जैसे ही पता चलता है कि आप गर्भवती हैं तो अपने जिगर के टुकड़े से मिलने के लिए 9 महीने का ये सफर आपके लिए बेहद रोमांचक और खुशियों से भरा अनुभव महसूस होता है। हालांकि कुछ महिलाओं को प्रेगनेंसी के दौरान होने वाले कुछ लक्षणों और जटिलताओं की वजह से कई तरह की समस्याओं का भी सामना करना पड़ता है। ऐसी ही एक समस्या है वेरिकोज वेन्स की जो गर्भावस्था से जुड़ी बेहद गंभीर समस्या भले ही ना हो लेकिन गर्भवती महिला के लिए बेहद कष्टकारी और दर्दभरी हो सकती है।

मुख्यतौर पर वैरिकोज वेन्स अपने मुख्य साइज से ज्यादा बढ़ी हुई, सूजी हुई और विकृत नसें हैं जो स्किन की सतह पर नीली या गहरी बैंगनी रंग के मकड़ी के जाले जैसी नजर आती हैं। दरअसल, रक्त धमनियां (arteries) हृदय से ऑक्सीजन युक्त खून को लेकर शरीर के दूसरे हिस्सों तक पहुंचाने का काम करती हैं तो वहीं नसें (veins) ऑक्सीजन रहित खून को शरीर के उस विशिष्ट हिस्से से लेकर हृदय तक वापस पहुंचाने का काम करती हैं। वैरिकोज वेन्स की समस्या तब होती है जब पैर या पेट के निचले हिस्से में बाहरी सतह पर मौजूद नसें (superficial veins) और साथ में इन्फीरियर वेना कावा नाम की नसें भी ब्लॉक हो जाती हैं।

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चूंकि प्रेगनेंसी के दौरान गर्भवती महिला का वजन बढ़ने लगता है और गर्भ में मौजूद शिशु के बढ़ने के साथ-साथ महिला का पेट यानी बेबी बंप भी बढ़ने लगता है तो ऐसे में गर्भवती महिला को गर्भावस्था के दौरान वेरिकोज वेन्स की समस्या होने की आशंका रहती है। खासकर दूसरी तिमाही 3 से 6 महीने का समय और तीसरी तिमाही 6 से 9 महीने के समय के दौरान। ये वैरिकोज वेन्स आमतौर पर पैरों में, योनीमुख (वजाइनल ओपनिंग या वुल्वा) में या फिर मलाशय (रेक्टम) में हो सकता है। वैसे तो वेरिकोज वेन्स को प्रेगनेंसी के सामान्य लक्षणों के तौर पर जाना जाता है लेकिन वैरिकोज वेन्स की यह समस्या प्रेगनेंसी के दौरान गर्भवती महिला के लिए बेहद तकलीफदेह समस्या साबित हो सकती है।

हालांकि अच्छी बात ये है कि वैरिकोज वेन्स की समस्या का घर पर ही बड़ी आसानी से इलाज किया जा सकता है। इस समस्या से पीड़ित गर्भवती महिलाओं को ज्यादा से ज्यादा आराम करने, अपने पैरों पर कम से कम भार देने, अपने पैरों को ऊपर उठाकर रखने और पैर पर पैर चढ़ाकर न बैठने की सलाह दी जाती है। ऐसा करने से वैरिकोज वेन्स के दौरान होने वाली सूजन और दर्द को कम किया जा सकता है। 

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वैरिकोज वेन्स से जुड़ी आश्वस्त करने वाली बात ये है कि प्रसव के कुछ हफ्तों या महीनों के बाद यह समस्या खुद ब खुद ठीक हो जाती है। किन वजहों से होती है वेरिकोज वेन्स की समस्या, वैरिकोज वेन्स कहां-कहां होती है, कितने तरह की होती है और इसका इलाज क्या है, इस बारे में हम आपको इस आर्टिकल में बता रहे हैं।  

  1. प्रेगनेंसी के दौरान वैरिकोज वेन्स होने का क्या कारण है? - pregnancy me kyu hota hai vericose veins?
  2. प्रेगनेंसी के दौरान कितने तरह की वैरिकोज वेन्स होती है? - pregnancy me kitne tarah ki vericose veins hoti hai?
  3. प्रेगनेंसी के दौरान वैरिकोज वेन्स को लेकर कब परेशान होने की जरूरत है? - vericose veins ko lekar kab pareshan hona chahiye?
  4. वैरिकोज वेन्स का इलाज कैसे होता है? - vericose veins ka ilaj kaise hota hai?
प्रेगनेंसी में वैरिकोज वेन्स के डॉक्टर

