गर्भवती होना और बच्चे को जन्म देना ज्यादातर महिलाओं के लिए खुशियों से भरा अनुभव होता है। जब कोई महिला गर्भवती होती है तो उसमें गर्भावस्था के कई लक्षण नजर आते हैं और कई बार कुछ जटिलताओं का भी सामना करना पड़ता है। जी मिचलाना, थकान महसूस करना, ब्रेस्ट में सूजन, पीरियड्स मिस होना और मूड स्विंग- ये सभी प्रेगनेंसी से जुड़े कुछ सामान्य लक्षण हैं। 
 
लेकिन कुछ मामलों में ऐसा भी होता है जब महिला में ये सारे क्लिनिकल (नैदानिक) लक्षण तो नजर आते हैं लेकिन घर पर किए जाने वाले प्रेगनेंसी टेस्ट में बार-बार नतीजे नेगेटिव आते हैं जो यह बताता है कि महिला गर्भवती नहीं है। ऐसा 2 वजहों से हो सकता है- पहला ये कि महिला के शरीर में हार्मोन से जुड़ी कोई समस्या है या फिर प्रजनन स्वास्थ्य से जुड़ी कोई दिक्कत है और दूसरा ये कि महिला को फॉल्स प्रेगनेंसी की समस्या है। 
 
 
फॉल्स प्रेगनेंसी जिसे फैंटम प्रेगनेंसी भी कहते हैं एक दुर्लभ मामला है जिसमें हकीकत में गर्भवती न होने के बावजूद महिला में प्रेगनेंसी जैसे कई लक्षणों का अनुभव होता है। कई बार कुछ महिलाएं फॉल्स प्रेगनेंसी को मिसकैरेज या केमिकल प्रेगनेंसी समझने की भूल भी कर बैठती हैं क्योंकि इसके लक्षण उन्हें खुद में दिखते हैं। हालांकि, फॉल्स या फैंटम प्रेगनेंसी के मामले में किसी तरह का इम्प्लांटेशन या गर्भधारण नहीं होता है और बच्चा होने की कोई संभावना नहीं होती है। 
 
कई बार फॉल्स प्रेगनेंसी के लक्षण इतने समय तक बने रहते हैं कि महिला के साथ-साथ उसके आसपास मौजूद लोगों को भी यही लगने लगता है कि वह गर्भवती है। लिहाजा इस तरह की प्रेगनेंसी की वजह से न सिर्फ महिला शारीरिक रूप से प्रभावित होती है बल्कि उसका बहुत गहरा मनोवैज्ञानिक असर भी देखने को मिलता है। ऐसे में फॉल्स प्रेगनेंसी की समस्या से जूझ रही महिला का उचित डायग्नोसिस और इलाज होना तो जरूरी है ही, साथ ही घर के लोगों का भी उनका पूरा ख्याल रखना चाहिए ताकि मानसिक रूप से महिला बेहतर महसूस कर सके। इस आर्टिकल में हम आपको फॉल्स प्रेगनेंसी से जुड़ी सभी अहम बातें बता रहे हैं।
  1. फॉल्स प्रेगनेंसी किसे कहते हैं - What is False Pregnancy in Hindi?
  2. फॉल्स प्रेगनेंसी कितनी कॉमन समस्या है - How common is False Pregnancy?
  3. फॉल्स प्रेगनेंसी का कारण क्या है? - False Pregnancy causes in Hindi
  4. फॉल्स प्रेगनेंसी के लक्षण क्या हैं? - False Pregnancy symptoms in Hindi
  5. फॉल्स प्रेगनेंसी का जाँच कैसे की जाती है - False Pregnancy diagnosis in Hindi
  6. फॉल्स प्रेगनेंसी का इलाज क्या है - False Pregnancy treatment in Hindi
  7. फॉल्स प्रेगनेंसी के लिए काउंसलिंग - Counselling for False Pregnancy in Hindi
  8. फैंटम प्रेगनेंसी के लिए इन बातों का रखें ध्यान - Takeaways in Hindi
फॉल्स प्रेगनेंसी क्या है? के डॉक्टर
फॉल्स प्रेगनेंसी क्या है?
 
