टाइफाइड साल्मोनेला एन्टेरिका नामक बैक्टीरिया के कारण होने वाला रोग है। यह बैक्टीरिया दूषित पानी और भोजन के माध्यम से शरीर में प्रवेश करता है। टाइफाइड में आमतौर पर भूख कम लगना, कब्ज, सिरदर्द और लंबे समय तक बुखार रहना, जैसे लक्षण हो सकते हैं। आधुनिक चिकित्सा में, टाइफाइड के उपचार के लिए एंटीबायोटिक्स दिए जाते हैं। जिन देशों में टाइफाइड बुखार बहुत अधिक होता है, उन देशों में जाने वाले लोगों को टाइफाइड का टीका लगाने के लिए कहा जाता है। 

अच्छी तरह से पके हुए और गर्म खाद्य पदार्थ, छिलके उतरे हुए फल और सब्जियां खाना, दूषित पानी से बनी चीजे खाने से बचना और स्ट्रीट फूड न खाना, टाइफाइड पैदा करने वाले बैक्टीरिया को आपसे दूर रख सकता है। 

टाइफाइड के लक्षणों को कम करने के लिए आयुर्वेदिक दवाओं और जड़ी बूटियों का संयोजन प्रभावी पाया जाता है। बुखार के लिए दी जाने वाली आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों का स्वाद कड़वा होता है और इनमें कृमि (वॉर्म) नाशक गुण होते हैं। गुडूची (गिलोय) टाइफाइड के उपचार के लिए सबसे अधिक उपयोग होने वाली जड़ी बूटियों में से एक है। 

उपवास भी टाइफाइड बुखार कम करने में फायदेमंद है क्योंकि यह शरीर से विषाक्त पदार्थों को साफ करता है। टाइफाइड के इलाज के लिए उपयोग की जाने वाली अधिकांश हर्बल दवाएं रोगाणुओं के खिलाफ अच्छा असर दिखाती हैं, इस कारण शरीर से टाइफाइड बैक्टीरिया को हटाने में मदद मिलती है।

(और पढ़ें - टाइफाइड होने पर क्या करे)

  1. आयुर्वेद की नजर में टाइफाइड - Ayurved ki nazar me typhoid
  2. टाइफाइड का आयुर्वेदिक इलाज या उपचार - Typhoid ka ayurvedic upchar in hindi
  3. टाइफाइड की आयुर्वेदिक जड़ी बूटी और औषधि - Typhoid ki ayurvedic dawa aur aushadhi
  4. आयुर्वेद के अनुसार टाइफाइड होने पर क्या करें और क्या न करें - Ayurved ke anusar Typhoid me kya kare kya na kare
  5. टाइफाइड में आयुर्वेदिक दवा कितनी लाभदायक है - Typhoid ka ayurvedic upchar kitna labhkari hai
  6. टाइफाइड की आयुर्वेदिक औषधि के नुकसान - Typhoid ki ayurvedic dawa ke side effects
  7. टाइफाइड के आयुर्वेदिक ट्रीटमेंट से जुड़े अन्य सुझाव - Typphoid ke ayurvedic ilaj se jude anya sujhav
टाइफाइड की आयुर्वेदिक दवा और इलाज के डॉक्टर

आयुर्वेद में कहा गया है कि जिवानु टाइफाइड में होने वाले आंतरिक ज्वर (एक प्रकार का बुखार) के कारक होते हैं। टाइफाइड में ज्वर (बुखार), शिर-शूल (सिरदर्द), अरुचि (स्वाद में कमी), अरती (काम में रुचि की कमी) और मलबाधत (कब्ज) जैसे लक्षण पैदा होते हैं। टाइफाइड के इलाज में उपयोग होने वाली हर्बल औषधियों का पहले से ही भारतीय जनजातियों और आयुर्वेदिक चिकित्सकों द्वारा उपयोग की जाती रही हैं। (और पढ़ें - सिर दर्द दूर करने का तरीका)

टाइफाइड का इलाज करने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली अधिकांश जड़ी-बूटियाँ कटु और टिकटा रस (तीखा और कड़वा स्वाद) वाली होती हैं।  इनमें ज्वरघ्न (बुखार नाशक) और कृमिघ्न (जीवाणु-नाशक) गुण होते हैं। ये गुण शरीर के मल (शरीर में अपशिष्ट पदार्थ) या कफ जिस पर बैक्टीरिया रहते हैं और बढ़ते हैं, को कम करके रोगाणुओं को मारते हैं या विस्थापित कर देते हैं।

