फटिग पैनल क्या है?

थकान खुद कोई रोग नहीं होता, बल्कि यह एक लक्षण होता है। इसमें व्यक्ति को लगातार थकान महसूस होती है। हालांकि, लगातार थकान रहना किसी सामान्य थकावट या कमजोरी महसूस होने की स्थिति से गंभीर होती है। रोजाना पर्याप्त नींद लेने, उचित व्यायाम करने व पोषक तत्व लेने पर भी अगर आपको थकावट महसूस होती है, तो इस स्थिति को थकान कहा जाता है।

बहुत से व्यस्क इस स्थिति को कभी न कभी महसूस करते हैं। थकान शारीरिक या मानसिक या फिर दोनों तरह से हो सकती है। यह किसी मेडिकल स्थिति के कारण है या फिर जीवनशैली से संबंधित समस्याओं व मानसिक रूप से ठीक न होने के कारण हो सकता है।

फटिग पैनल टेस्ट में निम्न टेस्ट आते हैं -

  • कम्पलीट ब्लड काउंट (सीबीसी) - यदि डॉक्टर को थकान, कमजोरी या नील जैसे लक्षण दिखाई देते हैं तो वे इस टेस्ट को करने की सलाह दे सकते हैं। सीबीसी इन लक्षणों को पैदा करने वाली स्थिति का पता लगा सकता है। इसमें निम्न टेस्ट आते हैं -

    • वाइट ब्लड सेल (डब्ल्यूबीसी) काउंट - डब्ल्यूबीसी आपके शरीर को बैक्टीरिया, वायरस व अन्य सूक्ष्मजीवों से बचाता है। जब आपको कोई संक्रमण होता है तो डब्ल्यूबीसी की संख्या बढ़ जाती है। इसीलिए डब्ल्यूबीसी काउंट आपको संक्रमण के बारे में पता लगाने में मदद करता है। कैंसर के मरीजों के मामले में, यह टेस्ट इस बात का पता लगाने में भी मदद करता है कि आपका शरीर कैंसर के ट्रीटमेंट पर किस तरह से प्रतिक्रिया कर रहा है।
    • डब्ल्यूबीसी काउंट (डिफ्रेंशियल) - शरीर में भिन्न प्रकार की सफ़ेद रक्त कोशिकाएं मौजूद होती हैं जैसे न्यूट्रोफिल्स, इओसिनोफिल्स, बासोफिल्स, मोनोसाइट्स और लिम्फोसाइट्स। प्रत्येक सफेद रक्त कोशिका शरीर की रक्षा करने में मदद करती है। डब्ल्यूबीसी में किसी भी प्रकार की कमी या अधिकता कुछ विशेष स्थितियों की और संकेत होता है। उदाहरण के तौर पर इओसिनोफिल्स के अधिक स्तर से एलर्जी की समस्या होती है। डिफ्रेंशियल डब्ल्यूबीसी काउंट अपरिपक्व न्यूट्रोफिल्स की जांच करने में भी मदद करता है, जिसे बैंड न्युट्रोफिल कहा जाता है।
    • रेड ब्लड सेल काउंट (आरबीसी) - आरबीसी फेफड़ों से शरीर के भिन्न अंगों में ऑक्सीजन पहुंचाता है और फेफड़ों तक कार्बनडाइऑक्सइड को वापस ले जाता है। यदि आपके शरीर में आरबीसी के स्तर बहुत अधिक है तो वे एक साथ इकट्ठे होकर सूक्ष्म रक्तवाहिकाओं को ब्लॉक कर सकते हैं। यदि आपके आरबीसी के स्तर बहुत कम हैं तो इसका मतलब है कि आपके शरीर को पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं मिल पा रही है।
    • हेमेटोक्रिट (एचसीटी) - यह टेस्ट रक्त में आरबीसी के घनत्व की जांच करता है। यह रक्त में आरबीसी के प्रतिशत की जांच की तरह किया जाता है। उदाहरण के तौर पर यदि एचसीटी की वैल्यू 42 है, तो आरबीसी रक्त में 42 प्रतिशत है।
    • हीमोग्लोबिन (एचजीबी) - आरबीसी में हीमोग्लोबिन भी मौजूद होता है। यह ऑक्सीजन को ले जाता है और संचारित करता है। आरबीसी में लाल रंग एचजीबी के कारण आता है। एचजीबी शरीर के ऑक्सीजन संचारित करने की योग्यता का पता लगाता है। एचसीटी के साथ यह टेस्ट एनीमिया और पॉलिसिथिमिया का भी पता लगाता है, क्योंकि इन दोनों ही स्थितियों में थकान एक लक्षण होता है।
    • आरबीसी इंडिसेस - आरबीसी इंडिसेस वे वैल्यू हैं जो सीबीसी में मौजूद अन्य टेस्टों के परिणामों को लिखने के लिए प्रयोग की जाती है। तीन आरबीसी इंडिसेस होते हैं - मीन कर्पुसकुलर वॉल्यूम (एमसीवी, आरबीसी का आकार), मीन कर्पुसकुलर हीमोग्लोबिन (एमसीवी, सामान्य आरबीसी में एचजीबी की मात्रा) और मीन कर्पुसकुलर हीमोग्लोबिन कंसंट्रेशन (एमसीएचसी, सामान्य आरबीसी में एचजीबी की मात्रा)। ये इंडिसेस एनीमिया के विभिन्न प्रकारों का पता लगा सकते हैं।
    • रेड सेल डिस्ट्रीब्यूशन विड्थ (आरडीडब्ल्यू) - यह टेस्ट आपके रक्त में आरबीसी के आकार और आकृति का पता लगाता है।
    • प्लेटलेट काउंट - प्लेटलेट सबसे छोटी लाल रक्त कोशिकाएं  होती हैं, जो कि क्लॉटिंग में मदद करती हैं। यदि आपके प्लेटलेट काउंट कम हैं तो आपको अनियंत्रित रक्तस्त्राव हो सकता है। वहीं यदि आपके रक्त में प्लेटलेट की संख्या अधिक है, तो रक्त वाहिकाओं में क्लॉट जमने का अधिक खतरा है।
    • मीन प्लेटलेट वॉल्यूम (एमपीवी) - एमपीवी आपके रक्त में मौजूद प्लेटलेट की औसत वैल्यू है। इसकी जांच प्लेटलेट काउंट के साथ कुछ विशेष बीमारियों का परीक्षण करने के लिए की जाती है। यदि प्लेटलेट काउंट नॉर्मल है तब भी एमपीवी असामान्य हो सकता है।
  • एरिथ्रोसाइट सेडीमेंटेशन रेट (ईएसआर) - ईएसआर यह जांचता है कि एक घंटे में किसी टेस्ट ट्यूब की सतह में आरबीसी कितनी तेजी से जम जाते हैं। यदि अधिक आरबीसी सतह पर जम जाते हैं तो इसका मतलब है कि ईएसआर अधिक है।संक्रमण, कैंसर या ऑटोइम्यून विकार जैसी स्थितियों में शरीर विशेष प्रोटीन बनाता है जिससे ईएसआर के स्तर बढ़ जाते हैं।

