ल्यूकोरिया में महिलाओं को योनि से सफेद पानी आने की शिकायत रहती है। इसका कारण या संबंध निचले यौन मार्ग में सूजन या संक्रमण हो सकता है। ल्यूकोरिया से ग्रस्‍त महिला को सेक्‍स से संबंधित समस्याएं, कैंसर का डर, गर्भधारण करने में दिक्‍कत, शर्मिंदगी और असहतजा से गुज़रना पड़ता है। वैसे तो ल्यूकोरिया कोई घातक बीमारी नहीं है लेकिन इसमें मानसिक तनाव बहुत बढ़ जाता है।

(और पढ़ें - गर्भधारण करने की जानकारी)

आयुर्वेद में ल्यूकोरिया को एक रोग के रूप में वर्गीकृत नहीं किया गया है इसलिए इसका कोई आयुवेर्दिक नाम नहीं है। हालांकि, योनि से अत्‍यधिक सफेद पानी आने की समस्‍या को श्‍वेत प्रदर कहा जाता है जिसका संबंध अनेक स्‍त्री रोगों से हो सकता है।

योनि से आने वाले सफेद पानी का प्रकार और इसका गाढ़ापन इस बात पर निर्भर करता है कि ल्यूकोरिया से ग्रस्‍त महिला के शरीर में कौन-सा दोष खराब हुआ है।

(और पढ़ें - वात पित्त और कफ क्या)

ल्यूकोरिया के आयुर्वेदिक उपचार में वर्ती (सपोजिटरी - शरीर में दवा पहुंचाने के लिए छोटी, गोल या तिकोने आकार की वस्तु का प्रयोग ), धूपन (धुआं देना), प्रक्षालन (सफाई) और पिछु के रूप में इलाज किया जाता है। गंभीर ल्यूकोरिया की स्थिति में अग्नि कर्म (प्रभावित हिस्‍से को जलाने की विधि) की सलाह भी दी जाती है। आमलकी, चोपचीनी और लोध्र जैसी जड़ी बूटियों का इस्‍तेमाल ल्यूकोरिया के इलाज में किया जाता है।

आयुर्वेदिक मिश्रण जैसे कि त्रिफला गुग्‍गुल, चंद्रप्रभा वटी और कैशोर गुग्‍गुल ल्यूकोरिया के इलाज में लाभकारी हैं। ल्यूकोरिया के इलाज के लिए क्‍वाथ (काढ़े) और पानी से योनि की सफाई की सलाह भी दी जाती है। ताजा और आसानी से पचने वाला आहार, निजी साफ-सफाई का ध्‍यान रखकर और सूती अंडरगार्मेंट्स पहनकर ल्यूकोरिया के लक्षणों को दूर करने एवं इस बीमारी को रोकने में मदद मिल सकती है। 

(और पढ़ें - निजी अंगों की सफाई कैसे करें)

  1. आयुर्वेद के दृष्टिकोण से ल्यूकोरिया (सफेद पानी आने)
  2. ल्यूकोरिया (सफेद पानी आने) का आयुर्वेदिक उपाय
  3. ल्यूकोरिया (सफेद पानी आने) की आयुर्वेदिक दवा, जड़ी बूटी और औषधि
  4. आयुर्वेद के अनुसार ल्यूकोरिया (सफेद पानी आने) होने पर क्या करें और क्या न करें
  5. ल्यूकोरिया (सफेद पानी आने) के लिए आयुर्वेदिक दवा कितनी लाभदायक है
  6. ल्यूकोरिया (सफेद पानी आने) की आयुर्वेदिक औषधि के नुकसान
  7. ल्यूकोरिया (सफेद पानी आने) की आयुर्वेदिक उपाय से जुड़े अन्य सुझाव
ल्यूकोरिया की आयुर्वेदिक उपाय के डॉक्टर

