महिलाओं में होने वाली सामान्‍य समस्‍याओं में से एक योनि में यीस्‍ट संक्रमण भी है। इस प्रकार का फंगल इंफेक्‍शन तब होता है जब मुंह, पाचन तंत्र या योनि में पाया जाने वाला कैंडीडा एल्‍बीकैंस नामक कवक तेजी से बढ़ने लगता है और योनि के ऊतकों को नुकसान पहुंचाने लगता है। इस प्रकार के संक्रमण में योनि से सफेद पानी आने और योनि में एवं इसके आसपास खुजली की शिकायत रहती है।

योनि में फंगल संक्रमण कैंडिडा एलबिकन्स की असामान्य वृद्धि के कारण होता है, ये एक ऐसा यीस्‍ट है जो योनि के प्राकृतिक फ्लोरा को बनाता है। कैंडिडिआसिस लगभग हर उम्र की महिला को प्रभावित करता है और अपने जीवन में लगभग 75 प्रतिशत महिलाएं एक न एक बार इस इंफेक्‍शन का शिकार जरूर होती हैं। अगर समय पर इसका इलाज न किया जाए तो कैंडिडिआसिस की वजह से ल्‍यूकोरिया जैसी योनि से संबंधित समस्‍याएं भी हो सकती हैं। हार्मोनल चिकित्‍सा, कुछ एंटीबायोटिक और एचआईवी कारणों की वजह से कैंडिडिआसिस का खतरा बढ़ जाता है।

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आयुर्वेदिक ग्रं‍थों में कैंडिडिआसिस और अन्‍य महिला प्रजनन संबंधित समस्‍याओं को योनि व्‍यापात (योनि को प्रभावित करने वाले रोग) के तहत वर्गीकृत किया गया है। योनि में यीस्‍ट संक्रमण के इलाज के लिए पंचकर्म थेरेपी की स्‍नेहन (शुद्धिकरण की विधि), अभ्‍यंग (तेल मालिश) के साथ पिच्चू (औषधीय टेंपन) का इस्‍तेमाल किया जाता है। फंगलरोधी जड़ी बूटियों जैसे कि मंजिष्‍ठा और दारुहरिद्रा योनि में यीस्‍ट इंफेक्‍शन को बढ़ने से रोकने में लाभकारी हैं।

आयुर्वेद में योनि में यीस्‍ट संक्रमण को ठीक करने के लिए आहार में कुछ जरूरी बदलाव जैसे कि यव (जौ), तेल और पिप्‍पली का नियमित सेवन करने की सलाह दी गई है। निजी अंगों की साफ-सफाई रखकर भी योनि में संक्रमण होने की समस्‍या को नियंत्रित एवं रोका जा सकता है। 

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  3. योनि में यीस्ट संक्रमण की आयुर्वेदिक दवा, जड़ी बूटी और औषधि - Yoni me Infection ki ayurvedic dawa aur aushadhi
  4. आयुर्वेद के अनुसार योनि में यीस्ट संक्रमण होने पर क्या करें और क्या न करें - Ayurved ke anusar Yoni me Infection me kya kare kya na kare
  5. योनि में यीस्ट संक्रमण के लिए आयुर्वेदिक दवा कितनी लाभदायक है - Yoni me Yeast Infection ka ayurvedic upchar kitna labhkari hai
  6. योनि में यीस्ट संक्रमण की आयुर्वेदिक औषधि के नुकसान - Vaginal Yeast Infection ki ayurvedic dawa ke side effects
  7. योनि में यीस्ट संक्रमण की आयुर्वेदिक ट्रीटमेंट से जुड़े अन्य सुझाव - Yoni me Yeast Infection ke ayurvedic ilaj se jude anya sujhav
  8. योनि में यीस्ट संक्रमण की आयुर्वेदिक दवा और इलाज के डॉक्टर

योनि में यीस्‍ट संक्रमण के लक्षणों में कैंडिडिआसिस शामिल है जिसे आयुर्वेद में कफ प्रधान कहा गया है। कफ बढ़ाने वाले खाद्य पदार्थ और शरीर में ज्‍यादा कफ बनाने वाली जीवनशैली का असर योनि पर पड़ता है। इसके लक्षणों में योनि में कंडु (खुजली), शीतलता (ठंड), अल्‍पवेदना (हल्‍का दर्द) और पिच्छिल (बलगम आना) शामिल है। योनि से सफेद पानी आने या श्‍वेतप्रदर की वजह से भी कैंडिला संक्रमण होता है।