  • ब्लड शुगर (सामान्य) -  ब्लड शुगर टेस्ट आपके रक्त में ग्लूकोज की मात्रा की जांच करता है। रैंडम ब्लड शुगर टेस्ट में यह जानने की जरूरत नहीं होती है कि आपका आखिरी भोजन किस समय हुआ था, यह टेस्ट दिन में कई बार किया जाता है। सामान्य लोगों में यह स्तर एक सामान रहता है। यदि ग्लूकोज के स्तर में कोई बदलाव आता है, तो इसका मतलब है कि व्यक्ति को स्वास्थ्य संबंधी कोई समस्या हो सकती है।

  • क्रिएटिनिन - क्रिएटिनिन लेवल आमतौर पर किडनी की कार्य प्रक्रिया का पता लगाने के लिए जांचे जाते हैं। आपकी किडनी लगातार रक्त से अपशिष्ट पदार्थ निकालती रहती है, इसमें क्रिएटिनिन भी एक होता है। इससे डॉक्टर क्रिएटिनिन के स्तरों की एक मानक मात्रा के साथ तुलना करके किडनी की कार्यशीलता का पता लगा सकते हैं।

  • कैल्शियम - यह टेस्ट आपके रक्त में टोटल कैल्शियम की मात्रा का पता लगाता है। कैल्शियम के शरीर में कई सारे कार्य होते हैं जैसे हड्डियों को मजबूत रखना और टूथ इनेमल को बनाना आदि। इसके अलावा मांसपेशियों के संकुचन के लिए, हृदय के ठीक तरह से कार्य करने के लिए, ब्लड क्लॉटिंग के लिए और नसों को सिग्नल देने के लिए भी यह जरूरी होता है। तो शरीर में कैल्शियम का स्तर पता लगाने से कई सारी स्थितियों के परीक्षण और निरीक्षण में मदद मिलती है।

  • मैग्नीशियम - यह टेस्ट रक्त में मैग्नीशियम नामक खनिज के स्तरों का पता लगाता है। मैग्नीशियम आपकी हड्डियों और कोशिकाओं में पाया जाता है। इसके कई सारे कार्य होते हैं जैसे मांसपेशियों के संकुचन को नियमित रखना, हृदय के ठीक तरह से कार्य करने में मदद करना, ब्लड क्लॉटिंग प्रक्रिया को नियमित रखना, नसों को सिग्नल देना और यहां तक कि ब्लड शुगर और रक्तचाप को भी नियंत्रित करता है।

  • सोडियम - यह एक ब्लड टेस्ट है जो कि रक्त में सोडियम के स्तरों की जांच करता है। सोडियम कोशिकाओं की सामान्य कार्य प्रक्रिया में मदद करता है। आपको सोडियम भोजन द्वारा मिलता है और किडनी द्वारा इसे निकाल दिया जाता है। यदि सोडियम आपके रक्त में जमा हो जाता है तो इससे उच्च रक्त चाप की स्थिति पैदा हो जाती है।

  • पोटेशियम -  यह टेस्ट रक्त में पोटेशियम के स्तरों की जांच करता है। पोटेशियम की अत्यधिक मात्रा स्वस्थ कोशिकाओं में पाई जाती है, वहीं कुछ मात्रा रक्त में भी मौजूद होती है। पोटेशियम के भिन्न कार्य होते हैं जैसे मांसपेशियों का संकुचन, तंत्रिका चालन, हृदय की कार्यशीलता और द्रव के संतुलन को बनाए रखने में मदद करता है।

  • क्लोराइड - यह ब्लड टेस्ट रक्त में क्लोराइड की मात्रा का पता लगाता है। क्लोराइड कोशिकाओं में द्रव पहुंचाने और संचारित करने में मदद करता है। यदि आपके क्लोराइड के स्तर असंतुलित हैं तो आपको अस्वस्थ महसूस हो सकता है। यदि आपको उल्टी या दस्त हों तो आपके क्लोराइड के स्तर गिर सकते हैं, लेकिन अगर आपको डायबिटीज है तो वे बढ़ भी सकते हैं।

  • सीरम ग्लूटामिक-पाइरुविक ट्रांसमिनेज (एसजीपीटी) - यह  ब्लड टेस्ट लिवर की कार्य प्रक्रिया का पता लगाता है। यह एलानिन एमिनोट्रांस्फ़ेरेज के स्तरों का पता लगाता है। एलानिन एमिनोट्रांस्फ़ेरेज लिवर में पाया जाने वाला एक एंजाइम है, जो कि लिवर कोशिकाओं के क्षतिग्रस्त होने पर रक्त में स्त्रावित हो जाता है। यदि एसजीपीटी के स्तर अधिक होते हैं, तो इसका मतलब ये है कि आपका लिवर क्षतिग्रस्त है।

  • थायराइड स्टिमुलेटिंग हार्मोन (टीएसएच) - टीएसएच एक हार्मोन है, जो कि मस्तिष्क में मौजूद पिट्यूटरी ग्रंथि द्वारा बनाया जाता है। यह हार्मोन हमारे गले के निचले हिस्से में मौजूद थायराइड ग्रंथि को टी3 और टी4 हार्मोन बनाने के लिए उत्तेजित करता है। यदि आपकी टीएसएच के स्तर बहुत अधिक हैं, तो आपकी थायराइड ग्रंथि बहुत अधिक काम कर रही है, जिसका मतलब है कि आपको हाइपरथायराइडिज्म हो सकता है। हालांकि, अगर आपके थायराइड के स्तर कम हैं तो इसका मतलब है कि आपकी थायराइड ग्रंथि पूर्ण रूप से सक्रिय नहीं है, जिसके कारण हाइपोथायराइडिज्म हो सकता है।

