आयुर्वेद में कमर दर्द को कटिशूल कहा जाता है। इस दर्द में पीठ के निचले हिस्‍से में सूजन और अकड़न रहती है। वात दोष के असंतुलन के कारण पीठ के निचले हिस्‍से में दर्द होता है जिसे पीठ या कमर दर्द के नाम से जाना जाता है।

आयुर्वेदिक ग्रंथों में कमर दर्द के इलाज के लिए प्राचीन चिकित्‍सा पद्धतियों का उल्लेख मिलता है जिसमें उदवर्तन (पाउडर से मालिश), स्‍वेदन (पसीना निकालने की विधि), अभ्‍यंग (तेल मालिश), बस्‍ती कर्म (एनिमा चिकित्‍सा), विरेचन कर्म (मल त्‍याग की विधि), लेप (शरीर के प्रभावित हिस्‍से पर औषधि लगाना) और अग्‍निकर्म (शरीर के किसी हिस्‍से को जलाने की विधि) शामिल है।

कमर दर्द के इलाज में शुंथि (सूखी अदरक), रसना, रसोनम (लहसुन) और अरंडी जैसी आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों का इस्‍तेमाल किया जाता है। आयुर्वेदिक औषधि जैसे कि योगराज गुग्‍गुल, सिंहनाद गुग्‍गुल, दशमूल कषाय और बालारिष्‍ट से कमर दर्द का इलाज किया जा सकता है।

  1. आयुर्वेद के दृष्टिकोण से कमर दर्द - Ayurveda ke anusar kamar dard
  2. कमर दर्द का आयुर्वेदिक इलाज या उपचार - Kamar dard ka ayurvedic upchar
  3. कमर दर्द की आयुर्वेदिक जड़ी बूटी, दवा और औषधि - Kamar dard ki ayurvedic dawa aur aushadhi
  4. आयुर्वेद के अनुसार कमर दर्द होने पर क्या करें और क्या न करें - Ayurved ke anusar kamar dard me kya kare kya na kare
  5. कमर दर्द में आयुर्वेदिक दवा कितनी लाभदायक है - Peeth dard ka ayurvedic upchar kitna labhkari hai
  6. पीठ दर्द की आयुर्वेदिक औषधि के नुकसान - Peth dard ki ayurvedic dawa ke side effects
  7. पीठ दर्द की आयुर्वेदिक ट्रीटमेंट से जुड़े अन्य सुझाव - Kamar dard ke ayurvedic ilaj se jude anya sujhav
  8. कमर दर्द की आयुर्वेदिक दवा और इलाज के डॉक्टर

आयुर्वेद के अनुसार कटिशूल उपस्तंभ वात (अन्‍य किसी दोष के कारण वात के असंतुलित होने पर हुआ वात रोग) या अनुपस्‍तंभ वात (धातु के बर्बाद होने के कारण हुआ वात रोग) के कारण होता है।

(और पढ़ें - वात रोग क्या है)

कमर दर्द से कई तरह के रोग संबंधित हैं जैसे कि:

  • मूत्र और पुरीष वेग धारण (पेशाब और मल निष्‍कासन रोकना):
    तंत्रिका तंत्र, आंत और मूत्राशय को खाली करने की प्रक्रिया को नियंत्रित करता है। मल त्‍याग या पेशाब करने जैसी प्राकृतिक इच्‍छाओं को रोकने या दबाने पर ये अपशिष्‍ट और विषाक्‍त पदार्थ शरीर और तंत्रिका तंत्र में जमने लगते हैं। ये विषाक्‍त कई लक्षणों के रूप में सामने आते हैं जिनमें से कमर दर्द भी एक है।
  • श्‍वेत प्रदर (ल्‍यूकोरिया):
    ये एक सामान्‍य समस्‍या है जिसमें योनि से सफेद पानी आता है। इसकी वजह से योनिमुख में खुजली और संक्रमण हो जाता है जिससे कमर में दर्द होता है। (और पढ़ें - ल्यूकोरिया का इलाज)
  • अमावत (रूमेटाइड अर्थराइटिस):
    यह वात दोष में असंतुलन और जोड़ों में अमा (विषाक्‍त) के जमने का कारण बनता है। जब ये अमा पीठ के जोड़ों में बनने लगता है तो इसकी वजह से कमर में दर्द, अकड़न, सूजन और पीड़ा रहती है। (और पढ़ें - रूमेटाइड अर्थराइटिस के लक्षण)
  • गृध्रसी (सायटिका):
    वात के असंतुलन के कारण पैदा हुई इस स्थिति में निचले अंगों में गंभीर दर्द होता है। ये दर्द पीठ के निचले हिस्‍से में होता है और पैरों की तरफ दर्द बढ़ता है।  (और पढ़ें - पैरों में दर्द क्यों रहता है)

