चिकनगुनिया एक वायरल इन्फेक्शन है जोकि एडीज एजिप्टी और एडीज एल्‍बोपिक्‍टस मच्‍छर के काटने के कारण फैलता है। चिकनगुनिया के शुरुआती लक्षणों में बुखार, सिरदर्द और जोड़ों में दर्द विशेषत: एड़ी, कोहनी, कलाई और घुटने के जोड़ में दर्द शामिल है। जोड़ों का दर्द इस संक्रमण का प्रमुख लक्षण है और इसी वजह से चिकनगुनिया वायरस को गठिया के वायरस के रूप में वर्गीकृत किया गया है।

सुबह के समय और हिलने-डुलने पर जोड़ों में दर्द बढ़ जाता है। चिकनगुनिया के मरीज़ों को गले में खराश, कंजक्टिवाइटिस (आंख की नेत्र श्‍लेष्‍मला [कंजक्‍टिवा] में सूजन), भूख में कमी, फोटोफोबिया (प्रकाश के प्रति अतिसंवेदनशीलता) और लसीका ग्रंथियों में सूजन महसूस होती है। 

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आयुर्वेदिक साहित्‍य में चिकनगुनिया का उल्‍लेख नहीं है। हालांकि, वात-कफ बुखार और वात-पित्त बुखार के लक्षण चिकनगुनिया के लक्षणों की तरह ही होते हैं। चिकनगुनिया से राहत पाने और संपूर्ण सेहत में सुधार के लिए आयुर्वेद में गुडुची, अश्‍वगंधा, आमलकी, त्रैलोक्‍यचिंतामणि, त्रिभुवनकीर्ति और अमृतारिष्‍ट जड़ी-बूटियों का उल्‍लेख किया गया है।  

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आयुर्वेदिक चिकित्‍साओं में अभ्‍यंग (तेल मालिश) और रसायन (ऊर्जादायक) का प्रयोग कर जोड़ों में दर्द को कम और शरीर को शक्‍ति प्रदान की जाती है। मुद्गा (मूंग दाल) का सूप और तंदूला पेज (उबले हुए चावल का पानी) चिकनगुनिया में देना चाहिए क्‍योंकि इससे शरीर को ताकत मिलती है। तुलसी, नींब (नीम), वच और अन्‍य जड़ी-बूटियों से मच्‍छरों की संख्‍या को नियंत्रित करने एवं चिकनगुनिया को फैलने से रोकने में मदद मिल सकती है।  

  1. चिकनगुनिया की आयुर्वेदिक औषधि के नुकसान - Chikungunya ki ayurvedic dawa ke side effects
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  3. चिकनगुनिया में आयुर्वेदिक दवा कितनी लाभदायक है - Chikungunya ka ayurvedic upchar kitna labhkari hai
  4. आयुर्वेद के दृष्टिकोण से चिकनगुनिया - Ayurveda ke anusar Chikungunya
  5. चिकनगुनिया का आयुर्वेदिक इलाज या उपचार - Chikungunya ka ayurvedic ilaj
  6. चिकनगुनिया की आयुर्वेदिक जड़ी बूटी और औषधि - Chikungunya ki ayurvedic dawa aur aushadhi
  7. आयुर्वेद के अनुसार चिकनगुनिया होने पर क्या करें और क्या न करें - Ayurved ke anusar Chikungunya me kya kare kya na kare
चिकनगुनिया की आयुर्वेदिक दवा और इलाज के डॉक्टर

अनुभवी चिकित्‍सक की देखरेख और मार्गदर्शन में आयुर्वेदिक औषधियां लेना सुरक्षित और हानिकारक प्रभावों से रहित होता है। हालांकि, सभी उपचार और औषधियां हर व्‍यक्‍ति के अनुकूल नहीं होती हैं।

चिकनगुनिया के इलाज के लिए किसी भी विशिष्‍ट उपचार की सलाह देने से पूर्व निम्‍न बातों को ध्‍यान में रखें :

