सिफलिस एक बैक्टीरियल संक्रमण है, जो 'ट्रेपोनेमा पैलिडम' नामक बैक्टीरिया की वजह से होता है। यह एक यौन संचारित रोग है, यानी जब आप सिफिलिटिक छाले से ग्रस्त किसी व्यक्ति के संपर्क में आते हैं तो ऐसे में सिफलिस का खतरा होता है। ये छाले बाहरी जननांगों, योनि, गुदा, मलाशय, मुंह और होंठों पर दिखाई दे सकते हैं। आमतौर पर सिफलिस यौन गतिविधियों की वजह से फैलता है, लेकिन कई बार यह सिफलिस से पीड़ित व्यक्ति के संपर्क (बिना सेक्स किए) में आने से भी फैल सकता है। यह एक संक्रमित मां से उसके अजन्मे बच्चे में भी फैल सकता है, इस स्थिति को कंजेनाइटल सिफलिस कहते हैं और यह जानलेवा हो सकता है। इसके अलावा यह ब्लड ट्रांसफ्यूजन (खून चढ़ाने) या दूषित सुइयों के माध्यम से फैल सकता है।

सिफलिस एक्यूट (अचानक व तेज) और क्रोनिक (धीरे-धीरे व लंबे समय तक प्रभावित करने वाला) दोनों रूप से प्रभावित कर सकता है। इसमें पड़ने वाले छाले शरीर के ज्यादातर अंगों पर देखे जा सकते हैं। एचआईवी और सिफलिस एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। सिफलिस से पीड़ित व्यक्ति जो एचआईवी पॉजिटिव है उनमें पेनिसिलिन से रिकवर होने की संभावना उन लोगों के मुकाबले बेहद कम होती है, जो एचआईवी पॉजिटिव नहीं है। सिफलिस के मरीजों में एचआईवी पॉजिटिव होने की आशंका अधिक होती है। यदि इस स्थिति का इलाज नहीं किया जाता है तो सिफलिस नसों, मस्तिष्क और शरीर के ऊतकों को नुकसान पहुंचा सकता है। पुरुष, विशेष रूप से समलैंगिक, महिलाओं की तुलना में सिफलिस (उपदंश) के प्रति अतिसंवेदनशील होते हैं। यह संक्रमण अक्सर 15 से 39 वर्ष के बीच के व्यक्तियों में पाया जाता है।

(और पढ़ें - एचआईवी टेस्ट क्या होता है)

कंजेनाइटल सिफलिस का निदान बच्चे के जन्म के तुरंत बाद हो जाता है, इसमें दिखाई देने वाले लक्षण गर्भावस्था के दौरान मां से बच्चे में पारित होते हैं। एक्वॉयर्ड सिफलिस, जो किशोरावस्था या वयस्कता में होता है, यह 3 अलग-अलग चरणों में होता है- प्राथमिक, माध्यमिक और तृतीयक, बीच में विलंबता के एक चरण के साथ :

