बच्चों के पेट में कीड़े होना एक आम समस्या है। यह कीड़े छोटे बच्चों की आंतों में रहने वाले परजीवी होते हैं, जो आपके बच्चे के आहार से अपना पोषण प्राप्त करते हैं। पेट के यह कीड़े अन्य बीमारियों को बढ़ाते हैं। बच्चों के पेट में कीड़ों के संक्रमण के लिए हेलमिंथ इन्फेक्शन (Helminth infection) शब्द का भी इस्तेमाल किया जाता है।

पेट के कीड़े बच्चों में पेट दर्द का मुख्य कारण होते हैं। यह कीड़े कई प्रकार के होते हैं, जिनमें से बच्चों के पेट में पिनवॉर्म की समस्या अधिक देखी जाती है। बच्चों में होने वाला यह एक आम संक्रमण होता है, जो आसानी से ठीक किया जा सकता है।

इस लेख में बच्चों के पेट में कीड़े की समस्या के बारे में विस्तार से बताया गया है। साथ ही इसमें आपको बच्चों के पेट में कीड़े होने के लक्षण, बच्चों के पेट में कीड़े होने के कारण, बच्चों के पेट में कीड़े होने से बचाव और बच्चों के पेट में कीड़े होने का इलाज और उपाय आदि के बारे में विस्तार से बताया गया है। 

(और पढ़ें - बच्चों में देखभाल कैसे करें)

  1. बच्चों के पेट में कीड़ों के प्रकार - Bacho ke pet me kido ke prakar
  2. बच्चों में पेट के कीड़े के लक्षण - Bacho me pet ki kide ke lakshan
  3. बच्चों के पेट में कीड़े होने के कारण - Bacho ke pet me kide hone ke karan
  4. बच्चों के पेट में कीड़े होने का परीक्षण - Bacho ke pet me kide hone ka parishan
  5. बच्चों के पेट में कीड़े से बचाव - Bacho ke pet me kide se bachav
  6. बच्चों के पेट में कीड़े का इलाज और दवा - Bacho ke pet me kide ki dawa aur ilaj
बच्चों के पेट में कीड़े के डॉक्टर

बच्चों के पेट में होने वाले कीड़े अपने आकार और बनावट के कारण अलग-अलग होते हैं। बच्चों के पेट में होने वाले कीड़ों के प्रकार को नीचे विस्तार से बताया गया है।

  • टेपवॉर्मस (tapeworms):
    यह कीड़े चपटे (flat: फ्लैट) व रिबन की तरह होते हैं, जो बच्चों की आंतों में 15 से 30 फीट तक लंबे हो सकते हैं। (और पढ़ें - पेट में दर्द होने पर क्या करना चाहिए)
     
  • राउंडवॉर्मस (roundworms):
    यह केचुएं की तरह होता है, जो करीब 30 से 35 सेमी तक लंबे हो सकते हैं।
     
  • पिनवॉर्मस व थ्रेडवॉर्मस (pinworms or threadworms):
    पिनवॉर्म को थ्रेडवॉर्म भी कहा जाता है। यह छोटे, पतले, सफेद और बाल की तरह होते हैं, जो बच्चे के मलाशय में रहते हैं। मादा कीड़े गुदा के पास अपने अंडे देती है। ये अंडे आपके कपड़े, बिस्तर और अन्य जगहों पर भी हो सकते हैं। साथ ही इन जगहों को छूने या सांस लेने से यह कीड़े शरीर के अंदर प्रवेश कर सकते हैं। पिनवॉर्म शिशुओं और बच्चों में होने वाला सबसे आम प्रकार माना जाता है।
     
  • हुकवॉर्मस (hookworms):
    हुकवॉर्मस विशेषकर गंदी जगहों पर पाया जाता है। हुकवॉर्मस एक सूक्ष्म परजीवी कीड़ा होता है, जो अपने मुंह से काटता है और यह आंतों की परत को नुकसान पहुंचाता है। दूषित धूल के संपर्क में आने के कारण बच्चे इससे संक्रमित हो जाते हैं।

(और पढ़ें - पेट दर्द में क्या खाना चाहिए)

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अक्सर पेट में कीड़े का संक्रमण होने पर बच्चे में किसी भी तरह के लक्षण दिखाई नहीं देते हैं। यह संक्रमण बेहद ही हल्का होता है, जिसके चलते यह अनदेखा रह सकता है। लेकिन पेट के कीड़ों के प्रकार और गंभीरता के आधार पर आप बच्चे में निम्नलिखित कुछ संकेत या लक्षण देख सकते हैं।