  • फोलिक एसिड (फोलेट या विटामिन बी-9 टेस्ट) - यह टेस्ट आरबीसी में या फिर रक्त के द्रविय भाग (सीरम) में विटामिन बी9 के स्तरों की जांच करने के लिए किया जाता है। फोलेट सिट्रस फलों और पालक जैसी सब्जियों में पाया जाता है। फोलेट डीएनए और कोशिकाओं को बनाने में मदद करता है। यह कैंसर से बचाने में भी मदद करता है। यदि आपके फोलेट के स्तर कम हैं, तो इससे मेगालोब्लास्टिक एनीमिया हो सकता है जिसमें आरबीसी का आकार बढ़ जाता है और उनकी संख्या कम होने लगती है। यदि गर्भावस्था के दौरान आपके फोलेट के स्तर कम हैं तो यह शिशु के मस्तिष्क या स्पाइन में विकार पैदा कर सकता है।

  • यूरिन आर/एम (रूटीन और माइक्रोस्कोपिक एग्जामिनेशन) - इस टेस्ट की मदद से मूत्राशय पथ के संक्रमण, किडनी और लिवर की स्थितियों, डायबिटीज और कैंसर का परीक्षण किया जा सकता है। यह तीन तरह से जांचा जाता है -

    • विज़ुअल स्क्रीनिंग - पेशाब का रंग और इसकी प्रकृति उसमें रक्त व पस की मौजूदगी का पता लगाने में मदद करती है, जिससे विभिन्न स्थितियों के बारे में जांचा जा सकता है। कभी-कभी इसमें पथरी का भी पता लगाया जा सकता है। पेशाब से कैसी बदबू आती है, उससे भी कुछ रोगों के बारे में पता लग सकता है।
    • केमिकल स्क्रीनिंग - इसमें एक डिप स्टिक का प्रयोग किया जाता है जो कि ग्लूकोज , प्रोटीन, पीएच, कीटोन, बिलीरुबिन और आरबीसी को जांचने का एक अच्छा तरीका है।
    • माइक्रोस्कोपिक स्क्रीनिंग - यूरिन की जांच माइक्रोस्कोप में की जाती है। ऐसा पेशाब में यूरिन क्रिस्टल, कोशिकाओं, बलगम, यूरिनरी कास्ट, अन्य पदार्थ जैसे बैक्टीरिया या अन्य सूक्ष्मजीवों की जांच करने के लिए किया जाता है।
  1. फटिग पैनल क्यों किया जाता है - Why Fatigue Panel test is done in Hindi
  2. फटिग पैनल से पहले - Before Fatigue Panel test in Hindi
  3. फटिग पैनल के दौरान - During Fatigue Panel test in Hindi
  4. फटिग पैनल के परिणाम का क्या मतलब है - What does Fatigue Panel test result mean in Hindi

यदि आपको निम्न में से कोई भी लक्षण दिखाई देता है तो डॉक्टर आपसे फटिग पैनल टेस्ट करवाने के लिए कह सकते हैं -

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इस टेस्ट के परिणाम कई सारी दवाओं के कारण प्रभावित हो सकते हैं यदि आप किसी भी तरह की दवा, हर्ब्स, सप्लीमेंट या विटामिन ले रहे हैं तो इसके बारे में डॉक्टर को बता दें। 

टेस्ट के लिए जाने से पहले आधी बांह की शर्ट पहन कर जाएं इससे ब्लड सैंपल लेने में आसानी होगी।

सीबीसी टेस्ट से पहले आपको भूखे रहने की जरूरत नहीं होती है। यदि आप धूम्रपान करते हैं या फिर आपने हाल ही में रक्तादान किया है तो डॉक्टर को इस बारे में बता दें, क्योंकि इससे टेस्ट के परिणाम प्रभावित हो सकते हैं।

कुछ विशेष स्थितियां ईएसआर टेस्ट के परिणामों को प्रभावित कर सकती हैं जैसे -

यदि आप उपरोक्त किसी भी स्थिति में हैं तो इसके बारे में डॉक्टर को बता दें।

रैंडम ब्लड शुगर टेस्ट के लिए आपको किसी भी तैयारी की जरूरत नहीं होती है। यह दिन के किसी भी समय किया जा  सकता है।

क्रिएटिनिन टेस्ट के लिए किसी तैयारी की जरूरत नहीं होती है। यदि आप गर्भवती हैं तो इसके बारे में डॉक्टर को बता दें क्योंकि इससे टेस्ट के परिणाम प्रभावित हो सकते हैं। यदि आप कोई भी दवा ले रहे हैं, तो इसके बारे में डॉक्टर को बता दें। क्योंकि विटामिन सी का अत्यधिक सेवन और कुछ दवाएं एंटीबायोटिक (ट्राईमिथोप्रिम), रेनिटिडिन, सीमेटिडीन और फेमोटिडीन टेस्ट के परिणामों को प्रभावित कर सकती है।

कुछ दवाओं से कैल्शियम टेस्ट के परिणाम प्रभावित होते हैं, इसलिए डॉक्टर उन्हें न लेने की सलाह दे सकते हैं। इसमें लिथियम, कैल्शियम साल्ट, थियाज़िद, डाईयुरेटिक और विटामिन डी शामिल हैं। अत्यधिक दूध पीने से या अधिक विटामिन डी के सप्लीमेंट लेने से भी आपके कैल्शियम का स्तर अचानक बढ़ सकता है।

मैग्नीशियम टेस्ट के लिए किसी तैयारी की जरूरत नहीं होती है। आप सामान्य तरह से खा और पी सकते हैं। यदि आप कोई दवा ले रहे हैं तो इसके बारे में डॉक्टर को सूचित करें, क्योंकि लैक्सेटिव और एंटासिड से मैग्नीशियम के स्तर बढ़ सकते हैं। वहीं इन्सुलिन, डाईयुरेटिक और कुछ एंटीबायोटिक मैग्नीशियम के स्तर को कम कर सकते हैं।

सोडियम टेस्ट करवाने के लिए आपको कुछ घंटों तक भूखा रहना पड़ सकता है। आपको कुछ दवाएं लेने से मना किया जा सकता है। इनमें एंटी डिप्रेसेंट, एंटीबायोटिक्स, लिथियम, उच्च रक्तचाप की कुछ दवाएं, डाईयुरेटिक और नॉन- स्टेरॉइडल एंटी-इंफ्लेमेटरी ड्रग (एनएसएआइडी) आदि शामिल हैं। कोई भी दवा अपने आप लेना बंद न करें।