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आहार से संबंधित गलत आदतों जैसे कि जंक फूड, अध्यशन (अधिक मात्रा में खाना) और विरुद्ध आहार (अनुचित खाद्य पदार्थों का मेल) जैसे कुछ योनि व्‍यापात के कारण हैं। इन गलत आदतों की वजह से दोष खराब हो जाता है जिससे महिलाओं को प्रजनन प्रणाली से संबंधित कई समस्‍याएं हो सकती हैं। सेक्‍स के दौरान किसी बाहरी पदार्थ, बहुत ज्‍यादा संभोग, गर्भनिरोधक खाने और साफ-सफाई का ध्‍यान न रखने की वजह से भी योनि में यीस्‍ट संक्रमण और अन्‍य योनि से संबंधित परेशानियां हो सकती हैं।

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योनि व्‍यापत के लिए वात को ठीक करने वाली आयुर्वेदिक चिकित्‍साएं जैसे कि स्‍नेहन, स्‍वेदन, और अभ्‍यंग की सलाह दी जाती है। इन चिकित्‍साओं के साथ मृदु शोधन (हल्‍की दवाओं से शुद्धिकरण) किया जाता है। योनि व्‍यापत के कारण असृग्‍दर (मेनोरेजिया - मासिक धर्म में अधिक खून आना), अर्श (बवासीर) और गुल्‍म (पेल्विक या पेट का बढ़ना) की समस्‍या हो सकती है। 

  • स्‍नेहन
    • स्‍नेहन कर्म में खराब हुए दोष को संतुलित करने के लिए शरीर को अंदरूनी और बाहरी दोनों रूप से चिकना किया जाता है।
    • इसे एकल चिकित्‍सा के रूप में भी कर सकते हैं या पंचकर्म थेरेपी से पहले भी कर सकते हैं।
    • इस प्रक्रिया में तेल या घी (क्‍लैरिफाइड मक्‍खन) व्‍यक्‍ति को खिलाया जाता है या नासिका मार्ग के ज़रिए डाला जाता है। स्‍नेहन में भी तेल लगाया जाता है या एनिमा के रूप में तेल दिया जाता है। (और पढ़ें - एनिमा क्या होता है)
    • किसी पशु या सब्‍जी से प्राप्‍त तेल या फैट का इस्‍तेमाल स्‍नेहन में किया जा सकता है जैसे कि मक्‍खन, मछली के तेल, पशु से प्राप्‍त फैट, दूध या अस्थि-मज्जा।
       
  • अभ्‍यंग
    • अभ्‍यंग में तेल मालिश की जाती है। इसमें औषधीय तेलों से पूरे शरीर की मालिश की जाती है।
    • अभ्‍यंग के शरीर पर ऊर्जादायक प्रभाव पड़ते हैं। ये शरीर में अकड़न और भारीपन को कम करता है और रक्‍त संचार में सुधार लाता है। (और पढ़ें - ब्लड सर्कुलेशन बढ़ाने के उपाय)
    • इस चिकित्‍सा से मांसपेशियों और कंकाल के कार्य में सुधार आता है एवं तंत्रिकाओं के संचालन की प्रक्रिया बेहतर होती है।
    • अभ्‍यंग से एंटीबॉडी (किसी बाहरी अणु की पहचान करने वाला प्रोटीन) का उत्‍पादन बढ़ता है, इस प्रकार संक्रमण और रोग को रोकने के लिए शरीर की प्राकृतिक क्षमता बढ़ती है।
       
  • स्‍वेदन
    • स्‍वेदन कर्म में शरीर से भारीपन, ठंडक और अकड़न को दूर करने के लिए विभिन्‍न प्रक्रियाओं से पसीना लाया जाता है।
    • स्‍वेदन से शरीर के ऊतकों में जमे विषाक्‍त पदार्थों को तरल में बदलकर आसानी से बाहर निकाल लिया जाता है।
    • आमतौर पर स्‍नेहन कर्म के बाद स्‍वेदन किया जाता है।
    • पसीना लाने के लिए बाष्प स्वेदन (एक कक्ष में भाप द्वारा पसीना लाना), वालुका स्‍वेद (गर्म रेत से पसीना लाना), परिषेक स्‍वेद (गर्म औषधीय तेलों को शरीर पर डालना) और अवगाह स्‍वेद (गर्म तरल पदार्थों से युक्त बाथ टब में बैठाकर पसीना लाना) का प्रयोग किया जाता है। (और पढ़ें - भाप लेने के फायदे)
       