  • कफ के जमने की समस्या से ग्रस्‍त व्‍यक्‍ति को अश्‍वगंधा नहीं लेनी चाहिए।
  • पित्त दोष वाले व्‍यक्‍ति को आमलकी लेने के बाद दस्‍त की शिकायत हो सकती है।
  • मंजिष्‍ठा शरीर में वात को बढ़ा सकती है और इसकी वजह से अधिक ठंड लग सकती है। 

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चिकनगुनिया एक वायरल संक्रमण है जोकि मच्‍छर के काटने की वजह से होता है। आवश्‍यक सावधानियां जैसे कि मच्‍छर मारने की दवा छिड़क कर, पूरे शरीर को ढकने वाले कपड़े पहनकर और जड़ी-बू‍टियों से घर में धूनी देने से चिकनगुनिया फैलाने वाले मच्‍छरों से बचा जा सकता है।

चिकनगुनिया के आयुर्वेदिक उपचार में जोड़ों में दर्द और सूजन को कम करने के लिए तेल मालिश और ऊर्जादायक चिकित्‍साएं दी जाती हैं। जोड़ों में दर्द चिकनगुनिया का सबसे प्रमुख लक्षण है। चिकनगुनिया के लक्षणों को कम करने, संपूर्ण सेहत में सुधार और रोग से लड़ने के लिए प्रतिरक्षा प्रणाली को बेहतर करने हेतु जड़ी-बूटियां और औषधियां दी जाती हैं।

स्‍वस्‍थ आहार और ताजे फलों को अपने भोजन में शामिल कर एवं दूषित और बासी भोजन से दूर रह कर चिकनगुनिया का मरीज जल्‍दी ठीक हो सकता है।

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सेंट्रल रिसर्च इंस्‍टीट्यूट ऑफ पंचकर्म द्वारा चिकनगुनिया के मरीजों पर आयुर्वेदिक चिकित्‍सा के प्रभाव की जांच के लिए अध्‍ययन किया गया था। अध्‍ययन में शामिल प्रतिभागियों ने कमजोरी, जोड़ों में सूजन और दर्द, सिरदर्द, बुखार और त्‍वचा पर चकत्ते पड़ने की शिकायत दर्ज की। इस अध्‍ययन में प्रतिभागियों को त्रिभुवनकीर्ति रस के साथ तीन अन्‍य आयुर्वेदिक मिश्रण 15 दिनों के लिए दिए गए। इस उपचार के पूरा होने पर प्रतिभागियों की सेहत में उल्‍लेखनीय सुधार देखा गया।

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एक अन्‍य अध्‍ययन में 600 ऐसे लोगों को शामिल किया गया जो चिकनगुनिया के शिकार थे या जिन्‍हें चिकनगुनिया होने का खतरा था। इन्‍हें चार सप्‍ताह तक संजीवनी वटी के साथ गुडुची दी गई।

इन प्रतिभागियों को नियमित योगासन करने के साथ अदरक और सौंठ का रस पीने को कहा गया। इस दौरान मसालेदार खाना, दही, तेल और कोल्‍ड ड्रिंक आदि लेने के लिए मना किया गया था।

अध्‍ययन की रिपोर्ट के मुताबिक अधिकतर मरीजों को दर्द और जोड़ों में अकड़न की समस्‍या से राहत मिली। गैर-स्टेरायडल एंटी-इन्फ्लामेट्रिक दवाओं (एनएसएआईडी) के मुकाबले आयुर्वेदिक उपचार को बेहतर पाया गया। 

आयुर्वेद के अनुसार चिकनगुनिया जानलेवा रोग नहीं है। ये एक वायरल संक्रमण है जिसके उपचार में औषधीय जड़ी-बूटियों का प्रयोग कर वेक्‍टर नियं‍त्रण (मच्‍छरों द्वारा होने वाले रोगों से बचाव), लक्षणों में सुधार और संपूर्ण सेहत को बेहतर किया जा सकता है।  