आमतौर पर ज्यादातर वेन्स या नसों में वन-वे छिद्र (वाल्व) होता है ताकि वे हृदय की तरफ खून को वापस ले जाने में मदद कर सकें। पेट के निचले हिस्से में स्थित ये नसें जो नीचे पैर तक जाती हैं जैसे-इन्फीरियर वेना केवा- उनके लिए हृदय तक खून को वापस पंप करना गुरुत्वाकर्षण की अनदेखी करने वाला ऐक्ट होता है। ऐसे में अगर इन नसों में किसी भी तरह का प्रेशर आता है तो खून का संचार अवरुद्ध हो जाता है जिस वजह से नसें विकृत हो जाती हैं, उनमें सूजन हो जाती है और दर्द भी होने लगता है। 

इस तरह के बदलाव प्रेगनेंसी के दौरान होना पूरी तरह से नैचरल है और इसे किसी भी तरह से रोका या टाला नहीं जा सकता। ज्यादातर मामलों में वेरिकोज वेन्स की समस्या आनुवांशिक या पैतृक होती है यानी अगर आपकी मां या दादी को प्रेगनेंसी के दौरान यह समस्या हुई होगी तो आपको भी होने की आशंका अधिक होती है। बावजूद इसके प्रेगनेंसी के दौरान वेरीकोज वेन्स की दिक्कत इन 3 कारणों से हो सकती है:

  • गर्भावस्था के दौरान, गर्भाशय (यूट्रस) में मौजूद भ्रूण के विकास और मदद के लिए गर्भवती महिला का हृदय आम दिनों की तुलना में 50 प्रतिशत अधिक खून को पंप करने लगता है। खून के इस बढ़े हुए विस्तार की वजह से नसों में विस्तार हो जाता है और उनमें सूजन आ जाती है। 
  • जैसे-जैसे गर्भ में मौजूद भ्रूण बढ़ने लगता है, बढ़ते बच्चे का वजन गर्भवती महिला के पेट के निचले हिस्से और पेड़ू (पेल्विक) क्षेत्र में मौजूद बड़ी रक्त वाहिकाओं पर प्रेशर बढ़ाता है। इस वजह से रक्त वाहिकाओं में खून का संचार अवरुद्ध हो जाता है और इसी कारण पेड़ू (पेल्विक) क्षेत्र में (खासकर योनी और मलद्वार) में वेरिकोज वेन्स की समस्या हो जाती है।
  • प्रेगनेंसी के दौरान गर्भवती महिला के शरीर में कई तरह के हार्मोनल बदलाव होते हैं। इन हार्मोनल बदलावों की वजह से भी रक्त वाहिकाओं पर असर पड़ता है और इस दौरान पैरों और पेल्विस के हिस्से में मौजूद छोटी-छोटी नसों में सूजन आ जाती है। 

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आमतौर पर वैरिकोज वेन्स की समस्या पैरों में होती है लेकिन गर्भावस्था के दौरान वेरिकोज वेन्स की दिक्कत योनी क्षेत्र और कूल्हों में भी हो सकती है। सूजन, लालिमा, खुजली और बहुत तेज दर्द ये कुछ ऐसे लक्षण हैं जो प्रेगनेंसी के दौरान वेरिकोज वेन्स की समस्या से जुड़े रहते हैं। इसके अलावा प्रेगनेंसी के कई और लक्षण हैं जैसे- राउंड लिगामेंट में तेज दर्द, हद से ज्यादा थकान (fatigue) और मूड स्विंग्स जिनकी वजह से वेरिकोज वेन्स की समस्या को संभालना और भी मुश्किल हो जाता है। प्रेगनेंसी के दौरान मूल रूप से ये 3 तरह के वेरिकोज वेन्स होते हैं:

 

पैरों में वैरिकोज वेन्स - legs me vericose veins

वैरिकोज वेन्स के वैसे तो आमतौर पर ज्यादातर मामले पैरों में ही होते हैं लेकिन प्रेगनेंसी के दौरान इनका असर कुछ ज्यादा ही तीव्र और उत्तेजित नजर आता है। प्रेगनेंसी के दौरान अगर पैरों में वेरिकोज वेन्स की दिक्कत हो जाए तो इसकी वजह से पैरों में फुलाव (leg oedema), सूजन या फिर द्रव प्रतिधारण (फ्लूइड रिटेंशन) की दिक्कत हो जाती है और यह अपने आप में बेहद तकलीफदेह होता है।

वैरिकोज वेन्स की वजह से ही पैरों में नाइट क्रैम्प्स यानी रात के समय ऐंठन की दिक्कत, सिहरन (tingling), अकड़न या सुन्नता (numbness) और भारीपन महसूस होता है। इसकी वजह से पैर हद से ज्यादा सूजे हुए और ढेलेदार नजर आते हैं। साथ ही साथ इनमें बहुत दर्द भी होता है।

