गर्भाशय या बच्चेदानी में रसौली को यूटेराइन फाइब्रॉएड भी कहा जाता है। इसमें गर्भाशय में और इसकी दीवारों के आसपास गैर-कैंसरकारी (बिनाइन) मांसल ट्यूमर बनने लगता है। इसे म्‍योमा, फाइब्रोमा या लिओम्‍योमा के नाम से भी जाना जाता है। ये तंतुमय संयोजी ऊतकों और नरम मांसपेशीय कोशिकाओं से मिलकर बने होते हैं।

आंकड़ों की मानें तो प्रजनन उम्र में लगभग 20 से 50 फीसदी महिलाएं गर्भाशय में रसौली की समस्‍या से ग्रस्‍त होती हैं, लेकिन सभी में इसका निदान नहीं हो पाता है। हर महिला में रसौली का आकार अलग-अलग होता है एवं यह मटर के दाने से लेकर एक अंगूर के जितनी बड़ी हो सकती है। इनकी स्थिति और संख्‍या भी अलग हो सकती है।

हालांकि, गर्भाशय में रसौली के सटीक कारण का पता अब तक नहीं चल पाया है, लेकिन ऐसा कहा जाता है कि इसमें प्रोजेस्‍टेरोन और एस्‍ट्रोजन हार्मोन अहम भूमिका निभाते हैं। गर्भाशय में रसौली के कुछ जोखिम कारक इस प्रकार हैं :

  • उम्र :
    गर्भाशय में अधिकतर रसौली 30 से 40 वर्ष की उम्र में देखी जाती है। आमतौर पर रजोनिवृत्ति के बाद रसौली सिकुड़ जाती है।
     
  • परिवार में पहले किसी को रसौली रही हो :
    अगर आपके परिवार में किसी को रसौली रही हो या अब भी हो तो आपमें भी इसके होने का खतरा रहता है।
     
  • जाति :
    अफ्रीका और अमेरिका की महिलाओं में रसौली के विकसित होने का खतरा सबसे ज्‍यादा रहता है।
     
  • मोटापा :
    ओवरवेट महिलाओं में रसौली का खतरा अधिक रहता है।
     
  • खानपान संबंधी आदतें :
    ऐसा माना जाता है कि रेड मीट बहुत ज्‍यादा खाने से रसौली होने का जोखिम बढ़ जाता है, जबकि हरी सब्जियां खाने से कम होता है।

होम्‍योपैथी में हर व्‍यक्‍ति के लिए विशेष रूप से दवाओं के मिश्रण को तैयार किया जाता है। कोई भी औषधि देने से पहले होम्‍योपैथिक चिकित्‍सक मरीज की क्‍लीनिकल हिस्‍ट्री (पहले और वर्तमान में किसी स्‍वास्‍थ्‍य समस्‍या से ग्रस्‍त होने की जानकारी) और दिख रहे लक्षणों के साथ-साथ जीवनशैली, आनुवांशिक कारकों और व्‍यक्‍तित्‍व पर भी ध्‍यान देते हैं।

इससे मरीज को न केवल लक्षणों से छुटकारा मिलता है, बल्कि उसकी संपूर्ण सेहत में सुधार आता है। गर्भाशय में रसौली के इलाज में उपयोगी होम्‍योपैथी दवाओं में औरम म्‍यूरिएटिकम नैट्रोनेटम, कैल्‍केरिया कार्बोनिका, लाइकोपोडियम क्‍लेवेटम, फॉस्‍फोरस, पल्सेटिला प्रेटेंसिस, सेपिया ऑफिसिनेलिस, सल्‍फर और थूजा ऑक्सीडेंटलिस शामिल हैं।

  1. बच्चेदानी में रसौली की होम्योपैथिक दवा - Uterine fibroids ki homeopathic dawa
  2. होम्योपैथी में गर्भाशय में रसौली के लिए खान-पान और जीवनशैली में बदलाव - Homeopathy me Uterine fibroids ke liye khan pan aur jeevan shaili me badlav
  3. गर्भाशय में रसौली की होम्योपैथी दवा कितनी लाभदायक है - Bachedani me rasoli ki homeopathic dava kitni faydemand hai
  4. बच्चेदानी में रसौली के होम्योपैथिक इलाज के नुकसान और जोखिम कारक - Uterine fibroids ki homeopathic dawa ke nuksan aur jokhim karak
  5. यूटेराइन फाइब्रॉइड के होम्योपैथिक उपचार से जुड़े अन्य सुझाव - Bachedani me rasoli ke homeopathic upchar se jude anya sujhav
गर्भाशय में रसौली की होम्योपैथिक दवा और इलाज के डॉक्टर