इसके अलावा पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम, कुछ प्रकार के बुखार, गर्भाशय और योनि से संबंधित विकार, आंक्यलोसिंग स्पॉन्डिलाइटिस के कारण भी कमर में दर्द हो सकता है।

व्‍यक्‍ति की चिकित्‍सकीय स्थिति के आधार पर ही उपचार किया जाता है।

(और पढ़ें - कमर में दर्द के उपाय)

  • उद्वर्तन
    • ये एक विशिष्‍ट चिकित्‍सकीय पाउडर मालिश है जिसमें जड़ी-बूटी से बने पाउडर से मालिश की जाती है। ये शरीर में खराब हुए वात दोष को संतुलित करता है। (और पढ़ें - मालिश करने की विधि)
    • उपचार से पहले पाउडर को गर्म किया जाता है और‍ फिर प्रभावित हिस्‍से पर ऊपर की ओर ऊत्तकों की मालिश की जाती है।
    • इस पूरी प्रक्रिया में लगभग 45 से 60 मिनट का समय लगता है जिसके बाद व्‍यक्‍ति को 30 मिनट तक आराम करने और फिर गर्म पानी से स्‍नान करने के लिए कहा जाता है।
    • इसमें जोड़ों की गतिशीलता को बेहतर और मांसपेशियों को मजबूत कर, रक्‍त प्रवाह में सुधार व शरीर को ऊर्जा देकर कमर दर्द का उपचार किया जाता है। (और पढ़ें - मांसपेशियों को मजबूत करने का तरीका)
  • स्‍वेदन
    • औषधीय तेलों और भाप का प्रयोग कर पसीना निकालने की विधि पूरी की जाती है। इससे विषाक्‍त पदार्थ द्रव में बदलकर अलग हो जाते हैं और जठरांत्र संबंधी मार्ग में ऊतकों से अमा का प्रवाह बढ़ता है। बाद में ये अमा जठरांत्र मार्ग से बाहर निकल जाता है।
    • ये वात और कफ में संतुलन लाता है और पीठ दर्द को नियंत्रित करने में मदद करता है। प्रमुख तौर पर इसका प्रयोग वात रोगों के लिए किया जाता है। स्‍वेदन की तीव्रता व्‍यक्‍ति की सहनशक्‍ति पर निर्भर करती है।
    • स्‍वेदन कई तरीकों से कर सकते हैं जैसे कि तप (सेक) जिसमें गर्म कपड़ा शरीर के प्रभावित हिस्‍से पर रखा जाता है, उपनाह में जड़ी-बूटियों के संयोजन से बनी गर्म पुल्टिस को शरीर पर लगाया जाता है, ऊष्‍मा में उपयुक्‍त जड़ी-बूटियों से बने पानी की भाप दी जाती है और धरा में गर्म औषीधीय तरल या तेल को शरीर पर डाला जाता है।
  • अभ्‍यंग
    • अभ्‍यंग में जड़ी-बूटियों के गुणों से युक्‍त तेल से शरीर के प्रभावित हिस्‍से की मालिश की जाती है।
    • जोड़ों से संबंधित विकार के इलाज में ये मददगार होती है। प्रभावित हिस्‍से पर तेल डालने के बाद जोड़ों पर हाथों को घोल-घोल घुमाते हुए मालिश की जाती है, जिससे रक्‍तप्रवाह बेहतर होता है। (और पढ़ें - रक्त प्रवाह बढ़ाने के उपाय)
    • पीठ दर्द से ग्रस्‍त व्‍यक्‍ति का अभ्‍यंग से उपचार करने के लिए महानारायण तेल का इस्‍तेमाल किया जाता है।
    • तंत्रिका तंत्र से संबंधित विकारों को रोकने और उनका उपचार करने, थकान दूर करने, शरीर को पोषण देने और प्रतिरक्षा तंत्र को मजबूत करने के लिए अभ्‍यंग का इस्‍तेमाल किया जाता है। (और पढ़ें - पोषण की कमी के लक्षण)
  • बस्‍ती कर्म
    • ये एनिमा का एक आयुर्वेदिक रूप है। हालांकि, ये आधुनिक एनिमा से अलग है और प्रयोग से ठीक पहले इसे तैयार किया जाता है।
    • कई जड़ी-बूटियों के मिश्रण से इसे बनाया जाता है। इसमें किस जड़ी-बूटी का प्रयोग करना है, इसका निर्धारण व्‍यक्‍ति की चिकित्‍सकीय स्थिति के आधार पर किया जाता है। इसे काढ़े, घी या तेल के रूप में इस्‍तेमाल कर सकते हैं। (और पढ़ें - काढ़ा कैसे बनाएं)
    • बस्ती चिकित्सा का उपयोग विभिन्न वात रोगों के उपचार में किया जाता है ताकि खराब हुए वात को संतुलित किया जा सके। ये शरीर में जमे अतिरिक्‍त दोष और विषाक्‍त पदार्थों को साफ कर देता है और रोग से राहत दिलाता है।
    • ये सर्वाइकल स्‍पॉन्डिलाइसिस, साइटिका, पीठ दर्द, कब्‍ज और पाचन विकार के इलाज में मददगार होता है।
    • प्रभावी उपचार के लिए 8 से 10 दिन तक बस्‍ती चिकित्‍सा दी जाती है।
  • विरेचन कर्म
    • विरेचन चिकित्‍सा में कई जड़ी-बूटियों और उनके मिश्रण द्वारा शरीर से विषाक्‍त पदार्थों को साफ और खत्‍म किया जाता है।
    • पित्त दोष के कारण होने वाले रोगों का ये बेहतर इलाज है क्‍योंकि विरेचन कर्म लिवर, पित्ताशय और छोटी आंत से अतिरिक्‍त पित्त को साफ करता है। चूंकि, ये अतिरिक्‍त कफ को साफ करने में मदद करता है इसलिए कफ रोगों के लिए भी इसका इस्‍तेमाल किया जाता है। वात दोष के कारण उत्‍पन्‍न हुए विकार के इलाज के लिए विरेचन की सलाह नहीं दी जाती है।
  • लेप
    • लेप विधि में जड़ी-बूटियों से बना गाढ़ा तरल त्‍वचा पर लगाया जाता है और शरीर में दर्द, सूजन और जलन के इलाज में सामान्‍य रूप से इसका इस्‍तेमाल किया जाता है।
    • तेज दर्द के इलाज में दशमूल (10 जड़ें) और दूध का प्‍लास्‍टर मददगार होता है।
    • पीठ दर्द के इलाज में कई तरह के लेप जैसे कि दशांग लेप, गंधबिरोजा लेप, मैदा लकड़ी लेप आदि का प्रयोग किया जाता है।
  • अग्नि कर्म
    • विशेष उपकरण द्वारा जोड़ों के अत्‍यधिक दर्द वाले हिस्‍से पर अग्नि कर्म किया जाता है। दर्द से राहत दिलाने के लिए गर्म किए गए उपकरण को सीधा प्रभावित हिस्‍से पर लगाया जाता है।
    • अन्‍य किसी चिकित्‍सा से आराम ना मिल पाने पर पीठ दर्द के इलाज में अग्‍नि कर्म का प्रयोग किया जाता है। 