  • प्राथमिक चरण - इसमें संक्रमण वाले स्थान पर दर्द रहित छाले होने लगते हैं। इस संक्रमित घाव को यदि दूसरा व्यक्ति हाथ लगाएगा, तो यह समस्या उसे भी प्रभावित कर सकती है। यह लीजन संक्रमित होने के 2-3 सप्ताह बाद दिखाई देते हैं और 3-6 सप्ताह तक बने रहते हैं, जिसके बाद यह अपने आप ठीक हो जाते हैं। इसके बाद यह रोग दूसरे चरण की ओर बढ़ता है।
  • माध्यमिक चरण - यह चरण कई अन्य बीमारियों की नकल करता है। यह अल्सर विकसित होने के 4-10 सप्ताह बाद विकसित होते हैं। माध्यमिक चरण के सामान्य लक्षणों में गले में खराश, बुखार, जोड़ों में दर्द और मांसपेशियों में दर्द, पूरे शरीर पर चकत्ते (विशेषकर हथेलियों और तलवों), सिरदर्द, बाल झड़ना, भूख में कमी और लिम्फ नोड्स में सूजन शामिल है। यह चरण उपचार के बिना ठीक हो जाता है, लेकिन रोग अगले चरण तक बढ़ सकता है।
  • लैटेंट (डॉर्मेंट) फेज - 'अर्ली लैटेंट फेज' संक्रमण के बाद शुरुआती 12 महीने में होता है। इस चरण में, संक्रमित व्यक्ति के कोई लक्षण नहीं होते हैं, लेकिन फिर भी वह संक्रामक होता है। 'लेट लैटेंट फेज' तब होता है जब संक्रमण 12 महीने से अधिक समय तक बना रहता है और रोगी एसिम्टोमैटिक और आमतौर पर संक्रामक नहीं होता है। हालांकि, संक्रमण अभी भी मां से उसके अजन्मे बच्चे तक ब्लड ट्रांसफ्यूजन के माध्यम से प्रेषित हो सकता है।
  • तृतीयक चरण - लगभग एक तिहाई रोगी तृतीयक चरण तक आते हैं, ऐसा कई साल या दशकों तक लैटेंट सिफलिस से ग्रस्त रहने के बाद होता है। इस अवस्था में हृदय, मस्तिष्क, हड्डियां और त्वचा प्रभावित होती है। इस चरण में रोग का पूर्वानुमान आमतौर पर नहीं हो पाता है। कंजेनाइटल सिफलिस के मामले में जन्म के समय बच्चे का वजन कम होता है, इसके अलावा उनमें जन्म से असामान्यता भी देखी जा सकती है। इन असामान्यताओं में हड्डी और दांत की बनावट सही न होना; मस्तिष्क का संक्रमण; हृदय, किडनी और लिवर बढ़ना; पीलिया; ग्रंथियों में सूजन; चकत्ते और खून की कमी शामिल हैं।

(और पढ़ें - एनीमिया के घरेलू उपचार)

सिफलिस का निदान निम्नलिखित तरीकों से किया जा सकता है:

  • ब्लड टेस्ट के माध्यम से
  • कल्चर टेस्ट, जिसमें त्वचा के घाव से ऊतक के नमूने लिए जाते हैं
  • रीढ़ की हड्डी में द्रव विश्लेषण

सिफलिस का इलाज एंटीबायोटिक्स, आमतौर पर पेनिसिलिन के साथ किया जाता है। अच्छी बात यह है कि सिफलिस को सफलतापूर्वक ठीक किया जा सकता है, खासकर यदि इसका उपचार उचित समय पर शुरू कर दिया जाए। इस संक्रमण का इलाज करने से स्थिति को बदतर होने से रोका जा सकता है, लेकिन जिन अंगों को नुकसान हुआ है उन्हें ठीक नहीं किया जा सकता है। इसलिए लक्षणों को नोटिस करते ही डॉक्टर से परामर्श करें।

पारंपरिक उपचार के अलावा सिफलिस का होम्योपैथिक उपचार भी मौजूद है। यह न केवल लक्षणों से छुटकारा दिलाता है, बल्कि यह संक्रमण को सफलतापूर्वक दूर करने में भी मदद करता है। यह बीमारी की प्रगति व आगे के चरणों में जाने से रोकता है। होम्योपैथिक डॉक्टर रोगी के व्यक्तित्व के आधार पर उपाय निर्धारित करते हैं। उपदंश के उपचार के लिए उपयोग किए जाने वाले सामान्य उपचारों में शामिल हैं औरुम मेटालिकम, फ्लोरिकम एसिडम, कैलियम आयोडेटम, मर्क्यूरियस सॉल्युबिलिस, नाइट्रिकम एसिडम, फाइटोलैक्का सेंड्रा, इस्टिलिंग्या सिल्वाटिका और सिफिलिनम।

  1. सिफलिस की होम्योपैथिक दवा - Homeopathic medicines for Syphilis in Hindi
  2. होम्योपैथी के अनुसार सिफलिस के लिए आहार और जीवन शैली में बदलाव - Changes for Syphilis as per homeopathy in Hindi
  3. सिफलिस के लिए होम्योपैथिक दवाएं और उपचार कितने प्रभावी हैं - How effective homeopathic medicines for Syphillis in Hindi
  4. सिफलिस के इलाज के लिए होम्योपैथिक उपचार के जोखिम - Disadvantages of homeopathic medicine for Syphilis in Hindi
  5. सिफलिस का होम्योपैथिक उपचार से संबंधित टिप्स - Tips related to homeopathic treatment for Syphilis in Hindi
उपदंश की होम्योपैथिक दवा और इलाज के डॉक्टर

सिफलिस के होम्योपैथिक उपचार में सहायक उपाय नीचे दिए गए हैं :