गर्भाशय में रसौली के लिए इस्‍तेमाल होने वाली होम्‍योपैथिक दवाएं इस प्रकार हैं :

  • औरम म्‍यूरिएटिकम नैट्रोनेटम (Aurum Muriaticum Natronatum)
    सामान्‍य नाम :
    सोडियम क्‍लोरोऔरेट (Sodium chloroaurate)
    लक्षण : गर्भाशय में रसौली पर किसी अन्‍य दवा से कई ज्‍यादा औरम म्‍यूरिएटिकम नैट्रोनेटम असर करती है। जिन लोगों को इस दवा से लाभ होता है, उनमें निम्‍न लक्षण दिखाई देते हैं :
  • कैल्‍केरिया कार्बोनिका (Calcarea Carbonica)
    सामान्‍य नाम :
    कार्बोनेट ऑफ लाइम (Carbonate of lime)
    लक्षण : ये दवा निम्‍न लक्षणों में दी जाती है :
    • भूलने की बीमारी और उलझन में रहना
    • चिंता के साथ घबराहट महसूस होना 
    • ऊपरी होंठ में सूजन
    • चेहरे का पीला पड़ना और आंखों का अंदर धंसने के साथ ही आंखों पर काले घेरे बनना
    • माहवारी से पहले सिरदर्द, ठंड लगना और लिकोरिया
    • माहवारी के दौरान गर्भाशय में तेज दर्द होना
    • माहवारी के दौरान ज्‍यादा और लंबे समय तक ब्‍लीडिंग होना
    • पीरियड्स में सिर चकराना, दांत में दर्द और पैरों का ठंडा रहना
    • गर्भाशय का आसानी से अपनी जगह से हट जाना
    • माहवारी के बाद और पहले यौन अंगों में खुजली व जलन
    • यौन इच्‍छा में वृद्धि होना
    • मानसिक और शारीरिक थकान, नमीयुक्‍त हवा एवं बारिश के मौसम में लक्षण और बढ़ जाते हैं। शुष्‍क मौसम में लक्षणों में सुधार होता है।
  • लाइकोपोडियम क्‍लेवेटम (Lycopodium Clavatum)
    सामान्‍य नाम :
    क्‍लब मॉस (Club moss)
    लक्षण : ये दवा तब तक असर नहीं करती है, जब तक कि क्‍लब मॉस बीजाणुओं को मसला न जाए। जिन लोगों में निम्‍न लक्षण दिखाई देते हैं, उन्‍हें लाइकोपोडियम लेने की सलाह दी जाती है :
    • याददाश्‍त कमजोर होने के साथ उलझन भरे विचार आना
    • गालों में सूजन के साथ दर्द या दांत में दर्द
    • एक्‍ने होना
    • बदबूदार पसीना आना
    • माहवारी देर से आना और लंबे समय तक एवं बहुत ज्‍यादा ब्‍लीडिंग होना
    • योनि में सूखापन
    • सेक्स के दौरान दर्द होना
    • लिकोरिया के साथ योनि में जलन
    • चेहरे का रंग भूरा-पीला पड़ने के साथ आंखों के आसपास नीले घेरे आना
    • मल त्‍याग करते समय यौन अंगों से खून आना
    • गर्मी से लक्षण और बढ़ जाते हैं
  • फॉस्‍फोरस (Phosphorus)
    सामान्‍य नाम :
    फॉस्‍फोरस (Phosphorus)
    लक्षण : आमतौर पर फॉस्‍फोरस लंबे और कम चौड़ी छाती वाले पतले लोगों को दी जाती है। ये निम्‍न लक्षणों के इलाज में मददगार है :
    • पतली और पारदर्शी त्‍वचा
    • डर लगना और उदासीनता
    • बेचैन और व्‍याकुल रहना
    • चेहरे की रंगत पीली पड़ना और बीमार लगना
    • जबड़े के निचले हिस्‍से में सूजन
    • मेट्राइटिस
    • समय से पहले माहवारी आना और लंबे समय तक रहना
    • अत्‍यधिक यौन इच्‍छा होना
    • गर्भाशय की लाइनिंग में कोशिकाओं का बढ़ना (यूटेराइन पोलिप्‍स)
    • घाव से बहुत ज्‍यादा ब्‍लीडिंग होना, यहां तक कि मामूली चोट लगने पर भी
    • मासिक धर्म न आना (एमेनोरिया)
    • थकान होने, छूने, गर्म खाद्य या पेय पदार्थ लेने पर लक्षण बढ़ जाते हैं। अंधरे, ठंडा खाने से, ठंडी या खुली हवा में लक्षण बेहतर होते हैं।
  • पल्सेटिला प्रेटेंसिस (Pulsatilla Pratensis)
    सामान्‍य नाम :
    विंड फ्लॉवर (Wind flower)
    लक्षण : ये दवा उन लोगों पर बेहतर असर करती है जो बहुत ज्‍यादा भावनात्‍मक होते हैं और आसानी से रोने लगते हैं एवं दुखी हो जाते हैं। निम्‍न लक्षणों के लिए अक्‍सर इस दवा का इस्‍तेमाल किया जाता है :
