एड़ी में दर्द को आयुर्वेद में पार्ष्णिशूल कहा जाता है। ये एक आम समस्‍या है जिसमें एड़ी की हड्डी में तेज दर्द उठता है। कुछ गंभीर मामलों में एड़ी के दर्द की वजह से खड़े होने या चलने में दिक्‍कत आती है। एड़ी में दर्द कई कारणों से हो सकता है जैसे कि एड़ी पर अत्‍यधिक दबाव पड़ने, गलत फुटवियर पहनने और ऊबड़-खाबड़ जमीन पर नंगे पैर चलने से। हालांकि, इसका संबंध ऊंची एड़ी के जूतों और प्लान्टर फेशिया (plantar fascia: ऊतक की एक सपाट पट्टी जो एड़ी की हड्डी को पैर के अंगूठे से जोड़ती है) से भी इसका संबंध होता है।

पार्ष्णिशूल के इलाज की आयुवेर्दिक प्रक्रियाओं में अभ्‍यंग (तेल मालिश), स्‍वेदन (पसीना निकालने की विधि), विरेचन (दस्‍त की विधि), बस्‍ती (एनिमा), रक्‍तमोक्षण (खून निकालने की विधि), लेप (प्रभावित हिस्‍से पर लेप लगाने की विधि) और अग्‍नि कर्म (धातु से प्रभावित हिस्‍से को जलाना) शामिल हैं। एड़ी के दर्द के इलाज के लिए कुछ जड़ी बूटियों और औषधियों जैसे कि चित्रक, रसना, अरंडी, योगराज गुग्‍गुल एवं दशमूलारिष्‍ट का इस्‍तेमाल किया जाता है।

(और पढ़ें - पैर की हड्डी बढ़ने के कारण)

  1. आयुर्वेद के दृष्टिकोण से एड़ी में दर्द - Ayurveda ke anusar Heel Pain
  2. एड़ी में दर्द का आयुर्वेदिक इलाज - Edi me dard ka ayurvedic upchar
  3. एड़ी में दर्द की आयुर्वेदिक दवा, जड़ी बूटी और औषधि - Heel Pain ki ayurvedic dawa aur aushadhi
  4. आयुर्वेद के अनुसार एड़ी में दर्द होने पर क्या करें और क्या न करें - Ayurved ke anusar Heel Pain hone par kya kare kya na kare
  5. एड़ी में दर्द में आयुर्वेदिक दवा कितनी लाभदायक है - Heel Pain ka ayurvedic upchar kitna labhkari hai
  6. एड़ी में दर्द की आयुर्वेदिक औषधि के नुकसान - Heel Pain ki ayurvedic dawa ke side effects
  7. एड़ी में दर्द के आयुर्वेदिक ट्रीटमेंट से जुड़े अन्य सुझाव - Heel Pain ke ayurvedic ilaj se jude anya sujhav
  8. एड़ी में दर्द की आयुर्वेदिक दवा और इलाज के डॉक्टर

आयुर्वेद में एड़ी में दर्द के विभिन्‍न कारणों का उल्‍लेख किया गया है जिसके अनुसार इसका प्रमुख कारण वात दोष का बढ़ना है। वात दोष के बढ़ने पर वातकंटक होता है जिससे एड़ी में चुभने वाला दर्द महसूस होता है। कारण के आधार पर वातकंटक के तीन प्रकार हो सकते हैं:

  • एड़ी की हड्डी बढ़ने (Calcaneal spurs):
    आयुर्वेद के अनुसार एड़ी की हड्डी बढ़ने का संबंध अस्थि-स्‍नायुगत वात (हड्डियों और मांसपेशियों को प्रभावित करने वाला वात) से हो सकता है। आमतौर पर एड़ी की हड्डी में किसी एक जगह पर वात बढ़ने की वजह से ये समस्‍या होती है। इसकी वजह से हड्डियों को नुकसान और एड़ी में दर्द होता है। इसमें एड़ी की हड्डी के ऊपर नुकीली हड्डी बढ़ने लगती है। (और पढ़ें - आपकी हड्डियों को नुकसान पहुंचाती हैं ये चीजें)
     
