क्या आप जानते हैं, कि सिर्फ जी मिचलाना और मूड स्विंग होना ही गर्भावस्था के शुरुआती संकेत नहीं होते हैं। लगभग 4 महिलाओं में से 1 महिला को हल्की ब्लीडिंग होती है, जो गर्भावस्था की पुष्टि करती है। वैसे देखा जाए को ब्लीडिंग होने की स्थिति को गर्भावस्था से उल्टा माना जाता है, लेकिन यह सच भी है और नहीं भी। योनि से खून आना इंप्लांटेशन का संकेत हो सकता है। इंप्लांटेशन गर्भाशय की सतह में भ्रूण से जुड़ा होता है। 

इंप्लांटेशन ब्लीडिंग में सामान्य पीरियड्स के मुकाबले कम खून आता है। इतना ही नहीं इंप्लांटेशन ब्लीडिंग में आने वाला खून सामान्य पीरियड्स में आने वाले खून से थोड़ा अलग होता है। इसलिए यदि आपका पेट बढ़ने लगा है, जाहिर है कि आप गर्भवती हो गई हैं। लेकिन यदि आपको सिर्फ ब्लीडिंग हो रही है, तो आपको पुष्टि करने की जरूरत है। 

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  1. इंप्लांटेशन ब्लीडिंग क्या है? - Implantation bleeding kya hai in Hindi?
  2. इंप्लांटेशन ब्लीडिंग के लक्षण - Implantation bleeding ke lakshan in Hindi
  3. इंप्लांटेशन ब्लीडिंग से जुड़े अन्य लक्षण - implantation bleeding ke other Symptoms in Hindi
  4. इंप्लांटेशन ब्लीडिंग और मासिक धर्म की ब्लीडिंग में अंतर - Implantation bleeding or menstrual bleeding me difference in Hindi
  5. इंप्लांटेशन ब्लीडिंग के बाद टेस्ट कब करवाना चाहिए? - Implantation bleeding ke baad test karwayen
  6. क्या योनि से खून आना चिंता का कारण है? - Kya Implantation bleeding chinta ka karan hai?
  7. इंप्लांटेशन ब्लीडिंग के डॉक्टर

भ्रूण फर्टिलाइजेशन (निषेचन) का परिणाम होता है। दूसरे शब्दों में कहें तो जब शुक्राणु और अंडाणु मिलते हैं, तो फर्टिलाइजेशन हो जाता है और जिसके परिणामस्वरूप भ्रूण बनने लग जाता है। उसके बाद यह भ्रूण फैलोपियन ट्यूब से होते हुऐ सीधे गर्भाशय में पहुंच जाता है और गर्भाशय की मोटी परत में ठहर जाता या आरोपित हो जाता है। इस प्रक्रिया के दौरान हल्की सी ब्लीडिंग होती है, जिसे इंप्लांटेशन ब्लीडिंग कहा जाता है। यह कुछ दिन तक भी रह सकती है। 

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ऐसे कई लक्षण व संकेत हैं जो इंप्लांटेशन ब्लीडिंग के साथ दिखाई दे सकते हैं। ये लक्षण व संकेत आपको ब्लीडिंग की पहचान करने में मदद करते हैं, ताकि आप इन लक्षणों के अनुसार खून आने के कारण का उपाय कर सकें।

 
  1. इंप्लांटेशन ब्लीडिंग कब होती है? - Implantation bleeding kab hoti hai in Hindi?
  2. इंप्लांटेशन ब्लीडिंग में खून का रंग कैसा होता है? - Implantation bleeding me khoon ka color kesa hota hai?
  3. इंप्लांटेशन ब्लीडिंग में कितना दर्द होता है? - Implantation bleeding me pain in Hindi

इंप्लांटेशन ब्लीडिंग कब होती है? - Implantation bleeding kab hoti hai in Hindi?