(और पढ़ें - संक्रमण का इलाज)

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शोधन उपचार

लंघन:
लंघन ज्वर के लिए एक प्रमुख उपचार प्रक्रिया है। लंघन शब्द का अर्थ आमतौर पर उपवास होता है, जो अपतर्पण (शरीर का पोषण कम होना) की स्थिति की ओर ले जाता है। थेरेपी का उद्देश्य धातु और दोषों में संतुलन बनाकर शरीर में हल्कापन लाना है।

निराहार (कुछ भी न खाना) और फलाहार (केवल फल खाना) उपवास के दो प्रकार हैं। उपवास विधि को व्यक्ति की प्रकृती के आधार पर चुना जाता है। वात प्रकृति वाले व्यक्ति के लिए फलाहार विधि अधिक उपयुक्त होती है, जबकि पित्ता या कफ प्रधान व्यक्ति निराहार विधि का पालन कर सकता है। (और पढ़ें - कफ निकालने के उपाय)

उपवास के कारण, वात और अग्नि (पाचन अग्नि) उत्तेजित हो जाते हैं और शरीर में असंतुलित दोषों को संतुलित करने में मदद करते हैं। उपवास टाइफाइड बुखार के मूल कारण जमे हुए कफ और मल से राहत देता है। लंघन का उपयोग टाइफाइड के अलावा कई अन्य बीमारियों के लिए भी किया जाता है, जिनमें अतिसार (दस्त), विसुचिका (हैजा), विबंध (कब्ज), अलसक (पेट फूलना), छर्दि (उल्टी) इत्यादि शामिल हैं।

चरक के अनुसार, लंघन करने के लिए हेमंत ऋतू (हल्की सर्दी वाला मौसम) है और शिशिर ऋतू (कड़ाके की ठंड वाला मौसम) का मौसम सबसे अच्छा होता है। हालाँकि, लंघन उपचार उन लोगों केलिए निषेध है, जिन लोगों की प्रमुख प्रकृति वात है। 

(और पढ़ें - दस्त रोकने के उपाय)

टाइफाइड के लिए आयुर्वेदिक जड़ी बूटियां

बिल्व फल:

  • बिल्व फल एक जड़ी बूटी है जिसमें पोषक, कामोद्दीपक और सिकोड़ने वाले गुण होते हैं। यह अग्नि को बढ़ाता है, इसलिए एक पाचन उत्तेजक के रूप में काम करता है। यह जड़ी बूटी कब्ज, अपच और पेचिश जैसे विकारों के इलाज में काम आती है। यदि शुरुआती अवस्था में दी जाए तो यह टाइफाइड बुखार को कम करने में भी मदद करती है। (और पढ़ें - अपच होने पर क्या करे)
  • बिल्व फल च्यवनप्राश जैसे विभिन्न उत्पादों में भी होता है और कैप्सूल तथा सिरप के रूप में भी उपलब्ध है। (और पढ़ें - बच्चों में बदहजमी का इलाज

जटामांसी:

  • जटामांसी में पेट फूलना कम करने वाले, सुगंधित और पाचक गुण होते हैं। इसलिए यह जड़ी बूटी पेट फूलना, पीलिया, गैस्ट्रिक विकारों और टाइफाइड के इलाज में काम करती है। यह रक्त में मौजूद अशुद्धियों को भी खत्म करती है। (और पढ़ें - पाचन तंत्र के रोगों का इलाज)
  • आप जटामांसी को पाउडर या अर्क के रूप में ले सकते हैं।

हरीतकी:

  • हरीतकी एक पुनर्यौवन प्रदान करने वाली जड़ी बूटी है। यह एक मल पतला करने वाली तथा कफ निकालने वाली औषधि के रूप में कार्य करती है और शरीर के लिए एक टॉनिक है।
  • हरीतकी एनीमिया, पीलिया और बुखार सहित विभिन्न रोगों के उपचार में मदद करती है। (और पढ़ें - बच्चों में खून की कमी का इलाज)

