जब बच्चा लगातार रोता है और कुछ भी खाने में आनाकानी करने लगता है, तो ये स्थिति हर माता-पिता को परेशान कर देती है। कई बार बच्चे के लगातार रोने का कारण मां-बाप समझ ही नहीं पाते हैं। लेकिन यदि आपका बच्चा खाना खाने से माना कर दें, तो ऐसे में उसके मुंह या पेट में कुछ समस्या हो सकती है। मुंह के पिछले हिस्से में स्थित टॉन्सिल में सूजन के कारण बच्चे को निगलने में परेशानी हो सकती है। इस समस्या को चिकित्सीय भाषा में टॉन्सिलाइटिस कहा जाता है और यह बच्चों के साथ ही बड़ों को भी होती है।
इस लेख में बच्चों में टॉन्सिल के बारे में विस्तार बताया गया है। साथ ही इसमें बच्चों में टॉन्सिल के प्रकार, बच्चों में टॉन्सिल के लक्षण, बच्चों में टॉन्सिल के कारण, बच्चों का टॉन्सिल से बचाव और बच्चों में टॉन्सिल का इलाज आदि विषयों को भी विस्तार से बताया जा रहा है।
(और पढ़ें - बच्चों में देखभाल)
- बच्चों में टॉन्सिल के प्रकार - Bacho me tonsil ke prakar
- बच्चों में टॉन्सिल के लक्षण - Bacho me tonsil ke lakshan
- बच्चों में टॉन्सिल के कारण - Bacho me tonsil ke karan
- बच्चों को टॉन्सिल से बचाव - Bacho ko tonsil se bachav
- बच्चों के टॉन्सिल का इलाज - Bacho ke tonsil ka ilaj
- बच्चों में टॉन्सिल के उपचार - Bacho me tonsil ke upchar
बच्चों में टॉन्सिल के प्रकार - Bacho me tonsil ke prakar
टॉन्सिल्स बच्चे के गले के पिछले हिस्से में दोनों ओर नरम ऊतकों की अंडाकार रूपी गांठ होती है। यह गांठ बच्चे के शरीर में रोगाणुओं को प्रवेश करने से रोकती है। इन ऊतकों को ही टॉन्सिल कहा जाता है और यह संक्रमण से लड़ने के लिए शरीर में एंटीबॉडीज बनने में मदद करती है। टॉन्सिल प्रतिरक्षा प्रणाली में भी अहम भूमिका निभाते हैं, लेकिन कई बार टॉन्सिल्स में भी संक्रमण हो जाता है। जब टॉन्सिल वायरस या बैक्टीरिया से संक्रमित हो जाते हैं, तो इनमें सूजन व जलन होने लगती है। इस स्थिति को ही टॉन्सिलाइटिस कहा जाता है।
(और पढ़ें - बैक्टीरियल वेजिनोसिस के उपचार)
यह एक आम संक्रमण है और बच्चों में बार-बार टॉन्सिलाइटिस की समस्या हो जाती है। इस समस्या के निम्नलिखित दो प्रकार होते हैं।
- क्रोनिक टॉन्सिलाइटिस (Chronic tonsillitis):
इस स्थिति में टॉन्सिल की सूजन लगातार 12 सप्ताह या उससे अधिक समय तक भी बनी रहती है।
(और पढ़ें - वायरल इन्फेक्शन का इलाज)
- रिकरेंट टॉन्सिलाइटिस (Recurrent tonsillitis):
जब एक साल में टॉन्सिलाइटिस थोड़े-थोड़े समय के लिए बार-बार होने लगता है, तो इसको रिकरेंट टॉन्सिलाइटिस कहा जाता है।
(और पढ़ें - गले में सूजन का इलाज)
बच्चों में टॉन्सिल के लक्षण - Bacho me tonsil ke lakshan
व्यस्कों और बच्चों में टॉन्सिलाइटिस के समान लक्षण देखने को मिलते हैं। नीचे बताए गए लक्षणों से आप बच्चों में टॉन्सिल संक्रमण की पहचान कर सकते हैं।
- गले में लालिमा होना:
जब बच्चा मुंह खोलता है तो गले के पिछले हिस्से में टॉन्सिल की जगह पर ललिमा दिखाई देती है। इसमें टॉन्सिल के ऊपर पीली या सफेद परत हो सकती है, यह परत सफेद रक्त कोशिकाओं के इकट्ठा होने या पस होने की ओर संकेत करती है।
(और पढ़ें - गले में जलन का इलाज)
- निगलने में परेशानी होना:
बच्चा कुछ भी खाने व पीने के लिए माना कर सकता है। साथ ही छोटा बच्चा खाने के दौरान निगलने में परेशानी की वजह से रोना शुरू कर देता है। टॉन्सिलाइटिस के समय कुछ निगलते समय जब संक्रमित टॉन्सिल में गले से रगड़ लगती है, तो बच्चे को तेज दर्द होने लगता है।
(और पढ़ें - गले में दर्द का इलाज)
- सांसों में बदबू आना:
गले में होने वाले बैक्टीरियल इन्फेक्शन के समय शरीर में होने वाली कई प्रतिक्रियाओं के परिणामस्वरूप बच्चों की सांसों से बदबू आने की संभावना बढ़ जाती है।
(और पढ़ें - मुंह की बदबू का घरेलू उपाय)
- बुखार:
बुखार के माध्यम से शरीर किसी समस्या की ओर इशारा करता है। जब रोगाणु लसिका ग्रंथि को संक्रमित करते हैं, तो शरीर बुखार के द्वारा बैक्टीरियल संक्रमण और टॉन्सिलाइटिस की ओर संकेत करता है।
(और पढ़ें - तेज बुखार होने पर क्या करें)
- शिशु को अधिक लार आना:
जो बच्चे बोल नहीं पाते हैं, उनकी लार के आधार पर टॉन्सिल की समस्या का पता लगाया जा सकता है। निगलने में होने वाली परेशानी से बच्चे के मुंह में लार ज्यादा एकत्रित होने लगती है, और इसके कारण बच्चा ज्यादा लार बाहर निकालने लगता है। यह लक्षण भी टॉन्सिलाइटिस की ओर संकेत करता है। (और पढ़ें - निगलने में कठिनाई का इलाज)
- बच्चे को खांसी:
बच्चे के गले में जलन की वजह से उसको बार-बार खांसी आने लगती है, जिसके कारण दर्द बढ़ जाता है।
(और पढ़ें - खांसी में क्या खाएं)
- कान में दर्द होना:
टॉन्सिल का दर्द बच्चे के कान तक फैलता है और इसकी वजह से बच्चे के कान में खिंचाव उत्पन्न होता है। अगर बच्चा निगलते या रोते समय कान को खींचे तो समझ जाए कि बच्चे को टॉन्सिल की समस्या हो सकती है।
(और पढ़ें - कान में दर्द के घरेलू उपाय)
- लसिका ग्रंथि में सूजन:
बच्चे के गले और जबड़े के निचले हिस्से में सूजन आना और ग्रंथि में गांठ बनना, यह गांठ अलग अलग आकार की हो सकती है।
(और पढ़ें - गले में छाले का इलाज)
बच्चों में टॉन्सिल के कारण - Bacho me tonsil ke karan
बच्चों में टॉन्सिल के कई कारण होते हैं। आगे आपको बच्चों में टॉन्सिल होने के कारणों के बारे में विस्तार से बताया गया है।
- सर्दी जुकाम होना:
सर्दी जुकाम टॉन्सिल होने का प्राथमिक कारण माना जाता है। जिसमें कई तरह के वायरस जैसे इन्फ्लूएंजा वायरस (influenza virus), एडिनोवायरस (adenovirus), कोरोना (corona virus), और राइनोवायरस (rhinovirus) आदि को शामिल किया जाता है।
(और पढ़ें - नवजात शिशु के सर्दी जुकाम का इलाज)
- ग्रुप ए स्टेफिलोकोकस बैक्टीरिया (Staphylococcus bacteria):
