आयुर्वेद में एनीमिया को पांडु रोग के रूप में जाना जाता है। इस रोग में खून में हीमोग्‍लोबिन की मात्रा घट जाती है। त्रिदोष में से किसी एक दोष या तीनों दोषों के खराब होने पर एनीमिया की शिकायत हो सकती है। कृमि (कीड़ों) या बीमारी जैसे कि कमला (पीलिया),अर्श (बवासीर), सर्जरी या दुर्घटना में ज्‍यादा खून बहने की वजह से एनीमिया की बीमारी हो सकती है। एनीमिया के प्रमुख लक्षणों में त्‍वचा और नाखूनों का सफेद पड़ना, थकान, भूख में कमी और दिल की धड़कन कम होना शामिल है।

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इसके उपचार में खून में हीमोग्‍लोबिन के स्‍तर को बेहतर किया जाता है। पांडु रोग के इलाज के लिए पंचकर्म थेरेपी में से एक मृदु विरेचन (हल्‍के दस्‍त) कर्म किया जाता है। इससे पहले स्‍नेहन (तेल लगाने की विधि) और स्‍नेहपान (तेल या घी [क्‍लैरिफाइड मक्‍खन: वसायुक्त मक्खन से दूध के ठोस पदार्थ और पानी को निकालने के लिए दूध के वसा को हटाना] पीना) कर्म किया जाता है।

जड़ी बूटियों और मिनरल्‍स जैसे कि लौह, आमलकी (आंवला), द्रक्ष (अंगूर) और दाड़िम (अनार) को घी के साथ चूर्ण के रूप में दिया जाता है। हीमोग्‍लोबिन बढ़ाने वाले कई मिश्रणों के साथ पिप्‍पली और शुंथि (सोंठ) जैसी अवशोषण बढ़ाने वाली जड़ी बूटियां दी जाती हैं। ये ब्‍लड काउंट (लाल रक्त कोशिकाओं, सफेद रक्त कोशिकाओं और प्लेटलेट्स से बना) को बढ़ाने में उपयोगी हैं।

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आयुर्वेदिक उपचार द्वारा एनीमिया को पूरी तरह से ठीक किया जा सकता है। आयुर्वेदिक चिकित्‍सक की देखरेख में नियमित औषधियों की मदद से एनीमिया के लक्षणों से राहत पाई जा सकती है। 

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  2. खून की कमी (एनीमिया) का आयुर्वेदिक इलाज - Anemia ka ayurvedic ilaj
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  4. आयुर्वेद के अनुसार एनीमिया होने पर क्या करें और क्या न करें - Ayurved ke anusar Anemia me kya kare kya na kare
  5. खून की कमी (एनीमिया) के लिए आयुर्वेदिक दवा कितनी लाभदायक है - Anemia ka ayurvedic upchar kitna labhkari hai
  6. एनीमिया की आयुर्वेदिक औषधि के नुकसान - Anemia ki ayurvedic dawa ke side effects
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  8. एनीमिया की आयुर्वेदिक दवा और इलाज के डॉक्टर

पांडु रोग में रक्‍त की कमी के कारण त्‍वचा का रंग सामान्‍य से बदलकर सफेद हो जाता है। दोष के बढ़ने और अतिरिक्‍त पित्त बनने पर दिल में मौजूद पित्त दिल से जुड़ी धमनियों और नसों में पहुंच जाता है। ये एक वात दोष है जिसके कारण पित्त अपनी जगह से हटकर पूरे शरीर में फैल जाता है। इसके बाद पित्त कफ को खराब कर त्‍वचा, खून और मांसपेशियों को प्रभावित करता है जिस वजह से त्‍वचा का रंग सफेद पड़ने लगता है।

आयुर्वेद के अनुसार एनीमिया के पांच प्रकार हैं:

