं, कच्चा माल और जड़ी बूटियों युक्त सभी उत्पादों को शामिल किया जाता है। इन उत्पादों का उस देश में पंजीकरण और विपणन हो जाना चाहिए, जिस देश में वे बने होते हैं। जब इन उत्पादों को दूसरे देशों में निर्यात किया जाता है, तो इन पर किए गए सारे शोध का डाटा आयातक देश की सरकार को देना पड़ता है। इसके अलावा उत्पाद को आयात करने वाले देश के मानकों को भी पूरा करना पड़ता है।

(और पढ़ें - पोषक तत्वों के प्रकार)

जड़ी बूटियां इस्तेमाल करने और लेने का तरीका - Ways to take herbs in Hindi

जड़ी बूटियों का सेवन कई अलग-अलग प्रकार से किया जा सकता है, जो पूरी तरह से आपकी आवश्यकता और डॉक्टर द्वारा दिए गए सुझाव पर निर्भर करता है। निम्न कुछ सबसे आम तरीके बताए गए हैं, जिनकी मदद से जड़ी-बूटियां ली जाती हैं -

  • भोजन द्वारा लेना -
    इसमें मुख्य रूप से पाक जड़ी बूटियां शामिल हैं, जैसे अदरक, काली मिर्च और हल्दी आदि। पाक जड़ी बूटियों का इस्तेमाल आमतौर पर भोजन के स्वाद को बढ़ाने या कुछ बदलाव करने के लिए किया जाता है। हालांकि, भोजन में डाली गई इन जड़ी बूटियों की मात्रा बहुत कम होती हैं, जिनसे कोई औषधीय लाभ नहीं मिलता है। (और पढ़ें - चेहरे पर हल्दी लगाने के फायदे)
     
  • इनफ्यूजन या चाय बनाना -
    कुछ जड़ी बूटियां चाय या इनफ्यूजन प्रक्रिया के रूप में ली जाती हैं, जो हर्बल उत्पाद लेने का प्रमुख तरीका माना जाता है। इसमें जड़ी बूटी को कुछ निश्चित समय तक पानी में उबाला जाता है, कुछ जड़ी बूटियों को कम तो अन्य को अधिक समय तक उबाला जाता है। हालांकि, किस जड़ी बूटी को कितने समय तक और कितनी आंच में रखना है यह सब हर्बल उत्पादों के विशेषज्ञ (हर्बलिस्ट) से पूछ लेना चाहिए। ऐसा इसलिए क्योंकि कुछ प्रकार की जड़ी बूटियों को सामान्य से अधिक समय तक उबालने से उसमें विषाक्त प्रभाव विकसित हो जाते हैं। (और पढ़ें - मसाला चाय के फायदे)
     
  • काढ़ा बनाना -
    काढ़ा आमतौर पर ऐसी जड़ी बूटियों का बनाया जाता है, जो सख्त होती हैं जैसे किसी पौधे की जड़ या छाल आदि। काढ़ा बनाने के लिए जड़ी बूटी को पानी, दूध या अन्य किसी तरल में कुछ निश्चित समय के लिए उबाला जाता है। जैसे ही यह गर्म होता है, तो जड़ी बूटी में मौजूद वाष्पशील यौगिक गर्म पानी में मिलने लगते हैं और फिर उसका सेवन करने से चिकित्सीय लाभ मिलते हैं। (और पढ़ें - जड़ी बूटियों के पानी के फायदे)
     
  • कैप्सूल और टेबलेट -
    किसी जड़ी बूटी को कैप्सूल या टेबलेट की मदद से लेने में कोई परेशानी नहीं है। ये आमतौर पर पूरी तरह से मानकीकृत होते हैं और इनकी प्रभावशीलता व सुरक्षा पर अध्ययन करके ही इन्हें तैयार किया जाता है। कैप्सूल या टेबलेट की मदद से किसी जड़ी बूटी को लेने से आपको खुराक कम या ज्यादा लेने जैसी समस्याएं भी नहीं होती हैं। लेकिन आपको दिन में कितने कैप्सूल या टेबलेट लेनी हैं आदि के बारे सिर्फ डॉक्टर से ही सलाह लेनी चाहिए।
     
  • रस या अर्क -
    जड़ी बूटी के पौधे से निकाला गया रस या अर्क एक विशेष सामग्री होती है, जिसे कई बार किसी अन्य विलायक (घुल जाने वाला पदार्थ) की मदद से पौधे से निकाला जाता है। जड़ी बूटियों के अर्क को निकालने के लिए आमतौर पर पानी, एथेनॉल या क्लोरोफॉर्म का इस्तेमाल किया जाता है।
     
  • टिंक्चर -
    यह भी एक विशेष प्रक्रिया के द्वारा बनाया जाता है। किसी जड़ी बूटी का टिंक्चर बनाने के लिए उसे अल्कोहल या विनेगर में कुछ निश्चित समय के लिए डाला जाता है। अल्कोहल और विनेगर दोनों ही जड़ी बूटी से उसके औषधीय गुण निकाल कर अपने में मिला लेते हैं। (और पढ़ें - सेब के सिरके के फायदे)
     
  • लोशन, मलम या क्रीम -
    जड़ी बूटी के साथ अन्य सामग्री को मिलाकर उसका पेस्ट, जेल या क्रीम बना ली जाती है, जिससे त्वचा पर लगाया या मालिश की जा सके। हालांकि, जड़ी बूटी के साथ मिलाई जाने वाली सामग्री की मात्रा को सामान्य रखना जरूरी होता है। ऐसा इसलिए यदि अन्य सामग्री की मात्रा ज्यादा हो जाती है, तो हो सकता है कि जड़ी बूटी ठीक से काम न कर पाए या फिर सामग्री से कोई दुष्प्रभाव हो जाए। (और पढ़ें - कैलामाइन लोशन के फायदे)
     
  • तेल -
    जड़ी बूटी से औषधीय यौगिकों को निकालने के लिए उसे इनफ्यूजन ऑयल या एशेंशियल तेलों से मिलाया जाता है। एशेंशियल ऑयल की मदद से यौगिकों को निकालना काफी जटिल प्रक्रिया होती है, जिसमें वनस्पति तेलों को भाप और फिर भाप को फिर से तरल रूप में बदला जाता है। ये प्राप्त किए गए तेल पूरी तरह से शुद्ध होते हैं, इनका इस्तेमाल सीधे नहीं किया जाता है। इन्हें किसी अन्य तेल के साथ मिलाकर ही त्वचा पर लगाया या इनका सेवन किया जाता है। इसके विपरीत इनफ्यूजन ऑयल पूरी तरह से शुद्ध नहीं होते हैं, क्योंकि इनको बनाने के लिए किसी अन्य तेल में जड़ी बूटी को डाला जाता है, जिससे उसके सारे औषधीय गुण तेल में मिल जाते हैं। इनफ्यूजन ऑयल के लिए आमतौर पर नारियल या जैतून के तेल का इस्तेमाल किया जाता है। इन तेलों को किसी बोतल में रखकर ठंडे स्थान पर रखा जाता है। इस्तेमाल करने से पहले उन्हें हिलाया जाता है ताकि सामग्री तेल में अच्छे से मिल जाए और आपको अच्छा रिजल्ट मिल सके।

(और पढ़ें - तेल के फायदे)

रजत भस्म

Dr. Laxmidutta Shukla
BAMS,MD
48 वर्षों का अनुभव
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