रस और कफ धातु के असंतुलन के कारण श्‍वेत प्रदर होता है। ल्यूकोरिया से ग्रस्‍त महिलाओं में निम्‍न प्रकार का स्राव (डिस्‍चार्ज) देखा जाता है:

  • रक्‍त गुल्‍म: 
    गर्भाशय का बढ़ना और मासिक धर्म के न आने (एमेनोरिया) के साथ बदबूदार पस निकलना।
  • कफज योनिव्‍यापद:
    पीला-सफेद रंग का गाढ़ा डिस्‍चार्ज होना और बहुत ज्‍यादा खुजली होना।
  • योनि अर्श:
    लाल-सफेद बदबूदार डिस्‍चार्ज के साथ गर्भाशय का बढ़ना और पॉलीप्लोइडल (क्रोमोज़ोम के दो से अधिक सैट) का विकास होना।
  • उपपलुत योनिव्‍यापद:
    सफेद रंग का चिपचिपा गाढ़ा डिस्‍चार्ज। इसमें महिला को योनि में चुभने वाला दर्द भी महसूस हो सकता है।
  • अत्‍यानंद योनिव्‍यापद:
    साफ-सफाई की कमी के कारण सफेद पानी आने के साथ-साथ बहुत खुजली होना। (और पढ़ें - खुजली दूर करने के घरेलू उपाय)
  • कर्णिनी योनिव्‍यापद:
    सफेद पानी का आना। इसमें गर्भाशय ग्रीवा के बाहरी हिस्‍से में लाल या सूजन वाला धब्‍बा भी पड़ सकता है। (और पढ़ें - गर्भाशय ग्रीवा में सूजन के लक्षण)

ज्‍यादा खाने, मानसिक तनाव, प्राकृतिक इच्‍छाओं को दबाने, योनि में लगातार नमी बने रहना, लंबे समय तक गंदा अंडरवियर पहनना और साफ-सफाई का ध्‍यान न रखना ल्‍यूकोरिया का कारण है। औषधीय तेल या काढ़ा जैसे कि निंबा पत्र क्‍वाथ (नीम की पत्तियों से बना काढ़ा) से योनि की सफाई कर या औषधियों को लगाकर ल्‍यूकोरिया की समस्‍या को कम करने में मदद मिलती है।

(और पढ़ें - तनाव कैसे दूर करे)

आयुर्वेद में ल्‍यूकोरिया के इलाज के लिए कफघ्‍न (कफ का नाश) गुणों से युक्‍त जड़ी बूटियों और औषधियों का उल्‍लेख किया गया है। योनि में संक्रमण के कारणों के दूर करके भी ल्‍यूकोरिया को रोका जा सकता है। 

Women Health Supplements
₹719  ₹799  10% छूट
खरीदें

आयुर्वेद में ल्‍यूकोरिया के इलाज के लिए निम्‍न चिकित्‍सा की सलाह दी जाती है:

  • वर्ती
    • योनि वर्ती को (योनि सपोजिटरी) यष्टिमधु (मुलेठी) (बारीक पिसे पाउडर), लोध्र के साथ मधु (शहद) या निम्‍बा (नीम) (बारीक पिसा पाउडर), त्रिफला (आमलकी,‍ विभीतकी और हरीतकी का मिश्रण) और फिटकरी के साथ शहद से तैयार किया गया है।
    • मासिक धर्म के 8 से 10 दिन के बाद इसका इस्‍तेमाल किया जाता है।
       
  • धूपन
    • धूपन की इलाज प्रक्रिया में योनि वाले हिस्‍से में धूप (धुआं) दी जाती है।
    • यव (जौ), तिल और गुग्‍गुल के साथ घी (घी/क्‍लैरिफाइड मक्‍खन) या दारुहरिद्रा और हरीद्रा (हल्‍दी) से धूपन किया जाता है।
       
