डिलीवरी डेट के नजदीक आने से गर्भवती महिला लेबर पेन और डिलीवरी को लेकर कई तरह के भावनात्मक उतार-चढ़ाव महसूस करती है. इस समय वह सिर्फ अपने नवजात से मिलना चाहती है, लेकिन कई बार डिलीवरी डेट निकल जाती है और लेबर पेन शुरू नहीं होता. इस स्थिति में गर्भवती महिला के मन में कई तरह के विचार आने लगते हैं, जैसे कि उसके बच्चे की हेल्थ कैसी होगी, वह शारीरिक तौर पर तो ठीक है. ऐसे में परेशान होने की जगह महिला को एक्टिव और तनाव मुक्त रहने की कोशिश करनी चाहिए.

आज इस लेख में आप जानेंगे कि डिलीवरी डेट निकल जाए, तो क्या करना चाहिए -

(और पढ़ें - डिलीवरी डेट कैसे पता करें?)

  1. डिलीवरी डेट निकल जाने का मतलब
  2. डिलीवरी डेट निकल जाए, तो क्या करते हैं डॉक्टर?
  3. डिलीवरी डेट निकल जाने पर गर्भवती रखे ध्यान
  4. सारांश
  5. डिलीवरी डेट निकल जाने पर क्या करें? के डॉक्टर

डिलीवरी की समय सीमा को अमेरिकन कॉलेज ऑफ ऑब्स्टेट्रिशियंस एंड गायनेकोलॉजिस्ट्स ने कुछ इस तरह परिभाषित किया है-

  • प्रीटर्म बर्थ: 37वें से 38वें हफ्ते के बीच
  • फुल टर्म बर्थ: 39वें से 40वें हफ्ते के बीच
  • लेट टर्म बर्थ: 41वें से 42वें हफ्ते के बीच
  • पोस्ट टर्म बर्थ: 42वें हफ्ते के बाद

अधिकतर बच्चे प्रेगनेंसी के 39वें से 41वें हफ्ते के बीच जन्म लेते हैं. जब बच्चा 42वें हफ्ते तक जन्म नहीं लेता, तो उसे पोस्ट टर्म प्रेगनेंसी या ओवरड्यू प्रेगनेंसी कहा जाता है. शोध की मानें तो 60 प्रतिशत महिलाएं ड्यूडेट पर या उससे पहले बच्चे को जन्म देती है. 100 में से 35 महिलाओं के कॉन्ट्रैक्शन्स ड्यू डेट के 2 हफ्ते के भीतर अपने आप शुरू हो जाते हैं, लेकिन 100 में से 5 महिलाओं के साथ ऐसा देरी से होता है.

यह सच है कि पोस्ट टर्म प्रेगनेंसी के साथ कुछ जोखिम भी आते हैं, लेकिन यह समझना भी जरूरी है कि हर महिला की प्रेगनेंसी अलग तरह की होती है.

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अगर 42वें हफ्ते तक बच्चे का जन्म नहीं होता है, तो गर्भवती महिला की चिंता बढ़ जाती है. ऐसे में डॉक्टर समय-समय पर बेबी के साइज को चेक करेंगे, उसकी हृदय गति को मॉनिटर करेंगे, ये भी चेक करेंगे कि बेबी की पोजीशन कैसी है. इसके अलावा, डॉक्टर महिला से शिशु की प्रतिदिन होने वाली हलचल के बारे में भी पूछ सकते हैं. डॉक्टर अपने स्तर पर कुछ टेस्ट कर सकते हैं. आइए, इसके बारे में विस्तार से जानते हैं -

  1. नॉन स्ट्रेस टेस्ट (एनएसटी)
  2. कॉन्ट्रैक्शन स्ट्रेस टेस्ट (एनएसटी)
  3. बायोफिजिकल प्रोफाइल (बीपीपी)
  4. पेल्विक चेकअप

नॉन स्ट्रेस टेस्ट (एनएसटी)

नॉन स्ट्रेस टेस्ट के जरिए शिशु की हृदय गति को चेक किया जाता है. इसे करने में करीब 20 मिनट लग सकते हैं.

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कॉन्ट्रैक्शन स्ट्रेस टेस्ट (एनएसटी)

इसके जरिए यह पता किया जाता है कि गर्भाशय का संकुचन होने पर शिशु की हृदय गति किस प्रकार चलती है.