(और पढ़ें - पीठ दर्द के लिए व्यायाम)

कमर दर्द के लिए आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियां

  • शुंथि
    • शुंथि, पाचन और श्‍वसन तंत्र पर कार्य करती है। कई चिकित्‍सकीय कार्यों जैसे कि पाचन, कफ निकालने, दर्द से राहत पाने, नसों को आराम देने और गैस से राहत पाने के लिए इसका प्रयोग किया जाता है। (और पढ़ें - गैस का दर्द कैसे होता है)
    • ये एक सर्व-व्‍यापी औषधि है। चूंकि, त्रिदोषों के कारण हुए रोगों को नियंत्रण करने में शुंथि लाभकारी होती है इसलिए इसे चमत्‍कारिक जड़ी-बूटी भी कहा जाता है।
    • सेंधा नमक के साथ शुंथि लेने पर वात में कमी आती है। मिश्री के साथ शुंथि लेने पर पित्त और शहद के साथ लेने पर कफ दोष कम होता है।
    • यह गठिया के कारण पीठ और शरीर के अन्य हिस्सों में हुए दर्द को नियंत्रित करने के लिए उपयोगी है। इसके अलावा ये कब्‍ज के इलाज में भी मदद करती है, कब्‍ज भी पीठ में दर्द होने का एक कारण है। शुंथि खराब हुए वात को संतुलित और कफ को कम करती है।
    • ताजे रस, काढ़े, पाउडर, अर्क, पेस्‍ट और गोली के रूप में शुंथि ले सकते हैं।
  • रसना
    • इसमें पौधों में प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले रसायनिक घटक जैसे कि फ्लेवेनाइॅड्स, ट्रिटेरपेनॉइड्स, स्‍टेरोल्‍स और लैक्‍टोंस मौजूद हैं। ये घटक रसना को कई रोगों के इलाज में उपयोगी बनाते हैं।
    • ये पौधा गठियारोधी और सूजनरोधी गुणों के लिए जाना जाता है जोकि पीठ दर्द का कारण बनने वाले सूजन और हड्डियों से संबंधित रोगों के लक्षणों से राहत दिलाने में असरकारी है।
  • रसोनम
    • रसोनम या लहसुन पाचन, प्रजनन, तंत्रिका, श्वसन, वाहिका और पाचन तंत्र पर कार्य करती है।
    • ये अमा को साफ कर नसों और हड्डियों के ऊत्तकों को ऊर्जा देती है और दर्द, सूजन और जलन से राहत दिलाती है। इसलिए पीठ दर्द के इलाज में इसका इस्‍तेमाल कर सकते हैं। इसके अलावा खांसी, फ्लू, हृदय रोग, हाइपरटेंशन और दमा का भी इलाज रसोनम से किया जाता है।
    • ताजे रस, काढ़े, पाउडर, अर्क, पेस्‍ट और गोली के रूप में रसोनम ले सकते हैं।
  • अरंडी
    • अरंडी उत्सर्जन तंत्र, तंत्रिका तंत्र, महिला प्रजनन तंत्र, पाचन और मूत्र प्रणाली पर कार्य करती है और दर्द-निवारक प्रभाव देती है।
    • शरीर की सफाई करने और सूजन के इलाज के लिए अरंडी सबसे सामान्‍य जड़ी-बूटियों में से एक है। ये निचले कमर दर्द, साइटिका, अंगों में सूजन, गुदा से संबंधित विकार, बवासीर और गठिया के इलाज में भी असरकारी है।

कमर दर्द के लिए आयुर्वेदिक दवाई

  • योगराज गुग्‍गुल