  • पिछू
    • पिछू एक सूती कपड़े को लंबे धागे से बांधकर बनाया गया टैम्‍पोन (रूई का फाहा) है। इससे योनि में लगातार औषधि रिलीज़ होती रहती है जिससे ल्‍यूकोरिया को नियंत्रित करने में मदद मिलती है।
    • आयुर्वेद में योनि में औषधि डालने के सबसे आसान तरीकों में से एक है योनि पिछू। ज्‍यादा गहराई तक औषधि को पहुंचाने के लिए लंबे या गोल पिछू का इस्‍तेमाल किया जाता है। पिछू को योनि में 5 से 6 घंटे के लिए लगाया जाता है जब तक कि महिला को पेशाब न आए।
    • ल्‍यूकोरिया के इलाज के लिए पिछू में औषधि के रूप में जात्यादि तेल, करंज तेल, धातक्यादि तेल और न्‍यग्रोदाधि कषाय का इस्‍तेमाल किया जाता है।
       
  • प्रक्षालन
    • प्रक्षालन कर्म में योनि को औषधि या काढ़े से धोना होता है। ल्‍यूकोरिया में योनि को साफ करने के लिए प्रक्षालन में क्‍वाथ (काढ़े) या चूर्ण (पाउडर) का इस्‍तेमाल किया जाता है।
    • मासिक धर्म के 8 से 10 दिन के बाद ल्‍यूकोरिया से ग्रस्‍त महिला को न्‍यग्रोदाधि क्‍वाथ, निम्‍बा पत्र क्‍वाथ, पंचवल्कल क्‍वाथ, लोध्र क्‍वाथ या चंदन क्‍वाथ दिया जाता है।
    • फिटकरी चूर्ण, त्रिफला क्‍वाथ, गोमूत्र और छाछ से बना काढ़ा या त्रिफला, गुडुची और दंती क्‍वाथ का मिश्रण मासिक धर्म के 8 से 10 दिन बाद दिया जाता है।
    • भोजन के बाद पुष्यानुग चूर्ण खाने के लिए या डॉक्‍टर के निर्देशानुसार दिया जाता है। ये योनि को साफ करने में मदद करता है। (और पढ़ें - भोजन का सही समय)
    • ल्‍यूकोरिया के इलाज में हर्बल मिश्रण जैसे कि पंचवल्कल क्‍वाथ, निम्‍बा पत्र क्‍वाथ और फिटकरी जल से योनि को साफ करने की सलाह भी दी जाती है।
       
  • अग्‍नि कर्म
    • अग्नि कर्म में त्‍वचा, रक्‍त वाहिकाओं, हड्डियों और मांसपेशियों के रोग का इलाज किया जाता है। इसमें प्रभावित हिस्‍से पर प्रत्यक्ष या अप्रत्‍यक्ष रूप से अग्नि (सिकाई) की जाती है। ये रोग को दोबारा होने से भी रोकता है।
    • स्‍त्री और प्रसूति रोगों के इलाज के लिए अग्‍नि कर्म का इस्‍तेमाल किया जाता है। इस प्रक्रिया से ल्‍यूकोरिया को रोका जा सकता है क्‍योंकि ये योनि के अंदर के परजीवियों को मार देता है और प्रभावित हिस्‍से को कीटाणुरहित बनाने में मदद करता है।
    • इसका उपयोग प्रमुख तौर पर गर्भाशय ग्रीवा के कैंसर बनाने वाले ऊतकों में बने घाव को दूर करने के लिए किया जाता है, जिसका संबंध ल्‍यूकोरिया से होता है।
       