पोटेशियम टेस्ट के लिए डॉक्टर आपसे ऐसी दवाएं लेने से मना कर सकते हैं, जिनसे आपके पोटेशियम के स्तर प्रभावित होते हैं। कुछ दवाएं जो पोटेशियम के स्तर को बढ़ा सकती हैं, उनमें एसीई इन्हीबिटर, पोटेशियम स्पेरिंग डाईयुरेटिक, हिस्टामिन, मनिटोल, हेपरिन और आइसोनियाजिड आती हैं। वहीं कुछ दवाएं जैसे सिस्प्लास्टिन, कुछ डाईयुरेटिक, इन्सुलिन, लैक्सेटिव, सेलिसिलेट्स और पेनिसिलिन जी पोटेशियम के स्तर को कम कर देती हैं। बहुत अधिक शराब पीने से भी पोटेशियम के स्तर कम हो सकते हैं।

क्लोराइड टेस्ट से पहले आपको कुछ दवाएं न लेने के लिए कहा जा सकता है। दवाएं जैसे एसिटाज़ोलमाइड, एंड्रोजन, एस्ट्रोजन, कोर्टिसोन, मिथाइलडोपा और एनएसआईडीएस टेस्ट के परिणाम को प्रभावित कर सकती हैं, क्योंकि इनसे आपके क्लोराइड के स्तर बढ़ सकते हैं। वहीं एल्डोस्टेरोन, लूप डाईयुरेटिक, बाइकार्बोनेट युक्त पदार्थ और ट्रियामेट्रन से ये स्तर कम हो सकते हैं। द्रवों के सेवन से, जिनमें कैफीन की मात्रा हो टेस्ट के परिणाम प्रभावित हो सकते हैं। कोई भी दवा डॉक्टर से बिना बातचीत किए, लेना बंद न करें।

एसजीपीटी टेस्ट से पहले आपको आठ से बारह घंटे तक रहने के लिए कहा जा सकता है। यदि आप किसी भी तरह की कोई दवा ले रहे हैं तो इसके बारे में डॉक्टर को बता दें, क्योंकि ये टेस्ट के परिणाम को प्रभावित कर सकती हैं। शराब के सेवन से भी इस टेस्ट के परिणाम प्रभावित हो सकते हैं।

टीएसएच टेस्ट से पहले आपसे खाना छोड़ने के लिए नहीं कहा जाएगा। बीमारी या तनाव इस टेस्ट के परिणाम को प्रभावित कर सकते हैं। कुछ दवाएं जैसे फेनीटोइन, फेनोथायजिन, डोपामिन, लिथियम, एमिनोडेरोन, विटामिन बी7 और ग्लुकोकॉर्टिकोस्टेरॉइड टेस्ट के परिणाम को प्रभावित कर सकती हैं। डॉक्टर आपसे इनमें से कुछ दवाएं लेने से मना कर सकते हैं। सलाह दी जाती है कि इस टेस्ट को आप दिन में ही करवाएं।

फॉलिक एसिड टेस्ट के लिए आपको छह घंटे तक भूखे रहने को कहा जा सकता है। आपको कुछ विशेष दवाएं  भी दी जा सकती हैं, जैसे गर्भ निरोधक गोलियां, अल्कोहॉल, एस्ट्रोजन, एम्पीसिलीन, टेट्रासाइक्लीन, मेथोट्रेक्सेट, पेनिसिलिन, फेनीटोइन और ऐसी दवाएं जिनका प्रयोग मलेरिया के इलाज में किया जाता है, लेने से डॉक्टर मना कर सकते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि इससे आपका फॉलिक एसिड इन दवाओं के कारण कम हो सकता है। अत्यधिक शराब पीने, धूम्रपान करने, गर्भावस्था, कीमोथेरेपी, खराब पोषण और हाल ही में हुई सर्जरी जैसी स्थितियों में भी फॉलिक एसिड के स्तर कम हो सकते हैं।

यूरिन आर/एम टेस्ट से पहले किसी विशेष तैयारी की जरूरत नहीं होती है। कुछ ड्रग्स और भोजन से जुड़ी सामग्री पेशाब के रंग को प्रभावित कर सकते हैं, लेकिन ऐसा जरूरी नहीं है कि यह किसी स्वास्थ स्थिति की ओर ही संकेत करे। विटामिन सी सप्लीमेंट, कुछ प्रकार की टॉफ़ियां और चुकंदर आदि के कारण यूरिन के रंग में बदलाव हो सकता है। कुछ दवाएं जैसे लेवोडोपा, मैट्रोनिडाज़ोल, एंथ्राक्विनोन लैक्सेटिव, रिफाम्पिसिन, फेनाज़ोपिरिडीन, रिबोफ्लेविन, सल्फासेलाजीन, क्लोरोक्विन, आयरन सप्लीमेंट, फेनीटोइन और निट्रोफ्यूरेंटोइन टेस्ट के परिणाम को प्रभावित कर सकती हैं। यदि आपको डॉक्टर कहें, तो आपको ये दवाएं छोड़नी पड़ सकती है।

सीबीसी, ईएसआर, ब्लड शुगर, क्रिएटिनिन, कैल्शियम, मैग्नीशियम, सोडियम, पोटेशियम, क्लोराइड, एसजीपीटी, टीएसएच और फॉलिक एसिड टेस्ट के लिए ब्लड सैंपल लिया जाता है। डॉक्टर आपकी बांह की नस में सुई लगाकर ब्लड सैंपल ले लेंगे। टेक्नीशियन ब्लड सैंपल लेने के लिए निम्न प्रक्रिया अपनाएंगे -

  • वे आपकी बांह के ऊपरी हिस्से में एक इलास्टिक बैंड जिसे टूनिकेट कहा जाता है लगाएंगे। सुई लगने वाली जगह पर एंटीसेप्टिक लगाया जाता है।
  • सुई और सिरिंज की मदद से डॉक्टर ब्लड सैंपल ले लेंगे। आपको सुई के लगने से हल्की सी चुभन हो सकती है।
  • एक बार सैंपल मिल जाने के बाद, वे टुनिकेट और सुई को निकाल देंगे और  इंजेक्शन लगी जगह पर कॉटन लगाई जाएगी।
  • इसके बाद सैंपल को कंटेनर में डालकर लैब में टेस्टिंग के लिए भेज दिया जाएगा।