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बायोफिजिकल प्रोफाइल (बीपीपी)

जरूरत पड़ने पर डॉक्टर ये टेस्ट भी कर सकते हैं. यह टेस्ट अल्ट्रासाउंड और नॉन स्ट्रेस टेस्ट का कॉम्बिनेशन होता है. इसके जरिए शिश की हलचल, हृदय गति, उसकी सांस, एम्नियोटिक फ्लूड व शिशु की फ्लेक्सिविटी का पता लगाया जाता है.

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पेल्विक चेकअप

इसके जरिए डॉक्टर ये चेक करते हैं कि गर्भाशय ग्रीवा की स्थिति कैसी है. इस टेस्ट से पता चल सकता है कि प्रसव के समय गर्भाशय ग्रीवा में कितना फैलाव आएगा.

इन तमाम टेस्ट के जरिए डॉक्टर यह निर्णय ले सकते हैं कि लेबर पेन को शुरू करना सही है या नहीं. ये निर्णय लेते समय डॉक्टर गर्भवती महिला की उम्र, गर्भावस्था के समय उसके स्वास्थ्य को भी ध्यान में रखते हैं.

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यदि बच्चा ओवरड्यू है, तो शांत होकर समय बिताने और कंफर्टेबल रहने का तरीका ढूंढना जरूरी है. ऐसा इसलिए, ताकि महिला खुद को शांत रख सके. इस समय गर्भवती को खुद को व्यस्त रखने की कोशिश भी करनी चाहिए. डिलीवरी डेट निकल जाने पर प्राकृतिक तरीके से लेबर का दर्द लाने में कुछ टिप्स भी मददगार हो सकते हैं. आइए, विस्तार से जानते हैं कि डिलीवरी डेट निकल जाए तो क्या करना चाहिए -

  1. व्यस्त रहना जरूरी
  2. बच्चे के आगमन की तैयारी
  3. खुद की देखभाल
  4. लेबर पेन लाना
  5. रिलैक्स रहना जरूरी
  6. डॉक्टर को कॉल

व्यस्त रहना जरूरी

डिलीवरी डेट के नजदीक होने के बावजूद अगर बच्चे का जन्म नहीं हो रहा है, तो गर्भवती का चिंतित महसूस करना सामान्य है. ऐसे में जरूरी है कि समय का सदुपयोग करके व्यस्त रहने के तरीके ढूंढे जाएं. एक प्रेग्नेंट महिला खुद को इस तरह से व्यस्त रख सकती है -

  • इन दिनों टीवी पर कई वेब सीरीज आती रहती हैं, उन्हें देखा जा सकता है.
  • कॉलेज के दोस्तों से बातें करके पुरानी यादों को ताजा किया जा सकता है.
  • पेंटिंग, बुनाई व बेकिंग जैसे शौक पूरे किए जा सकते हैं या कुछ नया भी शुरू किया जा सकता है. 
  • यदि घर में और बच्चे हैं, तो उनके साथ समय बिताया जा सकता है.
  • ऑनलाइन शॉपिंग या ऑनलाइन विंडो शॉपिंग करके मन बहलाना अच्छा तरीका है. 
  • किताबें पढ़ने का शौक है, तो लेटेस्ट किताबें मंगवा कर पढ़ी जा सकती हैं.

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बच्चे के आगमन की तैयारी

अधिकतर नए पेरेंट्स का कहना है कि वे अपने बच्चे के लिए और भी कुछ करना चाहते थे, लेकिन उन्हें समय नहीं मिला. डिलीवरी डेट के आने पर भी यदि नवजात गोद में नहीं आया है, तो इस एक्स्ट्रा टाइम का सदुपयोग किया जा सकता है. बच्चे के आगमन की तैयारी के लिए निम्न चीजें की जा सकती है - 

  • इंटरनेट पर रोजाना बच्चों के लेटेस्ट नाम आते रहते हैं, तो लिस्ट को अपडेट किया जा सकता है.
  • ऑनलाइन पेरेंटिंग सपोर्ट ग्रुप ज्वाइन करने से मानसिक शांति और मदद मिलती है. 
  • आने वाले बच्चे के लिए ऑनलाइन राइम्स व रेसिपी आदि इकट्ठा करना जरूरी काम है.
  • हॉस्पिटल ले जाने के लिए बैग तैयार किया जा सकता है.
  • बेबी मेमोरी बुक को डेकोरेट करना खुद को व्यस्त रखने का एक बढ़िया तरीका है.