  • क्षार कर्म
    • इसमें रोग के इलाज के लिए दाहक (जलाने वाले) तत्‍वों का इस्‍तेमाल किया जाता है। आयुर्वेद में इसे श्रेष्‍ठ उपचार के रूप में वर्गीकृत किया गया है। ये चिकित्‍सा शरीर के उन हिस्‍सों का इलाज करने में उपयोगी है जहां पर पहुंच पाना मुश्किल होता है। इस चिकित्‍सा में तेजो भुता (अग्‍नि तत्‍व) गुण रखने वाले क्षार (दाहक) तत्‍व दिए जाते हैं जोकि खराब ऊतकों को खत्‍म करने का काम करते हैं। इस तरह क्षार कर्म द्वारा इलाज किया जाता है।
    • जड़ी बूटियों से अग्‍नि कर्म करना गर्भाशय ग्रीवा के बाहरी हिस्‍से के घावों का इलाज करने में असरकारी है। ये रोग के दोबारा होने का खतरा भी कम करता है एवं यह विद्युत (बिजली) क्षार कर्म से ज्‍यादा प्रभावी है।
    • ल्‍यूकोरिया के अलावा क्षार कर्म जननांग में मस्‍सा, पुराना या असाध्‍य सर्वाइकल अल्सर और सर्वाइकल पॉलीप्स के इलाज में उपयोगी है। 

(और पढ़ें - सर्वाइकल कैंसर क्या होता है)

Pushyanug Churna
₹450  ₹499  9% छूट
खरीदें

ल्‍यूकोरिया के लिए आयुर्वेदिक जड़ी बूटियां

  • आमलकी
    • आमलकी में विटामिन सी प्रचुर मात्रा में होता है और ये ऊर्जादायक एवं पोषण देने वाले शक्‍तिवर्द्धक के रूप में कार्य करता है। ये अल्‍सर, जठरांत्र से संबंधित विकारों, आतंरिक ब्‍लीडिंग और दर्दभरी सूजन से राहत दिलाने में मदद करता है। (और पढ़ें - सूजन दूर करने के तरीके)
    • आमलकी दीर्घायु और जीवन की गुणवत्ता में सुधार लाता है। इसमें शोधन (सफाई) और कीड़ों को नष्‍ट करने वाले गुण मौजूद होते हैं जोकि इसे ल्‍यूकोरिया में उपयोगी बनाते हैं। ये शरीर को कीड़ों के कारण हुए संक्रमण से बचाता है और योनि की सफाई करता है।
    • आमलकी त्रिदोष पर कार्य करता है और कई रोगों जैसे कि अम्‍लपित्त (एसिडिटी), रक्‍तपित्त (ब्‍लीडिंग विकार) एवं दाह (जलन) के इलाज में मदद करता है।
    • ये काढ़े, मिठाई और पाउडर के रूप में उपलब्‍ध है। आप आमलकी चूर्ण को शहद, पानी, चीनी के साथ या डॉक्‍टर के निर्देशानुसार ले सकते हैं।
       
  • चोपचीनी
    • ये जड़ी बूटी चीन में मिलती है। इसमें मूत्रवर्धक, शक्‍तिवर्द्धक, कामोत्तेजक (लिबिडो बढ़ाने वाले), संकुचक और शांतिदायक (श्लेष्म झिल्ली को सुरक्षा देने वाले) गुण मौजूद होते हैं। प्रमुख तौर पर इसका इस्‍तेमाल वात के असंतुलन के कारण हुए रोगों में किया जाता है। (और पढ़ें - कामेच्छा बढ़ाने के उपाय)
    • चोपचीनी में एंटीबायोटिक और एंटीबैक्‍टीरियल गुण होते हैं जोकि शरीर में संक्रमण होने से रोकते हैं या संक्रमण को खत्‍म करने में मदद करते हैं। इसलिए, ये माइक्रोबियल संक्रण के कारण हुए ल्‍यूकोरिया के इलाज में मदद करता है।
    • उपदंश (सिफलिस) जैसे त्‍वचा विकारों और मिर्गी एवं गठिया जैसे तंत्रिका रोगों के इलाज में भी इसका इस्‍तेमाल किया जाता है। चोबचीन के प्रकंद (राइजोम - एक पौधे का क्षैतिज तना जो नई जड़ें और अंकुर बनाता है) से बने पेस्‍ट का इस्‍तेमाल सूजन को कम करने के लिए किया जाता है।
    • आप पानी के साथ चोपचीनी चूर्ण या डॉक्‍टर के निर्देशानुसार ले सकते हैं।
       