औरुम मेटालिकम
सामान्य नाम :
मेटालिक गोल्ड
लक्षण : औरुम मेटालिकम से निम्नलिखित लक्षणों को ठीक किया जाता है:

  • सेकंडरी सिफलिस के लक्षण जो कि पारा युक्त दवाओं के उपयोग के बाद होता है
  • ग्रंथियों में सूजन के साथ सिफलिस
  • ट्रेकोमा (बैक्टीरियल इंफेक्शन जो आंख को प्रभावित करता है) के साथ कॉर्निया की सूजन (और पढ़ें - आंखों की सूजन की होम्योपैथिक दवा)
  • खोपड़ी, नाक और मुंह की हड्डियों में कैविटी
  • अंडकोष में सूजन और दर्द खासकर युवा लड़कों में
  • सिफलिस की वजह से भुजाओं और टांगों की हड्डियों को नुकसान होना और रात में दर्द होना
  • बाल झड़ना

यह लक्षण सर्दिर्यों, ठंड के मौसम में और सूर्यास्त से लेकर सूर्योदय तक खराब रहते हैं।

फ्लोरिकम एसिडम
सामान्य नाम :
हाइड्रोफ्लोरिक एसिड
लक्षण : फ्लोरिकम एसिडम से निम्नलिखित लक्षणों का अनुभव करने वालों को फायदा होता है : 

  • वैरिकोज वेन्स, अल्सर और बेडसोर होने की प्रवृत्ति
  • घाव जो लंबे समय से हैं, उनके अल्सर बनने का जोखिम
  • समय से पहले दांत खराब होना
  • एलोपेसिया (बालों का झड़ना)
  • अंडकोष में सूजन के साथ यौन इच्छा में वृद्धि
  • गर्भाशय ग्रीवा का अल्सर और योनि से सफेद पीला डिस्चार्ज
  • हाथ पैर की लंबी हड्डियों को नुकसान होना
  • सिफिलिटिक अल्सर और फोड़े
  • उंगली के जोड़ों में सूजन
  • शराब या अल्कोहल लेने की प्रवृत्ति

यह लक्षण सुबह, गर्मी में और गर्म ड्रिंक्स लेने से खराब होते हैं, जबकि चलने और ठंडे मौसम में इनमें सुधार होता है।

कैलियम आयोडेटम
सामान्य नाम :
आयोडाइड ऑफ पोटेशियम
लक्षण: कैलियम आयोडेटम उन लोगों के लिए शानदार उपाय है, जो सिफलिस के सभी 3 चरणों से ग्रस्त हैं :

  • स्टेज 1 - शाम में बुखार के साथ रात में पसीना
  • चरण 2 - त्वचा और श्लेष्म झिल्ली (आंत, मूत्र पथ और श्वसन पथ की अंदरूनी परत) पर अल्सर 
  • चरण 3 - लिम्फ नोड्स बढ़ना
  • काफी मात्रा में वजन कम होना
  • टांगों पर बैंगनी धब्बे
  • त्वचा पर सूखे गांठ जो शरीर की गर्मी से खराब हो जाते हैं
  • हेमरेज की प्रवृत्ति

यह लक्षण रात में, गर्म कमरे व गर्मी से खराब होते हैं जबकि खुली हवा में टहलने से रोगी को बेहतर महसूस होता है।

मर्क्यूरियस सॉल्यूबिलिस
सामान्य नाम :
क्विकसिल्वर
लक्षण : मर्क्यूरियस सॉल्यूबिलिस निम्नलिखित लक्षणों वाले व्यक्तियों के लिए एक प्रभावी उपाय है :

  • सेकंडरी सिफलिस से पीड़ित व्यक्ति जिसमें व्यक्ति एनीमिया, जोड़ों में दर्द और हड्डियों में दर्द, बुखार, बालों का झड़ना और अल्सर और मुंह व गले में फोड़े-फुंसी से ग्रस्त होता है
  • वंशानुगत रूप से होने वाला सिफलिस (हेरेडिएटरी सिफलिस) जिसमें फोड़े, मुंह के छाले और कुपोषण होता है 
  • आइरिस और कॉर्निया की सूजन। आइरिस आंख का वह हिस्सा है जो रोशनी की मात्रा को विनियमित करने में मदद करता है जबकि कॉर्निया आंख का वह पारदर्शी हिस्सा है जो आंख के सामने के हिस्से को कवर करता है।
  • चेहरे की हड्डियों में दर्द व चेहरे की त्वचा पर छोटे उभार जिनमें द्रव या मवाद होता है
  • मुंह, नाक, गले में ऐब्सेस (फोड़ा) और अल्सर व डिस्चार्ज जो कि हरे रंग का हो सकता है
  • पुरुषों के जननांगों पर ठंड लगना के साथ अल्सर और उनके वीर्य में खून आना
  • डिम्बग्रंथि (ओवेरियन) वाले हिस्से में दर्द व हरे लाल रंग का योनि से डिस्चार्ज (और पढ़ें - ल्यूकोरिया का आयुर्वेदिक इलाज)
  • बहुत ज्यादा लार आने के साथ अत्यधिक प्यास लगना

