अस्‍थमा को श्‍वास रोग के नाम से भी जाना जाता है। आयुर्वेद के अनुसार श्‍वसन (सांस लेना) की इस स्थिति को पांच भागों में वर्गीकृत किया गया है। पांच प्रकार के श्‍वास रोग इस प्रकार हैं: महा श्‍वास (गंभीर अस्‍थमा), ऊर्ध्‍व श्‍वास (इसमें व्‍यक्‍ति ठीक तरह से सांस नहीं ले पाता है या ऊपर की ओर जाने वाली सांस), छिन्‍न श्‍वास (रूक-रूक कर सांस आना या कभी सांस का अचानक से रूक जाना), तमक श्‍वास (एलर्जिक अस्‍थमा - सांस का बार बार फूलना) और क्षुद्र श्‍वास (हल्का अस्थमा)। अस्‍थमा का रोग प्रमुख तौर पर कफ दोष के असंतुलन के कारण होता है। सभी प्रकार के अस्‍थमा में सबसे पहला लक्षण सांस लेने में दिक्‍कत होना ही है।

(और पढ़ें - कफ दोष क्या है)

अस्‍थमा के लिए दिए जाने वाले सबसे सामान्‍य उपचार में वमन कर्म (औषधियों से उल्‍टी करवाने की विधि), विरेचन कर्म (मल त्‍याग द्वारा शुद्धिकरण), स्‍वेदन (पसीना निकालने की विधि), नास्‍य कर्म (नाक से औषधि डालने की विधि) और बस्‍ती कर्म (एनिमा) शामिल हैं। इन उपचारों से अमा को निकालकर शरीर की सफाई की जाती है।

(और पढ़ें - एनिमा कैसे लगाते हैं)

अस्‍थमा के उपचार में प्रयोग होने वाली जड़ी-बूटियों में पिप्‍पली, मधु (शहद), रसोनम (लहसुन), हिंगु (हींग), शुंथि (सूखी अदरक), वसाका (अडूसा), कंटकारी (छोटी कटेरी) और हरीतकी शामिल हैं। अस्थमा को नियंत्रित करने के लिए आमतौर पर श्‍वासकुठार रस और व्याघ्री हरीतकी लेने की सलाह दी जाती है।

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दमा की आयुर्वेदिक दवा और इलाज के डॉक्टर

आयुर्वेद के अनुसार अस्‍थमा की शुरुआत पेट से होती है और ये रस धातु ले जाने वाली नाड़ियों (चैनल्‍स) के जरिए फेफड़ों में पहुंचता है। पांच प्रकार के अस्‍थमा के लक्षण अलग-अलग होते हैं और इसी के आधार पर इनमें अंतर किया जाता है।

  • महा श्‍वास: 
    ये जानलेवा स्थि‍ति है जिसमें व्‍यक्‍ति को सांस लेने पर दर्द और असहजता महसूस होती है। इससे ग्रस्‍त व्‍यक्‍ति को अधिक वायु की जरूरत होती है जोकि गहरी सांस लेने से पूरी नहीं हो पाती है। इसके बाद आंखों का घूमना भी बंद हो जाता है और व्‍यक्‍ति अपनी चेतना खोने लगता है। ऐसी स्थिति में व्‍यक्‍ति अपना मुंह बंद करने या कुछ बोल पाने में असक्षम हो जाता है। ऐसे में पेशाब और मल आने में रुकावट हो सकती है।
     
  • ऊर्ध्‍व श्‍वास:
    अगर अस्‍थमा के इस प्रकार का ध्‍यान नहीं रखा जाए तो ये भी घातक हो सकता है। ऊर्ध्‍व श्‍वास में व्‍यक्‍ति ठीक तरह से सांस नहीं ले पाता है। इसकी वजह से दिल और मस्तिष्‍क में ऑक्‍सीजन की कमी होने लगती है। व्‍यक्‍ति ऊपर देखने लगता है और सांस लेने के दौरान हांफने और आंखें गोल-गोल घूमने लगती हैं। सीने और सिर में दर्द महसूस होता है।
     