  • वातज: 
    वात एनीमिया का प्रमुख कारण है। ये आयरन-की कमी वाला एनीमिया है जोकि सबसे ज्‍यादा होता है। (और पढ़ें - आयरन की कमी के लक्षण)
  • पित्तज:
    इस एनीमिया के प्रकार में पित्त प्रमुख कारण है। मेगालोब्लास्टिक एनीमिया को इस प्रकार में वर्गीकृत किया जा सकता है।
  • कफज:
    कफज एनीमिया में कफ के कारण ये बीमारी होती है और ये एक जीर्ण (पुरानी) बीमारी है।
  • सन्निपतज:
    इस प्रकार का एनीमिया त्रिदोष के कारण होता है। इसमें लाल कोशिकाओं की कमी, थैलेसीमिया और अप्लास्टिक एनीमिया आता है। अप्लास्टिक एनीमिया इस रोग का घातक रूप है। 
  • मृदभक्षणजन्‍य पांडु रोग:
    बहुत ज्‍यादा मिट्टी खाने की वजह से ये समस्‍या होती है जिसमें अपच और कृमि संक्रमण हो जाता है। (और पढ़ें - पेट में कीड़े होने का इलाज)

पांडु रोग के लक्षणों में रंग का फीका पड़ना और ताकत में कमी आना शामिल है। इसलिए एनीमिया की बीमारी में त्‍वचा और नाखूनों का रंग सफेद पड़ने लगता है और थकान एवं ताकत में कमी महसूस होती है। एनीमिया से ग्रस्‍त व्‍यक्‍ति को अन्‍न द्वेष (खाने के प्रति अनिच्‍छा या खाना पसंद न आना), बदन दर्द और ज्‍वर (बुखार) हो सकता है। शारीरिक कार्य के दौरान सांस न आना और मांसपेशियों में दर्द महसूस होता है।

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अनुचित खाद्य पदार्थ (जैसे मछली के साथ दूध), ज्‍यादा खून बहने या कुछ पोषक तत्‍वों जैसे कि विटामिन बी12, फोलिक एसिड और आयरन की कमी की वजह से एनीमिया की बीमारी होती है। बवासीर में खून बहने, कीड़ों या थ्रेड वर्म के संक्रमण के कारण पाचन समस्‍याओं की वजह से भी एनीमिया हो सकता है। पीलिया या हेमोलिटिक पीलिया भी एनीमिया का रूप ले सकता है।

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एनीमिया का आसानी से पता लगाया जा सकता है और इसे पूरी तरह से ठीक भी किया जा सकता है। इस रोग के इलाज के लिए कई तरह की जड़ी बूटियां उपलब्‍ध हैं। उपचार द्वारा रोग के कारण बनने वाले दोष को हटाया जाता है।

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आमलकी, हरीतकी,दाड़िम युक्‍त आयुर्वेदिक औषधियों और लौह जैसे मिनरल्‍स हिमेटिनिक प्रभाव देते हैं और खून में हीमोग्‍लोबिन को बढ़ाते हैं, पांडु रोग में हीमोग्‍लोबिन का स्‍तर 12 ग्राम/डेसीलिटर से नीचे गिर जाता है। 

अदरक और पिप्‍पली शरीर में इन सामग्रियों के अवशोषण को बेहतर करती हैं, इस प्रकार सूक्ष्म पोषक तत्वों के प्रभाव में वृद्धि होती है। विडंग कृमिघ्‍न (कीड़े नष्‍ट करने वाली) के रूप में कार्य कर एनीमिया को ठीक करने में मदद करती है। कई आयुर्वेदिक मिश्रण जैसे कि द्राक्षावलेह (अंगूर और लौह भस्‍म, आयरन से तैयार पेस्‍ट) का इस्‍तेमाल पांडु रोग के इलाज में किया जाता है।

हीमोग्‍लो‍बिन का स्‍तर 6 ग्राम/डेसीलिटर से नीचे गिरने पर एनीमिया गंभीर रूप ले लेता है। ऐसे में खून चढ़ाने की सलाह दी जाती है। जीवनशैली तथा आहार में आवश्‍यक बदलाव एवं पथ्‍य (क्‍या करें) और अपथ्‍य (क्‍या न करें) का ध्‍यान रख कर एनीमिया में सुधार लाया जा सकता है। 