यह लक्षण रात में, बिस्तर पर लेटन के बाद महसूस होने वाली गर्मी, नम ठंडे मौसम और पसीना आने से खराब होते हैं।

नाइट्रिकम एसिडम
सामान्य नाम :
नाइट्रिक एसिड
लक्षण : इस उपाय से उन लोगों को फायदा होता है, जिन्हें अक्सर ठंड लगती है और कब्जदस्त का जोखिम रहता है। इसके अलावा यह निम्न लक्षणों में भी प्रभावी है :

  • त्वचा, मुंह, गुदा, योनि और मूत्रमार्ग की लगातार परेशानी
  • आंखों से जुड़ी परेशानी (सिफिलिटिक आइराइटिस)
  • ब्लीडिंग के साथ नाक की हड्डियों को नुकसान होना (और पढ़ें -  ब्लीडिंग कैसे रोकें)
  • मस्सा
  • अल्सर जिसमें आसानी से खून आने के साथ दर्द होता है
  • पुरुषों में जननांगों में दर्द व जलन
  • महिलाओं में, जननांगों पर के बाल गिरना, योनि में दर्द के साथ अल्सर होना
  • दर्द जो अचानक उठता है और ठीक होता है

यह लक्षण मौसम में बदलाव होने, शाम और रात में खराब हो जाते हैं।

फाइटोलैका डेकांड्रा
सामान्य नाम :
पोक-रूट
लक्षण : फाइटोलैका डेकांड्रा का उपयोग निम्नलिखित स्थितियों को ठीक करने के लिए किया जाता है : 

  • ग्रंथियों में सूजन की प्रवृत्ति, यह स्थिति दर्दनाक होती है और ट्यूमर जैसी दिखाई देती है
  • हड्डी का दर्द जो रात में बढ़ जाता है
  • गले में मोटे सफेद कोटिंग के साथ टॉन्सिल का बढ़ना और गले में दर्द जो कानों तक बढ़ता है
  • स्तनों में भारीपन का अनुभव
  • स्तनों में ट्यूमर या फोड़ा
  • अंडकोष में दर्द व सूजन जो लिंग को प्रभावित करता है
  • सिफिलिटिक साइटिका जिसमें तेज व बढ़ता हुआ दर्द महसूस होता है
  • नसों में दर्द जो तेज, चुभन जैसा और बिजली के झटके की तरह महसूस होता है
  • सिफिलिटिक लीजन, लिंग पर दाने और छाला, ब्यूबो (यौन संचरित संक्रमण के कारण होने वाला लीजन) के साथ सूखी, सिकुड़ी हुई त्वचा
  • मस्सा और चकत्ते
  • अधिकांश लक्षणों के साथ बेचैनी, कमजोरी और दर्द

यह लक्षण ठंड, नम मौसम में बढ़ जाते हैं जबकि आराम करने और सूखे मौसम में इन लक्षणों से राहत मिलती है।

स्टिलिंगिया सिल्वाटिका
सामान्य नाम :
क्वीन रूट
लक्षण : स्टिलिंगिया का इस्तेमाल उन लोगों में किया जाता है जिनमें सिफलिस के निम्नलिखित लक्षण होते हैं:

  • हाथ-पैर और पीठ की हड्डियों में दर्द
  • क्रोनिक अल्सर और हाथों व उंगलियों को नुकसान होना
  • टांगों में जलन और खुजली
  • अल्सर जो कि क्रोनिक हो सकते हैं और उपचार से ठीक नहीं होते हैं
  • नाक की हड्डियों को नुकसान होना
  • सिफिलिस के कारण बाएं तरफ साइटिका की दिक्कत
  • लिवर, पीलिया और कब्ज से पीड़ित होने की प्रवृत्ति (और पढ़ें - कब्ज हो तो क्या करें)