सुई निकालने के बाद आपको इंजेक्शन लगी जगह पर नील भी पड़ सकता है, जिससे हल्का सा दर्द हो सकता है पर जल्दी ही ठीक हो जाएगा। आपको टेस्ट के बाद चक्कर आ सकते हैं या बेहोशी महसूस हो सकती है।

यूरिन आर/एम टेस्ट के लिए एक यूरिन सैंपल की जरूरत होती है। यूरिन सैंपल क्लीन कैच मेथड या फिर चौबीस घंटे का यूरिन सैंपल लेकर किया जा सकता है।

क्लीन कैच प्रक्रिया निम्न तरह से की जाती है -

  • अपने हाथों को साबुन और पानी से अच्छे से धोएं
  • अपने जननांगों को ठीक तरह से साफ करें
  • टॉयलेट बाउल में पेशाब करें, इसके बाद प्रवाह को रोके
  • कंटेनर में यूरिन इकट्ठा कर लें
  • आखिरी में पेशाब टॉयलेट में करें
  • कंटेनर को बंद करके लैब में टेस्टिंग के लिए लैब में भेज दें

चौबीस घंटे का यूरिन सैंपल निम्न तरीके से लिया जाएगा -

  • पहले दिन, दिन का पहला यूरिन टॉयलेट बाउल में करें
  • इसके बाद, अगले चौबीस घंटे का यूरिन कंटेनर में लें
  • दूसरे दिन का पहला यूरिन कंटेनर में ले लें
  • यूरिन सैंपल को फ्रिज में रखें
  • चौबीस घंटे पूरे होने के बाद यूरिन कंटेनर को लैब में टेस्टिंग के लिए भेज दें
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सामान्य परिणाम -

उन टेस्ट के सामान्य परिणाम जो कि फटिग पैनल से जुड़े हुए हैं निम्न हैं।

सीबीसी -

  • डब्ल्यूबीसी (पुरुष और गैर-गर्भवती महिलाएं) - 5,000-10,000 डब्ल्यूबीसी प्रति क्यूबिक मिलीलीटर) (mm3)
  • डब्ल्यूबीसी डिफ्रेंशियल -
    • लिम्फोसाइट्स - 25 - 40 फीसद
    • न्यूट्रोफिल्स - 50 - 62 फीसद
    • बैंड न्यूट्रोफिल्स - 3 - 6 फीसद
    • मोनोसाइट्स - 3 - 7 फीसद
    • इओसिनोफिल्स - 0 - 3 फीसद
    • बेसोफिल्स - 0 - 1 फीसद

आरबीसी -

  • पुरुष - 4.5-5.5 मिलियन आरबीसी प्रति माइक्रोलीटर (RBCs/mcL)
  • महिला - 4.0-5.0 मिलियन 
  • बच्चे - 3.8-6.0 मिलियन
  • नवजात - 4.1-6.1 मिलियन

एचजीबी - 

  • पुरुष - 14-17.4 ग्राम प्रति डेसीलिटर (g/dL)
  • महिला - 12-16 g/dL
  • बच्चे - 9.5-20.5 g/dL
  • नवजात - 14.5-24.5 g/dL

एचसीटी -

  • पुरुष - 42 - 52 फीसद
  • महिला - 36 - 48 फीसद
  • बच्चे - 29 - 59 फीसद
  • नवजात - 44 - 64 फीसद

एमसीएच (वयस्क) - 28-34 पिकोकग्राम (pg) प्रति कोशिका

एमसीएचसी (वयस्क) - 32-36 ग्राम प्रति डेसीलीटर (g/dL)

एमसीवी (वयस्क) - 84-96 फेमटोलीटर (fL)

आरडीडब्ल्यू - 11.5 फीसद-14.5 फीसद

  • प्लेटलेट -

    • व्यस्क - 140,000-400,000 प्लेटलेट/mm3
    • बच्चे - 150,000–450,000 प्लेटलेट/mm3
  • एमपीवी  - 

    • व्यस्क  - 7.4-10.4 fL
    • बच्चे - 7.4-10.4 fL

ईएसआर -

  • पुरुष (50 वर्ष से अधिक) - 0-20 मिलीलीटर प्रति घंटा (mm/hr)
  • पुरुष - 0-15 mm/hr
  • महिलाएं (50 वर्ष से अधिक) - 0-30 mm/hr
  • महिलाएं - 0-20 mm/hr
  • बच्चे - 0-10 mm/hr
  • नवजात शिशु - 0-2 mm/hr[39]

रैंडम ब्लड शुगर - 

  • खाने से पहले या उठने के बाद - 80-120 milligrams per decilitre (mg/dL)
  •  सोने के समय - 100-140 mg/dL[40]

क्रिएटिनिन -

  • पुरुष - 0.9-1.3 mg/dL
  • महिलाएं - 0.6-1.1 mg/dL
  • बच्चे (3-18 वर्ष) - 0.5-1.0 mg/dL
  • बच्चे (<3 वर्ष) - 0.3-0.7 mg/dL

कैल्शियम - 8.5-10.2 मिग्रा/डेली (mg/dL)

मैग्नीशियम  - 1.7-2.2 मिग्रा/डेली

सोडियम - 135-145 मिलीएक्विवैलेन्ट प्रति लीटर (mEq/L)

पोटैशियम - 3.7-5.2 मिलीएक्विवैलेन्ट प्रति लीटर

क्लोराइड - 96-106 मिलीएक्विवैलेन्ट प्रति लीटर

एसजीपीटी - 40 अंतरराष्ट्रीय यूनिट प्रति लीटर (IU/L)

टीएसएच - 0.5-5 माइक्रोयूनिट प्रति मिलीलीटर (µU/mL)

फॉलिक एसिड - 2.7-17.0 नैनोग्राम प्रति मिलीलीटर (ng/mL)

यूरिन आर/एम  टेस्ट -

  • रंग - रंगहीन से गाढ़ा पीला
  • ग्लूकोज - उपस्थित
  • कीटोन - उपस्थित
  • प्रोटीन - उपस्थित
  • बिलीरुबिन - उपस्थित
  • एचजीबी - उपस्थित
  • नाइट्रिटस - उपस्थित
  • आरबीसी - उपस्थित
  • डब्ल्यूबीसी - उपस्थित

असामान्य परिणाम  -

भिन्न टेस्टों की वे वैल्यू जो सामान्य से अधिक होने पर कुछ स्थितियों की ओर संकेत करती हैं, वे निम्न हैं -