    • योगराज गुग्‍गुल में चित्रक, रसना, गोक्षुरा, त्‍वाक (दालचीनी), पिपलीमूल (लंबी काली मिर्च की जड़ी), परसिका यवानी, गुडुची, गुग्‍गुल, विडंग, शतावरी मौजूद है।
    • वात रोगों खासतौर पर गठिया के दर्द और सूजन से आराम पाने में इसका इस्‍तेमाल किया जाता है।
    • इसके अलावा गाउट से होने वाले संधिशोथ को नियंत्रित करने में भी इसका उपयोग किया जाता है। गाउट से होने वाले संधिशोथ में वात के कारण खून अशुद्ध हो जाता है जिसके कारण सूजन और दर्द होने लगता है।
    • योगराज गुग्‍गुल वात दोष को संतुलित करता है और अमा को खत्‍म करता है। इस तरह प्रभावित हड्डियों और जोड़ों में दर्द से राहत मिलती है।
  • सिंहनाद गुग्‍गुल
    • इस मिश्रण में शुद्ध गुग्‍गुल, विभीतकी, हरीतकी (हरड़), आमलकी (आंवला), शुद्ध गंधक और अरंडी मूल (अरंडी की जड़ें) मौजूद है।
    • ये पाचन शक्‍ति को बेहतर और अमा के पाचन को बढ़ाती है। इसके अलावा ये अतिरिक्‍त कफ के उत्‍पादन को भी कम करती है और परिसंचारी चैनल्‍स (चैनल्‍स: पूरे शरीर में बहने वाली ऊर्जा के प्रवाह के 12 मुख्य माध्यम या चैनल हैं , इस जीवन ऊर्जा को चीन के पांरपरिक ज्ञान में “की” (Qi) और “ची” (Chi or Chee) कहा जाता है) में आ रहे अवरूद्ध को दूर करती है। कमर दर्द के कारण होने वाले कई रोगों को नियंत्रित करने में भी ये असरकारी है।
    • इसके अलावा सिंहनाद गुग्‍गुल रोग के आसपास वाले हिस्‍से में अमा को जमने से भी रोकती है।
  • बालारिष्‍ट
    • बालारिष्‍ट में बल (एक प्रकार का जंगली पौधा) की जड़ें, अश्‍वगंधा (भारतीय जिनसेंग) की जड़ें, पुराने गन्‍ने से बना गुड़, अरंडी की जड़ें, इलायची, लौंग, गोक्षुरा जैसी कई अन्‍य सामग्रियां मौजूद हैं।
    • इसमें ऊर्जा प्रदान करने वाले गुण होते हैं और जोड़ों में दर्द, सूजन और जलन के इलाज में इसका इस्‍तेमाल किया जा सकता है।
  • दशमूल कषाय
    • ये एक काढ़ा है जिसे 10 जड़ी-बूटियों जैसे कि पृश्निपर्णी (कलशी), बृहती (बड़ी कथेरी), बिल्‍व (बेल), श्‍योनक, अग्निमंथ, कंटकारी (छोटी कथेरी), गंभरी और गोक्षुरा से तैयार किया गया है।
    • ये औषधि वात के असंतुलन के कारण होने वाले अनेक रोगों जैसे कि गठिया को नियंत्रित करने में असरकारी है। इसलिए गठिया के कारण हो रहे कमर दर्द के इलाज में भी इसका इस्‍तेमाल किया जा सकता है।
    • दशमूल कषाय से वात के कारण हुए अस्‍थमा और खांसी को भी नियंत्रित किया जा सकजा है। इसके अलावा हड्डियों के रोग में होने वाले बुखार और हड्डियों के डिजेनरेटिव रोग (अपक्षयी कोशिका में परिवर्तन पर आधारित निरंतर प्रक्रिया से ऊत्तकों और अंगों के प्रभावित होने पर होने वाले रोग) जैसे कि अस्थिसंधिशोथ (ऑस्टियोअर्थराइटिस) का इलाज भी इससे किया जा सकता है।