यह लक्षण नम हवा में और दोपहर में खराब होते हैं जबकि सुबह और शुष्क हवा के संपर्क में आने पर ठीक होते हैं।

सिफिलिनम
सामान्य नाम :
सिफिलिटिक वायरस - नोसोड
लक्षण : सिफिलिनम निम्नलिखित लक्षणों वाले व्यक्तियों में अच्छी तरह से कार्य करता है :

  • कभी जननांगों पर दर्दरहित अल्सर की समस्या रही हो, जिसे लोकल एप्लीकेशन (जैसे क्रीम, ऑइंटमेंट या लोशन) से किया गया हो और परिणामस्वरूप त्वचा और गले से संबंधित कई वर्षों तक दिक्कतें बनी हों।
  • नाक की हड्डी को नुकसान होना
  • दांत और कान की हड्डियों को नुकसान होना
  • महिलाओं में जननांगों पर अल्सर
  • योनि से पतला और पानी जैसा तरल डिस्चार्ज होना  
  • न्योनेटल (नवजात) कंजेक्टिवाइटिस व साथ में अधिक मात्रा में मवाद बनना और पलकों में सूजन व नींद के दौरान पलकों का आपस में चिपक जाना 
  • हाथों और पैरों की हड्डियों में दर्द, खासकर रात में
  • दर्द जो धीरे-धीरे बढ़ता और घटता है

यह लक्षण रात में बदतर होते हैं और दिन के दौरान बेहतर होते हैं।

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होम्योपैथिक दवाएं प्राकृतिक पदार्थों से तैयार की जाती हैं, यह बेहद पतली और घुलनशील होती हैं। इसके अतिरिक्त, इन दवाओं को कम मात्रा में निर्धारित किया जाता है। इसीलिए कई कारक इनके प्रभाव को कम कर सकते हैं। होम्योपैथिक दवाओं का ज्यादा से ज्यादा व सटीक असर हो, इसके लिए आपको होम्योपैथिक ट्रीटमेंट के साथ कुछ जरूरी बदलाव करने की जरूरत होती है। होम्योपैथिक डॉक्टर के अनुसार आमतौर पर दिए जाने वाले दिशा-निर्देश निम्नलिखित हैं :

क्या करना चाहिए

क्या नहीं करना चाहिए

  • ऐसे आहार जो होम्योपैथिक दवाओं के साथ प्रतिक्रिया कर सकते हैं उनके सेवन से बचें :
    • तेज मसालेदार खाद्य पदार्थ और पेय जैसे कॉफी, हर्बल टी, औषधीय मसाले, स्पाइज्ड चॉकलेट व शराब
    • औषधीय रूप से मिश्रित दंत पाउडर और माउथवॉश
    • सुगंध फैलाने वाली आर्टिफिशियल चीजें
    • कमरे में तेज महक वाले फूल
    • सॉस
    • फ्रोजन फूड जैसे आइसक्रीम
    • सूप में कच्ची जड़ी-बूटियां, खाद्य पदार्थों में औषधीय जड़ी-बूटियां
    • अजवाइन, अजमोद, बासी पनीर और मीट
  • असक्रिय जीवन शैली न अपनाएं। इसके अलावा बेहतरीन स्वास्थ्य के लिए मानसिक तनाव से बचें।

(और पढ़ें -  तनाव दूर करने के लिए क्या खाएं)

आधुनिक चिकित्सा की मदद से उपदंश का उपचार किया जा सकता है, लेकिन इसका बार-बार उपयोग करने से बीमार व्यक्ति में प्रतिरक्षा प्रणाली को और नुकसान पहुंच सकता है। सिफलिस के उपचार के लिए होम्योपैथी बेहद सरल और सुरक्षित तरीका है। यह न केवल बीमारी का इलाज करने में मदद करता है, बल्कि कुछ बीमारियों के जोखिम से भी व्यक्ति को बचाता है।

(और पढ़ें -  इम्यूनिटी बढ़ाने के उपाय)