    • प्‍यास कम लगने के साथ ठंड लगना
    • फैट युक्‍त आहार लेने के बाद पित्ती (लाल रंग के खुजलीदार और उभरे हुऐ चकत्ते)
    • एमेनोरिया (मासिक धर्म न आना)
    • देर से, कम समय के लिए मासिक धर्म आना, जिसमें दर्द भी हो, गाढ़ी और गहरे रंग की ब्‍लीडिंग होना
    • जी मतली
    • योनि से गाढ़ा सफेद पानी आना, जिसमें जलन भी हो
    • कमर दर्द और थकान
    • मासिक धर्म के दौरान और बाद में दस्‍त
    • गर्मी, वसायुक्‍त चीजें खाने, खाने के बाद और गर्म कमरे में लक्षणों में सुधार आता है। खुली हवा, चलने पर, ठंडे पेय एवं खाद्य पदार्थ खाने पर लक्षणों में सुधार आता है
  • सेपिया ऑफिसिनेलिस (Sepia Officinalis)
    सामान्‍य नाम :
    कटलफिश का स्याही के रंग का जूस (Inky juice of cuttlefish)
    लक्षण : सेपिया चिड़चिड़े और उदास रहने वाले लोगों को दी जाती है जो कि आसानी से गुस्‍सा हो जाते हैं और अक्‍सर उदास रहते हैं। निम्‍न लक्षणों के इलाज में भी सेपिया उपयोगी है :
    • गर्म कमरे में भी ठंड लगना
    • कमजोरी और रंग पीला पड़ना
    • ऐसा महसूस होना जैसे कि पेल्विक अंग (पेट और जांघों के बीच का हिस्‍सा) योनि के जरिए बाहर आ जाएंगे
    • खुजली के साथ हरे-पीले रंग का लिकोरिया
    • अनियमित माहवारी के साथ तेज दर्द
    • गर्भाशय और योनि का अपनी जगह से बाहर बढ़ना
    • मॉर्निंग सिकनेस (उल्टी और मतली)
    • संभोग के दौरान योनि में दर्द होना
    • शाम के समय, गीले में, ठंडी हवा और पसीना आने के बाद लक्षण गंभीर हो जाते हैं। व्‍यायाम करने, दबाव बनाने या प्रभावित हिस्‍से पर गरमाई देने से लक्षणों में आराम मिलता है
  • सल्‍फर (Sulphur)
    सामान्‍य नाम :
    सब्‍लिमेटिड सल्‍फर (Sublimated sulphur)
    लक्षण : जो लोग ज्यादा खाने पर भी पतले और कमजोर होते हैं, उन्‍हें सल्‍फर दी जाती है। निम्‍न लक्षणों के दिखने पर इस दवा की सलाह दी जाती है :
    • भूलने की आदत और सोचने में दिक्‍कत होना
    • चिड़चिड़ापन और डिप्रेशन
    • रूखी, पपड़ीदार और अस्‍वस्‍थ त्‍वचा
    • मामूली चोट लगने पर भी पस पड़ना
    • योनि में खुजली होना, जिसमें जलन होने के साथ बदबूदार पसीना भी आए
    • अनियमित माहवारी जिसमें पीरियड्स बहुत कम समय के लिए और बहुत देर से आएं
    • माहवारी में गाढ़ी, काले रंग की और बदबूदार ब्‍लीडिंग होना
    • माहवारी से पहले सिरदर्द होना जो कि ब्‍लीडिंग शुरू होते ही बंद हो जाए
    • लिकोरिया जिसमें जलन हो और त्‍वचा को नुकसान पहुंचे
    • बिस्‍तर की गरमाई, नहाने और आराम करने पर लक्षण बढ़ जाते हैं जबकि शुष्‍क और गर्म मौसम में लक्षण बेहतर होते हैं
  • थूजा ऑक्सिडेंटेलिस (Thuja Occidentalis)
    सामान्‍य नाम :
    आर्बर विटे (Arbor vitae)
    लक्षण : ये दवा भावनात्‍मक रूप से संवेदनशील लोगों को दी जाती है, जिनमें निम्‍न लक्षण दिखाई देते हैं :
    • रूखी त्‍वचा के साथ भूरे रंग के धब्‍बे पड़ना
    • ढके रहने वाले हिस्‍सों पर फोड़े-फुंसी होना जो कि खुजलाने पर और बदतर हो जाएं
    • योनि का संवेदनशील होना
    • वल्‍वा (योनिमुख) और पेरिनियम (गुदा और योनिमुख के बीस का हिस्‍सा) पर मस्‍सा
    • अत्‍यधिक, गाढ़ा और हरे रंग का लिकोरिया
    • बाएं अंडाशय और यौन हिस्‍से में दर्द महसूस होना
    • अनियमित मासिक धर्म और माहवारी का देर से आना
    • अंडाशय में सूजन
    • मासिक धर्म से पहले बहुत ज्‍यादा पसीना आना
    • ठंड, नमीयुक्‍त हवा और रात के समय लक्षण बढ़ जाते हैं