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  • स्‍नेहन
    • एनीमिया के इलाज में बाहरी और आंतरिक (शरीर के अंदर और बाहर) रूप से तेल लगाया जाता है।
    • बाहरी स्‍नेहन में गुनगुने तेल से पूरे शरीर की मालिश की जाती है। (और पढ़ें - मालिश करने की विधि)
    • एनीमिया के कारण त्‍वचा शुष्‍क हो जाती है और त्वचा में चिकनाहट लाने के लिए स्‍नेहन किया जाता है।
    • स्‍नेहन की प्रक्रिया के दौरान 15 से 35 के लिए शरीर की मालिश की जाती है।
    • एनीमिया की स्थिति में खराब हुए दोष को साफ करने के लिए आमतौर पर औषधीय तेल जैसे कि नारायण तेल और क्षीरबाला तेल का इस्‍तेमाल किया जाता है।
    • स्‍नेहन द्वारा शरीर में रक्‍त प्रवाह को बेहतर किया जाता है। (और पढ़ें - ब्लड सर्कुलेशन कैसे बढ़ाये)
    • स्‍नेहनपान में विरेचन कर्म से पहले व्‍यक्‍ति को तेल पिलाया जाता है।  
    • इस इलाज में घृत से त्वचा को अंदर से चिकना किया जाता है। एनीमिया के इलाज में आंतरिक स्‍नेहन के लिए पथ्‍य घृत का इस्‍तेमाल किया जाता है।
       
  • विरेचन
    • एनीमिया में व्‍यक्‍ति पहले से ही कमजोर हो जाता है इसलिए शरीर को पोषण देने और खराब दोष को हटाने के लिए मृदु विरेचन कर्म की सलाह दी जाती है। (और पढ़ें - कमजोरी दूर करने का नुस्खा)
    • विरेचन कर्म में शरीर की सफाई के लिए लौंग, अदरक, काली मिर्च जैसी विभिन्‍न जड़ी बूटियों से बना अविपत्तिकर चूर्ण दिया जाता है। इससे पेट से सारे विषाक्‍त पदार्थ बाहर निकल जाते हैं।
    • एनीमिया के इलाज में विरेचन के लिए शुष्‍क द्राक्ष क्‍वाथ (सूखे अंगूरों से बना काढ़ा) का इस्‍तेमाल किया जाता है। ये शोधन यानि शरीर की सफाई करता है। (और पढ़ें - काढ़ा कैसे बनाते हैं)
    • गर्भवती महिला और माहवारी के दौरान विरेचन कर्म नहीं करना चाहिए।
       
  • वमन
    • वमन कर्म तब ही किया जाता है जब मरीज़ उसे सहने की ताकत रखता हो। कमजोर व्‍यक्‍ति पर वमन कर्म नहीं किया जाना चाहिए।
    • ये खराब हुए दोष को हटाने में मदद करता है।
    • शोधन चिकित्‍सा के एक हिस्‍से के तौर पर वमन कर्म किया जाता है। इसमें स्‍निग्‍धा (नमी) और तीक्ष्‍ण (तीखी) गुण वाली जड़ी बूटियों का इस्‍तेमाल किया जाता है।
    • गर्भवती महिला और मासिक धर्म के दौरान वमन कर्म की सलाह नहीं दी जाती है। (और पढ़ें - मासिक धर्म न होने का कारण)

एनीमिया के लिए आयुर्वेदिक जड़ी बूटियां

  • आमलकी
    • खट्टे स्‍वाद वाला आमलकी फल कई रोगों के इलाज में उपयोग किया जाता है। ये खासतौर पर पित्त प्रधान रोगों के लिए इस्‍तेमाल किया जाता है।
    • आमलकी यानि आंवला में विटामिन सी प्रचुर मात्रा में होता है और परिसंचरण तंत्र से संबंधित विकारों का इलाज करने में मदद करता है।
    • एनीमिया की स्थिति में आमलकी खून बढ़ाने में मदद करता है और लाल रक्‍त कोशिकाओं की संख्‍या को बढ़ाता है।
    • रोज़ सुबह गर्म पानी के साथ आमलकी चूर्ण ले सकते हैं।
       
