मां बनना हर स्त्री के जीवन का सुखद अहसास होता है. जब पुरुष के स्पर्म महिला के अंडे से मिलते हैं, तो फर्टिलाइजेशन शुरू होता है. इसके बाद निषेचित अंडा भ्रूण के रूप में विकसित होता है. लगभग 5 से 6 दिन के बाद ये भ्रूण यूट्रस लाइन पर चिपक जाता है और धीरे-धीरे विकसित होना शुरू हो जाता है. इसे एंब्रियो इंप्लांटेशन (embryo implantation) कहते हैं. भ्रूण के विकास की यह प्रक्रिया 9 महीने तक लगातार चलती रहती है. मां के गर्भ में बच्चे के विकास की प्रक्रिया को समझने के लिए इसे नौ महीने के चरणों में बांट कर देखते हैं.

आज हम इस लेख में विस्तार से जानेंगे कि गर्भ में शिशु का निर्माण कैसे होता है -

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  1. गर्भ में शिशु के बनने की प्रक्रिया
  2. सारांश
गर्भ में शिशु का निर्माण कैसे होता है? के डॉक्टर

मां के गर्भ में शिशु को पूरी तरह से विकसित होने में 9 महीने का समय लगता है. हर माह की अपनी अहमियत होती है. आइए, गर्भ में शिशु के बनने की प्रक्रिया के सभी महीनों के बारे में विस्तार से जानते हैं -

पहले माह में भ्रूण का विकास

पहले महीने में भ्रूण का विकास बहुत तेजी से होता है. स्पर्म व महिला के अंडे का मिलना भ्रूण के विकास की प्रक्रिया का पहला कदम है. इसके बाद निम्न प्रकार की प्रक्रिया होती है -

  • अंडे के निषेचित होने के बाद उसके चारों ओर पानी की एक थैली बनने लगती है, जिसे एमनीओटिक फ्लूइड (amniotic sack) कहते हैं, जो धीरे-धीरे लिक्विड से भर जाती है और भ्रूण के लिए कुशन का काम करती है. पूरी गर्भावस्था के दौरान इसमें भ्रूण का विकास होता है.
  • इसी समय एक प्लेसेंटा (placenta) भी बनने लगता है, जो मां और भ्रूण को जोड़ने का काम करता है, जिसके माध्यम से मां के शरीर से पोषक तत्व व ऑक्सीजन भ्रूण तक पहुंचते हैं. इसी से गर्भ में शिशु का विकास होता है.
  • पहले महीने में शिशु का चेहरा आकार लेने लगता है, मुंह, आंखें, नीचे का जबड़ा और गला भी बनने लगता है.
  • इसके साथ ही ब्लड वेसल भी बनने शुरू होते हैं और ब्लड सर्कुलेशन भी शुरू हो जाता है.
  • पहले महीने के अंत तक भ्रूण का आकार देखने में चावल के दाने से भी छोटा होता है.

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दूसरे महीने में भ्रूण का विकास

भ्रूण का चेहरा और विकसित हो जाता है. इस समय भ्रूण की छोटी-सी पूंछ भी होती है, जो प्रेगनेंसी की स्टेज बढ़ने के साथ समाप्त हो जाती है - 

  • धीरे-धीरे भ्रूण के दोनों हाथ-पैर, उंगलियां, फूड पाइप व हड्डियां बननी शुरू हो जाती हैं.
  • कानों का विकास शुरू हो जाता है, दिमाग और स्पाइनल कोर्ड बनाने वाली न्यूरल ट्यूब बन जाती है.
  • शिशु में थोड़ी-सी महसूस करने की क्षमता पैदा होने लगती है. शिशु की धड़कन सोनोग्राफी के माध्यम से देखी जा सकती है.

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तीसरे महीने में भ्रूण का विकास

तीसरा महीना यानी 9वें से 13 वें सप्ताह का समय शिशु के विकास के लिए महत्वपूर्ण होता है. इस समय को पीरियड ऑफ ऑर्गेनोजेनेसिस भी कहते हैं -

  • इस समय तक शिशु के चेहरा, हाथ-पैर व उंगलियां व कान पूरी तरह से बन चुके होते हैं.
  • नाखून बनने शुरू हो जाते हैं और प्राइवेट पार्ट बनने लगता है.
  • इस महीने के अंत तक दिल, लिवर और यूरिनरी सिस्टम काम करना शुरू कर देते हैं. यह शिशु के विकास का महत्वपूर्ण समय होता है, इसलिए इस समय गर्भवती महिला को अपना विशेष ध्यान रखने की सलाह दी जाती है.

शिशु के विकास का पहला स्टेप तीन महीनों में पूरा हो जाता है. इसके बाद अबॉर्शन होने की संभावना कम ही रहती है.