  • न्यूट्रोफिल्स -

    • एक्यूट सुपुरेटिव संक्रमण (एक संक्रमण जिसमें पस बन जाता है)
    • ट्रॉमा (शरीर में लगी चोट)
    • इंफ्लेमेटरी डिसऑर्डर (उदाहरण - रूमेटिक फीवर, थायरोडिटिस और रूमेटाइड आर्थराइटिस) 
    • कुशिंग सिंड्रोम (एक विकार जिसमें शरीर में अत्यधिक कोर्टिसोल का उत्पादन होता है)
    • माइलॉयटिक ल्यूकेमिया (एक प्रकार का ल्यूकेमिया)
    • मेटाबॉलिक डिसऑर्डर (ऐसी स्थिति जिसमें मेटाबोलिज्म काम नहीं करता है उदाहरण के तौर पर कीटोएसिडोसिस, गाउट और एक्लेम्पसिया)
  • लिम्फोसाइट्स -

    • क्रोनिक बैक्टीरियल संक्रमण
    • इंफेक्शियस हेपेटाइटिस (लिवर में सूजन जो कि किसी संक्रमण के कारण होता है)
    • लिम्फोसाइटिक ल्यूकेमिया (एक प्रकार का ल्यूकेमिया)
    • मल्टीपल मायलोमा (प्लाज्मा कोशिकाओं का कैंसर)
    • वायरल संक्रमण (उदाहरण - मम्प्स, रूबेला)
    • इंफेक्शियस मोनोन्यूक्लिओसिस (एक संक्रमण जो कि एप्सटीन - बर्र वायरस के कारण होता है)
    • रेडिएशन
  • मोनोसाइट्स -

    • पैरासाइट  (उदाहरण - मलेरिया)
    • क्रोनिक इंफ्लेमेटरी डिसऑर्डर
    • ट्यूबरकुलोसिस
    • वायरल संक्रमण उदाहरण -इंफेक्शियस मोनोन्यूक्लिओसिस
    • क्रोनिक अल्सरेटिव कोलाइटिस (इम्यून सिस्टम का एक विकार जिससे कोलन की परत में सूजन हो जाती है)
  • इओसिनोफिल्स -

  • बेसोफिल्स -

    • ल्यूकेमिया 
    • मायलोप्रोलाइफरेटिव डिजीज (हड्डियों और रक्त का एक रोग, उदाहरण के तौर पर मायलोलोफिब्रोसिस और पॉलिसिथेमिया रूब्रा वेरा)
    • यूरेमिया (एक विकार जिसमें यूरिन द्वारा निकलने वाला अपशिष्ट पदार्थ रक्त में जमीन लगता है)
  • एचसीटी -

    • जलना 
    • कंजेनिटल हार्ट डिजीज (जन्म से मौजूद हृदय का विकार)
    • गंभीर रूप से पानी की कमी
    • पॉलिसिथेमिया वेरा
    • एरीथ्रोसाइटोसिस (आरबीसी की बढ़ती मात्रा)
    • एक्लेम्पसिया (गर्भवती महिलाओं में उच्च रक्तचाप के साथ दौरे पड़ना)
    • क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज
  • एचजीबी -

    • गंभीर रूप से जलन
    • कंजेनिटल हार्ट डिजीज
    • रक्त में हेमोकोसेंट्रेशन (आरबीसी और प्लाज्मा प्रोटीन की संख्या में वृद्धि जो कि रक्त में द्रव के घनत्व कम होने के कारण होता है)
    • पॉलिसिथेमिया वेरा
    • क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (ऑब्सट्रक्टिव लंग डिजीज)
    • कंजेस्टिव हार्ट फेलियर (हृदय की रक्त को ठीक तरह से पंप कर पाने में असमर्थता)
    • पानी की कमी 
  • एमसीवी  -

    • लिवर रोग 
    • पर्निशियस एनीमिया (एक प्रकार का एनीमिया)
    • शराब पीना 
    • फोलिक एसिड की कमी 
  • एमसीएच  -

    • माक्रोसाइटिक एनीमिया (एनीमिया का एक प्रकार)
  • एमसीएचसी  -

    • इंट्रावैस्कुलर हेमोलीसिस (संचारित हो रहे रक्त में आरबीसी का नष्ट होना)
    • स्फेरोसाइटोसिस (आरबीसी का विकार)
    • कोल्ड अग्ल्यूटैनिन्स (एनीमिया का एक दुर्लभ प्रकार)
  • आरडीडब्ल्यू  -

    • आयरन की कमी एनीमिया (आयरन की कमी के कारण एनीमिया)
    • बी12 या फोलेट-डेफिशियेंसी एनीमिया (विटामिन बी 12 की कमी के कारण एनीमिया)
    • सिकल सेल एनीमिया (विकारों का एक समूह जिसमें आरबीसी में मौजूद एचजीबी प्रभावित होती है)]
    • हेमोलिटिक एनीमिया 
    • पोस्टहेमोरेजिक (एनीमिया रक्त क्षति होने के कारण एनीमिया)
  • एमपीवी  -

    • वाल्वुलर हार्ट डिजीज (हार्ट डिजीज जिससे हृदय की वाल्व प्रभावित होती हैं)
    • तेज हेमरेज (रक्त की अधिक मात्रा में क्षति)
    • मायलोजीनियस ल्यूकेमिया (ब्लड कैंसर का एक प्रकार)
    • इम्यून थ्रोम्बोसाइटोपेनिया (रक्त का एक विकार जिसमें प्लेटलेट की कमी हो जाती है)
    • बी12 या फोलेट की कमी 
  • ईएसआर  -

  • रैंडम ब्लड शुगर - 

    • टाइप 2 डायबिटीज
    • गंभीर तनाव
    • स्ट्रोक (मस्तिष्क के किसी भाग में रक्त प्रवाह की क्षति होना जिससे कोशिका मृत हो जाती है)
    • एक्रोमेगली (ग्रोथ हार्मोन का अत्यधिक उत्पादन)
    • कुशिंग सिंड्रोम 
  • क्रिएटिनिन -

    • पानी की कमी 
    • शॉक (ब्लड सर्कुलेटरी सिस्टम के फेल होने की वजह से कोशिकाओं और ऊतकों तक पर्याप्त ऑक्सीजन न पहुंच पाना)
    • थायराइड ग्रंथि का अत्यधिक कार्य करना  
    • मांसपेशियों के रोग  
    • यूरिनरी सिस्टम में अवरोध 
    • कंजेस्टिव हार्ट फेलियर  
    • किडनी डिजीज 
  • कैल्शियम -