  • हरीतकी
    • हरीतकी के छिलके का पाउडर एनीमिया के इलाज में इस्‍तेमाल होता है।
    • हरीतकी चूर्ण को गर्म पानी या गुड़ के साथ ले सकते हैं।
    • गर्भवती महिलाओं या पानी की कमी से ग्रस्‍त व्‍यक्‍ति को हरीतकी का सेवन नहीं करना चाहिए।
    • त्रिफला चूर्ण में भी सामग्री के तौर पर हरीतकी का इस्‍तेमाल किया जाता है।
    • ये पाचन तंत्र पर कार्य करती है और पोषक तत्‍वों को ठीक तरह से अवशोषित होने में मदद करती है जिससे एनीमिया से ग्रस्‍त लोगों में खून बढ़ता है।
       
  • पुनर्नवा
    • इस पूरी जड़ी बूटी और कभी-कभी पुनर्नवा की छाल का इस्‍तेमाल एनीमिया के इलाज में किया जाता है।
    • आमतौर पर इसे चूर्ण या क्‍वाथ (काढ़े) के रूप में लिया जाता है। गर्भिनी पांडु (गर्भावस्‍था में एनीमिया के इलाज में) में इस जड़ी बूटी को लेने की सलाह दी जाती है।
    • पुनर्नवा में पित्त-कफ शामक (खराब वात और पित्त को खत्‍म करना) गुण होते हैं और ये बात चिकित्‍सीय तौर पर भी साबित हो चुकी है। ये गर्भवती महिलाओं के पाचन को ठीक करती है और आयरन के अवशोषण एवं खून बनाने में मदद करती है।  
    • इसमें हल्‍के रेचक (जुलाब) प्रभाव भी होते हैं जिसके कारण ये पाचन क्रिया में सुधार लाने में भी मदद करती है।
       
  • पिप्‍पली
    • एनीमिया के इलाज में पिप्‍पली फल का इस्‍तेमाल किया जाता है।
    • इसे चूर्ण के रूप में शहद या गर्म पानी के साथ एनीमिया के लक्षणों से राहत पाने के लिए इस्‍तेमाल किया जाता है।
    • पिप्‍पली प्राकृतिक वायुनाशी (गैस को खत्म करने वाली) और पाचक (पाचन में सुधार करने वाली) है। ये जरूरी पोषक तत्‍वों के अवशोषण में मदद करती है। (और पढ़ें - पेट में गैस बनने पर क्या खाना चाहिए)
    • इस गुण के कारण पिप्‍पली आयरन और शरीर में मौजूद अन्‍य जरूरी विटामिंस के प्रभाव को बढ़ाती है। कई यौगिक मिश्रणों में एनीमिया में आयरन की कमी को ठीक करने के लिए इसका इस्‍तेमाल किया जाता है। (और पढ़ें - आयरन से भरपूर खाद्य पदार्थ)

एनीमिया के लिए आयुर्वेदिक औषधियां

  • दाड़िमदि घृत
    • घी में दाड़िम, पिप्‍पली, अदरक और धनिये को मिलाकर इस मिश्रण को तैयार किया गया है।
    • दाड़िम में पित्त शामक (पित्त को खत्‍म करने वाले) गुण होते हैं। दाड़िम में हिमेटिनिक (हीमोग्‍लोबिन बढ़ाने वाले तत्‍व) भी होते हैं। धनिया पाचन में सुधार करता है और भूख को भी बढ़ाता है। पिप्‍पली शरीर में आयरन और अन्‍य सूक्ष्म पोषक तत्‍वों के अवशोषण को बढ़ाती है। शुंथि (अदरक) भी पाचन शक्‍ति को सुधारने में मदद करती है।
    • गर्भावस्‍था के दौरान एनीमिया में इस मिश्रण का इस्‍तेमाल किया जाता है। दाड़िम की वजह से इस मिश्रण का स्‍वाद मीठा होता है।
       