सामान्य गर्भावस्था को सुनिश्चित करने के लिए ब्लीडिंग का समय और अवधि का पता होना बहुत जरूरी होता है। ऐसा इसलिए क्योंकि गर्भावस्था के दौरान खून आने की काफी सारी वजह हो सकती हैं। आमतौर पर योनि से खून ओवुलेशन के 6 से 10 दिन के दौरान या मासिक धर्म चक्र के 20 से 24 दिनों के भीतर होता है। यह कुछ दिनों तक लगातार रह सकता है या पीरियड्स के दौरान भी हो सकता है, जिस कारण से कभी-कभी उसको देख पाना बहुत कठिन होता है। हालांकि यदि ब्लीडिंग गर्भधारण काल के कुछ हफ्तों के बाद होती है, तो यह मिसकैरेज या एक्टोपिक प्रेगनेंसी का संकेत हो सकती है।

इंप्लांटेशन ब्लीडिंग की अवधि से जुड़ी एक और बात है, जिसके बारे आपको पता होना चाहिए। जो महिलाएं पहले जन्म दे चुकी हैं उनके मुकाबले जिन महिलाओं को पहली बार इंप्लांटेशन ब्लीडिंग हो रही है उनमें इंप्लांटेशन ब्लीडिंग अवधि थोड़ी लंबी चल सकती है।

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इंप्लांटेशन ब्लीडिंग में खून का रंग कैसा होता है? - Implantation bleeding me khoon ka color kesa hota hai?

इंप्लांटेशन ब्लीडिंग में आने वाले खून का रंग काफी हल्का होता है, जो स्पॉटिंग की तरह या पीरियड्स से पहले होने वाली हल्की ब्लीडिंग की तरह होता है। स्पॉटिंग काफी अनियमित होती है और इसके लक्षण हर महिला के अनुसार अलग-अलग हो सकते हैं। स्पॉटिंग या इंप्लांटेशन ब्लीडिंग के दौरान आने वाला खून आमतौर पर पीरियड्स के दौरान निकलने वाले खून से हल्का होता है। आमतौर पर इसमें निकलने वाले खून हल्के गुलाबी या ब्राउन रंग का दिखाई देता है। 

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इंप्लांटेशन ब्लीडिंग में कितना दर्द होता है? - Implantation bleeding me pain in Hindi

इंप्लांटेशन ब्लीडिंग के दौरान कई महिलाओं को पेट के निचले हिस्से में ऐंठन महसूस होती है, जबकि कुछ महिलाओं को ऐसा कुछ भी महसूस नहीं होता है। पेट में मरोड़ गर्भाशय के आकार बढ़ने (विस्तार होने) के कारण होती है। जब भ्रूण खुद को गर्भ को अंदर जड़ने की कोशिश करता है, तो इससे जुड़ी मांसपेशियां व लिगामेंट्स आदि में खिंचाव होने लगता है। 

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आपको शरीर की पॉजिशन बदलने, खांसी करने या छींक आदि के दौरान पेट में हल्की ऐंठन महसूस हो सकती है। इस दौरान होने वाली ऐंठन की गंभीरता हल्की या मध्यम हो सकती है और यह लगभग हर गर्भवती महिला को महसूस होता है। यदि आपको पेट के निचले हिस्से में अत्यधिक ऐंठन महसूस हो रही है, तो ऐसी स्थिति में डॉक्टर की मदद लें ताकि इस स्थिति के सही कारण का पता लगाया जा सके।

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ऊपर बताए गए लक्षणों के अलावा कुछ अन्य लक्षण भी हो सकते हैं, जो इंप्लांटेशन ब्लीडिंग से जुड़े होते हैं। यदि आपको योनि में खून आने के साथ नीचे बताए गए लक्षणों में से कोई भी एक महसूस हो रहा है, तो आपके गर्भवती होने की संभावनाएं काफी बढ़ जाती हैं। 

मतली और उल्टी 
अमेरिकन प्रेगनेन्सी एसोशिएसन के अनुसार जी मिचलाना और उल्टी आना गर्भावस्था का दूसरा सबसे मुख्य संकेत होता है। यह आमतौर पर यौन संबंध बनाने या फर्टिलाइजेशन करने के दो हफ्तों के बाद महसूस होता है और पहले तिमाही तक रह सकता है। यहां तक कि कुछ महिलाओं को दो पूरे गर्भावस्था के दौरान ही जी मिचलाना या उल्टी जैसी समस्याएं रह सकती हैं। 

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जी मिचलाना या मतली होने के दौरान उल्टी करने जैसा महसूस होता है, इसमें कई बार उल्टी हो भी जाती है और कई बार नहीं भी। गर्भावस्था के दौरान होने वाली मतली को “मॉर्निंग सिकनेस” कहा जाता है, लेकिन यह समस्या पूरा दिन और यहां तक कि रात के समय भी हो सकती है।