  • लोध्र
    • लोध्र में लघु (हल्‍का) गुण होता है। पाचन के बाद लोध्र कटु (तीखा) बन जाती है इसलिए शरीर को ठंडक देने के लिए इसका इस्‍तेमाल किया जाता है।
    • शरीर में खराब हुए रक्‍त दोष को कम करने के लिए लोध्र का इस्‍तेमाल किया जाता है। ये कफ और पित्त दोष को भी ठीक करती है। जठरांत्र विकारों के इलाज और घाव को जल्‍दी ठीक करने के लिए इसका इस्‍तेमाल किया जाता है। (और पढ़ें - घाव भरने का देसी इलाज)
    • विभिन्‍न स्‍त्री रोगों के उपचार में ये जड़ी बूटी उपयोगी होती है। इन स्‍त्री रोगों में ल्‍यूकोरिया और मासिक धर्म से संबंधित विकार भी शामिल हैं।
    • लोध्र कई तरह के रोगजनक जीवाणुओं जैसे कि ई कोलाई और माइक्रोकोकस पायोजिनेज को बढ़ने से रोकती है। इसमें जीवाणु और सूजनरोधी गुण भी होते हैं जोकि इसे ल्‍यूकोरिया के इलाज में उपयोगी बनाती है। ये योनि के स्राव को भी कम करती है।
    • आप लोध्र चूर्ण को तंडुलोदक (चावल का पानी) के साथ या डॉक्‍टर के निर्देशानुसार ले सकते हैं।

ल्‍यूकोरिया के लिए आयुर्वेदिक औषधियां

  • त्रिफला गुग्‍गुल
    • त्रिफला गुग्‍गुल एक हर्बल काढ़ा है जोकि त्रिफला, त्रिकटु (तीन कषाय पिप्‍पली, शुंथि [सोंठ] और मारीच [काली मिर्च] का मिश्रण) एवं गुग्‍गुल से बना है।
    • संधिशोथ (रूमेटाइड आर्थराइटिस), साइटिका, मूत्र मार्ग से संबंधित रोग, ल्यूकोरिया और ऑस्टियोआर्थराइटिस के इलाज में इसका इस्‍तेमाल किया जाता है।
    • त्रिफला गुग्‍गुल मेदोरोग (मेद धातु के रोग) और वातव्‍याधि (वात के खराब होने के कारण हुए रोग) के इलाज में मदद करता है।
    • आप त्रिफला गुग्‍गुल वटी (गोली) को उशीर कषाय (खसखस का काढ़ा), दूध या पानी के साथ या डॉक्‍टर के निर्देशानुसार ले सकते हैं।
       
  • कैशोर गुग्‍गुल
    • कैशोर गुग्‍गुल एक हर्बल सूत्र है जिसमें गुडुची, त्रिकटु, त्रिफला, गाय का घी, विडंग और 18 अन्‍य सामग्रियां मौजूद हैं। डायबिटीक फोड़े, जीर्ण (पुराने) आर्थराइटिस, एनीमिया, जलोदर (पेट का बड़ा दिखना), पुराना घाव, ल्‍यूकोरिया और त्‍वचा रोगों में इस औषधि का इस्‍तेमाल किया जाता है। (और पढ़ें - एनीमिया का आयुर्वेदिक इलाज)
    • कैशोर गुग्‍गुल वात को साफ करती है इसलिए ये वातरक्‍त (गठिया) और वातव्‍याधि में उपयोगी है।
    • आप कैशोर गुग्‍गुल वटी को दूध या पानी के साथ या डॉक्‍टर के निर्देशानुसार ले सकते हैं।
       