  • धात्री लौह
    • इस मिश्रण में आमलकी और लौह प्रमुख सामग्री के रूप में मौजूद है। इसके अलावा इसमें शुंथि, मारीच (काली मिर्च), पिप्‍पली और हरीद्रा (हल्‍दी) शामिल है।
    • हिमेटिनिक प्रभाव की वजह से एनीमिया के इलाज में इसका इस्‍तेमाल किया जाता है।
    • चूर्ण के रूप में उपलब्‍ध धात्री लौह को शहद या पानी के साथ ले सकते हैं।
    • लौह, रक्‍त धातु को बढ़ाता है और इस मिश्रण में हिमेटिनिक गुण होते हैं।
    • मारीच, पिप्‍पली और हरीद्रा एनीमिया के लक्षणों को दूर करती हैं एवं आयरन के अवशोषण को बेहतर करने के लिए अम्‍लीय (एसिड) परिस्थिति पैदा करती हैं। ये पाचन में भी सुधार करती है।
    • इस मिश्रण के इस्‍तेमाल से एनीमिया के लक्षणों जैसे कि थकान और त्‍वचा की चमक खोने की समस्‍या से छुटकारा मिलता है। (और पढ़ें - त्वचा की चमक बढ़ाने वाले योग)
       
  • नवायस चूर्ण
    • इस मिश्रण में आमलकी, हरीतकी, विभीतकी, शुंथि, पिप्‍पली, मारीच, चित्रक, मुस्‍ता, विडंग और लौह भस्‍म मौजूद है।
    • नवायस चूर्ण हीमोग्‍लोबिन और सीरम फेरिटिन (प्रोटीन की रक्‍त कोशिका जिसमें आयरन होता है) के स्‍तर को बढ़ाता है। (और पढ़ें - हीमोग्लोबिन बढ़ाने के उपाय)
    • आमलकी और मुस्‍ता में भी आयरन होता है जबकि पिप्‍पली और मारीच आयरन के अवशोषण में मदद करती हैं।
    • विभीतकी में पाचन के लिए जरूरी विटामिंस और मिनरल्‍स होते हैं।
    • विडंग में कृमिघ्‍न गुण होते हैं और इसी वजह से एनीमिया के कारण हुए कीड़ों के इलाज में इसका इस्‍तेमाल किया जाता है।
    • इस मिश्रण को पाउडर या गोली के रूप में गर्म पानी या शहद के साथ ले सकते हैं।
       
  • द्राक्षावलेह
    • ये एक गाढ़ा मिश्रण है जिसमें अंगूर, पिप्‍पली, यष्टिमधु (मुलेठी), आमलकी, शुंथि, वंशलोचन, शहद और चीनी मौजूद है।
    • द्रक्ष (अंगूर) खून के लिए टॉनिक के तौर पर काम करते हैं।
    • आमलकी में विटामिन सी और आयरन प्रचुर मात्रा में होता है। पिप्‍पली आयरन के अवशोषण को बढ़ाती है।
    • अन्‍य मिश्रणों में एंटीऑक्‍सीडेंट गुण मौजूद हैं जोकि ऑक्‍सीडेटिव स्‍ट्रेस (फ्री रेडिकल्‍स और एंटीऑक्‍सीडेंट्स में असंतुलन) से राहत दिलाते हैं।
    • इस मिश्रण को रोज़ खाने से पहले लेना चाहिए।

क्‍या करें

क्‍या न करें

थकान, एनीमिया का प्रमुख लक्षण है जोकि जीवन की गुणवत्ता को भी प्रभावित करता है। एनीमिया के इलाज में दोष को ठीक कर रक्‍त की मात्रा को बढ़ाया जाता है और सूक्ष्‍म पोषक तत्‍वों एवं मिनरल्स के अवशोषण में सुधार लाया जाता है।

(और पढ़ें - थकान दूर करने के लिए क्या खाएं)