  • छिन्‍न श्‍वास:
    इस प्रकार के अस्‍थमा में व्‍यक्‍ति को रूक-रूक कर सांस आती है। इसमें अचानक से सांस आनी बंद भी हो सकती है जिसकी वजह से सीने में बहुत तेज दर्द उठता है। छिन्‍न श्‍वास की स्थिति में गैस बनने की वजह से व्‍यक्‍ति का पेट भी फूलने लगता है। (और पढ़ें - पेट फूलने पर क्या करें
     
  • तमक श्‍वास: 
    इस प्रकार के दमा में वात कम होने की बजाय बढ़ जाता है। इसकी वजह से सिर और गर्दन में अकड़न होने लगती है। ये कफ को भी बढ़ाता है। इसके फलस्‍वरूप राइनाइटिस हो जाता है जिसमें जुकाम के अटैक आने लगते हैं और सांस लेने में दिक्‍कत होती है। सिर और सीने में बहुत तेज दर्द उठता है जिसकी वजह से व्‍यक्‍ति अपना होश (चेतना) खोने लगता है। बलगम के निकलने पर इस समस्‍या से राहत मिलती है। सूखी खांसी, गले में खराश और पीठ के बल सोने में दिक्‍कत होना, इसके सामान्‍य लक्षणों में शामिल है। कभी-कभी वात और कफ के साथ पित्त भी इस समस्‍या के कारण में शामिल होता है। पित्त के कारण जलन, चेतना में कमी और अपच होती है। तमक श्‍वास से ग्रस्‍त व्‍यक्‍ति को ठंडी हवा या ठंडे पानी में अधिक परेशानी होने लगती है।
     
  • क्षुद्र श्‍वास:
    ये लघु प्रकार का अस्‍थमा है जिसे आसानी से ठीक किया जा सकता है। प्राकृतिक इच्‍छाओं को दबाने और ज्‍यादा तैलीय या भारी भोजन की वजह से क्षुद्र श्‍वास की समस्‍या हो सकती है।
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  • वमन कर्म
    • वमन कर्म का प्रमुख उद्देश्‍य फेफडों से अतिरिक्‍त कफ को वापिस पेट में लाकर उसे शरीर से बाहर निकालना है।
    • इसमें विभिन्‍न जड़ी-बूटियों द्वारा व्‍यक्‍ति को उल्‍टी करवाई जाती है और शरीर से अतिरिक्‍त कफ एवं विषाक्‍त पदार्थों को बाहर निकाला जाता है। नाडियों और सीने से बलगम को बाहर निकाला जाता है, इस तरह सांस लेने में आ रही रुकावट से राहत मिलती है।
    • वमन खांसी से राहत, दमा के इलाज और सांस लेने में आ रही समस्‍या को नियंत्रित करने में मदद करता है।
    • कमजोरी, पेट में ट्यूमर, हाई ब्‍लड प्रेशर और ह्रदय संबंधित समस्‍याओं से ग्रस्‍त व्‍यक्‍ति को वमन की सलाह नहीं दी जाती है। एनिमा थेरेपी ले चुके लोगों और गर्भवती महिलाओं को भी ये चिकित्‍सा नहीं दी जाती है।
    • वमन में दो प्रकार की जड़ी-बूटियों मुलेठी और नमक के पानी का प्रयोग कर उल्‍टी करवाई जाती है। इन जड़ी-बूटियों के प्रभाव को बढ़ाने के लिए नीम, पिप्‍पली, काला नमक और आमलकी जैसी कुछ जड़ी-बूटियां दी जाती हैं।
       