चिकनगुनिया को नियंत्रित करने में ज्वरहर (बुखार कम करने वाला), कसाहर (खांसी दूर करने वाली), वेदनाहर (दर्द निवारक), अतिसारहर (दस्‍तरोधी) और कुष्ठघ्न (त्‍वचा रोग दूर करने वाली) गुणों से युक्‍त जड़ी-बूटियों का इस्‍तेमाल किया जाता है। ये रोग को रोकने की क्षमता को बढ़ाती हैं और जल्‍दी ठीक होने एवं शरीर को शक्‍ति प्रदान करती हैं।

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संधिशूल (जोड़ों में दर्द) चिकनगुनिया का एक प्रमुख लक्षण है जोकि अन्‍य लक्षणों के कम होने के बाद भी कई दिनों तक रहता है। चिकनगुनिया के लक्षणों में ठंड लगना, बुखार, जी मिचलाना, थकान और नींद की कमी सहित भारीपन महसूस होना एवं भूख कम लगना शामिल हैं।

आयुर्वेद में मच्‍छरों के काटने से बचने के लिए घर पर जड़ी-बूटियों से धूपन या धुआं देने की सलाह दी जाती है। जड़ी-बूटियों के रक्षोघ्न (रोगाणुरोधी गुण) उन्हें बैक्टीरिया और वायरल संक्रमण से सुरक्षा के लिए उपयोगी बनाते हैं।

  • अभ्‍यंग
    • अभ्‍यंग की प्रक्रिया में शरीर के संवेदनशील बिंदुओं पर औषधीय तेल लगाया जाता है।
    • अभ्‍यंग लसीका प्रणाली को उत्तेजित करता है जिससे रोग प्रतिरोधक क्षमता बेहतर हो पाती है। (और पढ़ें - रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के तरीके)
    • इस उपचार से त्‍वचा को नमी मिलती है और थकान एवं तनाव कम करने में मदद मिलती है। ये शरीर को ताकत देता है एवं शरीर के विद्युत रसायनों (रासायनिक अभिक्रिया के माध्‍यम से विद्युत ऊर्जा उत्‍पन्‍न करने वाले) के बीच संतुलन पैदा करता है।
    • अनिद्रा (इनसोमनिया) का इलाज और आंखों की रोशनी तेज करने के लिए अभ्‍यंग उत्तम चिकित्‍सा है। इससे व्‍यक्‍ति की आयु भी बढ़ती है। (और पढ़ें - आंखों की रोशनी बढ़ाने के लिए घरेलू उपाय)
    • भोजन के 1 से 2 घंटे बाद अभ्‍यंग चिकित्‍सा दी जाती है। अभ्‍यंग थेरेपी के बाद शरीर पर पसीना लाने के लिए व्‍यायाम या योगासन करने के लिए कहा जा सकता है। इससे शरीर से विषाक्‍त पदार्थ बाहर निकालने में मदद मिलती है।
    • चिकनगुनिया के मामले में दर्द से राहत दिलाने के लिए विषगर्भ या संवहन तेल से हल्‍के हाथों से जोड़ों पर अभ्‍यंग (तेल मालिश) किया जाता है। अभ्‍यंग चिकित्‍सा के बाद तापसवेद (सिकाई) किया जाता है। (और पढ़ें - मालिश करने की विधि)
    • अभ्‍यंग चिकित्‍सा के बाद अवरक्‍त किरणें (नजर आने वाली रोशनी की तुलना में लंबी तरंग), वालुका पोटली (रेत से भरी पुल्टिस) या गर्म पानी का प्रयोग कर स्‍वेदन (पसीना निकालने की विधि) चिकित्‍सा दी जाती है।
       