टॉन्सिलाइटिस के 30 प्रतिशत मामले बैक्टीरियल संक्रमण की वजह से होते हैं, और इनमें ग्रुप ए स्टेफिलोकोकस बैक्टीरिया मुख्य वजह माना जाता है।
(और पढ़ें - गले की खराश दूर करने के उपाय)
- अन्य बैक्टीरिया:
अन्य तरह के बैक्टीरिया जैसे क्लैमाइडिया निमोनि (chlamydia pneumoniae), स्ट्रेपटोकोकस निमोनि (streptococcus pneumoniae), माइकोप्लाज्मा निमोनिया (mycoplasma pneumoniae), स्टेफिलोकोकस ऑरियस (Staphylococcus aureus) आदि को टॉन्सिल की वजह माना जाता है। इसके अलावा टॉन्सिल के दुर्लभ मामलों के लिए फ्यूसोबैक्टीरियम (fusobacterium), पर्टुसिसि (pertusis), सिफलिस (syphilis) गोनोरिया (gonorrhea) आदि बैक्टीरिया कारण होते हैं।
(और पढ़ें - काली खांसी के घरेलू उपाय)
टॉन्सिल एक संक्रामक रोग है और यह एक बच्चे से दूसरे में आसानी से फैलता है। संक्रमित बच्चे के छिंकने और खांसने से उसके आसपास के बच्चों को भी टॉन्सिल होने की संभावनाएं बढ़ जाती है। इसके अलावा संक्रमित बच्चे के छूने, चुबंन करने और उसके साथ एक ही थाली में खाना खाने से भी टॉन्सिल होने का खतरा बढ़ जाता है।
(और पढ़ें - गले के दर्द के लिए क्या करना चाहिए)
बच्चों को टॉन्सिल से बचाव - Bacho ko tonsil se bachav
टॉन्सिल एक संक्रामक रोग है, लेकिन कुछ सावधानियों को अपनाकर आप बच्चे को इस रोग से दूर रख सकती हैं। आप टॉन्सिल से बचाव के लिए निम्नलिखित उपायों को अपना सकते हैं।
- बच्चे को खाना खिलाने से पहले आप अपने हाथों को अच्छे से धोएं और यदि बच्चा बड़ा है तो उसको खाना खाने से पहले हाथ धोने के लिए कहें।
- संतुलित आहार बच्चे की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने का काम करते हैं, इससे बच्चा अन्य रोगों से सुरक्षित रहता है। (और पढ़ें - बच्चों की इम्यूनिटी कैसे बढ़ाएं)
- संक्रमित बच्चे के बर्तनों से अपने अन्य बच्चों को दूर रखें। (और पढ़ें - पौष्टिक आहार के गुण)
- संक्रमित बच्चे के साथ अन्य बच्चों को खाना न खिलाएं। (और पढ़ें - 2 साल के बच्चे को क्या खिलाएं)
- अगर आपके बच्चे में टॉन्सिल की पहचान की जाती है, तो जल्द से जल्द उसके टूथब्रश को बदलें। (और पढ़ें - बच्चों के दांत निकलने की उम्र)
- जब भी बच्चा छींके या खांसे तो उसको मुंह और नाक पर टिशू पेपर रखने को कहें, इससे अन्य बच्चों का टॉन्सिल से बचाव होता है।
(और पढ़ें - बच्चे के निमोनिया का इलाज)
बच्चों के टॉन्सिल का इलाज - Bacho ke tonsil ka ilaj
बच्चों के टॉन्सिल को ठीक करने के लिए कई प्रक्रियाओं को अपनाया जाता है, जिनके बारे में आगे विस्तार से बताया गया है।
- एंटीबायोटिक्स (Antibiotics):
जब डॉक्टर इस बात से आश्वस्त होते हैं कि बच्चे में टॉन्सिल की वजह बैक्टीरियल इन्फेक्शन है, तब उसको एंटीबायोटिक दवा देने की सलाह दी जाती है। कुछ मामलों में बच्चे को खांसी न होने पर भी तेज बुखार, टॉन्सिल में पस और लसिका ग्रंथि में सूजन हो जाती है, तो ऐसे मामलों में डॉक्टर एंटीबायोटिक्स दवाएं देने की सलाह दे सकते हैं।