  • विरेचन कर्म
    • वमन कर्म की तरह विरेचन कर्म द्वारा भी फेफड़ों से अतिरिक्‍त कफ को वापिस पेट में लाया जाता है और फिर इसे शरीर से बाहर निकाला जाता है। पेट में ट्यूमर जैसी विभिन्‍न समस्‍याओं के इलाज में ये चिकित्‍सा उत्तम मानी जाती है एवं शरीर से विषाक्‍त पदार्थ निकालने में ये मदद करती है। (और पढ़ें - ट्यूमर क्या होता है)
    • रोग के इलाज के लिए सही शुद्धिकरण उपचार निर्धारित करने से पहले व्‍यक्‍ति से उसकी मल त्‍याग से संबंधित आदतों के बारे में सवाल पूछे जाते हैं। 
    • मुलायम मल आने वाले लोगों को सौम्‍य विरेचन और शहद, दालचीनी एवं घी जैसी जड़ी-बूटियां दी जाती हैं। वहीं जिन लोगों को सख्‍त मल आता है उन्‍हें मल निष्‍कासन के लिए तेज रेचक (जुलाब) जैसे कि त्रिफला, रूबर्ब, सेन्‍ना एवं अरंडी का तेल दिया जाता है। जिस दोष के कारण दमा की शिकायत हुई है, उसके आधार पर भी विरेचन कर्म अलग हो सकता है।
    • आमतौर पर वात विकारों के लिए इसकी सलाह नहीं दी जाती है लेकिन ये कफ और पित्त विकारों के लिए उपयोगी है। कमजोर, युवा, वृद्ध और दुर्बल व्‍यक्‍ति को ये चिकित्‍सा नहीं दी जाती है।
       
  • स्‍वेदन
    • ये एक पसीना निकालने की विधि है जिसमें ऊष्‍मा (गर्मी) या बिना ऊष्‍मा के व्‍यक्‍ति के शरीर पर पसीना लाया जाता है। आचार्य चरक के अनुसार भारीपन, जुकाम और अकड़न को दूर करने में स्‍वेदन चिकित्‍सा मदद करती है। ये शरीर से कफ को ढीला करके उसे बाहर निकालने में मदद करती है।
    • जलन, पानी की कमी, अनिद्रा (इनसोमनिया), कार्डियक रोगों और ब्‍लीडिंग विकारों से ग्रस्‍त व्‍यक्‍ति पर इस चिकित्‍सा का इस्‍तेमाल नहीं करना चाहिए।
       
  • नास्‍य कर्म
    • औषधीय तेल की बूंदों को नासिका मार्ग (माना जाता है कि यह मार्ग व्यक्ति के मस्तिष्‍क और चेतना तक जाता है) में डाला जाता है जिससे बंद नाक एवं नासिका मार्ग की गुहाएं साफ हो जाती हैं। इसके बाद सांस लेने में आसानी होती है।
    • नास्‍य कर्म में विभिन्‍न जड़ी-बूटियों के साथ तेल का प्रयोग कर नासिका मार्ग और साइनस को साफ किया जाता है।
       
  • बस्‍ती कर्म
    • ये एक एनिमा क्रिया है जिसमें जमे हुए त्रिदोष (वात, पित्त और कफ) को साफ किया जाता है। इससे अतिरिक्‍त कफ बाहर निकल जाता है और सूजन में कमी एवं सांस लेने की प्रक्रिया आसान होती है।
    • बस्‍ती कर्म में प्रयोग होने वाला काढ़ा या तेल विभिन्‍न औषधीय जड़ी-बूटियों के गुणों से युक्‍त होता है। ये आधुनिक एनिमा की तरह नहीं है एवं इसे इस्‍तेमाल से पहले ताजा बनाया जाता है।
    • आमतौर पर ये चिकित्‍सा 8 से 30 दिनों के लिए दी जाती है। व्‍यक्‍ति की स्थिति के अनुसार इस चिकित्‍सा की समयावधि भिन्‍न हो सकती है।