स्तनों में सूजन व छूने पर दर्द होना 
जिन महिलाओं ने गर्भधारण कर लिया है, उनको स्तनों में सूजन व छूने पर दर्द होने जैसी समस्या होने लगती है। इसके अलावा महिलाओं के स्तनों का आकार भी थोड़ा सा बढ़ सकता है। स्तनों में सूजन व छूने पर दर्द होना गर्भावस्था का तीसरा सबसे मुख्य संकेत माना जाता है।

गर्भधारण के होने के बाद महिलाओं के हार्मोन में बदलाव होने लग जाते हैं जैसे प्रोजेस्टेरोन का स्त्राव बढ़ना आदि, जिस कारण से स्तनों में बदलाव महसूस होने लगता है। स्तनों में बदलाव आमतौर पर गर्भधारण करने के 1 से 2 हफ्ते बाद होने लगता है। यह लक्षण इंप्लांटेशन ब्लीडिंग से संबंधित हो सकता है। 

थकान 
गर्भाशय के अंदर विकसित हो रहे भ्रूण के लिए उचित वातावरण बनाने के लिए गर्भावस्था के शुरूआती चरणों में ही महिलाओं के शरीर में तेजी से काफी सारे बदलाव होते हैं। शरीर में तेजी से बदलाव होने के कारण महिलाओं को पूरे दिन थकावट महसूस होती है। इसके अलावा गर्भावस्था में होने वाले हार्मोन के बदलाव और प्रोजेस्टेरोन का स्तर बढ़ने के कारण भी महिलाओं को थकान व नींद महसूस होती है। इसके साथ आपको भावनात्मक संबंधी समस्याएं भी हो सकती हैं और आपको हर समय कमजोरी सी महसूस होती हैं। 

बार-बार पेशाब आना 
गर्भवती महिलाओं को बार-बार पेशाब करने की इच्छा जागती है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि भ्रूण के कारण गर्भाशय का आकार बढ़ जाता है, जिससे आस-पास के अंगों में दबाव बढ़ जाता है। गर्भाशय के पास मौजूद मूत्राशय (जहां पेशाब जमा होता है) पर दबाव बढ़ने से बार-बार पेशाब करने की इच्छा होने लगती है। ज्यादातर मामलों में बार-बार पेशाब आने की समस्या गर्भावस्था के 6 से 8 हफ्तों के बीच में होने लग जाती है। 

भूख लगना 
आपने गर्भवती महिलाओं के बारे में सुना होगा या फिल्मों में देखा होगा कि कैसे गर्भधारण करने के बाद महिलाएं अजीब-अजीब सी चीजें खाने की इच्छा रखने लगती हैं। गर्भवती महिलाओं को अचानक से किसी भी समय कुछ अलग खाने का मन करने लगता है और वे अपने आप को रोक नहीं पाती हैं। गर्भावस्था के दौरान लगभग हर महिला का मन कुछ अलग-अलग खाने का करता है, हालांकि कुछ महिलाओं का मन अत्यधिक तो कुछ का कम करता है। अभी तक इस स्थिति के पीछे की कोई स्पष्ट वजह नहीं मिल पाई है। 

मूड स्विंग होना 
बार-बार मूड स्विंग होना भी गर्भावस्था में होने वाला एक लक्षण होता है। गर्भवती महिलाओं में हार्मोन्स के बदलाव होने के कारण उनके मूड में उतार-चढ़ाव होते रहते हैं। उन्हें एक ही दिन में अच्छा, बुरा, शांति, गुस्सा और खुशी महसूस हो सकती है। गर्भावस्था के दौरान मूड स्विंग होना आम बात होती है, लेकिन यदि आपको अत्यधिक उदासी महसूस हो रही है तो डॉक्टर से जरूर बात करें। क्योंकि यह डिप्रेशन का संकेत हो सकता है। 