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खुद की देखभाल

यह याद रखना जरूरी है कि बच्चे के जन्म के साथ ही नई मां को अपने लिए बिल्कुल भी समय नहीं मिलेगा, ऐसे में क्यों न अभी ही खुद का ख्याल रखा जाए. इन तरीकों से सेल्फ-केयर की जा सकती है - 

  • नए नाइट गाउन के साथ कंफर्टेबल स्लीपर लिए जा सकते हैं.
  • रिलैक्स महसूस करने के लिए एक्यूपंक्चर एक बढ़िया तरीका है. 
  • सुकून महसूस करने के लिए फेशियल से अच्छा और कोई तरीका नहीं है. 
  • एक नया हेयर कट ओवरड्यू प्रेगनेंसी वाली चिंता को कम करने में मदद करता है.

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लेबर पेन लाना

ओवरड्यू प्रेगनेंसी को लेकर यदि बहुत ज्यादा अनकंफर्ट महसूस हो रहा है, तो लेबर पेन लाने के लिए कुछ चीजों की मदद ली जा सकती है, उदाहरण के लिए -

  • डॉक्टर द्वारा सुझाए गए एक्सरसाइज मददगार साबित हो सकती हैं. 
  • घर के आसपास या घर के अंदर वॉक किया जा सकता है.  
  • डॉक्टर की सलाह के अनुसार सेक्स करने से भी मदद मिल सकती है.
  • यहां यह ध्यान रखना जरूरी है कि ऊपर बताए गए किसी भी तकनीक का इस्तेमाल करने से पहले डॉक्टर की सलाह लेकर यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वह सुरक्षित है या नहीं.

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रिलैक्स रहना जरूरी

प्रेग्नेंट महिला चाहे खुद को कितना भी व्यस्त रख ले, ओवरड्यू प्रेगनेंसी के समय डिस्कंफर्ट और एंजाइटी होना आम बात है. बावजूद इसके लेबर के समय खुद को सही स्थिति में रखने के लिए रिलैक्स रहना बहुत जरूरी है. इन चीजों से खुद को रिलैक्स रहने में मदद मिल सकती है -

  • कंफर्टेबल कपड़े पहनना बहुत जरूरी है. 
  • खुद को हाइड्रेटेड रखने के लिए लगातार पानी पीते रहना चाहिए. 
  • डॉक्टर की सलाह के अनुसार मेडिटेशन और अन्य माइंडफुलनेस तकनीक का इस्तेमाल करना चाहिए ताकि तनाव दूर रहे. 
  • प्यार और मदद के लिए परिवार वालों पर निर्भर रहने से संकोच नहीं करना चाहिए.

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डॉक्टर को कॉल

सच तो यह है कि ड्यू डेट सिर्फ एक अनुमान होता है. यह हर प्रेग्नेंट महिला के लिए अलग-अलग समय पर हो सकता है. इसलिए, डिलीवरी डेट निकल जाने पर डॉक्टर से लगातार संपर्क में रहना चाहिए. इसके अलावा, अगर प्रेग्नेंट महिला को कॉन्ट्रैक्शन्स, बच्चे के मूवमेंट में कमी, स्पॉटिंग या ब्लीडिंग, अचानक से सिरदर्द या शरीर के किसी भी हिस्से में दर्द महसूस हो, तो तुरंत डॉक्टर को फोन करना जरूरी है.

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डिलीवरी डेट निकल जाने पर प्रेग्नेंट महिला का चिंतित होना नैचुरल है, लेकिन जरूरी यह है कि इस समय शांत और रिलैक्स रहने की कोशिश की जाए. बच्चे के आगमन की तैयारी के साथ सेल्फ केयर गतिविधियों और पसंदीदा शौक को अपनाकर प्रेग्नेंट महिला खुद को व्यस्त रख सकती है. इसके साथ ही यह भी जरूरी है कि प्रेग्नेंट महिला हर समय अपने डॉक्टर के साथ संपर्क में रहे और उसकी सलाह का पालन करे.

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