अस्‍थमा के लिए आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियां

  • पिप्‍पली
    • पाचन, श्‍वसन और प्रजनन रोगों के इलाज में पिप्‍पली का इस्‍तेमाल किया जाता है।
    • पिप्‍पली कफ निस्‍सारक भी है जोकि शरीर से बलगम को निकालने में मदद करती है। इस गुण के कारण पिप्‍पली कफ रोगों में उपयोगी होती है।
    • ये ब्रोंकाइटिस, अस्‍थमा एवं अन्‍य कफ विकारों में फायदेमंद है। ये शरीर से विषाक्‍त पदार्थ को बाहर निकालने में मदद करती है।
    • पिप्‍पली के कारण पित्त बढ़ सकता है इसलिए इसका इस्‍तेमाल सावधानीपूर्वक करना चाहिए।
       
  • मधु
    • मधु यानि शहद में कई घटक होते हैं जैसे कि कार्बोहाइड्रेट, शीघ्र वाष्प बनकर उड़ जाने वाला तेल, विटामिंस और मिनरल्‍स आदि।
    • ये बच्‍चों में रात के समय होने वाली खांसी का इलाज कर अच्‍छी नींद लाने में मदद करता है। ये तुरंत ऊर्जा देने वाला और रोगाणुरोधक है एवं खांसी की कई दवाओं में जीवाणुरोधक के रूप में इसका प्रयोग किया जाता है। (और पढ़ें - अच्छी नींद के लिए घरेलू नुस्खे)
    • हर उम्र के लोगों के लिए शहद का सेवन सुरक्षित एवं उचित है।
       
  • रसोनम
    • रसोनम गहरे ऊतकों तक पहुंचता है और कई चिकित्सीय लाभकारी प्रभाव पैदा करता है।
    • ये शरीर को ऊर्जा देता है और अनेक वात एवं कफ विकारों में उपयोगी है। (और पढ़ें - ताकत बढ़ाने के लिए क्या खाना चाहिए)
    • लहसुन, मल त्‍याग की क्रिया को बेहतर करता है एवं दमा, खांसी और गंभीर नेजल कैटेरह (जुकाम) को नियंत्रित करने में मदद करता है।
       
  • हिंगु
    • वात रोगों के लिए हींग को एक बेहतरीन मसाले के रूप में जाना जाता है। ये खांसी, अस्‍थमा, सिरदर्द और पेट के फूलने, दर्द, गैस एवं ऐंठन से राहत पाने में मदद करती है।
    • पित्त के कारण हुए रोगों के इलाज में इसका प्रयोग नहीं करना चाहिए क्‍योंकि हींग से पित्त दोष बढ़ता है।
       
  • शुंथि
    • सूखी अदरक यानि सौंठ में कई रोगों को ठीक करने के चमत्‍कारिक गुण मौजूद हैं। अस्‍थमा में शुंथि दर्द निवारक और कफ निस्‍सारक (कफ साफ करने वाली) दवा के रूप में कार्य करती है। ये कफ को निकालने में मदद करती है जिससे अस्‍थमा से ग्रस्‍त व्‍यक्‍ति को राहत मिलती है।
    • शुंथि से वात, पित्त और कफ का स्‍तर कितना कम होगा ये इस बात पर निर्भर करता है कि शुंथि के साथ किस जड़ी-बूटी को दिया जा रहा है। काले नमक के साथ शुंथि लेने पर वात कम होता है, मिश्री के साथ पित्त और शहद के साथ लेने पर कफ दोष कम होता है।
    • अकेले शुंथि लेने पर पित्त बढ़ जाता है इसलिए पित्त प्रधान रोगों में शुंथि का प्रयोग सावधानीपूर्वक करना चाहिए।
       