    • मल्टीपल मायलोमा 
    • हाइपरपैराथायरॉइडिस्म (पैराथायरॉइड हार्मोन का अत्यधिक स्त्रावित होना)
    • सारकॉइडोसिस (एक सामान्य स्थिति जो फेफड़ों और त्वचा को प्रभावित करती है)
    • पेजेट रोग (क्रोनिक स्केलेल रोग)
    • ऐसे ट्यूमर जो पैराथायराइड हार्मोन बना रहे हों 
    • एचआईवी/एड्स 
    • मेटास्टैटिक बोन ट्यूमर (ऐसा कैंसर जो हड्डियों तक फैल गया हो)
    • हाइपरथाइरॉइडिज्म 
    • संक्रमण जैसे टीबी
  • मैग्नीशियम -

    • पानी की कमी
    • एक्यूट या क्रोनिक किडनी फेलियर
    • एड्रेनल की अपर्याप्तता (एक स्थिति जिसमें एड्रिनल ग्रंथि पर्याप्त हार्मोन नहीं बना पाती है)
    • मिल्क अल्कली सिंड्रोम (शरीर में कैल्शियम के उच्च स्तर जिनके कारण किडनी की कार्यप्रक्रिया खराब हो जाती है) 
    • डायबिटिक कीटोएसिडोसिस (डायबिटीज के मरीजों में एक हानिकारक पदार्थ कीटोन का बनना) 
  • सोडियम -

    • डायबिटीज इन्सिपिडस (डायबिटीज का एक प्रकार जिसमें किडनी पानी  को संचित नहीं कर पाती है)
    • अत्यधिक पसीना आना 
    • दस्त 
    • कुशिंग सिंड्रोम या हाइपरएल्डोस्टेरोनिज्म 
    • शरीर में नमक या सोडियम बाइकार्बोनेट की अधिकता
  • पोटैशियम -

    • हाइपरकेलेमिक पीरियोडिक पैरालिसिस (एक स्थिति जिसमें जन्म के कुछ समय बाद से को  लकवा या फिर मांसपेशियों में अत्यधिक थकान होती है)
    • एडिसन डिजीज (एड्रिनल ग्रंथि का एक दुर्लभ विकार)
    • मेटाबोलिक या रेस्पिरेटरी एसिडोसिस (अम्ल का अत्यधिक उत्पादन या ब्लड मेटाबोलिक एसिडोसिस से बाइकार्बोनेट की क्षति या फिर रक्त में कार्बोनडाइऑक्साइड का जमा हो जाना 
    • आरबीसी का नष्ट होना
    • हाइपोएल्डोस्टेरोनिज्म (एक स्थिति जो कि एल्डोस्टेरोन की कमी के कारण होती है) 
    • रक्ताधान
    • क्रशड टिशू इंजरी (किसी बड़ी वस्तु से शरीर के किसी अंग का चूर-चूर होने से लगी चोट)
    • किडनी फेलियर 
    • आहार में अत्यधिक पोटैशियम
  • क्लोराइड -

    • रीनल ट्यूबूलर एसिडोसिस (किडनी के ठीक तरह से काम न कर पाने के कारण अम्ल का जमना)
    • ब्रोमाइड पोइसिनिंग
    • मेटाबोलिक एसिडोसिस
    • रेस्पिरेटरी एल्केलोसिस
  • एसजीपीटी - 

    • 1,000 IU/L से अधिक वैल्यू निम्न ओर संकेत करती है -
      • लिवर में रक्त के प्रवाह की कमी
      • एक्यूट वायरल हेपेटाइटिस (वायरस के कारण लिवर में सूजन)
      • ड्रग्स और टोक्सिन से आई चोटें
  • टीएसएच -

    • हाइपोथायराइडिज्म 
  • फॉलिक एसिड  -

    • पर्निशियस एनीमिया (एनीमिया का एक प्रकार)

भिन्न  टेस्टों की सामान्य से कम वैल्यू आने से निम्न स्थितियों की तरफ संकेत मिलता है -

  • आरबीसी -

    • एनीमिया (अत्यधिक मासिक धर्म होने के कारण, कोलन कैंसर, पेट में छाले, एडिसन रोग, सिकल सेल डिजीज या सीसा की विषाक्तता)
    • पर्निशियस एनीमिया (फोलिक एसिड और विटामिन बी12 की कमी के कारण)
  • डब्ल्यूबीसी -

    • अप्लास्टिक एनीमिया (एनीमिया का एक प्रकार)
    • वायरल संक्रमण
    • मलेरिया 
    • शराब पीना 
    • एड्स 
    • सिस्टमिक लुपस एरीथेमेटोसस 
    • कुशिंग सिंड्रोम
    • प्लीहा का बढ़ना 
  • प्लेटलेट्स -

    • गर्भावस्था
    • प्लीहा का बढ़ना
    • इम्यून थ्रोम्बोसाइटोपेनिक पुरपूरा (रक्त में प्लेटलेट्स की मात्रा कम होना) 
  • डिफ्रेंशियल डब्ल्यूबीसी काउंट -

  • न्यूट्रोफिल्स -

    • आहार से संबंधी कमियां
    • अप्लास्टिक एनीमिया
    • वायरल संक्रमण (जैसे हेपेटाइटिस, फ्लू और मीज़ल्स)
    • अत्यधिक बैक्टीरियल संक्रमण
    • एडिसन रोग
    • रेडिएशन थेरेपी
  • लिम्फोसाइट्स -

    • सेप्सिस (किसी संक्रमण के विरोध में जीवन घातक प्रतिक्रिया)
    • ल्यूकेमिया 
    • इम्यूनोडेफिशियेंसी रोग (ऐसे रोग  जिनसे शरीर की रोग प्रतिरोधी क्षमता कमजोर हो जाती है) 
    • एचआईवी संक्रमण के अंतिम चरण
    • रेडिएशन थेरेपी
  • मोनोसाइट्स -

    • हेयरी सेल ल्यूकेमिया (ब्लड कैंसर का एक प्रकार)
    • अप्लास्टिक एनीमिया 
  • इओसिनिफिल्स -

    • एड्रेनोस्टेरॉइड का अत्यधिक उत्पादन
  • बेसोफिल्स -

    • हाइपरथायरॉइडिज्म 
    • तीव्र एलर्जिक प्रतिक्रिया 
    • तनाव की प्रतिक्रिया
  • एचसीटी -