होम्योपैथिक उपचार उपदंश के प्राथमिक और माध्यमिक चरणों के साथ-साथ लैटेंट इंफेक्शन और एसिम्टोमिक मामलों के इलाज में भूमिका निभाता है। यह रोगी के प्रतिरक्षा तंत्र को मजबूत करने में मदद करता है, जिससे रोग की प्रगति को रोकने में मदद मिलती है। यदि पूरी तरह से होम्योपैथिक उपचार कर लिया जाए तो उस ​बीमारी को अगली पीढ़ी में जाने से रोका जा सकता है। उचित व सटीक दवाओं की मदद से सिफलिस में होने वाले छालों और चकत्तों को पूर्णतया ठीक किया जा सकता है।

दुर्भाग्य से, उपदंश के उपचार में होम्योपैथिक उपचार की प्रभावशीलता साबित करने के लिए पर्याप्त अध्ययन मौजूद नहीं हैं, इसलिए संबंधित विषय में अधिक जानने के लिए होम्योपैथिक डॉक्टर से परामर्श करें।

(और पढ़ें - इम्यूनिटी कमजोर होने के कारण)

होम्योपैथिक दवाओं को प्राकृतिक सोर्सेज से तैयार किया जाता है और इस्तेमाल से पहले इन्हें घुलनशील रूप दिया जाता है। पूरी तरह से प्राकृतिक संसाधनों से प्राप्त करने की वजह से इनका दुष्प्रभाव नहीं होता है, बशर्ते इन्हें किसी अच्छे व योग्य होम्योपैथिक डॉक्टर के दिशा-निर्देश के बाद लिया जाए।

एक अनुभवी होम्योपैथिक डॉक्टर हमेशा व्यक्ति के लक्षणों के साथ-साथ उसकी मानसिक और शारीरिक स्थिति, उम्र, फैमिली और मेडिकल हिस्ट्री (चिकित्सक द्वारा पिछली बीमारियों व उनके इलाज से जुड़े प्रश्न पूछना) चेक करते हैं।

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सिफलिस, हल्के से लेकर गंभीर रूप तक ले सकता है, जो हमारे स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव डाल सकता है। यदि इस स्थिति का इलाज नहीं किया गया, तो यह खतरनाक व जानलेवा हो सकता है। पारंपरिक रूप से, इस स्थिति का इलाज एंटीबायोटिक दवाओं से किया जाता है, लेकिन इस उपचार से वो नुकसान ठीक नहीं हो सकता है जो शरीर को ट्रीटमेंट से पहले हो चुका है। इसके अलावा इनके साइड इफेक्ट्स का भी जोखिम रहता है, जबकि होम्योपैथी ट्रीटमेंट का कोई जोखिम नहीं होता है। इन्हें बच्चे से लेकर बूढ़ों तक आसानी से लिया जा सकता है।

होम्योपैथी उपाय न सिर्फ लक्षणों में सुधार करता है, बल्कि प्रतिरक्षा प्रणाली को दुरस्त करके यह समग्र स्वास्थ्य को अच्छा करता है। ध्यान रहे, भले इन उपायों का कोई दुष्प्रभाव नहीं होता है, लेकिन इन्हें अपने आप से नहीं लेना चाहिए। होम्योपैथी दवाओं को योग्य डॉक्टरों से परामर्श करने के बाद उनके सुपरविजन में लेना चाहिए।

(और पढ़ें - प्रतिरक्षा प्रणाली मजबूत कैसे करे)

Dr. Rupali Mendhe

Dr. Rupali Mendhe

होमियोपैथ
21 वर्षों का अनुभव

Dr. Rubina Tamboli

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होमियोपैथ
7 वर्षों का अनुभव

Dr. Anas Kaladiya

Dr. Anas Kaladiya

होमियोपैथ
5 वर्षों का अनुभव

Dr. Prabhash Kumar Chaudhari

Dr. Prabhash Kumar Chaudhari

होमियोपैथ
5 वर्षों का अनुभव

संदर्भ

  1. U.S. Department of Health & Human Services. Syphilis - CDC Fact Sheet. USA; [internet]
  2. Tropical Diseases, Special Programme for Research and Training (TDR). Disease Watch Focus: Syphilis. WHO; [internet]
  3. William Boericke. Homoeopathic Materia Medica. Kessinger Publishing: Médi-T 1999, Volume 1
  4. William Boericke. Stillingia Silvatica. Kessinger Publishing: Médi-T 1999, Volume 1
  5. Wenda Brewster O’Reilly. Organon of the Medical art by Wenda Brewster O’Reilly. B jain; New Delhi
  6. U.S. Department of Health & Human Services. Syphilis. USA; [internet]
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