योनीद्वार (vulva) में वैरिकोज वेन्स - vulva me vericose veins

वजाइना यानी योनी के बाहरी सतह में जब वैरिकोज वेन्स की दिक्कत हो जाती है तो इसे वुल्वर वेरिकोसिटीज कहते हैं। वुल्वर वेरीकोसिटिज में आमतौर पर किसी तरह के लक्षण या संकेत नजर नहीं आते हैं और चूंकि शरीर का यह हिस्सा पैरों की तरह दृष्टिगोचर नहीं होता इसलिए कई बार महिलाओं को पता भी नहीं होता कि उन्हें प्रेगनेंसी के दौरान वेरीकोज वेन्स की समस्या हुई है।

योनीद्वार में वैरिकोज वेन्स होने पर गर्भवती महिलाओं को अपने वुल्वर एरिया में भारीपन, सूजन और प्रेशर महसूस होता है और साथ में दर्द का भी अनुभव हो सकता है। इन संकेतों को नजरअंदाज करने की बजाए अपनी डॉक्टर से बात करें ताकि वह जांच कर पता लगा पाएं कि आपको योनी में वेरीकोज वेन्स की दिक्कत है या नहीं और अगर है तो समस्या को कम करने में आपकी मदद कर पाएं।

बहुत सी महिलाओं को इस बात का भी डर हो सकता है कि वुल्वर वेरीकोसिटीज की वजह से उनकी डिलिवरी पर किसी तरह का असर न पड़े। हालांकि आपको परेशान होने की जरूरत नहीं क्योंकि नसों में खून का संचार होता है और प्रसव के दौरान ब्लीडिंग भी होती है लेकिन उसे कंट्रोल किया जा सकता है।

मलद्वार में वैरिकोज वेन्स - rectum me vericose veins

बवासीर और वैरिकोज देखने में भले ही दो अलग-अलग समस्याएं लगें जिनका एक दूसरे से कोई संबंध नहीं है लेकिन हकीकत ये है कि ये दोनों समस्याएं एक दूसरे से जुड़ी हुई हैं और गर्भवती महिलाओं को ये समस्याएं आमतौर पर गर्भावस्था की तीसरी तिमाही में परेशान करती हैं। जब मलाशय में वेरीकोज वेन्स हो जाता है खासकर मलद्वार में तो इसे ही पाइल्स या बवासीर कहा जाता है।

प्रेगनेंसी में वैसे भी पाचन से जुड़ी समस्याएं जैसे- कब्ज और अपच या बदहजमी की दिक्कत बनी रहती है और इन सबकी वजह से बवासीर की समस्या और ज्यादा कष्टकारी बन सकती है। अगर आपको प्रेगनेंसी से पहले भी पाइल्स की दिक्कत थी तो इस बात के लिए आपको तैयार रहना होगा कि प्रेगनेंसी के दौरान यह समस्या और ज्यादा तकलीफदेह बन सकती है।

इतना ही नहीं नॉर्मल डिलिवरी के दौरान शिशु को योनी से बाहर निकालने के लिए जोर लगाने की वजह से भी बवासीर की दिक्कत और ज्यादा बढ़ सकती है। यही वजह है कि इस तरह की वेरीकोज वेन्स की समस्या को प्रसव के बाद भी ठीक होने में 1 साल या इससे ज्यादा का समय लगता है।

एक बार के लिए देखने में भले ही वैरिकोज वेन्स की समस्या प्रसाधान यानी कॉस्मेटिक इशू से ज्यादा कुछ और न लगे लेकिन हकीकत यही है कि इसकी वजह से गर्भावस्था के दौरान हद से ज्यादा दर्द और कष्ट का सामना करना पड़ता है। इतना ही नहीं अगर किसी महिला को प्रेगनेंसी के दौरान वुल्वर वेरीकोसिटीज या बवासीर की दिक्कत हो जाए तो न सिर्फ उनकी प्रेगनेंसी में समस्याएं होती हैं बल्कि बाद में भी पूरी तरह से रिकवर होने में काफी समय लगता है।

कुछ रेयर मामलों में तो वैरिकोज वेन्स की वजह से नसों के कार्य करने की क्षमता भी पूरी तरह से कम हो जाती है यानी ये नसें हृदय तक सही मात्रा में खून को वापस ले जाने में सक्षम नहीं रहतीं। ऐसा होने पर त्वचा में विकार, खून के थक्के जमना, हद से ज्यादा दर्द, तेज सूजन या जलन जैसी दिक्कतें भी देखने को मिलती हैं। इन समस्याओं को कंट्रोल करने और इनके इलाज के लिए विशेषज्ञ डॉक्टरों की जरूरत होती है।