  • पिच्चू
    • पिच्चू में प्रभावित हिस्‍से पर रूई के फाहे से औषधीय तेलों को लगाया जाता है।
    • योनि से संबं‍धित समस्‍याओं में टैंपन आकार के रूई के फाहे को औषधियों में डुबोकर योनि में डाला जाता है।  
    • पिच्चू को निम्बा के तेल (नीम का तेल), करंज के तेल, पदमकादि तेल,सर्षप (सरसों के तेल) तेल या शतधौत घृत का इस्‍तेमाल योनि में खुजली को कम करने के लिए किया जाता है। (और पढ़ें - योनि में खुजली के घरेलू उपाय)
    • ल्‍यूकोरिया से ग्रस्‍त महिला में पिच्चू के लिए धातक्यादि तेल का इस्‍तेमाल किया जाता है। 

योनि में यीस्‍ट संक्रमण के लिए आयुर्वेदिक जड़ी बूटियां

  • निम्‍बा
    • निम्‍बा का स्‍वाद तीखा होता है एवं इसमें संकुचक, वायरसरोधी और रोगाणुरोधक गुण पाए जाते हैं।
    • ये जड़ी बूटी परिसंचरण, श्‍वसन, मूत्र और पाचन तंत्र पर कार्य करती है।
    • पीलिया, गठिया, मलेरिया, ल्‍यूकोरिया, बुखार, खांसी और एक्जिमा एवं सिफलिस (बैक्टीरिया के द्वारा फैलने वाला संक्रमण) जैसे रोगों के इलाज में निम्‍बा लाभकारी है। ये दांतों से संबंधित कई प्रकार की समस्‍याओं के इलाज में उपयोगी है। (और पढ़ें - बुखार का आयुर्वेदिक उपचार)
    • जीवाणुरोधी और फंगलरोधी जड़ी बूटी होने के कारण निम्‍बा योनि में नुकसानदायक बैक्‍टीरिया और यीस्‍ट को बढ़ने से रोकने में असरकारी है।
    • आप अर्क, तेल, काढ़े, औषधीय घी या डॉक्‍टर के निर्देशानुसार निम्‍बा ले सकते हैं।
       
  • मंजिष्‍ठा
    • प्रमुख तौर पर मंजिष्‍ठा का इस्‍तेमाल परिसंचरण और महिला प्रजनन प्रणाली से संबंधित समस्‍याओं के इलाज में किया जाता है।
    • ये रक्‍तशोधक के लिए बेहतरीन जड़ी बूटियों में से एक है। इसके अलावा मंजिष्‍ठा ब्‍लीडिंग को रोकने और रक्‍त संचार को बेहतर करने में भी मदद करती है। (और पढ़ें - ब्लीडिंग रोकने का तरीका)
    • मंजिष्‍ठा में ट्यूमररोधी गुण होते हैं और ये प्राकृतिक संकुचक है। (और पढ़ें – ट्यूमर क्या होता है)
    • ये जड़ी बूटी कई प्रकार की स्‍वास्‍थ्‍य समस्‍याओं जैसे कि पेचिश, हेपेटाइटिस, लकवा, दर्दनाक चोट, हर्पीस, रुमेटाइड आर्थराइटिस, हृदय रोगों और डिस्‍मेनोरिया (माहवारी में पेट के निचले हिस्‍से में दर्द) से राहत दिलाती है।
    • मंजिष्‍ठा की पत्तियों में रोगाणुरोधी गुण मौजूद होते हैं जो इसे संक्रमण जैसे कि कैंडिडिआसिस के इलाज में उपयोगी बनाते हैं।
    • आप मंजिष्‍ठा को घी, काढ़े, पेस्‍ट, पाउडर के रूप में या डॉक्‍टर के निर्देशानुसार ले सकते हैं।
       