  • वसाका
    • श्‍वसन रोगों के इलाज में इस्‍तेमाल होने वाली जड़ी-बूटियों में वसाका प्रमुख है। इसमें कफ निस्‍सारक और एंटीस्‍पैसमोडिक (ऐंठन दूर करने वाले) गुण होते हैं। ये श्‍वासनलियों (ब्रोंकाई) को चौड़ा कर सकती है और इस तरह ये अस्‍थमा, खांसी एवं ब्रोंकाइटिस के इलाज में मदद करती है।
    • वसाका का प्रयोग प्रमुख तौर पर कफ रोगों में किया जाता है। इसे अर्क, रस, काढ़े, पुल्टिस या पाउडर के रूप में लिया जाता है।
       
  • कंटकारी
    • कंटकारी कफ निस्‍सारक के रूप में कार्य करती है और ये अस्‍थमा जैसे श्‍वसन विकारों पर बहुत असरकारी पाई गई है।
    • गंभीर खांसी, दमा, गले में खराश, टीबी और बुखार जैसी कई समस्‍याओं के इलाज में अन्‍य जड़ी-बूटियों के साथ कंटकारी का इस्‍तेमाल किया जाता है।
    • बच्‍चों समेत अधिकतर लोगों के लिए कंटकारी सुरक्षित और प्रभावी है।
       
  • हरीतकी
    • हरीतकी ऊर्जादायक के रूप में कार्य करती है और ये अनेक स्‍वास्‍थ्‍य समस्‍याओं जैसे कि अस्‍थमा, खांसी, कर्कश (भारी या बैठी हुई) आवाज, पेट फूलने, गैस और गले में खराश के उपचार में उपयोगी है।
    • गर्भवती महिलाओं और अत्‍यधिक थकान एवं पानी की कमी (डिहाइड्रेशन) से ग्रस्‍त व्‍यक्‍ति को इसका इस्‍तेमाल सावधानीपूर्वक करना चाहिए।
       

अस्‍थमा के लिए आयुर्वेदिक औषधियां

  • श्‍वास कुठार रस
    • ये एक हर्बो-मिनरल मिश्रण है जिसमें वत्‍सनाभ, पिप्‍पली, काली मिर्च, अदरक और डिटॉक्सिफाइड (विषाक्‍त चीजों को निकालकर) एवं शुद्ध मिनरल्‍स जैसे कि पारा, सल्‍फर, सुहागा और आर्सेनिक सल्‍फाइड (गंधहीन एवं स्‍वादहीन उपधातु) मौजूद होते हैं।
    • इसे अस्‍थमा और एलर्जी से सम्बंधित रोगों के इलाज में बेहतरीन औषधि के रूप में जाना जाता है।
       
  • व्‍याघ्री हरीतकी
    • इसमें कंटकारी, हरीतकी, त्रिकटु (तीन कषाय), चर्तु जटा(4 मसालों का मिश्रण), मधु और पूरन गुड़ (पुराना गुड़) आदि शामिल है। ये सभी चीजें कफ निकालने के लिए जानी जाती हैं और खांसी के इलाज में इनका प्रयोग किया जाता है।
    • इस मिश्रण में मौजूद सामग्रियां श्‍वसन विकारों को नियंत्रित और उनका उपचार करने में उपयोगी हैं। प्राचीन समय से ही खांसी और अस्‍थमा के इलाज में इस मिश्रण का इस्‍तेमाल किया जा रहा है।

व्‍यक्‍ति की प्रकृति और कई कारणों के आधार पर चिकित्‍सा पद्धति निर्धारित की जाती है इसलिए उचित औषधि और रोग के निदान हेतु आयुर्वेदिक चिकित्‍सक से परामर्श करें।

(और पढ़ें - बच्चों में अस्थमा के कारण)

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क्‍या करें

क्‍या न करें

  • भारी खाना, काले चने, मछली, तला हुआ भोजन एवं सरसों के पत्ते न खाएं।
  • जुकाम और उमस भरे वातावरण से बचें।
  • ठंडा पानी, मिठाई, दही और स्‍टोर करके रखा गया खाना न खाएं।
  • अत्‍यधिक व्‍यायाम न करें।
  • धूम्रपान, धूल या धुएं वाली जगहों एवं प्रदूषित पर्यावरण में जाने से बचें। (और पढ़ें - धूम्रपान के नुकसान)
  • प्राकृतिक इच्‍छाओं जैसे कि मल और पेशाब को न रोकें।