  • प्लान्टर फेशियाइटिस (Plantar fasciitis):
    इसमें प्‍लांटर फेशिया में सूजन पैदा होती है। प्‍लांटर फेशिया पैरों के तलवों में मौजूद ऊतक है। ऊबड़-खाबड़ जगह पर चलने, पैरों की संरचना में कोई खराबी आने, बहुत ज्‍यादा चलने या पैरों पर अन्‍य प्रकार का कोई दबाव पड़ने पर वात दोष बढ़ जाता है जिससे प्लान्टर फेशियाइटिस की समस्‍या उत्‍पन्‍न होती है।
     
  • अकिलीज़ टेंडन बर्सिटिस (Achilles tendon bursitis):
    एड़ी के पीछे मौजूद एक द्रव से भरी थैली को बर्सा कहा जाता है। ये अचिल्लेस टेंडन और एड़ी की हड्डी के बीच कुशन का काम करता है। बहुत ज्‍यादा चलने या दौड़ लगाने पर इस बर्सा में सूजन हो सकती है जिसके कारण अचिल्लेस टेंडन बर्सिटिस की समस्‍या होती है। आयुर्वेद के अनुसार इस स्थिति का संबंध वातकंटक से है क्‍योंकि ये भी वात और एड़ी में चुभने वाले दर्द के कारण पैदा होती है।

एड़ी में दर्द के अन्‍य कारणें में गलत तरीके से चलने की आदत और अनुचित खाद्य पदार्थों का सेवन शामिल है। रिसर्च में ये बात सामने आई है कि ऊंची एड़ी के फुटवियर पहनने की वजह से पुरुषों की तुलना में महिलाओं को एड़ी की हड्डी बढ़ने (Calcaneal spurs) की समस्‍या ज्यादा होती है। ये एड़ी की हड्डी पर अधिक दबाव डालती है और लिगामेंट को फैलाती है।

(और पढ़ें - वात पित्त और कफ दोष क्या है)

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  • अभ्‍यंग कर्म
    • इस चिकित्‍सा में औषधीय तेलों को शरीर पर डाला जाता है और मालिश की जाती है। ये शिरोबिंदु को साफ और शरीर के संवेदनशील बिंदुओं में संतुलन लाता है।
    • इसका प्रमुख तौर पर इस्‍तेमाल लसीका प्रणाली को उत्तेजित करने और स्‍केलेटल मांसपेशियों, मस्तिष्‍क एवं बोन मैरो (अस्थि मज्‍जा) के कार्य में सुधार लाने के लिए किया जाता है।
    • ये शरीर के विभिन्‍न हिस्‍सों में पोषक तत्‍वों की आपूर्ति और अमा को बाहर निकालने की प्रक्रिया को बेहतर करता है।
    • एड़ी में दर्द को नियं‍त्रित करने में पिंड तेल अभ्‍यंग उपयोगी है।
       
  • स्‍वेदन कर्म
    • स्‍वेदन पसीना लाने की एक विधि है जिसमें पंचकर्म थेरेपी में से विरेचन और बस्‍ती कर्म का प्रयोग किया जाता है।
    • व्‍यक्‍ति की स्थिति के आधार पर स्‍वेदन प्रक्रिया चुनी जाती है।
    • स्‍वेदन का प्रयोग अमा को पिघलाकर उसे नाडियों से बाहर निकाल पाचन मार्ग में लाने के लिए किया जाता है। यहां से अमा को आसानी से पंचकर्म थेरेपी के ज़रिए शरीर से बाहर निकाला जा सकता है।
    • इस चिकित्‍सा से शरीर में भारीपन महसूस होने, ठंड लगने और अकड़न से राहत पाने में मदद मिलती है।
       
  • विरेचन कर्म
    • विरेचन कर्म में जड़ी बूटियों और उनके मिश्रण से दस्त लाए जाते हैं। इस चिकित्‍सा के लिए इस्‍तेमाल होने वाली जड़ी बूटियों का चयन मरीज़ की चिकित्‍सकीय स्थिति के आधार पर किया जाता है।
    • इसका प्रमुख तौर पर इस्‍तेमाल बढ़े हुए पित्त दोष को साफ करने के लिए किया जाता है लेकिन वात और कफ दोष के बढ़ने के कारण हुए विकारों का इलाज भी विरेचन कर्म से किया जा सकता है।
    • विरेचन कर्म डिटॉक्सिफाइंग का सर्वोत्तम तरीका है क्‍योंकि ये शरीर से अमा को साफ और बा‍हर निकालता है।
    • ये पाचन मार्ग की सफाई करता है और इसलिए स्‍वेदन (जिसमें अमा को पाचन मार्ग में लाया जाता है) के बाद विरेचन कर्म किया जाता है।
    • एड़ी में दर्द के अलावा ये शरीर में विष फैलने, त्‍वचा विकारों, दीर्घकालिक पीलिया और मिर्गी के इलाज में भी उपयोगी है।
       