  • बार बार थूकना:
    बच्चा बिना किसी कारण के बार-बार थूकना शुरू कर देता है। बच्चा ऐसा इसलिए करता है, क्योंकि कीड़े मुंह में लार को बढ़ाने का काम करते हैं। (और पढ़ें - मुंह के छाले दूर करने के घरेलू उपाय)
     
  • बच्चे के मल से दुर्गंध आना:
    जब बच्चे के मल में तेज दुर्गंध आने लगे, तो यह कीड़े की वजह से बच्चे के पेट में होने वाले संक्रमण की ओर इशारा करता है। (और पढ़ें - कब्ज का इलाज)
     
  • गुदा के पास खुजली होना:
    मादा कीड़े आमतौर पर गुदा के पास अंडे देने के लिए घूमती हैं। इसकी वजह से मलाशय में असहजता होती है और खुजली लगने लगती है। (और पढ़ें - गुदा कैंसर का इलाज)
     
  • पेट में दर्द:
    पेट में दर्द होना, पेट के कीड़ों की समस्या का एक आम लक्षण है। (और पढ़ें - पेट दर्द के घरेलू उपाय)
     
  • सोने में परेशानी:
    खुजली, थकान व पेट में दर्द के कारण बच्चों को सोने में परेशानी होने लगती है। (और पढ़ें - थकान दूर करने के लिए क्या खाएं)

बच्चों के पेट में कीड़े होने के अन्य लक्षण –

(और पढ़ें - पेट में इन्फेक्शन के इलाज)

शिशु के घुटनों के बल पर चलने व बच्चों को बाहर खेलते समय कीड़ों का संक्रमण होने की संभावना अधिक होती है। बच्चों की जीवनशैली के आधार पर उनके पेट में कीड़े होने के कई कारण होते हैं। आगे आपको बच्चों के पेट में कीड़े होने के कुछ मुख्य कारण बताए जा रहे हैं।

  • संक्रमित जगहों के संपर्क में आना या छूना:
    पेट के कीड़े और उनके अंडे बाहरी माहौल में करीब दो सप्ताह तक जीवित रह सकते हैं। कुछ ऐसी जगहें होती हैं जहां से बच्चे को संक्रमित होने की संभावनाएं अधिक होती है, जैसे:
    • मिट्टी जिसमें कीड़े और उसके अंडे मौजूद होते हैं, पार्क या बाहर खेलते समय दूषित मिट्टी बच्चे के शरीर में लग जाती है।
    • पालतू जानवरों या उनके मल मूत्र को छूने से, आदि।
      (और पढ़ें - बच्चे को मिट्टी खाने का इलाज​)
       
  • सही तरह से हाथ न धोना:
    छोटे बच्चों को चीजें मुंह में डालने से दूर रख पाना बेहद मुश्किल होता है। अगर आपके बच्चे के पेट में विशेषकर पिनावॉर्म कीड़े हो जाते हैं, तो उसको गुदा के आसपास के हिस्से में खुजली होने लगती है। (और पढ़ें - बच्चों को सिखाएं अच्छी सेहत के लिए अच्छी आदतें)
     
  • स्वच्छ न रहना:
    गंदा बिस्तर, अंडरगार्मेंट व गंदे कमरे में कीड़े आसानी से हो जाते हैं। हाथ साफ करने के बाद भी नाखूनों में मौजूद कीड़ों के अंडे बच्चे को छूने से उसको संक्रमित कर सकते हैं। (और पढ़ें - ग्राइप वाटर के फायदे)
     
  • दूषित भोजन और पानी पीना:
    खाने से पहले सब्जियों और फलों को धोना बहुत आवश्यक है , क्योंकि कीड़े के अंडे इन पर भी मौजूद हो सकते हैं। कच्चे और कम पके भोजन से भी पेट में कीड़े होने का जोखिम बढ़ जाता है। इसके अलावा दूषित पानी भी पेट में कीड़े होने का एक आम कारण माना जाता है। 

(और पढ़ें - बच्चों की सेहत के इन लक्षणों को न करें नजरअंदाज)

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बच्चों के पेट में कीड़े होने की समस्या की पहचान करने के लिए आप अपने बच्चे को डॉक्टर के पास लेकर जाएं। डॉक्टर बच्चों के पेट में कीड़े होने पर निम्नलिखित टेस्ट करने की सलाह देते हैं।