  • चंद्रप्रभा वटी
    • चंद्रप्रभा वटी को शिलाजीत, सेंधा नमक, अ‍तिविषा (अतीस), त्रिफला, वच और 42 अन्‍य सामग्रियों से तैयार किया गया है।

      myUpchar Ayurveda द्वारा तैयार किए गए Urjas शिलाजीत कैप्सूल में 100% शुद्ध शिलाजीत है, जो शारीरिक क्षमता और ऊर्जा को बढ़ाता है. यह आयुर्वेदिक पद्धति से तैयार है और किसी भी केमिकल का इस्तेमाल नहीं हुआ है।आज ही आर्डर करे व लाभ उठाये 
       
    • इस औषधि का इस्‍तेमाल मूत्र असंयमिता (पेशाब न रोक पाने), धात रोग (सेक्‍स की भावना बढ़ जाना), ल्‍यूकोरिया, डायबिटीज इन्सिपिडस (प्‍यास ज्‍यादा लगना और अधिक पेशाब आना) और मूत्र-जननांग प्रणाली से संबंधित रोगों के इलाज में किया जाता है। मूत्र या जननांग रोगों से ग्रस्‍त व्‍यक्‍ति को सर्जरी के बाद निवारक दवा के रूप में चंद्रप्रभा वटी दी जाती है।
    • आप चंद्रप्रभा वटी को दूध, पानी या शहद के साथ या डॉक्‍टर के निर्देशानुसार ले सकते हैं।

व्‍यक्‍ति की प्रकृति और कई कारणों के आधार पर चिकित्‍सा पद्धति निर्धारित की जाती है इसलिए उचित औषधि और रोग के निदान हेतु आयुर्वेदिक चिकित्‍सक से परामर्श करें।

(और पढ़ें - गर्भावस्था में योनि से सफेद पानी आना)

myUpchar के डॉक्टरों ने अपने कई वर्षों की शोध के बाद आयुर्वेद की 100% असली और शुद्ध जड़ी-बूटियों का उपयोग करके myUpchar Ayurveda Madhurodh Capsule बनाया है। इस आयुर्वेदिक दवा को हमारे डॉक्टरों ने कई लाख लोगों को डायबिटीज के लिए सुझाया है, जिससे उनको अच्छे प्रभाव देखने को मिले हैं।
Sugar Tablet
₹899  ₹999  10% छूट
खरीदें

क्‍या करें

क्‍या न करें

एक चिकित्‍सकीय अध्‍ययन में ल्यूकोरिया से ग्रस्‍त 104 महिलाओं को दो समूह में बांटा गया था। एक समूह की महिलाओं को निंबादि योनि वर्ती और अन्‍य समूह को क्‍लिंजेन वजाईनल सपोजिटरी दिया गया। निंबादी योनि वर्ती ले रहे समूह की लगभग 70 प्रतिशत महिलाओं को ल्यूकोरिया के लक्षणों से राहत मिली जबकि क्‍लिंजेन वजाईनल सपोजिटरी ले रहे समूह में 66 प्रतिशत महिलाओं की स्थिति में सुधार आया।

ल्यूकोरिया से ग्रस्‍त कुछ महिलाओं में करंज से योनि को साफ करने के प्रभाव की जांच के लिए एक अन्‍य अध्‍ययन किया गया था। इस अध्‍ययन में पता चला कि करंज ल्यूकोरिया के इलाज में प्रभावी है और इससे ल्यूकोरिया एवं उसके लक्षणों से छुटकारा पाया जा सकता है।

चंद्रप्रभा वटी के प्रभाव की जांच के लिए एक अन्‍य शोध में ल्यूकोरिया से ग्रस्‍त 25 म‍हिलाओं को शामिल किया गया था। कषाय (संकुचक) गुण होने के कारण चंद्रप्रभा वटी से खराब कफ में कमी देखी गई। इससे कफ और रस धातु में भी सुधार आया और महिलाओं में योनि से सफेद पानी का स्राव भी कम हुआ। 

(और पढ़ें - ल्यूकोरिया का देसी इलाज)