फॉल्स प्रेगनेंसी या फैंटम प्रेगनेंसी को मेडिकल टर्म में सूडोसियेसिस (pseudocyesis) कहते हैं जिसमें महिला को ऐसा अनुभव होता है कि वह गर्भवती है लेकिन हकीकत में ऐसा नहीं होता और कोई प्रेगनेंसी नहीं होती है। यह एक बेहद दुर्लभ स्थिति है और आमतौर पर यह समस्या किसी महिला में प्रजनन की उम्र में नजर आती है। आपको जानकर हैरानी होगी कि सूडोसियेसिस सदियों पुरानी समस्या है और हिपोक्रैट्स ने 300 बीसी में इसके बारे में लिखा था। 
 
सूडोसियेसिस की समस्या में न सिर्फ महिला को महसूस होता है कि वह गर्भवती है बल्कि उसके शरीर में प्रेगनेंसी के कुछ शुरुआती लक्षण नजर भी आते हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि सूडोसियेसिस, साइकोसोमैटिक यानी मनश्चिकित्सा से जुड़ी स्थिति है और कई लोग तो इसे मनोविकृति (साइकोपैथोलॉजिकल) क्लिनिकल सिंड्रोम की कैटिगरी में भी रखते हैं। कुछ दुर्लभ मामलों में महिला के पुरुष पार्टनर को भी फॉल्स प्रेगनेंसी का अनुभव होने लगता है। पुरुषों के मामले में इस स्थिति को सिम्प्थेटिक प्रेगनेंसी या कूवेड (couvade) कहते हैं।   
 
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वैसे तो फॉल्स या फैंटम प्रेगनेंसी के मामले सदियों पुराने हैं बावजूद इसके इसे एक दुर्लभ या असाधारण समस्या माना जाता है। रिसर्च का सुझाव है कि फॉल्स प्रेगनेंसी के ज्यादातर मामले उन शादीशुदा महिलाओं में देखने को मिलते हैं जिनमें लंबे समय से बच्चे को पाने की गहरी इच्छा होती है। उदाहरण के लिए- इंग्लैंड की क्वीन मेरी टूडोर को कई बार फैंटम प्रेगनेंसी का अनुभव हुआ क्योंकि उनके मन में अपने वारिस को पाने की बहुत अधिक लालसा थी लेकिन ऐसा हो नहीं पाया क्योंकि वो कभी गर्भवती हुई ही नहीं। आपको जानकर हैरानी होगी कि ऐसे कई मरीज जिनमें यौन गतिविधि का कोई इतिहास नहीं होता उनमें भी फॉल्स प्रेगनेंसी के मामले देखने को मिलते हैं खासकर तब जब मरीज में मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी कोई समस्या या साइकोसिस की दिक्कत होती है। अगर कोई महिला एंटीसाइकोटिक दवाइयों का सेवन कर रही हो तो उसमें भी फॉल्स प्रेगनेंसी के लक्षण अचानक ट्रिगर हो सकते हैं।

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वर्ल्ड जर्नल ऑफ क्लिनिकल केसेज में साल 2014 में प्रकाशित एक स्टडी में बताया गया है कि भले ही फैंटम प्रेगनेंसी के मामले दुर्लभ ही देखने को मिलते हैं- आसानी से उपलब्ध और सटीक प्रेगनेंसी टेस्ट के कारण- बावजूद इसके फैंटम प्रेगनेंसी के ज्यादातर मामले भारत जैसे विकासशील देशों में ही देखने को मिलते हैं। इन देशों में प्रजनन और बांझपन (इन्फर्टिलिटी) को लेकर जानकारी की कमी है और लोग ऐसे समाज में रहते हैं जहां उच्च जन्मदर को बढ़ावा दिया जाता है तो ये सारी चीजें मिलकर इन्फर्टाइल या बांझ जोड़ों में ट्रॉमा को बढ़ाने का काम करती हैं। ज्यादातर मामलों में बांझपन के लिए अकेले महिला को ही जिम्मेदार ठहराया जाता है जिसकी वजह से उसे पीड़ा और पक्षपात का सामना करना पड़ता है। इन कारणों की वजह से इन देशों में फॉल्स प्रेगनेंसी का अनुभव करने वाली महिलाओं की संख्या बढ़ सकती है।