ब्रोंकियल अस्‍थमा को नियंत्रित करने में वसा हरीतकी अवलेह और श्‍वासहर लेह के प्रभाव की तुलना करने के लिए दो महीने की समयावधि तक एक अध्‍ययन किया गया। ब्रोंकाइल अस्‍थमा के मरीजों और सांस लेने में दिक्‍कत, खांसी एवं सीने में दर्द की शिकायत से ग्रस्‍त लोगों को इस अध्‍ययन में शामिल किया गया एवं इन्‍हें दो समूहों में बांट दिया गया।

अध्‍ययन में एक समूह को दिन में दो बार 5 ग्राम श्‍वासहर लेह और दूसरे समूह को दिन में दो बार 5 ग्राम वसा हरीतकी अवलेह दिया गया। अध्ययन के दौरान एवं अध्‍ययन पूरा होने के बाद प्रतिभागियों की क्लीनिकल विशेषताओं का मूल्यांकन किया गया था। इस अध्‍ययन के परिणाम में पाया गया कि ब्रोंकाइल अस्‍थमा को नियंत्रित करने में श्‍वासहर लेह से ज्‍यादा राहत वासा हरीतकी अवलेह से मिली।

इसके अलावा ब्रोंकियल अस्‍थमा से ग्रस्‍त बच्‍चों पर भारंग्‍यादि अवलेह और वासा (अडूसा) अवलेह के प्रभाव की तुलनात्‍मक जांच के लिए 6 सप्‍ताह तक अध्‍ययन किया गया। उपचार से पहले, इसके दौरान एवं उपचार के बाद अध्‍ययन में शामिल 2 से 10 साल के बच्‍चों की चिकित्‍सीय स्थिति का मूल्‍यांकन किया गया।

हालांकि, इन दोनों ही औषधियों से बच्‍चों की स्थिति में सुधार पाया गया लेकिन भारंग्‍यादि अवलेह की तुलना में वासा अवलेह ज्‍यादा बेहतर पाया गया।

(और पढ़ें - अस्थमा अटैक के लक्षण)

उपरोक्‍त औषधियों के हानिकारक प्रभाव और खतरे व्‍यक्‍ति की चिकित्‍सकीय स्थिति के आधार पर भिन्‍न होते हैं जैसे कि किस दोष के कारण रोग हुआ है।

पित्त प्रधान रोगों में पिप्‍पली और हींग जैसी जड़ी-बूटियों का प्रयोग सावधानीपूर्वक करना चाहिए। गर्भवती महिलाओं में हरीतकी जैसी जड़ी-बूटी के इस्‍तेमाल को लेकर अधिक सतर्क रहने की जरूरत है।

(और पढ़ें - अस्थमा में क्या नहीं खाना चाहिए)

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सही तरह से उपचार न करने पर दमा की बीमारी खतरनाक रूप ले सकती है। इसका असर जीवन की गुणवत्ता पर भी पड़ता है। आयुर्वेद द्वारा विभिन्‍न जड़ी-बूटियों और हर्बल मिश्रणों के साथ कुछ सरल चिकित्‍सा प्रक्रियाओं (शरीर से विषाक्‍त पदार्थ निकालने में करने वाली चिकित्‍साओं) द्वारा सभी प्रकार के अस्‍थमा का इलाज किया जा सकता है।

ये जड़ी-बूटियां अधिकतर लोगों पर असरकारी होती हैं और इन औषधियों के सही इस्‍तेमाल से संपूर्ण जीवन स्‍तर में सुधार लाया जा सकता है।

(और पढ़ें - अस्थमा के लिए योग)

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संदर्भ

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