  • दारुहरिद्रा
    • ये परिसंचरण और पाचन तंत्र पर कार्य करती है। (और पढ़ें - पाचन तंत्र के रोग)
    • ये जड़ी बूटी लिवर के कार्यों को नियंत्रित करती है और वसा, ब्‍लड प्रेशर एवं विषाक्‍त पदार्थों के स्‍तर को कम करती है।
    • इसमें बुखार को कम करने वाले और शक्‍तिवर्द्धक गुण होते हैं जो कि इसे गैस्ट्रिक अल्‍सर, पीलिया, त्‍वचा रोगों, डायबिटीज, मस्तिष्‍क से संबंधित विकार, न्‍यूरेलजिया (नसों में दर्द) और पेट के निचले हिस्‍से में वेरिकोज़ नसों (मुड़ी या बढ़ी हुई नसें) के इलाज में उपयोगी बनाते हैं।
    • इसमें सक्रिय रोगाणुरोधी यौगिक होते हैं जो कि इसे योनि में यीस्‍ट को बढ़ने से रोकने में उपयोगी बनाते हैं।
    • आप दारुहरद्रिा को पेस्‍ट, काढ़े, औषधीय घी, पाउडर के रूप में या डॉक्‍टर के निर्देशानुसार ले सकते हैं।

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  • ब्राह्मी
    • आयुर्वेद में ब्राह्मी को बेहतरीन ऊर्जादायक जड़ी बूटी के रूप में जाना जाता है। इसमें दिमाग के लिए शक्‍तिवर्द्धक गुण होते हैं इसलिए ये बुद्धि बढ़ाती है और दिमाग की कोशिकाओं के कार्य में सुधार लाती है।
    • ये श्‍वसन, तंत्रिका, परिसंचरण और प्रजनन प्रणाली के कार्य में सुधार लाने में मदद करती है।
    • ब्राह्मी जड़ी बूटी दौरे पड़ने, याददाश्‍त में कमी, यौन से संबंधित समस्‍याओं, आंत्र विकार, सोरायसिस और गठिया के इलाज में उपयोगी है। (और पढ़ें - सोरायसिस का आयुर्वेदिक इलाज)
    • ब्राह्मी रोग प्रतिरोधक क्षमता में सुधार लाती है और नुकसानदायक बैक्‍टीरिया एवं यीस्‍ट को बढ़ने से रोकती है। (और पढ़ें - रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाले खाद्य पदार्थ)
    • इसे कैंडिडिआसिस को बढ़ने से रोकने में असरकारी पाया गया है। इसलिए कैंडिडिआसिस के उपचार में ब्राह्मी लाभकारी है।
    • आप ब्राह्मी को घी, अर्क, तेल, काढ़े, पाउडर के रूप में या डॉक्‍टर के निर्देशानुसार ले सकते हैं।
       
  • नागवल्‍ली (पान का पत्ता)
    • नागवल्‍ली एक तीखी, विशद (साफ करने वाली), सर (चिकनी) और लघु (हल्‍की) जड़ी बूटी है। इसे श्‍लेष्‍म हार (बलगम कम करने) और वातहर (वात को कम करने वाली) गुणों के लिए जाना जाता है। (और पढ़ें - बलगम कम करने के उपाय)
    • ये मुंह की बदबू और खटास को भी कम करने में मदद करती है।
    • योनि में यीस्‍ट संक्रमण के सामान्‍य लक्षणों में से एक कंदु (खुजली) से भी नागवल्‍ली राहत दिलाती है।
    • ये अग्‍निमांद्य (कमजोर पाचन अग्‍नि) और ज्‍वर (बुखार) को कम करने में भी लाभकारी है।
    • नागवल्‍ली के पौधे के बीज, पत्तियां और एल्‍केलॉइड फंगलरोधक कार्य करते हैं जोकि यीस्‍ट संक्रमण जैसे कि कैंडिडिआसिस को रोकने में असरकारी हैं।
       