आयुर्वेदिक औषधियां भोजन के पोषक तत्‍वों के प्रभाव को बढ़ाने में अत्‍यधिक असरकारी होती हैं। ये पाचन में भी सुधार करती हैं और हीमोग्‍लोबिन के स्‍तर को बेहतर करने के लिए जरूरी हिमेटिनिक प्रभाव देती हैं। कभी-कभी, एनीमिया को ठीक करने के लिए इसका कारण बने रोग का इलाज करना भी जरूरी होता है।

एनीमिया से ग्रस्‍त 35 गर्भवती महिलाओं पर दाडिमादि घृत के प्रभाव की जांच के लिए एक अध्‍ययन किया गया था। 30 दिनों तक इन महिलाओं को दाडिमादि घृत दिया गया। अध्‍ययन के दौरान इस मिश्रण को त्‍वचा के फीका पड़ने, नाखूनों के सफेद होने, थकान और खून की मात्रा कम होने की समस्‍या में प्रभावकारी पाया गया।

चिकित्‍सकीय अध्‍ययन में ये साबित हो चुका है कि नावायस चूर्ण आयरन की कमी वाले एनीमिया में सुधार और हीमोग्‍लोबिन को बढ़ाने में असरकारी है। नावायस चूर्ण का ये प्रभाव 90 दिनों के अंदर ही देखा गया। अध्‍ययन में यह भी बताया गया कि ये औषधियां पूरी तरह से सुरक्षित हैं और बच्‍चों के साथ-साथ गर्भवती महिलाओं में भी इनका इस्‍तेमाल किया जा सकता है।

(और पढ़ें - एनीमिया के घरेलू उपाय)

एनीमिया के आयुर्वेदिक इलाज में विभिन्‍न औषधियों के साथ कुछ पंचकर्म चिकित्‍साओं का प्रयोग किया जाता है। वैज्ञानिक तौर पर ये औषधियां बच्‍चों और हर उम्र के लोगों के लिए सुरक्षित साबित हो चुकी हैं। इनका कोई दुष्‍प्रभाव नहीं होता है।

हालांकि, इनमें से कुछ उपचार और औषधि के हानिकारक प्रभाव भी हो सकते हैं। जैसे कि कोई औषधि या उपचार किसी व्‍यक्‍ति की प्रकृति के विपरीत हो सकता है। उदाहरणार्थ: आयरन से बने मिश्रण से कब्‍ज और मल का रंग गहरा हो सकता है।

इस मिश्रण में घी मिलाकर स्‍नेहपान करवाने से कब्‍ज से बचा जा सकता है। ऐसी स्थिति में मृदु विरेचन की भी सलाह दी जाती है क्योंकि पहले से ही कमजोर व्‍यक्‍ति तेज रेचक को सहन नहीं कर सकता है। 

(और पढ़ें - कब्ज का आयुर्वेदिक इलाज)

बड़ी संख्‍या में लोगों को प्रभावित करने वाला एनीमिया या पांडु रोग एक सामान्‍य विकार है। पोषण की कमी या अर्श, कमला, दुर्घटना में खून बहने या कीड़ों के कारण एनीमिया हो सकता है। हीमोग्‍लोबिन के स्‍तर की जांच और त्‍वचा एवं नाखूनों का रंग फीका पड़ने और थकान जैसे लक्षणों से एनीमिया का पता लगाया जा सकता है।

(और पढ़ें - हीमोग्लोबिन टेस्ट क्या है)

कई आयुर्वेदिक औषधियां उपलब्‍ध हैं जिनमें हिमेटिनिक गुणों से युक्‍त सामग्रियां होती हैं। आयुर्वेदिक चिकित्‍सक की देखरेख और नियमित दवाओं के सेवन से एनीमिया की बीमारी को बढ़ने से रोका जा सकता है।

आयुर्वेद में एनीमिया के लिए दिए जाने वाले उपचार पूरी तरह से सुरक्षित हैं। आयुर्वेद में एनीमिया इलाज के लिए संतुलित आहार के साथ औषधि लेने की सलाह दी जाती है। 

(और पढ़ें - एनीमिया (खून की कमी) के लिए योग और प्राणायाम)

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