आहार एंव जीवनशैली से जुड़ी कुछ आदतें होम्‍योपैथिक दवाओं पर प्रभाव डाल सकती हैं। इसलिए आपको ये जान लेना चाहिए कि किन चीजों और आदतों का असर होम्‍योपैथी दवाओं पर पड़ सकता है। होम्‍योपैथिक औषधि लेने के दौरान आपको जिन बातों का ध्‍यान रखना चाहिए, वो इस प्रकार हैं :

क्‍या करें :

  • रोज व्‍यायाम करें
  • वजन को संतुलित रखें
  • संतुलित आहार लें, जिसमें कई तरह के फल और सब्जियां शामिल हों

क्‍या न करें :

  • पेय पदार्थ जैसे कि कॉफी, चाइनीज टी, हर्बल टी और औषधीय तत्‍वों से बनी बियर न पिएं
  • अत्‍यधिक मसालेदार खाना, मसालेदार केक और चॉकलेट, ठंडी चीजें, अजमोद, प्‍याज, लहसुन, बासी चीज और मीट न खाएं
  • चीनी और नमक का सेवन कम कर दें
  • तेज खुशबू वाली चीजों जैसे कि कॉस्‍मेटिक्‍स, टेलकम पाउडर और परफ्यूम का इस्‍तेमाल करने से बचें
  • गर्म कपड़ों, गर्म कमरे, गतिहीन जीवनशैली, धूम्रपान और दोपहर में कई घंटों तक सोने से बचें
  • जितना हो सके तनाव से दूर रहें

आमतौर पर बच्‍चेदानी में रसौली के उपचार में रसौली को बढ़ने से रोकने और धीमा करने के लिए दवाएं, हार्मोन थेरेपी और उस हिस्‍से की खून की आपूर्ति रोकना शामिल है। कुछ मामलों में बच्‍चेदानी ही निकालने की जरूरत पड़ जाती है। इस सर्जरी को हिस्‍टेरेक्‍टोमी कहते हैं, जिसमें अक्‍सर मासिक धर्म आना बंद हो जाता है। प्राकृतिक रूप से रजोनिवृत्ति होने के मुकाबले इस स्थिति के लक्षण गंभीर और लंबे समय तक रहते हैं।

वहीं दूसरी ओर, होम्‍योपैथिक दवाएं इम्‍युनिटी को मजबूत करती हैं, रसौली की वृद्धि को कम करती हैं, हार्मोन को संतुलन में लाती हैं और मासिक धर्म के दौरान अत्‍यधिक ब्‍लीडिंग के साथ-साथ दर्द (बच्‍चेदानी में रसौली से ग्रस्‍त महिलाओं में आमतौर पर ऐसा देखा जाता है) को भी कम करती हैं।