  • बस्‍ती कर्म
    • बस्‍ती एक शुद्धिकरण चिकित्‍सा है जिसमें काढ़े और तेल से बना हर्बल एनिमा दिया जाता है। (और पढ़ें - काढ़ा बनाने की विधि)
    • ये आंतों की सफाई करता है, इस प्रकार बढ़ा हुआ दोष और अमा (विषाक्त पदार्थ) शरीर से साफ होती है।
    • बस्‍ती का प्रयोग प्रमुख तौर पर वात विकारों को नियंत्रित करने के लिए किया जाता है। ये वात के असंतुलन (प्रधान दोष) के साथ अन्‍य दोषों में असंतुलन आने के कारण उत्‍पन्‍न हुई स्थितियों का इलाज भी कर सकता है।
    • ये दर्द को दूर करता है और इसलिए बस्‍ती कर्म एड़ी की हड्डी बढ़ने (Calcaneal spurs), प्लान्टर फेशियाइटिस, अचिल्लेस टेंडन टेन्डिनाइटिस, आर्थराइटिस, गठिया और साइटिका के इलाज में असरकारी है।
       
  • रक्‍तमोक्षण
    • ये एक आयुर्वेदिक चिकित्‍सा है जिसमें शरीर के विभिन्‍न हिस्‍सों से विषाक्‍त खून को निकाला जाता है। इसमें खून निकालने के लिए गाय के सींग, जोंक और सूखे करेले का इस्‍तेमाल किया जाता है।
    • रक्‍तमोक्षण शरीर से अमा को बाहर निकालता है।
    • ये रक्‍त जनित बीमारियों और अत्‍यधिक वात एवं पित्त दोष के कारण पैदा हुए रोगों जैसे कि एड़ी की हड्डी बढ़ने (Calcaneal spurs), प्लान्टर फेशियाइटिस, अचिल्लेस टेंडन बर्सिटिस, सूजन, आर्थराइटिस और त्‍वचा रोगों के इलाज में असरकारी है। (और पढ़ें - त्वचा रोग के उपाय)
       
  • लेप कर्म
    • इस चिकित्‍सा में जड़ी बूटियों और जड़ी बूटियों से बने विभिन्‍न मिश्रणों को शरीर के प्रभावित हिस्‍से पर लगाया जाता है। इसमें उपचार के लिए जड़ी बूटियों का चयन मरीज़ की स्थिति के आधार पर किया जाता है।
    • लेप को क्रीम या पेस्‍ट की तरह लगाया जाता है। इसका इस्‍तेमाल प्रमुख तौर पर सूजन कम करने के लिए किया जाता है। लेप में प्रयोग होने वाली कुछ सामान्‍य सामग्रियों में वच, जौ और आंवला शामिल हैं। (और पढ़ें - सूजन का आयुर्वेदिक इलाज)
    • एड़ी की हड्डी बढ़ने (Calcaneal spurs) और प्लान्टर फेशियाइटिस जैसी स्थितियों के कारण हुए एड़ी में दर्द के इलाज में हिंग्‍वादि लेप उपयोगी है।
       
  • अग्नि कर्म
    • इसमें जोड़ के सबसे दर्द वाले हिस्‍से को जलाया जाता है।
    • ये एड़ी की हड्डी बढ़ने (Calcaneal spurs), प्लान्टर फेशियाइटिस, अचिल्लेस टेंडन बर्सिटिस के इलाज में उपयोगी है।
    • अग्नि कर्म ऑस्टियोआर्थराइटिस, रुमेटाइड आर्थराइटिस और गठिया को नियंत्रित करने में भी असरकारी है।