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वैसे तो फॉल्स प्रेगनेंसी या सूडोसियेसिस का सटीक कारण क्या है इस बारे में अब तक कोई जानकारी नहीं मिली है लेकिन अनुसंधानकर्ताओं ने कुछ सिद्धांत प्रस्तावित किए हैं जिसमें समझाया गया है कि क्यों कुछ महिलाएं फॉल्स या फैंटम प्रेगनेंसी का अनुभव करती हैं। निम्नलिखित कारणों को फॉल्स प्रेगनेंसी के लिए जिम्मेदार माना जाता है:
  • प्रबल इच्छा- फॉल्स प्रेगनेंसी क्यों होती है इसके लिए जो सबसे सामान्य स्पष्टीकरण दिया गया है उसके मुताबिक बच्चा पाने की प्रबल इच्छा की वजह से यह समस्या होती है। विशेषज्ञों का मानना है कि इस तरह की प्रबल इच्छा महिला के एंडोक्राइन सिस्टम को प्रभावित करती है जिससे शरीर में हार्मोन से जुड़े बदलाव होते हैं और इस कारण प्रेगनेंसी से मिलते जुलते लक्षण देखने को मिलते हैं।  (और पढ़ें- हार्मोन असंतुलन के लक्षण)
  • बांझपन या मिसकैरेज- बार-बार मिसकैरेज होना और बांझपन (इन्फर्टिलिटी) जैसी समस्याएं भी महिला के शरीर को गंभीर रूप से प्रभावित करती हैं खासकर तब जब हार्मोनल बैलेंस और प्रजनन तंत्र के सही तरीके से काम करने की बात आती है। इन सारी चीजों की वजह से फॉल्स प्रेगनेंसी के लक्षण उभरने लगते हैं। इसके अलावा प्रजनन स्वास्थ्य की कई समस्याएं जिनका संबंध बांझपन, पीसीओएस और गर्भाशय में रसौली से है उनकी वजह से भी कई बार मासिक धर्म का न आना, पेट फूलना, वजन बढ़ना और मूड स्विंग्स जैसे लक्षण देखने को मिलते हैं जिनका सामान्यतः संबंध गर्भावस्था से होता है। 
  • मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं- मूड से जुड़ी कोई बीमारी, डिप्रेशन या कोई न्यूरोसाइकोलॉजिकल समस्या जैसे- न्यूरोसिस या साइकोसिस की वजह से मस्तिष्क और तंत्रिका तंत्र में रासायनिक बदलाव हो सकते हैं। ये बदलाव एंडोक्राइन सिस्टम में भी कुछ परिवर्तन करते हैं जिसकी वजह से वैसा हार्मोनल बदलाव होता है जो गर्भावस्था के दौरान देखने को मिलता है। इसी तरह से कुछ एंटी-साइकोटिक दवाइयों की वजह से ही ये केमिकल और हार्मोनल बदलाव हो सकता है जिस कारण वैसे लक्षण देखने को मिलते हैं जो प्रेगनेंसी से मिलते जुलते होते हैं। 
फॉल्स प्रेगनेंसी के लक्षण सामान्य प्रेगनेंसी से मिलते-जुलते ही होते हैं। इस कारण इस समस्या से पीड़ित महिला को यह यकीन हो जाता है कि वे गर्भवती हैं और इस कारण समस्या की जटिलता और बढ़ जाती है। ये लक्षण कुछ हफ्तों से लेकर कुछ महीनों तक जारी रह सकते हैं। फैंटम प्रेगनेंसी को सिर्फ तभी डायग्नोज किया जा सकता है जब पीड़ित महिला कई बार प्रेगनेंसी टेस्ट करती है या फिर डॉक्टर के पास उचित डायग्नोसिस के लिए जाती है। फॉल्स प्रेगनेंसी के कुछ सामान्य लक्षण निम्नलिखित हैं-
  • पीरियड्स मिस होना
  • पेट फूलना
  • ब्रेस्ट का कोमल होना
  • ब्रेस्ट के साइज में बदलाव
  • भूख बढ़ना
  • मूड स्विंग होना
  • वजन बढ़ना
  • बार-बार पेशाब आना
  • जी मिचलाना और उल्टी आना खासकर सुबह या दिन के समय
  • पेट में किसी तरह की मूवमेंट या गर्भाशय संकुचन महसूस होना
  • ब्रेस्ट से दूध निकलना (लैक्टेशन) या गंभीर मामलों में फॉल्स लेबर महसूस होना
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फॉल्स प्रेगनेंसी की पुष्टि करने के लिए सबसे पहले यूरिन टेस्ट किया जाता है जिसका इस्तेमाल प्रेगनेंसी को कंफर्म करने के लिए किया जाता है। ये बात याद रखनी बेहद जरूरी है कि भले ही फॉल्स प्रेगनेंसी के बाकी सारे लक्षण और संकेत रियल प्रेगनेंसी से मिलते-जुलते हों लेकिन प्रेगनेंसी हार्मोन एचसीजी (ह्यूमन कोरियोनिक गोनैडोट्रोपिन) के उत्पादन की नकल नहीं की जा सकती। अगर महिला फॉल्स प्रेगनेंसी से पीड़ित है तो उसका यूरिन टेस्ट रिजल्ट नेगेटिव ही आएगा। इसी तरह, खून में एचसीजी भी मौजूद नहीं होगा और इसलिए ब्लड टेस्ट भी प्रेगनेंसी के लिए नेगेटिव रिजल्ट ही दिखाएगा।