एक मामले के अध्‍ययन में पाया गया कि होम्‍योपैथी दवा पल्‍सेटिला गर्भाशय में रसौली की वृद्धि को कम कर सकती है। इस अध्‍ययन में बताया गया कि जो महिलाएं बच्‍चेदानी में रसौली के लिए सर्जरी नहीं करवाना चाहती हैं, उनके लिए होम्‍योपैथिक दवाएं वरदान साबित हो सकती हैं। चूंकि, होम्‍योपैथी दवाएं प्रा‍कृतिक होती हैं और इनके कोई दुष्‍प्रभाव भी नहीं होते, इसलिए इनका सेवन गर्भावस्‍था के दौरान भी किया जा सकता है।

(और पढ़ें - बच्चेदानी में कैंसर क्यों होता है)

गर्भाशय में रसौली से जुड़ी अन्‍य समस्‍याओं जैसे कि बांझपन, मिसकैरेज (किसी कारण गर्भपात होना) और समय से पहले प्रसव का भी होम्‍योपैथी से इलाज किया जा सकता है। भारत में हाल ही में हुए एक अध्‍ययन में पाया गया कि होम्‍योपैथिक दवाएं जैसे कि थूजा, औरम और सेपिया बच्‍चेदानी में रसौली के कारण हुए बांझपन का इलाज करने में असरकारी हैं।

होम्‍योपैथी दवाएं बहुत पतली होने के साथ-साथ सुरक्षित और असरकारी होती हैं एवं मरीज को इनकी लत भी नहीं पड़ती है। हालांकि, हर मरीज के लक्षणों और स्थिति की गंभीरता के आधार पर ही होम्‍योपैथिक दवाएं लेने की सलाह दी जाती है।

हो सकता है कि एक व्‍यक्‍ति पर जो दवा असर करे वो किसी अन्‍य मरीज को फायदा न पहुंचा पाए या उसे कोई दुष्‍प्रभाव देखना पड़े। इसलिए हमेशा अनुभवी होम्‍योपैथिक चिकित्‍सक से ही होम्‍योपैथिक उपचार लेना चाहिए।

बच्‍चेदानी में या इसकी दीवारों में रसौली गैर-कैंसरकारी होती है। इनका आकार, स्थिति और संख्‍या अलग हो सकती है। रसौली के एलोपैथी उपचार में लक्षणों को नियंत्रित करने पर ध्‍यान दिया जाता है जबकि होम्‍योपैथी दवाएं लक्षणों को दूर करने के साथ-साथ मरीज की स्‍वास्‍थ्‍य स्थिति में भी सुधार लाती हैं।

होम्‍योपैथी दवाएं रसौली के विकास को कम करने और मरीज की संपूर्ण सेहत में सुधार लाने में मदद करती हैं। कई मामलों के अध्‍ययनों में बच्‍चेदानी में रसौली के इलाज में होम्‍योपैथी दवाओं को असरकारी और सुरक्षित पाया गया है।

कुछ शोधकर्ताओं का कहना है कि जो महिलाएं बच्‍चेदानी में रसौली होने पर सर्जरी से रसौली या बच्‍चेदानी को निकलवाना नहीं चाहती हैं वो होम्‍योपैथिक ट्रीटमेंट ले सकती हैं।

(और पढ़ें - बच्चेदानी की रसौली का ऑपरेशन कैसे होता है)

Dr. Rupali Mendhe

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होमियोपैथ
21 वर्षों का अनुभव

Dr. Rubina Tamboli

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होमियोपैथ
7 वर्षों का अनुभव

Dr. Anas Kaladiya

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होमियोपैथ
5 वर्षों का अनुभव

Dr. Prabhash Kumar Chaudhari

Dr. Prabhash Kumar Chaudhari

होमियोपैथ
5 वर्षों का अनुभव

संदर्भ

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  2. National Institutes of Health; Office of Dietary Supplements. [Internet]. U.S. Department of Health & Human Services; Uterine Fibroids.
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  9. William Boericke. Homsopathic Materia Medica. Kessinger Publishing: Médi-T 1999, Volume 1 Homoeopathic Materia Medica
  10. British Homeopathic Association. Is homeopathy safe?. London; [Internet]
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