व्‍यक्‍ति की प्रकृति और प्रभावित दोष जैसे कई कारणों के आधार पर चिकित्‍सा पद्धति निर्धारित की जाती है। उचित औषधि और रोग के निदान हेतु आयुर्वेदिक चिकित्‍सक से परामर्श करें। 

क्‍या करें

  • आसानी से पचने वाले, पौष्टिक और गैस पैदा ना करने वाले खाद्य पदार्थ खाएं।
  • कब्‍ज से बचने के लिए फाइबरयुक्‍त आहार जैसे कि ताजा फल, गेहूं, पत्तेदार सब्‍जियां और हरी सलाद खाएं।
  • उड़द दाल, शिग्रु (सहजन), बैंगन आदि किसी उपयुक्‍त तेल या घी में पका कर खाएं। ये खाद्य पदार्थ वात दोष को संतुलित करने में मदद करते हैं।
  • परवल, रसोनम और द्रक्ष (अंगूर) को नियमित भोजन में शामिल करें।
  • सब्जियों के सूप और कुलथी और गेहूं से बने खाद्य पदार्थ खाएं।
  • नियमित व्‍यायाम करें। (और पढ़ें - व्यायाम कैसे करें)
  • पर्याप्‍त नींद लें और सोने का एक निर्धारित समय तय करें। (और पढ़ें - अच्छी नींद कैसे ले)
  • पीने और नहाने के लिए गर्म पानी का प्रयोग करें।
  • आरामदायक सीट और पलंग का इस्‍तेमाल करें।
  • स्‍वस्‍थ मुद्रा अपनाएं।

क्‍या ना खाएं

  • चना (बंगाली चना), पीली मटर और कोरदुशा (बाजरा) जैसे खाद्य पदार्थ खाने से बचें।
  • ठंडा पानी पीने से बचें। (और पढ़ें - ठंडा पानी पीने के नुकसान)
  • तीखी और कसैली चीज़ें जैसे कि लाल मिर्च और अत्‍यधिक मसालेदार चीज़ें न खाएं। (और पढ़ें - मसालेदार भोजन के नुकसान)
  • ऐसी चीज़ें ना खाएं जिनमें पानी की मात्रा कम हो जैसे कि चिप्‍स और बिस्‍किट आदि।
  • प्राकृतिक क्रियाएं जैसे कि मल और पेशाब न रोकें। (और पढ़ें - पेशाब न रोक पाना)
  • ज्‍यादा सोचने से बचें और अपर्याप्‍त नींद तथा अत्‍यधिक शारीरिक क्रिया न करें।
  • स्‍पंज वाले गद्दे पर न सोएं। 