गुडूची:

  • संस्कृत भाषा में गुडूची का अर्थ है "वह जो पूरे शरीर की रक्षा करता है।" यह पौधा ग्लाइकोसाइड, अल्कलॉइड और स्टेरॉयड जैसे कई लाभकारी घटकों में समृद्ध है। कई वर्षों से आयुर्वेदिक और भारत की लोक चिकित्सा प्रणालियों में इसका उपयोग होता आ रहा है।
  • आयुर्वेद के अनुसार, गुडूची में दाहनाशक (जलन का इलाज), ज्वरहर (बुखार का इलाज) और मेहनाशक (चयापचय सिंड्रोम का इलाज) जैसे गुण है। गुडुची का उपयोग कई स्थितियों जैसे कि दस्त और विभिन्न प्रकार के बुखार के उपचार के लिए किया जाता है। (और पढ़ें - बुखार में क्या खाना चाहिए)

टाइफाइड के लिए आयुर्वेदिक दवाएं

सितोपलादि चूर्ण:

  • सितोपलादि चूर्ण फ्लू और बुखार में सबसे अच्छा काम करने के लिए जाना जाता है। सितोपलादि चूर्ण इला, मिश्री, त्वक, वंशलोचन, और पिप्पली का मिश्रण है।
  • टाइफाइड बुखार के इलाज के लिए, आधा चम्मच सितोपलादि चूर्ण गर्म पानी के साथ दिया जाता है। (और पढ़ें - इलायची के फायदे)

सुदर्शन चूर्ण:

  • सुदर्शन चूर्ण 48 जड़ी बूटियों का उपयोग करके तैयार किया जाता है। इस चूर्ण में मुख्य जड़ी बूटी चिरायता है। यह आयुर्वेदिक उपाय सभी प्रकार के बुखार को समाप्त करने के लिए जाना जाता है। इसका नाम भगवान विष्णु की तर्जनी पर रहने वाले सुदर्शन चक्र के नाम पर रखा गया था।
  • यह हर्बल मिश्रण सुदर्शन घन वटी के रूप में भी उपलब्ध है, जो दवा का गोली के रूप में उपलब्ध एक रूप है।

त्रिभुवनकीर्ति रस:

  • त्रिभुवनकीर्ति रस एक जड़ी बूटियों व खनिज का मिश्रण (हरबो-मिनरल फॉर्मूला) है, जो आमतौर पर बुखार के इलाज के लिए उपयोग किया जाता है। यह मिश्रण पिप्पली (लंबी काली मिर्च), मरिचा (काली मिर्च), शुंठी (सूखे अदरक), भस्म, शुद्ध हिंगुल और अन्य जड़ी-बूटियाँ मिलाकर बनाया जाता है। इन जड़ी बूटियों को अदरक, तुलसी और धतूरा के पतले अर्क के साथ मिलाया जाता है।
  • त्रिभुवनकीर्ति रस बुखार और दर्द को कम करने तथा शरीर में पसीने को बढ़ाने वाली दवा के रूप में काम करता है। (और पढ़ें - दर्द का इलाज)

संजीवनी वटी:

  • संजीवनी वटी में त्रिफला, (आमला, विभीतकी और हरितकी का मिश्रण), शुंठी, वत्सनाभ, गुडूची, यस्तिमधु (मुलेठी) और भल्लाटक सहित कई जड़ी-बूटियाँ शामिल हैं। वत्सनाभ में एकोनाइट नामक घटक होता है, जिसमें बुखार को कम करने वाले गुण होते हैं।
  • संजीवनी वटी का उपयोग टाइफाइड बुखार के इलाज के लिए पटोलादी कषाय, किरातादिसप्त कषाय और सुदर्शन घृत वटी के साथ किया जाता है। इस दवा का उद्देश्य चकत्ते, पेट की गड़बड़ी और बुखार को कम करना है, जो टाइफाइड के मुख्य लक्षण होते हैं। (और  पढ़ें - वायरल बुखार का इलाज

किरतदीसप्त कषाय:

  • किरतदीसप्त कषाय एक हर्बल काढ़ा है। 20 ग्राम हर्बल मिश्रण को 80 एमएल पानी में उबालकर 20 एमएल तक किया जाता है। इसका सेवन रोगी को करवाया जाता है। 
  • किरततिक्ता, इस दवा में इस्तेमाल की जाने वाली जड़ी बूटी में ज्वर निवारक, आंत के कीड़े मारने और रक्त शर्करा के स्तर को कम करने वाले गुण होते हैं। ये बुखार को कम करने और पेट को मजबूत करने में मदद करते हैं। (और पढ़ें - शुगर में क्या नहीं खाना चाहिए)

यह ध्यान रखें कि उपरोक्त किसी भी दवा और उपचार को लेने से पहले आप एक योग्य आयुर्वेदिक चिकित्सक से परामर्श करें क्योंकि वे आपके उपचार की योजना बनाने के लिए कई कारकों पर विचार करके सबसे उपयुक्त उपचार का चुनाव करते हैं।

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क्या करें

  • जौ, दलिया और पुराने शाली चावल जैसे अनाज को अपने भोजन में शामिल करें।
  • अपने आहार में हरे चने शामिल करें।
  • फल और सब्जियाँ जैसे करेला, अंगूर, अनार, तोरई, बेल और जीवंती (लेप्टेडेनिया), आदि टाइफाइड से जल्दी ठीक होने में मदद करते हैं।
  • हल्का भोजन करें।
  • लंघन उपचार करें।
  • अच्छे से आराम करें। (और पढ़ें - पौष्टिक आहार के लाभ)

क्या न करें

  • छोले जैसे भारी खाद्य पदार्थ और जिन उत्पादों में छोले होते हैं, उन्हें खाने से बचें।
  • तिल का सेवन न करें।
  • अस्वास्थ्यकर खाना या जंक फूड न खाएं। (और पढ़ें - जंक फूड के नुकसान)
  • व्यायाम व स्नान न करें, दिन में न सोएं तथा मल-मूत्र रोक कर न रखें।
  • पाचन खराब करने वाले, पेट में अम्लता और जलन पैदा करने वाले खाद्य पदार्थों को खाने से बचें।
  • दूषित पानी न पिएं।

(और पढ़ें - संतुलित आहार के फायदे)

एक शोध अध्ययन के परिणामों के अनुसार, सुदर्शन चूर्ण ने अच्छा रोगाणुरोधी असर दिखाया, जो इसे टाइफाइड जैसे जीवाणु संक्रमण (बैक्टीरियल इंफेक्शन) के इलाज में प्रभावी बनाता है। टाइफाइड के लक्षणों से राहत पाने के लिए विरेचन उपचार विधि भी कारगर साबित हुई है।

(और पढ़ें - टाइफाइड होने पर क्या खाएं)

त्रिभुवनकीर्ति को पित्त प्रकृति वाले व्यक्ति को नहीं दिया जाना चाहिए क्योंकि यह शरीर में पित्त के गुणों को बढ़ाता है। त्रिभुवनकीर्ति और संजीवनी वटी में एक सामग्री के रूप में वत्सनाभ नामक औषधि भी होती है। वत्सनाभ कभी-कभी गंभीर हाइपोटेंशन (लो ब्लड प्रेशर) का कारण बन सकती है। इसलिए, इन दवाओं को अत्यधिक सावधानी के साथ तथा केवल किसी चिकित्सक के निर्देश और देखरेख में ही लिया जाना चाहिए।

(और पढ़ें - लो बीपी के घरेलू उपाय)

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अगर टाइफाइड बुखार का समय पर पता नहीं चलता है, तो यह घातक साबित हो सकता है। आयुर्वेद टाइफाइड बुखार का इलाज हर्बल उपचार द्वारा करता है, इसमें आधुनिक चिकित्सा के विपरीत, मल्टीड्रग प्रतिरोध की समस्या का सामना नहीं करना पड़ता है। टाइफाइड के आयुर्वेदिक उपचार में उपयोग की जाने वाली अधिकांश जड़ी-बूटियों में ऐसे गुण होते हैं जो टाइफाइड पैदा करने वाले जीवाणुओं को मार सकते हैं। इसलिए, आयुर्वेद बिना किसी दुष्प्रभाव के टाइफाइड के लिए एक प्रभावी उपचार प्रदान करता है।

(और पढ़ें - टाइफाइड के घरेलू उपाय)

Dr Bhawna

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