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चौथे महीने में भ्रूण का विकास

चौथे महीने में शिशु अंगूठा चूसने लग सकता है. आइए, जानते हैं कि और क्या-क्या होता है -

  • इस समय तक आंखें, भौंहे, नाखून व प्राइवेट पार्ट बन जाते हैं.
  • दांत और हड्डियां मजबूत होने लगती हैं.
  • अब शिशु सिर घुमाना भी शुरू कर देता है.
  • फीटल डोपनर मशीन से शिशु की धड़कन को पहली बार सुना जा सकता है. सब सही रहने पर इस समय तक अधिकतर डॉक्टर डिलीवरी की संभावित तारीख दे देते हैं.

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पांचवें महीने में भ्रूण का विकास

पांचवें महीने में उसकी स्किन ट्रांसपेरेंट व लाल होती है. इसके अलावा, निम्न प्रकार की गतिविधियां होती हैं -

  • शिशु गर्भ में घूमने लगता है. उसकी हलचल को महिला महसूस कर सकती है.
  • सिर के बाल बनना शुरू हो जाते हैं. कंधे, कमर व कान पर हल्के बाल होते हैं, जो उसकी रक्षा करते हैं. यह बाल बहुत मुलायम और भूरे रंग के होते हैं. यह बाल जन्म के बाद पहले सप्ताह तक झड़ जाते हैं.
  • इसके अलावा, शिशु पर एक वेक्स जैसी कोटिंग होती है, जो जन्म के समय निकल जाती है.
  • इस समय तक शिशु की मांसपेशियां विकसित हो जाती हैं. महीने के अंत तक शिशु का वजन लगभग 300 ग्राम तक हो जाता है.

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छठे महीने में भ्रूण का विकास

छठे महीने में गर्भ में शिशु का विकास कुछ इस तरह से होता है -

  • उसकी गुलाबी से लाल ट्रांसपेरेंट स्किन में से नसें दिखाई देने लगती हैं.
  • पलकें अलग होने लगती हैं और आंखें खुलने लगती हैं.
  • इस समय शिशु आवाज सुनने लगता है और अपना रिएक्शन देने लगता है.
  • शिशु हिचकी भी ले सकता है और मां के स्पर्श को समझने लगता है.
  • इस महीने के अंत तक उसका वजन लगभग 600 ग्राम हो जाता है.

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सातवें महीने में भ्रूण का विकास

सातवें महीने में शिशु का अधिकांश विकास हो जाता है -

  • वह अपनी आंखें खोल व बंद कर सकता है.
  • उसके शरीर पर फैट बढ़ने लगता है.
  • रोशनी के प्रति शिशु अपना रिएक्शन देने लगता है और जल्दी-जल्दी अपना स्थान बदलता रहता है.
  • इस समय तक वह नवजात शिशु की तरह दिखने लगता है.
  • सातवें महीने तक शिशु का इतना विकास हो चुका होता है कि यदि महिला की किसी कारण से प्री मेच्योर डिलीवरी हो जाए, तो वह जीवित रह सकता है.

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आठवें महीने में भ्रूण का विकास

आठवें महीने तक फेंफड़ों के अलावा अन्य सभी शारीरिक अंगों का विकास पूरा हो चुका होता है -

  • शिशु की हलचल और अधिक बढ़ जाती है, जिसे महिला बहुत अच्छे से महसूस कर सकती है.
  • इस समय शिशु के दिमाग का विकास तेजी से होता है और वह सुनने के साथ देख भी सकता है.
  • इस समय एमनीओटिक फ्लूइड कम हो जाता है.
  • आठवें महीने के अंत तक शिशु सिर नीचे करने लगता है और इस समय महिला शिशु के जन्म का इंतजार करने लगती है. 

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नौवें महीने में भ्रूण का विकास

नौवें महीने में शिशु पूर्ण रूप से विकसित हो जाता है और मां के गर्भ से बाहर आने के लिए तैयार होता है -

  • पलके झपकाना, आंखे बंद करना, सिर घुमाना और पकड़ने की क्षमता का भी विकास हो जाता है.
  • इस महीने के अंत तक शिशु के पूरी तरह से विकसित हो जाने के कारण यूट्रस में जगह कम हो जाती है जिससे शिशु की हलचल कम होने लगती है.
  • इस समय बच्चे का वजन 2500 ग्राम से 3000 ग्राम तक हो जाता है. 2500 ग्राम से कम वजन के शिशु को कमजोर माना जाता है और उसे विशेष देखभाल की जरूरत होती है.

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महिला के गर्भ में बच्चे का विकास नौ महीने की यात्रा के बाद पूरा होता है. डॉक्टर द्वारा दी गई तारीख पर ही बच्चे का जन्म होगा ऐसा जरूरी नहीं है. डिलीवरी दी गई अवधि के पहले या बाद में भी हो सकती है. यदि महिला व होने वाला शिशु स्वस्थ है, तो नॉर्मल डिलीवरी की संभावनाएं अधिक रहती हैं. कुछ परेशानी होने पर डॉक्टर ऑपरेशन द्वारा डिलीवरी की सलाह देते हैं.

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