कमर दर्द से पीडित 20 प्रतिभागियों को एक चिकित्‍सकीय अध्‍ययन में शामिल किया गया था। इस अध्‍ययन के मुताबिक यापन बस्ति (अरंडी की जड़ के तेल के इस्‍तेमाल से होने वाली बस्ति का एक प्रकार) लंबर स्‍पॉन्‍डिलाइसिस के इलाज (इसमें रीढ़ के निचले हिस्‍से में दर्द होता है) और इसके लक्षणों से राहत पाने के लिए उपयोगी है।

लंबर स्‍पॉन्‍डिलाइसिस के लक्षणों में कमर में दर्द, कमर में अकड़न, पीड़ा, साइटिका का दर्द, पैरों में सनसनाहट और पैरों में भारीपन शामिल हैं। समय-समय पर दर्द निवारक दवा लेने से भी कुछ हद तक दर्द को कम किया जा सकता है।

लम्‍बर कैनल स्टेनोसिस (टूट-फूट के कारण हुए परिवर्तनों की वजह से लम्‍बर स्‍पाइनल कैनाल संकरी हो जाती है) के इलाज में आयुर्वेदिक चिकित्‍सा के प्रभाव को जांचने के लिए एक अन्‍य अध्‍ययन किया गया था। इस अध्‍ययन में योगराज गुग्‍गुल, दशमूल रसनादि क्‍वाथ, शतावरी, अश्‍वगंधा और गंधर्व हरीतकी, तिल के तेल के साथ सर्वांग अभ्‍यंग, बाष्‍प स्‍वेदन और बस्ति कर्म से कमर दर्द के लक्षणों में सकारात्‍मक परिणाम प्राप्त हुए। ना सिर्फ दर्द से राहत मिली बल्कि प्रतिभागियों की चिकित्‍सकीय परिस्थिति में भी सुधार आया।

प्राकृतिक नुस्‍खे सुरक्षित और असरकारी होते हैं लेकिन फिर भी किसी दुष्‍परिणाम से बचने के लिए इनके इस्‍तेमाल में सावधानी बरतना जरूरी है। उदाहरणार्थ: कमर दर्द के इलाज में बस्ति कर्म और विरचेन कर्म प्रभावकारी होता है लेकिन गर्भवती महिलाओं, कमजोर व्‍यक्‍ति और वृद्धों पर ये उपचार नहीं करना चाहिए। इसके अलावा गुदा में अल्‍सर और रक्‍तस्राव (ब्‍लीडिंग) से पीड़ित व्‍यक्‍ति को भी ये उपचार नहीं करने चाहिए। 

(और पढ़ें - कमजोरी कैसे दूर करें)

शुंथि पित्त को उत्तेजित करती है इसलिए त्‍वचा रोगों, बुखार, ब्‍लीडिंग, अल्‍सर आदि में इसका इस्‍तेमाल सावधानीपूर्वक करना चाहिए। अत्‍यधिक पित्त और हाइपर एसिडिटी से ग्रस्‍त व्‍यक्‍ति को रसोनम के प्रयोग में सावधानी बरतनी चाहिए।

खराब जीवनशैली के साथ-साथ अत्‍यधिक या बार-बार एक ही काम करने के कारण कमर दर्द होना एक आम समस्‍या है। स्‍वस्‍थ जीवन के लिए काम और आराम के बीच संतुलन बनाने की जरूरत है। व्‍यायाम से शरीर स्‍वस्‍थ और मजबूत बनता है लेकिन अत्‍यधिक व्‍यायाम करना सेहत के लिए अच्‍छा नहीं है।

हालांकि, हल्‍के कमर दर्द से रोज़मर्रा के कार्यों में रुकावट नहीं आती है लेकिन इसे नज़रअंदाज़ करना सेहत के लिए भारी पड़ सकता है।

आयुर्वेद में कमर दर्द के इलाज के लिए विभिन्‍न चिकित्‍सा प्रक्रियाओं, औषधियों और जड़ी-बूटियों के साथ-साथ स्‍वस्‍थ जीवनशैली का उल्‍लेख किया गया है। आयुर्वेदिक चिकित्‍सा में विषाक्‍त पदार्थों को बाहर निकाला जाता है और बीमारी से राहत दिलाने के लिए असंतुलित हुए दोष को संतुलित किया जाता है।  

(और पढ़ें - स्‍वस्‍थ जीवनशैली के आयुर्वेदिक उपाय)

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