  • रसायन
    • रसायन चिकित्‍सा से रोग को रोकने और उसका इलाज करने के साथ-साथ आध्यात्मिकता, जीवनशैली और आहार में सुधार लाया जाता है। (और पढ़ें - संतुलित आहार के फायदे)
    • ये चिकित्‍सा स्नायविक (न्‍यूरोलॉजिकल), प्रतिरक्षाविज्ञानी (इम्‍युनोजॉजिकल), मनोवैज्ञानिक और एंडोक्राइन प्रणाली पर ऊर्जादायक प्रभाव डालती है। इससे स्‍वस्‍थ ऊतकों के पुनर्निर्माण और उम्र बढ़ने की प्रक्रिया को रोकने में मदद मिलती है। ये शरीर के कार्यों में सामंजस्‍य लाता है। 
    •  रसायन चिकित्‍सा से चिकनगुनिया के मरीज़ों में बीमारी को रोकने के कार्य में सुधार लाया जाता है जिससे रोग से लड़ने में मदद मिलती है।
       
  • लेप
    • लेप एक औषधीय प्‍लास्‍टर है जिसे विभिन्‍न आयुर्वेदिक सामग्रियों द्वारा बनाया जाता है। इसका प्रयोग प्रमुख तौर पर सूजन को कम करने के लिए किया जाता है। आयुर्वेद में दोष को कम करने और कॉस्मेटिक के लिए लेप का उपयोग किया जाता है। जहर को नष्‍ट करने के लिए भी लेप का इस्‍तेमाल किया जाता है।
    • लेप बनाने के लिए व्‍यक्‍ति की स्थिति एवं आवश्‍यकता के आधार पर विभिन्‍न सामग्रियों का चयन किया जाता है।
    • इससे दर्द, अल्‍सर, ब्‍लीडिंग और खुजली से राहत पाने में मदद मिलती है। रक्‍त प्रवाह बेहतर और त्‍वचा की सफाई करने में भी लेप मदद करते हैं। (और पढ़ें - ब्लड सर्कुलेशन बढ़ाने के उपाय)
    • चिकनगुनिया से ग्रस्त व्‍यक्‍ति पर वत्सनाभ का लेप गुटी या हरे रंग का लेप, श्‍योनाक और धतूरे की पत्तियां प्रभावी होती हैं। 

चिकनगुनिया के लिए आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियां

  • अश्‍वगंधा
    • अश्‍वगंधा श्‍वसन, तंत्रिका और प्रजनन प्रणाली पर कार्य करती है।
    • ये नसों को आराम, सूजन रोधी और ऊर्जादायक गुणों से युक्‍त है। इन्‍हीं गुणों के कारण चिकनगुनिया में दर्द से राहत पाने के लिए अश्‍वगंधा लाभकारी होती है।
    • अश्‍वगंधा प्रतिरक्षा प्रणाली को उत्तेजित करती है। इसलिए, यह शरीर की संक्रमण से लड़ने की शक्ति को बढ़ाती है।
    • ये जड़ी-बूटी अन्‍य स्‍वास्‍थ्‍य समस्‍याओं जैसे कि थकान, ऊर्जा में कमी, त्‍वचा रोग, इनसोमनिया, ग्रंथियों में सूजन और लकवे के इलाज में भी असरदार है।
    • चिकनगुनिया के मरीजों की सेहत में सुधार के लिए अवश्‍गंधा लेने की सलाह दी जाती है।
    • आप घी के साथ अश्वगंधा पाउडर या हर्बल वाइन, काढ़े के रूप में या डॉक्‍टर के निर्देशानुसार अश्‍वगंधा ले सकते हैं। (और पढ़ें - काढ़ा बनाने का तरीका)
       
  • गुडुची
    • आयुर्वेद के अनुसार शरीर में किसी दोष के असंतुलित होने पर भी गुडुची रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में लाभकारी है।
    • गुडुची ओजस (जीवन के लिए आवश्‍यक तत्‍व) को बढ़ाती है और शरीर से अत्‍य‍धिक पित्त को खत्‍म करती है।
    • गुडुची पेचिश, अपच, बुखार, टीबी, पीलिया, बवासीर, कैंसर और कब्‍ज के इलाज में उपयोगी है। ये चिकनगुनिया के लक्षणों में सुधार लाने में भी मदद करती है।
    • आप पाउडर, अर्क या डॉक्‍टर के निर्देशानुसार गुडुची ले सकते हैं।
       