  • यष्टिमधु (मुलेठी)
    • यष्टिमधु में ऊर्जादायक, शामक और शक्‍तिवर्द्धक गुण पाए जाते हैं। ये श्‍वसन, पाचन, तंत्रिका और प्रजनन प्रणाली पर कार्य करती है।
    • ये प्रमुख तौर पर ह्रदय संबंधित समस्‍याओं, एसिडिटी, वात से संबंधित रोग, जुकाम, ब्रोंकाइटिस, बुखार, सामान्‍य दुर्बलता, इन्फ्लुएंजा, गले में खराश, अल्‍सर और पेट दर्द के इलाज में उपयोगी है।
    • चूंकि ये जड़ी बूटी पेट और फेफड़ों से अतिरिक्‍त कफ को बाहर निकालती है इसलिए ये कफ के कारण हुए योनि में यीस्‍ट संक्रमण जैसे कि कैंडिडिआसिस के इलाज में उपयोगी है। (और पढ़ें - कमजोरी दूर करने के घरेलू उपाय)
    • मुलेठी के फंगलरोधी गुण कैंडीडा एल्‍बीकैंस को बढ़ने से रोकने में मदद करते हैं।
    • आप मुलेठी को दूध के काढ़े, घी, काढ़े, पाउडर के रूप में या डॉक्‍टर के निर्देशानुसार ले सकते हैं।

योनि में यीस्‍ट संक्रमण के लिए आयुर्वेदिक औषधियां

  • निम्बादि योनि वर्ती
    • निम्बादि योनि वर्ती को नीम के काढ़े में त्रिफला (आमलकी, विभीतकी और हरीतकी का मिश्रण) मिलाकर तैयार किया गया है।
    • ये मिश्रण योनि में सफेद पानी, बदबू, दर्द और खुजली को कम करने में उपयोगी है। (और पढ़ें - योनि में दर्द के उपाय)
    • आयुर्वेद में इसे योनि शोधक के रूप में भी जाना जाता है। ये श्‍वेदप्रदर, कैंडिडिआसिस, परजीवी ट्राइकोमोनास के कारण होने वाले संक्रमण, सफेद पानी के साथ आने वाली बदबू और योनि से संबंधित अन्‍य समस्‍याओं के इलाज में उपयोगी है।
       
  • पंच वल्कल क्‍वाथ
      पंच वल्कल क्‍वाथ का प्रयोग योनि को साफ करने के लिए स्‍थानिका चिकित्‍सा (प्रभावित हिस्‍से पर) के रूप में किया जाता है।
    • इस मिश्रण को कषाय (संकुचक), स्‍तंभप (प्रवाह रोकने वाले), शोथ हर (सूजन खत्‍म करने वाले), रोगाणुरोधक और कफ शामक (कफ खत्‍म करने वाले) गुणों से युक्‍त जड़ी बूटियों और पदार्थों से तैयार किया गया है। इस वजह से ये योनि रोग जैसे कि कैंडिडिआसिस के इलाज में लाभकारी है। (और पढ़ें - सूजन कम करने के लिए क्या करें)
    • ये औषधि रोग प्रतिरोधक क्षमता में सुधार लाती है जिससे संक्रमण को रोकने और उससे लड़ने एवं उसे दोबारा होने से रोकने में मदद मिलती है।
       
  • गंधक रसायन
    • इस मिश्रण में गोदुग्‍ध (गाय का दूध), शुद्ध गंधक, त्‍वाक (दालचीनी) से बना काढ़ा, एला (इलायची) और नागकेसर, शुंथि (सोंठ) का काढ़ा, गुडूची स्‍वरस (जूस), भृंगराज स्‍वरस, अदरक स्‍वरस और अन्‍य हर्बल सामग्रियां मौजूद हैं।
    • गंधक रसायन का इस्‍तेमाल नाडीव्रण (गुदा क्षेत्र में साइसन), कुष्‍ठ (त्‍वचा रोगों) और कोष्ठगत रोग (जठरांत्र संबंधित रोग) के इलाज में प्रमुख तौर पर किया जाता है।
    • गंधक रसायन में फंगलरोधी गुण होते हैं जो फंगल संक्रमण को फैलने से रोकते हैं। इसलिए ये योनि में यीस्‍ट संक्रमण के इलाज में उपयोगी है।
       
  • हिंगुलिया माणिक्य रस
    • हिंगुलिया माणिक्य रस को शुद्ध हिंगुल, हरीतला, गंधक और पलाश फूल के रस से तैयार किया गया है।
    • इस मिश्रण में मौजूद हरीतला एंटीमाइक्रोबियल कार्य करती है जो कि सामान्‍य संक्रमण पैदा करने वाले जीवों जैसे कि स्टेफिलोकोकस ऑरियस और कैंडीडा एल्‍बीकैंस को बढ़ने से रोकती है।
       