    • हेमोलिटिक रिएक्शन (आरबीसी का टूटना और उनके पदार्थों का बाहर निकलना)
    • हेमरेज (किसी रक्त वाहिका से रक्त की क्षति)
    • लिंफोमा (एक प्रकार का  कैंसर)
    • हॉजकिन्स लिंफोमा Hodgkin disease (लिंफोमा का एक प्रकार)
    • एनीमिया
    • सिरोसिस (लिवर डैमेज जिससे लिवर में निशान हो जाते हैं)
    • आहार में कमी 
    • हाइपरथायरॉइडिज्म
    • सामान्य गर्भावस्था
    • बोन मेरो फेलियर
    • रूमेटाइड आर्थराइटिस
    • मल्टीपल माइलोमा
    • हीमोग्लोबिनपैथी
    • प्रोस्थेटिक वाल्व
    • ल्यूकेमिया
    • किडनी के रोग
  • एचजीबी -

    • एनीमिया
    • हेमरेज 
    • सिस्टमिक लुपस एरिथमेटोसस
    • पोषण की कमी
    • क्रोनिक हेमरेज (हेमरेज जो लंबे समय तक रहता है)
    • लिम्फोमा
    • सारकॉइडोसिस
    • किडनी के रोग 
    • कैंसर
    • हेमोलिसिस (आरबीसी का फटना और इसके पदार्थों का बाहर निकलना
    • स्प्लेनोमेगेली (प्लीहा का बढ़ना)
    • हेमोग्लोबिनोपैथीज़ (रक्त के विकार जैसे थैलासीमिया और सिकल सेल डिजीज)
  • एमसीवी -

    • थैलासीमिया (रक्त का विकार)
    • आयरन की कमी एनीमिया
    • लंबे समय से बीमार होने के कारण एनीमिया
  • एमसीएच -

    • हाइपोक्रोमिक एनीमिया (एनीमिया का एक प्रकार)
    • माइक्रोसाइटिक एनीमिया (एनीमिया का एक प्रकार)
  • एमसीएचसी -

    • थैलसीमिया
    • आयरन की कमी एनीमिया
  • एमपीवी -

    • कीमोथेरेपी-इंड्यूस्ड मायलोसप्रेशन (बोन मेरो की सक्रियता में कमी जिसके कारण डब्ल्यूबीसी, आरबीसी और प्लेटलेट नहीं बन पाते ऐसा कैंसर थेरेपी के कारण होता है)
    • विस्कॉट-अल्ड्रिच सिंड्रोम (एक स्थिति जिसमें शरीर की ब्लड क्लॉट बनने की क्षमता में कमी आती है)
  • ईएसआर -

    • सिकल सेल डिजीज
    • हाई ब्लड शुगर लेवल
    • पॉलीसिथिमिया
    • लिवर रोग
  • रैंडम ब्लड शुगर -

    • हाइपोथायराइडिज्म
    • सिरोसिस
    • एनोरेक्सिया (भोजन संबंधी विकार)
    • कुपोषण
    • एडिसन रोग
  • क्रिएटिनिन -

  • कैल्शियम -

  • मैग्नीशियम -

    • हाइपरएल्डोस्टेरोनिज्म (एड्रिनल ग्रंथि के द्वारा स्रावित किए जाने वाले हार्मोन एल्डोस्टेरोन का अत्यधिक उत्पादन)
    • अल्सरेटिव कोलाइटिस (बड़ी आंत और रेक्टम की परत में सूजन)
    • हाइपकैल्सीमिया (रक्त में कैल्शियम का अधिक स्तर)
    • किडनी की रोग
    • बहुत समय से दस्त
    • शराब से जुड़े विकार
    • अग्नाश्यशोथ
    • अनियंत्रित डायबिटीज
    • प्री एक्लेम्पसिया (गर्भवती महिला को उच्च रक्तचाप और यूरिन में प्रोटीन का मौजूद होना)
  • सोडियम -

    • कीटोन्यूरिया (एक स्थिति जिसमें कीटोन जो कि वसा के मेटाबॉलाइज होने पर बनते हैं, पेशाब में निकलने लगते हैं)
    • एडिसन रोग
    • अत्यधिक वैसोप्रेसिन, एक प्रकार का हार्मोन 
    • लिवर सिरोसिस
  • पोटेशियम -

    • रीनल आर्टरी स्टेनोसिस (किडनी की एक या दोनों आर्टरी का संकरा हो जाना)
    • हाइपोकेलेमिक पीरियोडिक पैरालिसिस (पोटेशियम के घटे हुए स्तर जिससे मांसपेशियों में  कमजोरी आना)
    • कुशिंग सिंड्रोम 
    • हाइपरएल्डोस्टेरोनिज्म
    • रीनल ट्यूबूलर एसिडोसिस
    • उल्टी
    • काफी समय से दस्त
    • आहार में पोटेशियम की कमी 
  • क्लोराइड -

    • बार्टर सिंड्रोम (किडनी के विकारों का एक समूह जिसमें सोडियम, पोटेशियम और क्लोराइड का असंतुलन हो जाता है)
    • डाईयुरेटिक हार्मोन का ठीक तरह से स्त्राव न होने के कारण हुआ सिंड्रोम जलना
    • उल्टी
    • गैस्ट्रिक सक्शन
    • कंजेस्टिव हार्ट फेलियर
    • एडिसन रोग
    • पानी की कमी
    • हाइपरएल्डोस्टेरोनिज्म
    • मेटाबोलिक एल्केलोसिस
    • अत्यधिक पसीना आना
    • रेस्पिरेटरी एसिडोसिस
  • टीएसएच -

    • ग्रेव्स डिजीज
    • शरीर में आयोडीन की अधिकता 
    • टॉक्सिक नॉडुलर गोइटर (एक स्थिति जिसमें बढ़ी हुई थायराइड ग्रंथि  में मौजूद मास के टुकड़े थायराइड का अत्यधिक उत्पादन करते हैं)
  • फोलिक एसिड -

फोलिक एसिड टेस्ट के परिणाम मेगालोब्लास्टिक एनीमिया और फोलेट की कमी के कारण हुआ एनीमिया जैसी स्थितियों का परीक्षण करने में मदद कर सकते हैं।

असामान्य यूरिन आर/एम टेस्ट के परिणाम निम्न की ओर संकेत करते हैं -

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संदर्भ

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