  • यष्टिमधु
    • यष्टिमधु जड़ी-बूटी का स्‍वाद मीठा होता है और ये श्‍वसन, पाचन तंत्र एवं उत्‍सर्जन प्रणाली पर कार्य करती है।
    • इस जड़ी-बूटी में टॉनिक, सूजनरोधी, रेचक (मल क्रिया को नियंत्रित करने वाले) और ऊर्जा देने वाले गुण मौजूद होते हैं।
    • इसे एसिडिटी के इलाज में उपयोगी जड़ी-बूटी के रूप में जाना जाता है। गले में खराश, अल्‍सर, मांसपेशी में ऐंठन, ब्रोंकाइटिस (श्वसनीशोथ) और जुकाम के इलाज में भी गुडुची मददगार है।
    • यष्टिमधु फेफड़ों और पेट से अत्‍यधिक कफ को खत्‍म करती है।
    • इस जड़ी-बूटी को चिकनगुनिया के मरीज की संपूर्ण सेहत में सुधार के लिए दिया जाता है।
    • आप इसे घी के साथ पाउडर, काढ़े, दूध के काढ़े या डॉक्‍टर के निर्देशानुसार ले सकते हैं।
       
  • आमलकी
    • आमलकी में संकुचक (शरीर के ऊतकों को संकुचित करना), ऊर्जादायक, शक्‍तिवर्द्धक (टॉनिक), पोषक और कामोत्तेजक (लिबिडो में सुधार) गुण पाए जाते हैं। इसमें विटामिन सी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। (और पढ़ें - कामोत्तेजना बढ़ाने के घरेलू उपाय)
    • ये शरीर में ओजस को बेहतर करती है और रक्‍तस्राव से संबंधित एवं मानसिक विकारों, घबराहट और लिवर रोगों के इलाज में उपयोगी है।
    • आमलकी आंतों की सफाई, सूजन को कम करने और दांतों को मजबूती देने का काम करती है। (और पढ़ें - दांतों को मजबूत कैसे करें)
    • चिकनगुनिया के मामले में आमलकी व्‍यक्‍ति की संपूर्ण सेहत को सुधारने में मदद करती है। आप मीठी कैंडी, काढ़े, पाउडर या डॉक्‍टर के निर्देशानुसार इसे ले सकते हैं।
       
  • मंजिष्‍ठा
    • मंजिष्‍ठा में संकुचक, ट्यूमर रोधी और मूत्रवर्द्धक गुण पाए जाते हैं। ये परिसंचरण और मादा प्रजनन प्रणाली पर कार्य करती है। (और पढ़ें - ट्यूमर क्या होता है)
    • आयुर्वेद के अनुसार रक्‍त को साफ करने के लिए मंजिष्‍ठा सबसे उत्तम जड़ी-बूटी है।
    • कैंसर के इलाज में, लिवर के कार्य को नियंत्रित करने, प्‍लीहा, अग्‍नाशय और पित्ताशय एवं किडनी की पथरी को हटाने के लिए मंजिष्‍ठा उपयोगी है।
    • मंजिष्‍ठा जोड़ों में दर्द को कम करती है और चिकनगुनिया का प्रमुख लक्षण जोड़ों में दर्द होना ही है इसलिए चिकनगुनिया की बीमारी में मंजिष्‍ठा का प्रयोग कर इस लक्षण को दूर किया जाता है।  
    • आप इस जड़ी-बूटी को पाउडर, पेस्‍ट, काढ़े या डॉक्‍टर के निर्देशानुसार ले सकते हैं।