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जो महिलाएं गर्भधारण करने की कोशिश कर रही होती हैं, वे यह तय नहीं कर पाती कि वे गर्भवती हो गई हैं या नहीं और यह ब्लीडिंग प्रेगनेंसी से जुड़ी है या पीरियड्स से। यदि आप पीरियड्स और गर्भावस्था के बीच के अंतर के बारे में ठीक से नहीं जानते तो आपको संदेह रहना जायज़ है, क्योंकि इन दोनों स्थितियों के लक्षण एक जैसे होते हैं और लगभग उसी समय में होते हैं। इसके अलावा गर्भावस्था और पीरियड्स के कुछ लक्षण एक जैसे होते हैं, जैसे मूड स्विंग या भूख लगना आदि, ऐसे गर्भावस्था को तय कर पाना और मुश्किल हो जाता है। लेकिन आपको चिंता करने की जरूरत नहीं है क्योंकि हम आपको इन दोनों स्थितियों के बीच का अंतर बताने वाले हैं। तो चलिए शुरू करते हैं: 

खून का बहाव: 
इंप्लांटेशन ब्लीडिंग के दौरान आने वाला खून मात्रा में पीरियड्स के दौरान आने वाले खून से काफी कम होता है। इंप्लांटेशन ब्लीडिंग आमतौर पर स्पॉटिंग के रूप में होती है जबकि पीरियड्स में होने वाली ब्लीडिंग काफी अधिक होती है, जिसको कंट्रोल करने के लिए सेनेटरी पैड या टेम्पोन आदि की आवश्यकता पड़ती है। इंप्लांटेशन के दौरान होने वाली ब्लीडिंग काफी कम होती है जिसे आप साधारण तरीके के गुप्तांग को धो कर या टॉयलेट पेपर से पोंछ कर भी खून को साफ कर सकते हैं।

खून का रंग: 
हर विकसित महिला को पीरियड्स होते हैं, इसलिए वे पीरियड्स में आने वाले खून को काफी अच्छे से पहचान लेती हैं। पीरियड्स के दौरान खून कम आए या ज्यादा आए लेकिन खून का रंग गहरा लाल ही होता है। हालांकि, जब बात इंप्लांटेशन ब्लीडिंग की आती है, तो इसमें खून का रंग हल्के गुलाबी से गहरे ब्राउन रंग का भी हो सकता है। यहां तक कि कभी-कभी इसका रंग लोहे की जंग के जैसा होता है। 

क्लोटिंग: 
ज्यादातर महिलाओं को पीरियड्स के दौरान खून में गांठ या थक्के बने हुऐ दिखाई देते हैं। यह पीरियड्स के दौरान लगभग सभी महिलाओं को महसूस होते हैं। हालांकि इंप्लांटेशन ब्लीडिंग में किसी तरह का थक्का बना हुआ दिखाई नहीं देता है और इसमे आने वाला खून साफ होता है। 

खून बहने की अवधि: 
मासिक धर्म के दौरान बहने वाला खून आमतौर पर 3 से 7 दिनों तक होता है। हालांकि जो महिलाएं गर्भनिरोधक गोलियां लेती हैं उनको गर्भनिरोधक गोलियां ना लेने वाली महिलाओं के मुकाबले पीरियड्स में कम खून आता है और यहां तक कि कभी-कभी आता ही नहीं है।

इसके विपरीत इंप्लांटेशन में होने वाली ब्लीडिंग लंबे समय तक नहीं रहती है। यह गर्भावस्था से संबंधित ब्लीडिंग होती है और कुछ ही घंटे तक रहती है। ज्यादा से ज्यादा यह 3 दिन से अधिक समय तक नहीं रह पाती है। 

उम्मीद है कि अब आप इंप्लांटेशन में होने वाली ब्लीडिंग और पीरियड्स में होने वाली ब्लीडिंग के बीच अंतर पता लगा सकते हैं। 

(और पढ़ें - पीरियड्स में ज्यादा ब्लीडिंग होने के कारण)

अब तो आप समझ ही गए होंगे कि इंप्लांटेशन के दौरान होने वाली ब्लीडिंग संभावित रूप से आपके गर्भवती होने का संकेत देती है। हालांकि यदि आप इस समय प्रेगनेंसी टेस्ट करवाती हैं, तो हो सकता है टेस्ट का रिजल्ट नेगेटिव आए। इसलिए अमेरिकन प्रेगनेंसी एसोसिएशन के अनुसार ब्लीडिंग व स्पॉटिंग बंद होने के तीन दिन बार प्रेगनेंसी टेस्ट करवाना चाहिए। 