एड़ी में दर्द के लिए आयुर्वेदिक जड़ी बूटियां

  • चित्रक
    • चित्रक तंत्रिका और स्‍त्री प्रजनन प्रणाली पर कार्य करती है। इस जड़ी बूटी की जड़ प्रमुख तौर पर एड़ी में दर्द को कम करने के लिए इस्‍तेमाल की जाती है।
    • दर्द से राहत पाने के लिए चित्रक की जड़ से तैयार लेप को प्रभावित हिस्‍से पर लगाया जाता है।
    • चित्रक प्रभावित हिस्‍से पर गर्मी पैदा करती है और रक्‍त प्रवाह को बढ़ाती है एवं चयापचय प्रक्रियाओं को तेज करती है। ये एड़ी से अमा को घटाती है जिससे दर्द कम होता है। (और पढ़ें - ब्लड सर्कुलेशन बढ़ाने के उपाय)
       
  • रसना
    • इस जड़ी बूटी की जड़ में दर्द निवारक और सूजन-रोधी गुण होते हैं। ये प्रमुख तौर पर वात विकारों जैसे कि रुमेटाइड आर्थराइटिस और गठिया को नियंत्रित करने में असरकारी है।
    • खांसी, बुखार और अस्‍थमा के इलाज में भी रसना का उपयोग कर सकते हैं।
    • दर्द निवारक और वात को संतुलित करने के गुणों से युक्‍त रसना वातकंटक को नियंत्रित करने में असरकारी है।
       
  • अरंडी
    • अरंडी तंत्रिका, स्‍त्री प्रजनन, मूत्राशय और पाचन तंत्र पर कार्य करती है। इसमें दर्द निवारक, रेचक और नसों को आराम देने वाले गुण होते हैं। (और पढ़ें - नसों में दर्द के घरेलू उपाय)
    • ये सूजन को कम करने वाली मुख्‍य जड़ी बूटियों में से एक है।
    • अरंडी को “वात विकारों का राजा” भी कहा जाता है क्‍योंकि ये रेचन (दस्‍त), शरीर से अमा को निकालने और बढ़े हुए वात दोष को साफ करने में उपयोगी है।
    • ये जोड़ों में दर्द और सूजन से राहत दिलाती है। इसलिए साइटिका, रुमेटिज्‍म, एड़ी की हड्डी बढ़ने, प्लान्टर फेशियाइटिस और अचिल्लेस टेंडन बर्सिटिस जैसी बीमारियों को नियंत्रित करने के लिए भी इसका इस्‍तेमाल किया जा सकता है।

एड़ी में दर्द के लिए आयुर्वेदिक औषधियां

  • योगराज गुग्‍गुल
    • योगराज गुग्‍गुल एक पॉलीहर्बल मिश्रण (एक से अधिक जड़ी बूटियों का मिश्रण) है जिसे गुडूची, गोक्षुरा, त्‍वाक (दालचीनी), पिप्‍पलीमूल, चित्रक, रसना, खुरासानी अजवाइन, गुग्गुल, विडंग और शतावरी से बनाया गया है।
    • ये दर्द और सूजन से राहत दिलाती है और कई वात रोगों के इलाज में इसका इस्‍तेमाल किया जा सकता है।
    • योगराज गुग्‍गुल वात दोष को संतुलित और शरीर से अमा को हटाती है। ये प्रभावित जोड़ों और हड्डियों को दर्द से राहत प्रदान करती है।
       
  • दशमूलारिष्‍ट
    • इस मिश्रण में मौजूद कुछ सामग्रियों में दशमूल, हरीतकी, शहद, गुड़, लवांग (लौंग) और पिप्पली शामिल है।
    • ये वात विकारों जैसे कि रुमेटिक आर्थराइटिस, एड़ी की हड्डी बढ़ने, प्लान्टर फेशियाइटिस और अचिल्लेस टेंडन बर्सिटिस के इलाज में उपयोगी है।
    • खांसी, ब्रोंकाइटिस, दमा, उल्‍टी, डिस्‍युरिआ (पेशाब में जलन), गैस्ट्रिक विकारों और एनीमिया के इलाज में भी दशमूलारिष्‍ट की सलाह दी जाती है।
    • चूंकि, दशमूलारिष्‍ट शक्‍तिवर्द्धक होता है इसलिए इससे खासतौर पर प्रसव के बाद शारीरिक मजबूती, जोश और जीवनशक्‍ति को बढ़ाया जा सकता है। (और पढ़ें - ताकत बढ़ाने के घरेलू उपाय)