चिकनगुनिया के लिए आयुवेर्दिक औषधियां

  • त्रैलोक्‍यचिंतामणि
    • त्रैलोक्‍यचिंतामणि के आयुर्वेदिक मिश्रण को पारद (पारा), गंधक, पारद भस्‍म (पारे को ऑक्सीजन और वायु में उच्च तामपान पर गर्म करके तैयार हुई), ताम्र भस्‍म (तांबे को ऑक्सीजन और वायु में उच्च तामपान पर गर्म करके तैयार हुई), सुवर्णा भस्‍म (सोने को ऑक्सीजन और वायु में उच्च तामपान पर गर्म करके तैयार हुई), हरीतला और अन्‍य हर्बो-मिनरल सामग्री से तैयार किया गया है।
    • इन सब सामग्रियों को अदरक के रस, जंबीर (नींबू) के रस या चित्रक की जड़ के काढ़े के साथ मिलाया जाता है।
    • त्रैलोक्‍यचिंतामणि का प्रयोग अस्थिसंधिशोथ (ऑस्टियोआर्थराइटिस), राजयक्ष्मा (टीबी), हृदोग (हृदय रोग) और पार्श्व शूल (कूल्‍हे और पसलियों के बीच के हिस्‍से में दर्द) के इलाज में किया जाता है।
    • ये औषधि चिकनगुनिया के मरीज की सेहत में सुधार लाने में मदद करती है। आमतौर पर सुवर्ण कल्‍प देने के बाद इस औषधि को दिया जाता है।
       
  • त्रिभुवनकीर्ति
    • त्रिभुवनकीर्ति को हिंगुला, पिप्‍पली मूल, त्रिकटु (तीन कषाय चीजों – पिप्‍पली, शुंथि [सूखी अदरक] और मारीच [काली मिर्च] का मिश्रण), सुहागा और वत्सनाभ का प्रयोग कर तैयार किया गया है।
    • इस औषधि को अदरक के रस, तुलसी के रस या स्‍वर्ण और धतूरे के रस के मिश्रण के साथ मिलाया जाता है।
    • ये अलासक (मल और गैस का रूकना और पेट में दर्द), बुखार, प्रतिश्याय (सामान्‍य जुकाम) और सिरदर्द के इलाज में उपयोगी है।
    • त्रिभुवनकीर्ति औषधि बुखार, स्रोतोरोध (शरीर के चैनल्‍स [पूरे शरीर में बहने वाली ऊर्जा के प्रवाह के 12 मुख्य माध्यम या चैनल हैं , इस जीवन ऊर्जा को चीन के पांरपरिक ज्ञान में “की” (Qi) और “ची” (Chi or Chee) कहा जाता है] में अवरूद्ध), समता (शरीर में अमा का जमाव) और चिकनगुनिया के प्रथम चरण के लक्षणों को कम करने में प्रभावी है।
       
  • अमृतारिष्‍ट
    • अमृतारिष्‍ट एक हर्बल घोल है जिसे 23 सामग्रियों से तैयार किया गया है। इसमें गुड़, कुटकी, दशमूल, मुस्ता (नागर मोथा), सेन्‍ना, गुडुची, अ‍तिविषा (अतिस) और अन्‍य जड़ी-बूटियां मौजूद हैं।
    • अपच, फ्लू और बुखार के इलाज में इसका प्रयोग किया जाता है।
    • चिकनगुनिया से पीडित व्‍यक्‍ति को जोड़ों में बहुत दर्द रहता है एवं गुडुची कल्‍प के साथ अमृतारिष्‍ट देने पर इस रोग से ग्रस्त व्‍यक्‍ति को जोड़ों के कष्‍टकारी दर्द से राहत मिलती है।
       
  • संजीवनी वटी
    • ये एक हर्बल मिश्रण है जिसे शुंथि, पिप्‍पली, वच, वत्सनाभ, भल्‍लातक, हरीतकी और अन्‍य जड़ी-बूटियों को मिलाकर वटी (गोली) के रूप में तैयार किया गया है।
    • इस वटी में गोमूत्र का इस्‍तेमाल सहायक औषधि के रूप में किया गया है।
    • संजीवनी वटी अतिसार (दस्‍त), विशुचिका (हैजा) और कफज शूल (कफ के असंतुलन के कारण हुआ दर्द) के इलाज में मदद करती है।
    • इस औषधि का इस्‍तेमाल मुख्‍य रूप से विषहर (जहर को नष्‍ट करने वाला) और अमीजीर्ण (अमा के कारण हुई अपच) गुण के कारण किया जाता है। इसके अलावा ये चिकनगुनिया के मरीजों में बुखार को कम करने में भी लाभकारी है।