(और पढ़ें - एंटीबायोटिक दवा लेने से पहले ज़रूर रखें इन बातों का ध्यान)
- एसीटामिनोफिन (Acetaminophen):
टॉन्सिलाइटिस के इलाज में बच्चे को पर्याप्त आराम और तरल पदार्थ देने चाहिए। इस दौरान बच्चे को दवाओं में इबुप्रोफन और एसीटामिनोफिन आमतौर दी जा सकती है। यह दवाएं बच्चे के बुखार को कम करने और उसको आराम पहुंचाने का काम करती हैं।
(और पढ़ें - बच्चे के बुखार का इलाज)
- टॉन्सिलेक्टोमी (tonsillectomy):
अगर आपके बच्चे को टॉन्सिलाइटिस एक साल में सात बार से ज्यादा बार हो रहा हो तो ऐसे में डॉक्टर बच्चे के टॉन्सिल को निकालने की सलाह दे सकते हैं। ऑपरेशन के द्वारा टॉन्सिल को निकालने की प्रक्रिया को ही टॉन्सिलेक्टोमी कहा जाता है।
बच्चे के ऑपरेशन की सलाह तब ही दी जाती है जब उसकी समस्या एंटीबायोटिक दवाओं से कम नहीं हो पाती है। इसके साथ ही प्रतिरोधी स्लीप एप्निया, सांस लेने में परेशानी, सख्त आहार को निगलने में मुश्किल और टॉन्सिल में होने वाले फोड़ों पर एंटीबायोटिक दवाओं के काम न करने के स्थिति में भी डॉक्टर बच्चे की सर्जरी का विकल्प चुनते हैं।
(और पढ़ें - टॉन्सिल के घरेलू उपाय)
बच्चों में टॉन्सिल के उपचार - Bacho me tonsil ke upchar
बच्चे के टॉन्सिल होने पर आप कई तरह के घरेलू उपचार को भी अपना सकते हैं। इस दौरान उपयोग किए जाने वाले घरेलू उपचार निम्नलिखित हैं।
- नीम के पेड़ की छाल:
नीम का पेड़ आपको घर के आसपास जरूर मिल जाएगा। इसकी छाल में कई तरह के केमिकल जैसे टैनिन और गैलिक एसिड मौजूद होते हैं। नीम की छाल को पानी में उबाल कर सेंधा नमक के साथ गरारे करने से गले की कई समस्याओं में राहत मिलती है।
(और पढ़ें - नीम के तेल के फायदे)
- नींबू पानी:
नींबू में कई तरह के तत्व मौजूद होते हैं, इसलिए इसको स्वास्थ्य संबंधी कई समस्याओं के घरेलू इलाज में शामिल किया जाता है। इसके उपचार के लिए आप गर्म पानी में नींबू निचोड़े, इसमें नमक और थोड़ा सा शहद मिलाक बच्चे को धीरे-धीरे पीने के लिए कहें।
(और पढ़ें - नींबू के रस के फायदे)
- तुलसी की पत्तियां:
तुलसी की पत्तियों को थोड़े से पानी में उबाल कर छान लें। इसके बाद इसमें थोड़ा सा नींबू का रस और शहद मिलाकर बच्चे को दिन में दो से तीन बार पीने के लिए दें।
(और पढ़ें - तुलसी की चाय के फायदे)
- नमक का पानी:
नमक के गुनगुने पानी से गरारे से करने से भी गले की समस्या में आराम मिलता है।
(और पढ़ें - नमक की कमी का इलाज)
बच्चे के टॉन्सिल को कम करने वाले अन्य उपचार
- मेथी दाने के पानी को गर्म करके बच्चे को गरारे कराएं। (और पढ़ें - मेथी के तेल के फायदे)
- हल्दी के पानी से बच्चे को दिन में तीन से चार बार गरारे कराएं। (और पढ़ें - हल्दी और गर्म पानी के फायदे)
- पुदीने की चाय बनाकर उसमें शहद मिलाएं और बच्चे को पीने के लिए दें।
(और पढ़ें - पुदीने के फायदे)