व्‍यक्‍ति की प्रकृति और कई कारणों के आधार पर चिकित्‍सा पद्धति निर्धारित की जाती है। उचित औषधि और रोग के निदान हेतु आयुर्वेदिक चिकित्‍सक से परामर्श करें।

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क्‍या करें

  • एड़ी को पर्याप्‍त आराम दें।
  • आरामदायक फुटवियर पहनें।​

क्‍या न करें

  • ज्‍यादा लंबे समय तक खड़े न रहें।
  • सख्‍त जमीन पर नंगे पैर न चलें।
  • ऊंची एड़ी के जूते पहनने से बचें।

(और पढ़ें - लगातार हाई हील्स पहनना हो सकता है खतरनाक)

 

एक चिकित्‍सकीय अध्‍ययन में 30 प्रतिभागियों को शामिल किया गया था जिसमें से 9 पुरुष और 21 महिलाएं थीं। इस अध्‍ययन में वातकंटक को नियंत्रित करने में हिंग्‍वादि लेप, रसनादि स्‍वेदन और पिंड तेल अभ्‍यंग के असरकारी होने का पता चला। इलाज से पहले और बाद में दर्द, जलन, सूजन, सुन्‍नपन, खुजली, त्‍वचा के सख्‍त होने और फटने जैसे मापदंडों पर ध्‍यान दिया गया। उपचार के एक महीने के भीतर ही सभी लक्षणों में सुधार की बात सामने आई। अध्‍ययन के अनुसार उपरोक्‍त दवाओं को एक साथ देने से वातकंटक को नियंत्रित किया जा सकता है।

एक अन्‍य अध्‍ययन में एड़ी की हड्डी बढ़ने के कारण एड़ी में दर्द और अकड़न से ग्रस्‍त 40 वर्षीय महिला का अग्नि कर्म से इलाज किया गया। एक महीने में चार बार अग्नि कर्म दिया गया और चिकित्‍सा के बाद घाव पर मुलेठी को बुरका गया।

अग्नि कर्म के एक दिन बाद शहद और घी लगाने की भी सलाह दी गई। एक सप्‍ताह के अंदर घाव भरने और उपचार के बाद 15 दिनों के अंदर ही सभी निशानों के साफ होने की बात सामने आई। अध्‍ययन के अनुसार एड़ी की हड्डी बढ़ने के इलाज में अग्नि कर्म आसान, सुरक्षित और किफायती थेरेपी है।

(और पढ़ें - घाव के निशान हटाने के तरीके)

वैसे तो आयुर्वेदिक चिकित्‍साएं प्राकृतिक और असरकारी होती हैं और उपचार के दौरान जड़ी बूटी का इस्‍तेमाल करते समय कुछ बातों का विशेष ध्‍यान रखना पड़ता है क्‍यों‍कि इसके हानिकारक प्रभाव हो सकते हैं, जैसे कि:

  • बच्‍चों, बुजुर्ग व्‍यक्‍ति, गर्भवती महिला और कमजोर या थके हुए व्‍यक्‍ति को विरेचन कर्म नहीं देना चाहिए।
  • ब्‍लीडिंग विकारों, बवासीर, एनीमिया और नस से खून निकाले जाने की स्थिति में रक्‍तमोक्षण की सलाह नहीं दी जाती है।
  • किडनी, पित्त वाहिका, मूत्राशय या आंतों में संक्रमण से ग्रस्‍त व्‍यक्‍ति को अरंडी का इस्‍तेमाल नहीं करना चाहिए।
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एड़ी में दर्द एक सामान्‍य समस्‍या है जो एड़ी की हड्डी को प्रभावित करता है। अगर इसका इलाज न किया जाए तो एड़ी में दर्द की वजह से चलने और उठने-बैठने तक में दिक्‍कत हो सकती है। अभ्‍यंग, लेप और अग्नि कर्म जैसी प्राकृतिक आयुर्वेदिक चिकित्‍साओं का इस्‍तेमाल एड़ी में दर्द के इलाज और शारीरिक ताकत में सुधार लाने के लिए किया जाता है। हालांकि, खुद किसी आयुर्वेदिक औषधि का सेवन करने की बजाय अपने रोग के लक्षण और प्रकृति के आधार पर आयुर्वेदिक चिकित्‍सक से उचित उपचार लें।

(और पढ़ें - एडी सिंड्रोम का इलाज)

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