व्‍यक्‍ति की प्रकृति और कई कारणों के आधार पर चिकित्‍सा पद्धति निर्धारित की जाती है इसलिए उचित औषधि और रोग के निदान हेतु आयुर्वेदिक चिकित्‍सक से परामर्श करें। 

क्‍या करें

  • बुखार रहने तक तरल आहार का सेवन करें।
  • बुखार उतरने के बाद आप हरी मूंग दाल का सूप, तंदूला पेज के साथ तरल आहार लेना शुरु कर सकते हैं।  
  • जोड़ों में दर्द, सूजन को कम करने एवं समता से छुटकारा पाने के लिए कुलथी युश (चने की दाल का सूप) पीएं। लहसुन के साथ मिलाकर पीने पर ये सूप ज्‍यादा असरकारी होता है।
  • अनाज जैसे कि ज्‍वार, बाजरा, चावल और गेहूं खाएं।
  • खाने में हल्‍दी और अदरक का इस्‍तेमाल करें।
  • मच्‍छरों के काटने से बचने के लिए जरूरी उपाय करें। (और पढ़ें - मच्छरों से कैसे बचें)
  • घर में साफ-सफाई का ध्‍यान रखें।
  • घर पर बना ताजा खाना ही खाएं।
  • पर्याप्‍त मात्रा में गुनगुना पानी पीएं।

क्‍या न करें

  • खमीरयुक्‍त खाद्य जैसे कि ब्रेड, डोसा, इडली और ढोकला न खाएं। (और पढ़ें - सफेद ब्रेड या ब्राउन ब्रेड)
  • बासी या दूषित खाद्य पदार्थ न खाएं।
  • दही और अन्‍य अभिष्‍यंदी (रुकावट पैदा करने वाले) खाद्य पदार्थ खाने से बचें।
  • ठंडे पेय पदार्थों से दूर रहें।
  • तला, गुरु (भारी) और विदही (तीखा) खाना न खाएं। (और पढ़ें - तीखा खाने के नुकसान)
  • ऐसी जगह पर जाने से बचें जहां पर रोग फैलने का खतरा हो।
  • गंदी जगहों से कुछ न खाएं।
Dr Rudra Gosai

Dr Rudra Gosai

आयुर्वेद
1 वर्षों का अनुभव

Dr Bhawna

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आयुर्वेद
5 वर्षों का अनुभव

Dr. Padam Dixit

Dr. Padam Dixit

आयुर्वेद
10 वर्षों का अनुभव

Dr Mir Suhail Bashir

Dr Mir Suhail Bashir

आयुर्वेद
2 वर्षों का अनुभव

संदर्भ

  1. Khagen Basumatary et al. A STUDY OF THE CONTRIBUTION ON SHALYA TANTRA WITH SPECIAL REFERENCE TO CHARAK SAMHITA. An International Journal of Research in AYUSH and Allied Systems; , Assam
  2. A Govt of Kerala. Abhayarishtam. oushadhi; [Internet]
  3. KLE Ayurveda Hospital and Medical Research Centre. Kayachikitsa. Karnataka; [Internet]
  4. Centre Council for Research in Ayurveda and Siddha. MANAGEMENT OF CHIKUNGUNYA THROUGH AYURVEDA AND SIDDHA . Department of AYUSH Ministry of Health and Family Welfare ; New Delhi
  5. Swami Sada Shiva Tirtha. The Ayurveda Encyclopedia. The Authoritative Guide to Ayurvedic Medicine; [Internet]
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