एक और डायग्नोस्टिक टेस्ट जिससे इसकी पु्ष्टि की जा सकती है वो है महिला के पेल्विक (पेट का निचला हिस्सा) क्षेत्र का अल्ट्रासोनोग्राफिक इमेजिंग टेस्ट। इससे गर्भाशय के अंदर भ्रूण का न होना और भ्रूण की दिल की धड़कन का मौजूद न होना- दोनों बातों की पुष्टि हो जाती है। इसके अलावा अल्ट्रासाउंड के जरिए कई दूसरी चिकित्सीय समस्याओं का भी पता लगाया जा सकता है जिसमें प्रेगनेंसी से मिलते-जुलते लक्षण देखने को मिलते हैं, उदाहरण के लिए- एक्टोपिक प्रेगनेंसी (भ्रूण गर्भाशय के बाहर बढने लगता है), बीमार बनाने वाला मोटापा और प्रजनन अंगों में किसी तरह का ट्यूमर या कैंसर की समस्या आदि।

किसी महिला के लिए यह जानना कि वह गर्भवती नहीं है खासकर तब जब उसमें लंबे समय से गर्भवती होने की इच्छा पल रही हो एक निराशाजनक स्थिति होती है। लिहाजा महिला को यह बताना कि उसे प्रेगनेंसी नहीं बल्कि फॉल्स या फैंटम प्रेगनेंसी है- यह एक मुश्किल काम होता है और इसे अच्छी तरह से संभालना चाहिए। डॉक्टर को सारे टेस्ट्स और सबूतों के आधार पर आराम से महिला को यह बात बतानी चाहिए और प्यार से समझाना चाहिए। जब महिला को यह बात पता चले तो जरूरी है कि उसका पार्टनर, दोस्त या परिवार के सदस्य उसके आसपास हों ताकि वह उसे संभाल सकें।