  • अभ्‍यारिष्‍टम
    • इसे आमलकी, पिप्‍पली, गुड़, विडंग, मारीच (काली मिर्च) और अन्‍य 11 जड़ी बूटियों से बनाया गया है।
    • ये औषधि बुखार और एडिमा को कम करने में मदद करती है। ये हृदय रोगियों, बवासीर, एनीमिया, कैंडिडिआसिस, त्‍वचा रोगों और कब्‍ज से ग्रस्‍त व्‍यक्‍ति की संपूर्ण सेहत में सुधार लाती है। (और पढ़ें - कब्ज का आयुर्वेदिक उपचार)

व्यक्ति की प्रकृति और कई कारणों के आधार पर चिकित्सा पद्धति निर्धारित की जाती है इसलिए उचित औषधि और रोग के निदान हेतु आयुर्वेदिक चिकित्सक से परामर्श करें।

क्‍या करें

  • मांस का सूप, दूध, ताजे फल और सब्जियां, रसोनम (लहसुन), यव, पिप्‍पली, सीधु (खमीरीकृत गुड़ से बना मादक) को अपने आहार में शामिल करें।
  • आसव और अरिष्‍ट (हर्बल वाइन) जैसे औषधीय मिश्रणों का सेवन करें।
  • आसानी से पचने वाले खाद्य पदार्थ खाएं।
  • सेक्‍स न करें और योनि की साफ-सफाई का ध्‍यान रखें।
  • हमेशा ताजा बना खाना ही खाएं। (और पढ़ें - खाना खाने का सही समय)

क्‍या न करें

लैब में हुई एक स्‍टडी में इस बात का पता चला है कि हिंगुलिया मणिक्‍य रस की 8 मि.ग्रा/मि.ली मात्रा कैंडीडा एल्‍बीकैंस को रोकने में बहुत असरकारी है।

श्‍वेतप्रदर की समस्‍या से ग्रस्‍त 104 महिलाओं को नियमित निम्बादि योनि वर्ती दी गई। इन महिलाओं को श्‍वेतप्रदर के लक्षणों से राहत मिलने के साथ-साथ इनकी जीवन की गुणवत्ता में भी सुधार दर्ज किया गया। इसमें ये भी बताया गया कि निम्बादि योनि वर्ती एक सुरक्षित, किफायती और असरकारी आयुर्वेदिक औषधि है जो असामान्‍य डिस्‍चार्ज को कम करने में मदद करती है। 

(और पढ़ें - योनि से बदबू आने के कारण)

  • दारुहरिद्रा के कारण शरीर में वात बढ़ सकता है।
  • गर्भवती महिलाओं को यष्टिमधु का सेवन नहीं करना चाहिए।
  • मंजिष्‍ठा के कारण वात बढ़ सकता है और बहुत ज्‍यादा ठंड भी लग सकती है। (और पढ़ें - ठंड लगने पर क्या करें)

योनि में यीस्‍ट संक्रमण जैसे कि कैंडिडिआसिस का कारण योनि में माइक्रोबिअल फ्लोरा में असंतुलन आना है। इसकी वजह से योनि में खुजली, सफेद पानी और बदबू आने की शिकायत रहती है।

(और पढ़ें - सफेद पानी आने के घरेलू उपाय)

योनि में यीस्‍ट संक्रमण से बचने एवं इसे रोकने के लिए स्‍वस्‍थ जीवनशैली और साफ-सफाई का ध्‍यान रखना जरूरी है। फंगलरोधी और रोगाणुरोधी गुणों से युक्‍त आयुर्वेदिक जड़ी बूटियों और औषधियों का इस्‍तेमाल योनि में यीस्‍ट संक्रमण के इलाज में किया जाता है। ये न केवल इंफेक्‍शन के लक्षणों को कम करती हैं बल्कि संक्रमण को दोबारा होने से भी रोकती हैं। स्‍वेदन और स्‍नेहन जैसी चिकित्‍साओं से खराब दोष को ठीक किया जाता है और पिच्चू के जरिए औषधियों को लगाकर डिस्‍चार्ज, बदबू और योनि से संबंधित अन्‍य समस्‍याओं से छुटकारा मिलता है।

(और पढ़ें - गर्भावस्था में योनि से सफेद पानी आना)

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