  • मल की जांच:
    बच्चे के मल के नमूनों को लेकर लैब में कीड़े और कीड़े के अंडे होने की जांच की जाती है।
    (और पढ़ें - स्टूल टेस्ट क्या है)
     
  • नाखूनों की जांच करना:
    डॉक्टर जांच में बच्चों के नाखूनों में मौजूद कीड़े व नाखून की निचली परत में मल को देखते हैं।
    (और पढ़ें - नाखूनों की देखभाल के लिए टिप्स)
     
  • टेप टेस्ट (sticky tape test):
    यह टेस्ट मुख्य रूप से थ्रेडवॉर्म की पहचान करने के लिए किया जाता है। इसमें टेप के टुकड़े को बच्चे के गुदा पर लगाकर कीड़े के अंडों को लिया जाता है।
     
  • रूई का टुकड़ा (cotton bud swab):
    इसको भी टेप टेस्ट की तरह ही किया जाता है। इसमें रूई के टुकड़े से बच्चे के गुदा में कीड़े के अंडे होने की जांच की जाती है।
    (और पढ़ें - लैब टेस्ट क्या है)
     
  • अल्ट्रासाउंड टेस्ट:
    यह टेस्ट केवल गंभीर संक्रमण होने पर ही किया जाता है। इसमें डॉक्टर बच्चे के पेट में कीड़ों की सही स्थिति जानने के लिए अल्ट्रासाउंड करते हैं।

(और पढ़ें - गर्भावस्था में अल्ट्रासाउंड कब कराएं

बच्चों के पेट में कीड़े से बचाव करने के लिए स्वच्छता को अपनाना चाहिए। इससे पेट में दर्द का कारण बनने वाले कीड़ों से बच्चे को सुरक्षा मिलती है। बच्चों के चलना शुरू करने के दौरान ही उनके पेट में कीड़े होने की संभावना अधिक होती है। नीचे बताए गए तरीकों से आप बच्चे के पेट में कीड़े होने से बचाव कर सकते हैं।

  • बच्चों के डायपर को नियमित रूप से बदलें और डायपर बदलने के बाद हाथों को अच्छी तरह से साफ करें। (और पढ़ें - डायपर रैश का इलाज)
  • बच्चों को बाहर जाते समय जूते पहनाएं और बाहर से आने पर हाथ-पैर धूलवाएं।
  • घर और आसपास की जगहों को साफ रखें। (और पढ़ें - दो साल के बच्चे को क्या खिलाना चाहिए)
  • जहां पर पानी भरा हुआ हो उस जगह पर बच्चे को न खेलने दें।
  • टॉयलेट की सीट को नियमित तौर पर साफ करें।
  • बच्चों के नाखूनों को छोटे व साफ रखें। (और पढ़ें -शिशु के त्वचा की देखभाल कैसे करें)
  • बच्चों के कपड़ों व चादर को गर्म पानी से साफ करें।   
  • बच्चों के खाने कोे सही तरह से पकाएं, आदि। 

(और पढ़ें - शिशु टीकाकरण चार्ट)

बच्चों के पेट में कीड़े का इलाज खाने वाली दवाओं से किया जाता है। आपके डॉक्टर बच्चे के पेट में होने वाले कीड़ों के प्रकार के आधार पर ही बच्चे को दवाएं देते हैं। अगर आपके बच्चे को एनीमिया भी हुआ है तो उसको दवाओं के साथ आयरन सप्लीमेंट्स भी दिए जाते हैं।

बच्चे के पेट में कीड़े होने पर आप उसको बिना डॉक्टरी सलाह के दवाएं व अन्य जड़ी-बूटी न दें, क्योंकि कई बार इन दवाओं का बच्चों पर बुरा असर भी हो सकता है।

(और पढ़ें - खून की कमी का घरेलू उपाय​)

बच्चे के पेट में कीड़े होने पर डॉक्टर नीचे बताई गई कुछ दवाएं दे सकते हैं:

  • रीसीस पिनवॉर्म (Reese’s Pinworm)
  • जेनटेल 400 एमजी (Zentel 400mg)
  • जेनटेल ससपेंशन (Zentel Suspension)

उपर्युक्त दवाएं डॉक्टर बच्चे की आयु व पेट में होने वाले कीड़ों के आधार पर देते हैं।

बच्चों के पेट में कीड़ों का घरेलू उपाय

पेट के कीड़ों को कम करने वाली दवाओं के साथ ही माता पिता बच्चों को प्यूरी के रूप में निम्न तरह के खाद्य पदार्थ भी दे सकते हैं।

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Dr. Mayur Kumar Goyal

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