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हालांकि ज्यादातर मामलों में गर्भवती महिलाएं जब एक बार शिशु को सफलतापूर्वक जन्म दे देती हैं उसके बाद उनके वेरीकोज वेन्स की समस्या में अपने आप ही कमी देखने को मिलती है। इन मामलों में महिलाओं के शरीर में वेरीकोज वेन्स पूरी तरह से भले ही रिकवर न हो लेकिन दिखने में कम जरूर हो जाता है। साथ ही यह बात भी याद रखें कि अगर आपको अपनी पहली प्रेगनेंसी में वेरीकोज वेन्स की दिक्कत हुई है तो यह आपको बाद की प्रेगनेंसी में भी जरूर होगी।

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प्रेगनेंसी के दौरान वैरिकोज वेन्स जिन वजहों से होता है उसे प्रेगनेंसी जब तक रहती है होने से रोकना या डिलिवरी के बाद भी इसका पूरी तरह से इलाज किया जाना संभव नहीं है। हालांकि, प्रेगनेंसी के दौरान वेरीकोज वेन्स कहां स्थित है इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता, इसे कंट्रोल और कुछ हद तक कम जरूर किया जा सकता है। वैरिकोज वेन्स के लिए यहां पर जो इलाज बताया जा रहा है इनमें से ज्यादातर टेक्नीक नैचरल है और अगर इसे सही ढंग से किया जाए तो इसका प्रेगनेंसी में कोई साइड इफेक्ट भी नहीं होता।

प्रेगनेंसी के दौरान वैरिकोज वेन्स की समस्या का प्राकृतिक रूप से इलाज करने के लिए निम्नलिखित उपाय अपनाए जा सकते हैं:

  • प्रेगनेंसी के दौरान बहुत देर तक एक ही पोजिशन में खड़े या बैठे न रहें और कुछ-कुछ देर में अपनी पोजिशन को बदलते रहें। ब्रेक लें और इधर-उधर थोड़ा घूमें, शरीर को स्ट्रेच कर लें और अपने पॉस्चर को भी बदलते रहें।
  • वेरीकोज वेन्स के प्रभावित हिस्सों में सूजन, जलन को कम करने के लिए आप ठंडी पट्टियां या गर्म पानी का इस्तेमाल कर सकती हैं या नहीं इस बारे में अपने डॉक्टर से बात करें।
  • प्रेगनेंसी में अगर वेरीकोज वेन्स की समस्या हो तो बैठे रहने के दौरान पैरों को एक दूसरे पर चढ़ाकर (क्रॉस्ड लेग) न बैठें।
  • शरीर के निचले हिस्से में रक्त का संचार बना रहे इसके लिए आप कौन सी एक्सर्साइज कर सकती हैं इस बारे में भी अपने डॉक्टर से बात करें। वॉक करना सभी गर्भवती महिलाओं के लिए सबसे सेफ एक्सरसाइज माना जाता है। (और पढ़ें: गर्भावस्था में व्यायाम)
  • जहां तक संभव हो अपने पैरों को ऊपर उठाकर रखें। ऐसा करने से भी शरीर के निचले हिस्से में खून का संचार बेहतर बना रहता है और पैरों में सूजन भी नहीं आती और दर्द भी कम होता है।
  • इन्फीरियर वेना केवा पेट के निचले हिस्से में बीच और दाईं तरफ होती है इसलिए प्रेगनेंसी के दौरान आप अपनी बाईं तरफ सोएं यही अच्छा रहेगा। (और पढ़ें: बाईं करवट सोने के फायदे)
  • प्रेगनेंसी के दौरान सही मैटरनिटी कपड़े या लूज फिटिंग वाले कपड़े और अंडरवेअर पहनें ताकि पूरे शरीर में खून का संचार बेहतर तरीके से होता रहे।
  • प्रेगनेंसी के दौरान हाई हील्स बिलकुल न पहनें और कंफर्टेबल फ्लैट चप्पल या शूज ही पहनें। इन जूतों को पहनने से आपके पैर की मांसपेशियों में खून का संचार बेहतर तरीके से होता है और पैरों में जोर भी नहीं पड़ता है।
  • प्रेगनेंसी के दौरान सोडियम का सेवन भी कम करें ताकि इस दौरान पेट फूलना (ब्लोटिंग) और नसों में सूजन की दिक्कत को कम किया जा सके।
  • प्रेगनेंसी के दौरान ज्यादा से ज्यादा पानी पिएं और अपनी डायट में फाइबर से भरपूर चीजों का सेवन करें ताकि शरीर में पानी का अवरोधन (वाटर रिटेंशन) और कब्ज की दिक्कत न हो।

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संदर्भ

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