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आमतौर पर फॉल्स प्रेगनेंसी में किसी तरह के चिकित्सीय इलाज की तब तक जरूरत नहीं होती जब तक उसके पीछे कोई अंतर्निहित कारण न छिपा हो। उदाहरण के लिए- अगर किसी महिला को प्रजनन सेहत या ट्यूमर की वजह से फैंटम प्रेगनेंसी की समस्या हुई हो तो डॉक्टर मरीज को दवा, जीवनशैली में बदलाव और जरूरी ट्रीटमेंट मुहैया कराते हैं।

यह सोचना या अनुभव करना कि आप एक बच्चे की मां बनने वाली हैं, जल्द ही आपके जीवन में नया मेहमान आने वाला है और फिर अचानक आपको यह पता चले कि कभी कोई प्रेगनेंसी थी ही नहीं किसी भी व्यक्ति के लिए मानसिक आघात से कम नहीं होता। इस घटना का सामना करना और फिर इसके साथ जीवन में आगे बढ़ना कई महिलाओं के लिए बेहद मुश्किल हो जाता है। लिहाजा वे महिलाएं जो फॉल्स प्रेगनेंसी से पीड़ित होती है उन्हें उचित थेरेपी और काउंसलिंग की सुविधा दी जानी चाहिए।

अमेरिकन प्रेगनेंसी एसोसिएशन का सुझाव है कि फैंटम प्रेगनेंसी से पीड़ित महिला का सही तरीके से मनोवैज्ञानिक और तंत्रिका संबंधी मूल्यांकन किया जाना चाहिए। ऐसा इसलिए क्योंकि मनोवैज्ञानिक और तंत्रिका संबंधी समस्याओं की वजह से अक्सर फैंटम प्रेगनेंसी होती है और इसलिए पीड़ित महिला को साइकोथेरेपी, कॉग्निटिव बिहेवियरल थेरपी (सीबीटी), दवा और मदद की जरूरत पड़ सकती है ताकि वह इस स्थिति से उबर सके। साथ ही इस दौरान उसकी शारीरिक और मानसिक सेहत भी न बिगड़े।

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फॉल्स प्रेगनेंसी भले ही एक दुर्लभ स्थिति हो बावजूद इसके यह दुनिया के उन देशों या क्षेत्रों में देखने को मिलती है जहां प्रजनन स्वास्थ्य की जानकारी और हेल्थकेयर सुविधाओं की कमी है। यही वजह है कि इन देशों में फॉल्स प्रेगनेंसी के बारे में उचित जानकारी मुहैया कराना बेहद जरूरी है। साथ ही साथ घर पर ही प्रेगनेंसी टेस्ट करने की सुविधा मुहैया कराना भी उतना ही जरूरी है। इसके अलावा बांझपन से जुड़े इस तरह के स्टिग्मा (कलंक) से निकलने के लिए मनोवैज्ञानिक मदद और ऐक्शन प्लान की भी जरूरत है। साथ ही साथ मानसिक सेहत पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए ताकि फॉल्स प्रेगनेंसी से जुड़े साइकोसिस की समस्या को भी असरदार तरीके से कम किया जा  सके।
 
 
अगर फैंटम प्रेगनेंसी की दिक्कत हो जाती है तो उसे संभालना एक नाजुक मुद्दा है। इस दौरान न सिर्फ मरीज को न सिर्फ घरवालों से उचित मदद की जरूरत होती है बल्कि डॉक्टर को भी उचित डायग्नोज करना चाहिए ताकि ट्रॉमा की यह स्थिति मरीज में दोबारा उत्पन्न न हो। लिहाजा ऐसे मामलों में मनोवैज्ञानिक काउंसलिंग की जरूरत और भी बढ़ जाती है।
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संदर्भ

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