इसके अलावा ऑफिस ऑफ वुमन हेल्थ के अनुसार प्रेगनेंसी टेस्ट के रिजल्ट को और सटीक रूप से प्राप्त करने के लिए पीरियड्स ना आने के एक हफ्ते के बाद टेस्ट करवाना चाहिए। आप थोड़ा पहले भी टेस्ट करवा सकती हैं, लेकिन कुछ फैक्ट बताते हैं कि यदि पीरियड् मिस होने के अगले दिन प्रेगनेंसी टेस्ट करवाने पर रिजल्ट नेगेटिव आता है। हमेशा एक हफ्ते के बाद टेस्ट करवाना बेहतर होता है और पुष्टि के लिए टेस्ट को दो बार करना चाहिए। 

इंप्लांटेशन ब्लीडिंग के लक्षण व कारण आदि के बारे में अच्छे से जान लेने के बाद आपके मन में एक सवाल तो जरूर उठ रहा होगा, कि क्या इंप्लांटेशन ब्लीडिंग हानिकारक है? आपको बता दें कि इंप्लांटेशन ब्लीडिंग से आपको चिंता करने की जरूरत नहीं होती है, क्योंकि शरीर की प्राकृतिक प्रक्रिया होती है। जाहिर सी बात है हर महिला इस समस्या से गुजरती है और इससे शिशु के विकसित होने से संबंधित किसी प्रकार का जोखिम पैदा नहीं होता है। हालांकि यदि आपको पीरियड्स मिस होने के बाद ब्लीडिंग या स्पॉटिंग हो रही है, तो इसका कारण इंप्लांटेशन ब्लीडिंग नहीं होता है। 

इस समय ब्लीडिंग होने की कई अलग-अलग वजह हो सकती हैं। पीरियड्स मिस होने के बाद होने वाली ब्लीडिंग के कुछ कारणों को सामान्य या फीजियोलॉजिकल नहीं माना जाता और तुरंत इनका इलाज शुरू कर दिया जाता है। इनमें से कुछ निम्न हैं:

यदि आपको गंभीर रूप से ब्लीडिंग व पेट में ऐंठन हो रही है और इनके साथ-साथ अन्य शारीरिक बदलाव भी महसूस हो रहे हैं तो ऐसी स्थित में तुरंत डॉक्टर की मदद लेनी चाहिए। ऐसा इसलिए है क्योंकि अधिक ब्लीडिंग होने के पीछे कुछ गंभीर कारण हो सकते हैं, जैसे: 

  • मिसकैरेज:
    इस स्थिति में भ्रूण 3 महीने से पहले ही गिर जाता है। 3 महीने तक बच्चा इतना विकसित नहीं हुआ होता कि वह गर्भाशय के बाहर जीवित रह सके। हालांकि कुछ मेडिकल शब्दों के अनुसार, जो भ्रूण 6 महीने पूरे होने से पहले ही गिर जाता है, उस स्थिति को मिसकैरेज कहा जाता है। आजकल के दौर में मिसकैरेज की संभावनाएं व उसके मामले दिन पर दिन बढ़ते जा रहे हैं। राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा के अनुसार 5 में से 1 गर्भवती महिला मिसकैरेज का शिकार हो जाती है। अधिक ब्लीडिंग के साथ पेट में ऐंठन होने को मिसकैरेज का शुरूआती संकेत भी माना जाता है।
     
  • एक्टोपिक प्रेगनेंसी:
    यह एक असामान्य प्रकार की प्रेगनेंसी होती है, जो तब होती है जब इंप्लांटेशन गर्भाशय की दीवार के अलावा फैलोपियन ट्यूब में या कहीं और हो जाता है। एक्टोपिक प्रेगनेंसी के दौरान भी काफी अधिक ब्लीडिंग होती है और पेट में ऐंठन आती है। यह जीवन के लिए हानिकारक स्थिति बन सकती है और जिसका जल्द से जल्द इलाज करवाने की आवश्यकता होती है।
     
  • मोलर प्रेगनेंसी:
    यह एक ऐसे प्रकार की प्रेगनेंसी होती है, जो तब होती है जब अंडा असाधारण तरीके से निषेचित हो जाता है। इसके परिणामस्वरूप भ्रूण असाधारण तरीके से विकसित होने लगता है। यह आमतौर पर अधिक उम्र वाली महिलाओं में अधिक होता है। 

(और पढें - पीरियड के कितने दिन के बाद प्रेगनेंसी हो सकती है)

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