आयुर्वेदिक चिकित्‍सक की देखरेख में आयुर्वेदिक औषधियों की उचित खुराक लेना सुरक्षित माना जाता है। हालांकि, इनके कुछ हानिकारक प्रभाव भी हो सकते हैं जोकि व्‍यक्‍ति की प्रकृति और रोग की स्थिति पर निर्भर करते हैं। उदाहरण के तौर पर, शरीर में अत्‍यधिक पित्त होने पर आमलकी के कारण दस्‍त लग सकते हैं। 

(और पढ़ें - योनि स्राव (डिस्चार्ज) के प्रकार)

यहां समान श्रेणी की दवाएं देखें

ल्यूकोरिया के कारण महिलाओं को बहुत असहज महसूस होता है और कभी-कभी कुछ महिलाओं को बहुत तेज दर्द भी होता है। आयुर्वेदिक जड़ी बूटियां और मिश्रण संक्रमण पैदा करने वाले रोगाणुओं को कम या नष्‍ट कर देते हैं और योनि से सफेद पानी के स्राव को कम कर शरीर में रस एवं कफ को वापिस से संतुलित करते हैं। इस तरह आयुर्वेदिक जड़ी बूटियों और औषधियों से ल्यूकोरिया को नियंत्रित किया जाता है।

हर्बल सपोजिटरी और योनि की सफाई करने वाले उपचारों से ल्यूकोरिया के इलाज एवं योनि को साफ रखने में मदद मिलती है। ल्यूकोरिया के लिए आयुर्वेदिक उपचार के प्रभाव को बढ़ाने के लिए संतुलित आहार खाने की भी सलाह दी जाती है। 

(और पढ़ें - संतुलित आहार किसे कहते है)

Dr Bhawna

Dr Bhawna

आयुर्वेद
5 वर्षों का अनुभव

Dr. Padam Dixit

Dr. Padam Dixit

आयुर्वेद
10 वर्षों का अनुभव

Dr Mir Suhail Bashir

Dr Mir Suhail Bashir

आयुर्वेद
2 वर्षों का अनुभव

Dr. Saumya Gupta

Dr. Saumya Gupta

आयुर्वेद
1 वर्षों का अनुभव

संदर्भ

  1. Kamini Dhiman. Leucorrhoea In Ayurvedic Literature - A Review. Ayurpharm - International Journal of Ayurveda and Allied Sciences, 2014;3(3):73-78.
  2. Ministry of AYUSH, Govt. of India. Ayurvedic Standard Treatment Guidelines. [Internet]
  3. Kumar Ajay. Ayurvedic Parasurgical Procedures Commonly Used in Female Reproductive Diseases. International Journal of Health Sciences & Research, Vol.6; Issue: 7; July 2016.
  4. Ministry of AYUSH, Govt. of India. The Ayurvedic Pharmacopoeia Of India. [Internet]
  5. Rajiv Gandhi Government Post Graduate Ayurvedic College. Kayachikitsa . Paprola, Himachal Pradesh. [Internet].
  6. Pooja Singh, Rajeev Singh , L N Gupta, Neeraj Kumar. Lodhra- A Single Remedy For Different Ailments. International Journal of Pharmaceutical & Biological Archives 2015; 6(1): 1 - 7.
  7. Oushadhi. Gulika & Tablets. Govt of Kerala. [Internet]
  8. Prof. G.S. Lavekar. Classical Ayurvedic Prescriptions for common Diseases. Central Council for Research in Ayurveda and Siddha. Department of AYUSH, Ministry of Health & Family Welfare, Government of India.
  9. Ministry of AYUSH, Govt. of India. Ayush Research Portal. [Internet]
  10. T. Borah, J. Choudhury, D. Baruah, B. K. Bharali. Effect Of Candraprabhavati And Pu~Yanugac~A In Svetapradara. Aryavaidyan Vol.27, No.1, August - October, 2013, Pages 54 - 56.
ऐप पर पढ़ें